Saturday 9 June 2012

संघ चाहता है कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पार्टी चुनाव लड़े

भाजपा में बढ़ते अंतर्पलह का एक सबूत संजय जोशी का पार्टी छोड़ना है। पहले बेइज्जत करके संजय जोशी को राष्ट्रीय कार्यकारिणी से निकाला गया और अब पार्टी से ही निकलने पर मजबूर कर दिया गया। यह सब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानि आरएसएस और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के इशारों पर अध्यक्ष नितिन गडकरी ने किया। अब यह स्पष्ट हो चुका है कि गडकरी तो मुखौटा हैं असल ताकत तो संघ है और संघ ने अन्दरखाते यह फैसला कर लिया है कि एक तरफ वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी को डाउन करना है दूसरी तरफ नरेन्द्र मोदी को भावी प्रधानमंत्री प्रोजेक्ट करना है। तभी तो संघ के मुखपत्र आर्गनाइजर के ताजा अंक में कहा गया है कि कांग्रेस पार्टी का तेजी से ग्रॉफ गिर रहा है लेकिन भाजपा के नेतृत्व वाले राजग को कांग्रेस के इस ह्रास का फायदा उठा पाना भी मुश्किल नजर आ रहा है। केवल मोदी ही ऐसा चेहरा हैं जिनमें पार्टी को उभारने और देशभर में उसके वोट आधार का विस्तार करने की क्षमता है जैसे अटल बिहारी वाजपेयी ने नब्बे के दशक में करके दिखाया था। अगर संघ इस नतीजे पर वाकई ही पहुंच चुकी है तो क्यों नहीं खुली घोषणा कर देता कि संघ और भाजपा 2014 का लोकसभा चुनाव नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लड़ेगा? श्री नरेन्द्र मोदी की छवि कट्टर हिन्दुत्व की है। अटल जी की छवि और मोदी की छवि में बहुत फर्प है। अटल जी सबको साथ लेकर चलते थे। मोदी के काम करने का अपना ही ढंग है, यह न तो कार्यकर्ता की परवाह करते हैं, न नेता की और न ही संघ की। उनकी महत्वाकांक्षाएं अब संघ और भाजपा से ऊपर हो गई हैं। वह इनको कुछ नहीं समझते। कल तक इन्हीं गडकरी साहब की मोदी से अनबन थी पर अब संघ के इशारे पर गडकरी को मोदी से समझौता करना पड़ा है और इस सौदे की गडकरी को क्या कीमत देनी पड़ी है संजय जोशी के केस से पता चलता है। हमें लगता यह है कि संघ मोदी को आडवाणी के खिलाफ खड़ा कर रहा है। आडवाणी को किनारे लगाने के लिए संघ किसी भी हद तक जा सकता है। जब संघ को यह विश्वास हो गया कि अब अटल जी राजनीति में सक्रिय भूमिका नहीं निभा सकते तो उसने आडवाणी की काट करनी आरम्भ कर दी और विडम्बना यह है कि खुद श्री आडवाणी ने उन्हें बहाना भी गलती से दे दिया। मैं जिन्ना के बयान की बात कर रहा हूं। कभी राजनाथ सिंह को आगे करके तो कभी दूसरी पंक्तियों के नेताओं को उकसा कर आडवाणी को डाउन करने का प्रयास होता रहा। कटु सत्य तो यह है कि आज भी आडवाणी के सामने अन्य सभी भाजपा नेता बौने लगते हैं। नरेन्द्र मोदी बेशक एक काबिल और धाकड़ छवि वाले नेता हैं पर उन्हें भाजपा के अन्दर और बाहर कितना स्वीकार किया जाएगा, यह कहना मुश्किल है। अगर नरेन्द्र मोदी को भावी पीएम प्रोजेक्ट किया जाता है तो भाजपा में ही घमासान मच जाएगा। सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, राजनाथ सिंह, डाक्टर मुरली मनोहर जोशी सभी अपने दावे पेश कर सकते हैं। फिर राजग के दूसरे घटक दलों जिनमें नीतीश कुमार, बाल ठाकरे, प्रकाश सिंह बादल जैसे दिग्गज प्रमुख हैं, क्या मोदी को स्वीकार करेंगे? आडवाणी जी ऐसे नेता हैं जिनकी छतरी के नीचे राजग सहयोगी दल संगठित हो सकते हैं। कांग्रेस के खिलाफ माहौल इतना खराब है कि क्या कह सकते हैं शायद मुसलमान भी मोदी की जगह आडवाणी का समर्थन कर दें? पर आडवाणी के ऊंचे कद के बावजूद आरएसएस उन्हें डाउन करने के लिए किसी हद तक जाने को तैयार है। पहले राजनाथ सिंह को खड़ा किया गया, वह फेल हो गए अब नरेन्द्र मोदी को खड़ा किया जा रहा है यानि संघ ऐसा करने के लिए बड़े से बड़ा त्याग करने के लिए तैयार है पर संघ अपने ही बुने जाल में फंसता नजर आ रहा है और आडवाणी के खिलाफ मोदी को विकल्प के रूप में आगे करने की रणनीति संघ के ही खिलाफ साबित हो रही है। अब संघ को यह समझ नहीं आ रहा है कि वह मोदी की शर्तों को अस्वीकार कैसे करे? विवश होकर संघ मोदी से ब्लैकमेल हो रहा है। असल में संघ को यह अनुमान शायद नहीं था कि नरेन्द्र मोदी अपनी प्रवृत्ति के मुताबिक ही राजनीति करेंगे। उन्होंने अपनी राजनीतिक दबंगई से जिस तरह प्रवीण तोगड़िया सरीखे के संघ के नेताओं को प्रभावहीन बना दिया उसी तरह अपने विरोधियों को षड्यंत्र और राजनीतिक सौदेबाजी के तहत निपटाने में संकोच नहीं किया। नरेन्द्र मोदी की इस दबंगई की वजह से आज पूरी दुनिया में भाजपा की छवि मुस्लिम विरोधी और दंगाई की बनी हुई है। हिन्दुत्व के झंडाबरदारों को एक बात समझ लेनी चाहिए कि देश में उदार हिन्दुत्व तो ठीक है किन्तु हिंसक एवं कट्टर हिन्दुत्व का समर्थन बहुसंख्य हिन्दू भी नहीं करते। इसलिए इस बात की कोई गारंटी नहीं कि केंद्रीय राजनीति में मोदी प्रासंगिक और स्वीकार्य हों? भारत गुजरात नहीं। राज्य में जो चले यह जरूरी नहीं कि पूरे देश में भी वही चले। अभी तो संघ की गलत रणनीति के दुष्परिणाम की शुरुआत है। उसने भाजपा के परम्परागत सिस्टम के खिलाफ जो प्रयोग शुरू किया उसकी विकृति स्वरूप परिणाम भी आने शुरू हो गए हैं। सरल भाषा में कहें तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने नरेन्द्र मोदी को भस्मासुर के रूप में तैयार कर दिया है। किन्तु जैसा कि संघ से जुड़ी पत्र-पत्रिकाएं एवं नेता नरेन्द्र मोदी को लगातार नसीहतें दे रहे हैं, उसे छोड़ें और अपना दिल बड़ा करें। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि भाजपा में अब संगठन पहले नेता बाद में का सिद्धांत समाप्त हो गया है। अब भाजपा संघ की प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी बन चुकी है जिसके एमडी नितिन गडकरी हैं और यह पार्टी को अपनी निजी कम्पनी की तरह चला रहे हैं। मात्र दो सीटों से लोकसभा में भाजपा को पौने दो सौ तक पहुंचाने वाले लाल कृष्ण आडवाणी की तुलना में नरेन्द्र मोदी कितने सफल साबित होंगे, यह तो भविष्य ही बताएगा किन्तु इतना तो तय है कि मोदी को भाजपा के अन्दर ही कई मोर्चों पर जूझना पड़ेगा। अभी लोकसभा चुनाव में दो वर्ष शेष हैं, ऐसी हालत में संघ की आडवाणी विरोधी मुहिम भी पिट सकती है। आडवाणी जी को संघ और भाजपा मिलकर भी चाहे जितना पीछे धकेलने की कोशिश करे किन्तु वास्तविकता तो यही है कि उनके सामने गडकरी और नरेन्द्र मोदी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर दोनों में इन दोनों का व्यक्तित्व बौना लगता है। अगर आने वाले दिनों में यदि आडवाणी ने भाजपा से ही किनारा कर लिया तो पार्टी में विभाजन तक हो सकता है क्योंकि संघ की घटिया राजनीति की वजह से भाजपा का कोई भी नेता दूसरे पर भरोसा नहीं कर रहा है और इसीलिए पार्टी में कई गुट सक्रिय हैं। जाहिर है कि इन गुटों का परस्पर संघर्ष पार्टी को कमजोर ही करेगा और यदि अंतर्पलह के कारण 2014 में भाजपा को मात मिलती है तो इसके लिए पूरी तरह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जिम्मेदार होगा। यदि संघ को भाजपा की चिन्ता होती तो वह पार्टी में उठापटक कराने के लिए आडवाणी के खिलाफ दूसरी पंक्ति के नेताओं को उकसाने और एकजुट करने का काम नहीं करता। यदि उसको जरा भी राजनीतिक समझ होती तो क्रम परम्परा, अटल जी के बाद आडवाणी जी और उनके बाद डॉ. मुरली मनोहर जोशी, से छेड़छाड़ न करता। सच तो यह है कि अब संघ खुद भी दिग्भ्रमित और अविश्वसनीय होता जा रहा है। एक वक्त था जब लोग मानते थे कि यदि भाजपा इतनी अनुशासित है तो संघ कितना अनुशासित होगा। लेकिन अब लोग भाजपा और संघ में कोई अन्तर नहीं करते, लोग अब दोनों को एक ही सिक्के के दो पहलू मान रहे हैं। अब फैसला संघ को करना है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा चुनाव लड़ेगी या नरेन्द्र मोदी के?
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