Friday 1 June 2012

आरक्षण के नाम पर अल्पसंख्यकों को गुमराह करने का असफल पयास

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 1 June 2012
अनिल नरेन्द्र
केंद्र सरकार को यह मालूम था कि उत्तर पदेश विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उसने जो कांग्रेस पार्टी को अल्पसंख्यक वोट दिलवाने की उम्मीद से अल्पसंख्यकों के लिए जो साढ़े चार पतिशत आरक्षण किया है उसे अदालत रद्द कर सकता है पर फिर भी केंद्र ने ऐसा किया। जैसी उम्मीद थी वैसा ही हुआ। आंध्र पदेश हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को तगड़ा झटका देते हुए मजहब के आधार पर आरक्षण देने से इंकार कर दिया। उल्लेखनीय है कि उत्तर पदेश विधानसभा चुनावों के दौरान केंद्र ने ओबीसी के 27 फीसद कोटे से साढ़े चार फीसद आरक्षण देने की घोषणा की थी। यह आरक्षण सभी अल्पसंख्यक वर्गों के लिए था। हालांकि माना जा रहा था कि इस घोषणा के पीछे मुस्लिम वोट बैंक को लुभाना था। ऐन वक्त पर की गई घोषणा पर चुनाव आयोग ने विधानसभा चुनावों तक इसके अमल पर रोक लगा दी थी। सरकार ने नतीजा घोषित होने के साथ ही इसे लागू कर दिया। केंद्र सरकार ने एक शगूफा छोड़ा था जो अब अदालत ने रद्द कर दिया है। सभी जानते हैं कि भारत के संविधान में धर्म आधारित आरक्षण के लिए कोई जगह नहीं है। केंद्र सरकार का यूपी विधानसभा से ठीक पहले उठाया यह कदम शुद्ध राजनीति से पेरित था और अल्पसंख्यकों को खासतौर से यूपी के मुसलमानों को बेवकूफ बनाने का एक पयास था। उच्च न्यायालय ने साफ कहा कि केंद्र सरकार का यह फैसला केवल धार्मिक आधार पर लिया गया है। इतना ही नहीं हाईकोर्ट ने इस मुद्दे पर लापरवाही से काम करने के लिए केंद्र सरकार को आड़े हाथ भी लिया। सरकार की ओर से यह दलील दी गई थी कि यह फैसला सच्चर समिति की सिफारिशों के आधार पर लिया गया और ऐसा करके उसने 2009 के घोषणा पत्र में दर्ज अपने वादे को पूरा किया है। बावजूद इस सबके वह यह नहीं बता सकी कि जो वादा 2009 में किया गया था उसे पूरा करने की याद 2012 में तब क्यों आई जब पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव कार्यकम की घोषणा होने वाली थी? शायद यही कारण रहा कि निर्वाचन आयोग ने चुनाव होने तक इस फैसले के अमल पर रोक लगा दी। निर्वाचन आयोग द्वारा इस पर रोक लगाने से साबित हो गया कि यह चुनावी लाभ के लिए लिया गया एक राजनीतिक फैसला था। अब सरकार और कांग्रेस दोनों अल्पसंख्यक आरक्षण पर हाईकोर्ट की इस चाबुक की मार से उभरने का रास्ता खोजने में लग गए हैं। सलमान खुर्शीद ने कहा है कि सरकार आंध्र पदेश हाईकोर्ट के इस फैसले को सुपीम कोर्ट में चुनौती देगी। दलील यह दी जाएगी कि यह फैसला धार्मिक नहीं भाषाई आधार पर लिया गया था। सरकार अपनी पार्टी कांग्रेस को दिलासा दे रही है कि सुपीम कोर्ट में ठीक से पक्ष रखने से अल्पसंख्यक आरक्षण का मामला सुलझ जाएगा। सरकार अपनी हार को वकीलों द्वारा ठीक से केस पस्तुत न कर पाने की वजह मान रही है। सुपीम कोर्ट में पिछड़ों के कोटे के अंदर मुस्लिमों के लिए एक निश्चित कोटे की बात रखने की मजबूत दलील देनी होगी। कोर्ट चाहेगा कि सरकार बताए कि अल्पसंख्यकों में जो पिछड़े हैं वे वास्तव में कितने पिछड़े हैं? कानून मंत्री सलमान खुर्शीद से जब यही सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि एटार्नी जनरल के लिए अदालत को समझाना मुश्किल नहीं होगा क्योंकि सरकार अल्पसंख्यक पिछड़ों की अलग से सूची नहीं बनाने जा रही है। उन्होंने कहा कि पिछड़ों का आरक्षण तय करने वाले मंडल आयोग ने जो खाका दिया है, सरकार उसके दायरे के भीतर ही कोर्ट में बात करेगी। कानून मंत्री ने स्वीकार किया कि सरकार संविधान के बाहर नहीं जा रही है। सुपीम कोर्ट इस मुद्दे पर क्या रुख अख्तियार करता है समय ही बताएगा। इससे इंकार नहीं कि अल्पसंख्यकों और विशेष तौर पर मुस्लिम समाज की सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा के लिए अतिरिक्त कदम उठाए जाने की जरूरत है लेकिन इसका यह भी मतलब नहीं कि ऐसा सिर्प चुनावी लाभ या वोट हासिल करने के लिए किया जाए। मुस्लिम समाज अब राजनीतिक चालबाजियों में फंसने वाला नहीं। उसने देख लिया है कि पिछले छह दशकों से इन राजनीतिक दलों ने उन्हें कैसे गुमराह कर महज वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया है।
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