Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi |
Published on 13 June 2012
अनिल नरेन्द्र
11 और 12 जून को भारत-पाक रक्षा सचिवों की इस्लामाबाद में बैठक में सियाचिन मुद्दा जरूर उठेगा। पाकिस्तान ने इसका इशारा भी किया है। हालांकि भारत के रक्षा मंत्री एके एंटनी ने कहा है कि इस दौर की वार्ता में कोई चमत्कार नहीं होने वाला है। हां, आपसी संबंध मधुर बनाने में यह एक कदम हो सकता है। जहां हम किसी भी ऐसे प्रयास का स्वागत करते हैं जिससे दोनों पड़ोसियों के आपसी संबंध सुधरें वहीं भारत सरकार को यह भी चेताना चाहते हैं कि वह सियाचिन मुद्दे पर पाकिस्तान की चिकनी-चुपड़ी दलीलों में न फंसे और बिना जरूरी शर्तों पर किसी भी हालत में सियाचिन से अपनी वर्तमान पोजीशन से पीछे नहीं हटे। भारत ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि सबसे पहले यह तय हो कि वर्तमान में दोनों देशों की सेनाएं कहां काबिज हैं। पाकिस्तान को यह मानना पड़ेगा कि आज उसके सैनिक कहां बैठे हैं और भारत के सैनिक कहां बैठे हैं। फिर नक्शे पर दोनों सेनाएं कहां से कितना हटेंगी यह तय हो। अगर भारत पीछे हटेगा तो पाकिस्तान को भी उतना ही पीछे हटना पड़ेगा। यह इसलिए जरूरी है कि जो एडवांटेज इस समय भारत का है वह बरकरार रहे। फिर तय होनी चाहिए अंतर्राष्ट्रीय बाउंड्री। यह सब इसलिए जरूरी है, क्योंकि एक बार हम बिना यह शर्त तय किए पीछे हट गए तो दोबारा इसे अपने कब्जे में करना अगर असम्भव नहीं तो बहुत मुश्किल और कीमती तो जरूर साबित होगा। जो एडवांटेज आज है वह हर हालत में बरकरार रहना चाहिए। यह इलाका इतना खतरनाक और मुश्किल है इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अभी हाल ही में पाकिस्तान के नियंत्रण वाले श्योंग ग्लेशियर में अचानक आए एवलांच में उसके 130 से ज्याद सैनिक दब गए। यह सैनिक बर्प में करीब 25 मीटर नीचे दब गए थे। ऐसी जगह पर बचाव कार्य बहुत मुश्किल है, क्योंकि वहां इंसान ही नहीं, मशीनें भी अपनी क्षमता का चौथाई हिस्सा ही कार्य कर पाती हैं। करीब 76.4 किलोमीटर लम्बे सियाचिन ग्लेशियर उत्तरी लद्दाख के काराकोरम पर्वत श्रृंखला में स्थित है। भारत, चीन और पाकिस्तान के कब्जे वाले उत्तरी कश्मीर के इस जंक्शन प्वाइंट पर इस तरह के कुल 22 ग्लेशियर हैं। इनकी ऊंचाई 11 हजार 400 से 20 हजार फीट तक है। यहां का औसतन तापमान शून्य से 50 डिग्री सेल्सियस से भी कम होता है। यह तापमान ऐसा है कि अगर भूल से शरीर का कोई हिस्सा गरम कपड़ों से बाहर रह जाए तो वह हमेशा के लिए खराब हो सकता है। इसके अलावा हिमपात, बर्फीली आंधी और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक घटनाएं इस इलाके को और भी दुरुह बना देती हैं। इससे पहले कि पाकिस्तान इस इलाके में कब्जा कर लेता भारत ने 1984 में ऑपरेशन मेघदूत नामक अभियान चलाकर इस इलाके पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया। हालांकि 1984 के बाद से पाकिस्तान सियाचिन पर दोबारा कब्जा जमाने की लगातार कोशिश करता रहा, लेकिन उसे इसमें कामयाबी नहीं मिली। आखिर हारकर पाकिस्तान ने 2003 में क्षेत्र में युद्ध विराम कर लिया। इस समय तक दोनों मुल्कों के 2000 से अधिक सैनिक यहां जान गंवा चुके हैं। किसी युद्ध में नहीं बल्कि फ्रास्टबाइट, ऑक्सीजन की कमी और एवलांच में दब जाने से। यानि संसार के सबसे ऊंचे इस युद्ध क्षेत्र में हजारों सैनिकों को जंग के बिना ही अपनी जान गंवानी पड़ी है। सियाचिन इलाके में दोनों देशों की करीब 150 चौकियां हैं, जहां दोनों तरफ से करीब 3-3 हजार सैनिक हर वक्त तैनात रहते हैं। दोनों देश इसकी भारी कीमत चुकाते हैं। वर्ष 2009 में किए गए आंकलन के मुताबिक यहां फौज बनाए रखने में भारत को हर दिन 3-3.5 करोड़ रुपये का खर्च उठाना पड़ता है। सियाचिन के सामरिक महत्व को दखते हुए कोई भी सरकार यहां से सैनिक हटाना चाहे भी तो भी आसानी से हटा नहीं सकती। दोनों भारत और पाकिस्तान को मालूम है कि अगर वह किसी भी समझौते के तहत अपनी वर्तमान पोजीशन से पीछे हटते हैं तो दोबारा इस पोजीशन में पहुंचना लगभग असम्भव होगा। इसलिए भारत सरकार को अपना पांव पूंक-पूंक कर रखना होगा।Anil Narendra, Daily Pratap, India, Indian Army, Pakistan, Siachin, Vir Arjun
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