Wednesday 6 June 2012

जमानत देने पर जज को करोड़ों की घूस का पेचीदा मामला


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 6 June 2012
अनिल नरेन्द्र
देश के लिए यह अत्यंत दुर्भाग्य की बात है कि भ्रष्टाचार से अब हमारी ज्यूडिश्यिरी यानि न्यायपालिका भी नहीं बच सकी। बेशक अभी इक्का-दुक्का मामले ही प्रकाश में आए हैं पर यह संकेत देश की सेहत के लिए अच्छा नहीं माना जा सकता। विशेष सीबीआई अदालत के जज टी. पट्टामिरामा राव को आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के आरोपों में निलंबित कर दिया है। राव ने खनन कारोबारी जनार्दन रेड्डी को जमानत दी थी। सीबीआई ने एक बैंक लॉकर से करीब एक करोड़ 80 लाख रुपये मिलने का दावा किया है, जिसकी चॉभियां पट्टामिरामा राव के बेटे के पास थीं। आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट रजिस्ट्रार की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि सीबीआई मामले के प्रथम अतिरिक्त विशेष न्यायाधीश पट्टामिरामा राव के खिलाफ मिली सूचना पर विचार करने के बाद हाई कोर्ट ने जनहित में उन्हें निलंबित कर दिया है। विशेष न्यायाधीश पट्टामिरामा राव ने पिछले महीने ही ओएमसी अवैध खनन मामले के आरोपी कर्नाटक के पूर्व मंत्री जी. जनार्दन रेड्डी को जमानत दे दी थी जबकि इस मामले के एक अन्य आरोपी और आईएएस अधिकारी वाई. श्रीलक्ष्मी की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। हालांकि सीबीआई की अपील पर हाई कोर्ट ने रेड्डी को जमानत देने वाले आदेश को पांच जून तक निलंबित कर दिया था। रजिस्ट्रार ने कहा कि न्यायाधीश के खिलाफ मिली सूचना पर विचार के बाद हाई कोर्ट ने फैसला किया कि जनहित में उन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित करना जरूरी है। आदेश में कहा गया है कि विशेष न्यायाधीश पट्टामिरामा राव प्रस्तावित अनुशासनात्मक कार्रवाई पूरी नहीं होने तक निलंबित रहेंगे। इस बीच सीबीआई ने हैदराबाद में एक बैंक लॉकर से करीब 1.80 करोड़ रुपये मिलने का दावा किया है। एजेंसी को संदेह है कि पैसा रेड्डी का था और अवैध रिश्वत के तौर पर दिया गया था। मामला फिर मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखा गया जिन्होंने राव के निलंबन का आदेश दिया। तेदेपा प्रमुख एन. चन्द्रबाबू नायडू और कांग्रेस सांसद चिरंजीवी समेत पार्टी के अन्य नेताओं ने न्यायपालिका को प्रभावित करने की कोशिशों की खबरों पर स्तब्धता जाहिर की और इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए उचित कार्रवाई की मांग की।
केंद्र सरकार ने उच्च न्यायपालिका में जजों के व्यवहार को विनियमित करने वाले न्यायाधीश मानक एवं जवाबदेही बिल 2010 में संशोधन के संकेत दिए हैं। बिल में जजों के खिलाफ शिकायत करने और उन्हें हल्की सजाओं का प्रावधान है। यह बिल 29 मार्च को लोकसभा में पारित हो गया, जिसे अब राज्यसभा में पेश किया जाना है। पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेएस वर्मा ने बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया के एक कार्यक्रम में बिल पर कड़ा गुस्सा जाहिर किया। उन्होंने कहा कि न्यायिक जवाबदेही से वह स्वयं को बेइज्जत और कमतर महसूस कर रहे हैं। सरकार का इस तरह से जजों के व्यवहार को विनियमित करना उचित नहीं है। मौजूदा व्यवस्था यानि न्यायाधीश जांच कानून 1968 में भ्रष्ट जजों को संसद में लाए गए महाभियोग के जरिये हटाया जा सकता है। जवाबदेही बिल इस कानून की जगह लेगा। चूंकि यह मामला अदालतों और जजों से संबंधित है, हम इस पर किसी प्रकार की टिप्पणी नहीं कर सकते पर जज भी देश से ऊपर नहीं हैं।

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