Sunday, 3 June 2012

ब्रह्मेश्वर की हत्या से कहीं फिर से हिंसा का दौर आरंभ न हो जाए

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 3 June 2012
अनिल नरेन्द्र
जब से बिहार में श्री नीतीश कुमार ने सत्ता संभाली है तब से राज्य में कोई बड़ी हिंसा की घटना नहीं हुई है। इससे लगने लगा कि कभी हिंसा के लिए बदनाम बिहार में यह हिंसा का दौर खत्म हो गया है। पर शुकवार को एक नया तूफान उठ गया। कुख्यात जातीय गुट रणवीर सेना के संस्थापक ब्रह्मेश्वर सिंह उर्प मुखिया की बड़ी सनसनीखेज ढंग से हत्या कर दी गई। वे आरा में अपने निवास से सुबह की सैर पर निकले ही थे कि मोटरसाइकिल से आए अज्ञात हमलावरों ने उन पर गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। करीब चालीस गोलियों से ब्रह्मेश्वर को छलनी कर दिया। 1990 के दौर में जब नक्सलियों का आतंक था तो इससे निपटने के लिए भूस्वामियों ने जिनमें सारी सवर्ण जातीयां शामिल थी, ने रणवीर सेना का गठन ब्रह्मेश्वर सिंह ने गठन किया था। इस निजी सेना पर कई नरसंहारों के आरोप हैं। इनमें लक्ष्मणपुर बाथे, सिंचापुर और बकसीटोला के चर्चित नरसंहार शामिल हैं। सन् 1994 से लेकर 2002 के बीच करीब 250 लोगों की हत्या के 26 मामलों में मुख्य आरोपी ब्रह्मेश्वर मुखिया को सबूतों के अभाव के चलते जुलाई 2011 में अदालत ने जमानत दी थी। ब्रह्मेश्वर सिंह एक दौर में आतंक का पर्याय बन गए थे। उन्हें हत्याओं के 16 मामलों में बरी किया गया था और छह मामलों में जमानत पर थे। नौ साल तक जेल में रहने के बाद पिछले महीने ही वे बाहर आए थे। उनकी तैयारी चुनावी राजनीति में पूंदने की थी। उनकी हत्या के बाद उनके समर्थकों में गुस्सा फूट गया। इन लोगों ने पहले बीडीओ कार्यालय को निशाना बनाया, वहां जमकर तोड़फोड़ के बाद आग लगा दी। इसके बाद करीब एक हजार लोगों के हुजूम ने सर्पिट हाउस पर धावा बोल दिया, जाते-जाते इसमें भी आग लगा दी। पूरे राज्य में हाईअलर्ट जारी कर दिया गया है। भागलपुर जिले में सेवा यात्रा में व्यस्त मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कहना है कि हत्यारों को पकड़ा जाएगा और उन्हें सजा मिल कर रहेगी। डर यह है कि कहीं फिर से बिहार में जातिवादी हिंसा न भड़क पड़े। विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं में इस हत्या का राजनीतिक लाभ लेने की होड़ शुरू हो गई है। बिहार की बुनियादी समस्या जमीन की मिलकियत से जुड़ी हुई है। लंबे वक्त तक भूमि सुधार न होने की वजह से विभिन्न जातियों के बीच विरोध और टकराव तेज होता गया। न बिहार में उस हद तक औद्योगीकरण हुआ, न ही हरित कांति जैसा बदलाव हुआ, जो आर्थिक और जातिगत संबंधों को बदलता। ऐसे ठहराव के दौर में गरीब और भूमिहीन दलितों के बीच नक्सलियों का पभाव बढ़ता गया जिन्होंने आर्थिक और सामाजिक बेहतरी की उनकी आकांक्षाओं को उग्र और हिंसक रूप दिया। इसकी पतिकिया में सभी जातियों ने अपनी हिंसक सेनाएं बना डाली। मंडलवाद के दौर में बदली गई राजनीति से भी जमीन से जुड़े आर्थिक संबंधों को व्यवस्थित रूप से ठीक करने की कोशिश नहीं की, इसके बदलाव अराजक हिंसक तरीके से हुआ। ब्रह्मेश्वर सिंह जैसे नेता ऐसे में सभी जातियों के नायक बन गए। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए यह एक बड़ी चुनौती है। पतिकिया स्वरूप फिर से बिहार में जातीय संघर्ष को हर हालत में रोकना होगा।
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