Saturday 2 June 2012

भावुक जवाब देकर मनमोहन सिंह अपनी जिम्मेदारी टाल नहीं सकते

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 2 June 2012
अनिल नरेन्द्र
टीम अन्ना के आरोपों पर पधानमंत्री मनमोहन सिंह का जवाब शायद ही किसी को संतोषजनक लगे। पधानमंत्री का यह भावुक कथन कि अगर उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप कोई साबित कर सकता है तो वह राजनीति से संन्यास ले लेंगे हमारे गले तो उतरा नहीं। हमें तो पधानमंत्री का जवाब मुख्य मुद्दे से ध्यान हटकर अपने सारे दागी सहयोगियों को बचाने का लगता है। टीम अन्ना ने पधानमंत्री और उनके 15 मंत्रियों की सूची जारी की है। उसमे उन्होंने बस यही तो कहा है कि कोयला खदान आवंटन को लेकर कैग की एक रिपोर्ट में कुछ भ्रष्टाचार दर्शा रहा है और चूंकि यह मंत्रालय पधानमंत्री के आधीन है इस लिहाज से वह जिम्मेदार हैं। अगर पधानमंत्री निर्दोष हैं तो जांच क्यों नहीं करवा लेते? डा. मनमोहन सिंह इस देश के पधानमंत्री भी हैं। इसका मतलब यह है कि साझा जिम्मेदारी (ज्वाइंट रिस्पांसिबिलिटी) के आधार पर मुखिया होने के नाते वह अपने मंत्रिमंडल साथियों के आचरण के लिए भी जिम्मेदार हैं। टीम अन्ना ने उनके मंत्रिमंडल के 15 सदस्यों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है। अगर सरकार का मुखिया अपनी टीम का जिम्मेदार नहीं तो और कौन जिम्मेदार है। यह समय भावुकता भरे बयान देने और खुद को टीम अन्ना से आहत दिखाने का नहीं बल्कि देश के समक्ष यह स्पष्ट करने का है कि आप पिछले 8 सालों से पधानमंत्री हैं और इस दौरान आप घोटालों पर रोक लगाने में असफल क्यों हैं? घपलों, घोटालों का सिलसिला थम नहीं रहा। राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों के नाम पर अनगिनत घपलों के साथ ही 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला सामने आया। इसके बाद तो एक के बाद एक घपलों की लाइन सी लग गई। कभी सोलह आना ईमानदार जाने वाले मनमोहन सिंह किसी सौदेबाजी में शामिल होंगे, यह आज भी कोई यकीन करने वाला नहीं है। लेकिन वे सब कुछ जानकर भी आंख बंद किए हुए हैं या गठबंधन की मजबूरी या फिर सिर्प राज करने के लोभ में चुप हैं, इस बात पर शक जरूर होने लगा है। आखिर मुखिया होने के नाते मनमोहन सिंह जी ने कोई भी घोटाला रोकने की कोशिश क्यों नहीं की और यह जानते हुए कि घोटाला दर घोटाला हो रहा है वह चुपचाप तमाशा देखते रहे का मतलब साफ है कि उन्हें न तो इनकी परवाह है और न ही वह इसे रोकने के इच्छुक हैं। वह तो बस पधानमंत्री बने रहना चाहते हैं। वह जानते हैं कि अब अगर वह पीएम कुर्सी से हट गए तो सिवाय रिटायर होने के और कोई दूसरा रास्ता उनके लिए नहीं बचेगा। जब तक सम्भव हो चिपके रहो इस कुर्सी से। आज स्थिति यह आ गई है कि अपने भ्रष्ट साथियों को बचाते-बचाते खुद को शिखंडी का खिताब देने वाले पशांत भूषण को भी कुछ कहने की स्थिति में नहीं। उल्टा भावुकता से सारे मामले को दबाना चाह रहे हैं। टीम अन्ना के पमुख सलाहकार अरविंद केजरीवाल ने कहा कि पधानमंत्री किसी जांच के बिना अपने आपको पाक-साफ कैसे घोषित कर रहे हैं? वह यह क्यों नहीं कहते कि मामले की जांच करवा लो। पर पधानमंत्री की व्यक्तिगत जिम्मेदारी से कहीं बड़ा पश्न है इस यूपीए-2 सरकार की जवाबदेही जो बिल्कुल नजर नहीं आती और न ही वह ऐसे कदम उठाने को ही तैयार हैं जिससे दूध का दूध, पानी का पानी हो जाए।
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