Saturday 9 June 2012

ममता अब एकला चलो नीति पर अमल करना चाहती हैं

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 9 June 2012
अनिल नरेन्द्र
तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी का आत्मविश्वास चरम सीमा पर है। पश्चिम बंगाल में छह में से चार नगर निगम चुनाव जीतने के बाद से उसकी ऐसी अधीरता अब छलकने लगी है। इन परिणामों से कई संदेश निकले हैं। पहला, विधानसभा चुनावों के बाद वाम मोर्चे के सामने एक बार फिर यह सवाल मुंह बाए खड़ा है कि जनता उस पर भरोसा क्यों नहीं कर पा रही है। दूसरे, यूपीए सरकार का हिस्सा होने के बावजूद कई मुद्दों पर प्रत्यक्ष रूप से असहमति जताकर केंद्र के लिए असुविधाजनक स्थिति पैदा करने के बाद तृणमूल कांग्रेस अब कांग्रेस को कह सकती है कि अगर उसके महत्व को कम करके आंका गया तो वह राज्य में अकेले चलने से नहीं हिचकिचाएगी। तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी के विश्वासपात्र और केंद्रीय रेल मंत्री मुकुल रॉय ने नतीजों के तुरन्त बाद घोषणा कर दी कि उनकी पार्टी बंगाल में अकेले शासन चलाने में सक्षम है। ममता के एक अन्य विश्वास पात्र और केंद्र सरकार में पर्यटन मंत्री सुल्तान अहमद तो इससे भी एक कदम आगे निकल गए। उन्होंने भारतीय पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष पद पर गुजरात के कांग्रेसी नेता शंकर सिंह बघेला की नियुक्ति का विरोध करते हुए सवाल उठा दिया कि इसमें उन्हें क्यों विश्वास में नहीं लिया गया। अहमद यह शिकायत करने में भी नहीं चूके कि बकौल राज्यमंत्री उनके पास काम का कोई दायित्व ही नहीं है। पिछले माह हुए विधानसभा चुनावों के बाद यह पहला मौका था जब तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस से अलग होकर चुनाव लड़ा। इस तरह मुकाबला इस बार तिकोना था पर आम धारणा रही कि पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में वाम मोर्चे की पराजय की एक बड़ी वजह कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस का गठजोड़ था। लेकिन ममता बनर्जी यह संदेश देने में कुछ हद तक कामयाब रहीं कि वे अकेले भी वाम मोर्चे से पार पा सकती हैं। चुनाव नतीजे आने के बाद तृणमूल नेताओं ने यह कहने में कोई संकोच भी नहीं किया कि उनकी पार्टी राज्य में अपने दम-खम पर राज करने की ताकत रखती है और वह भविष्य में होने वाले चुनाव अकेले लड़ेगी। अभी यह साफ नहीं कि तृणमूल ने अंतिम फैसला कर लिया है या फिर उसकी चेतावनी सिर्प नगर निगम चुनावों के दौरान दोनों पार्टियों के बीच हुई खटास का नतीजा है। बंगाल में कांग्रेस इकाई ने तृणमूल की धमकी का कड़ा जवाब दिया, यह कह कर कि वह चाहे तो गठबंधन तोड़ ले पर चारों तरफ से समस्याओं से घिरी केंद्र में मनमोहन सरकार ममता से पंगा लेने को तैयार नहीं है। बृहस्पतिवार को ही ममता का प्रभाव नजर आ गया। उस दिन सरकार के आर्थिक एजेंडे से जुड़े बहुचर्चित पेंशन बिल को कैबिनेट की मंजूरी के लिए लाना था पर ममता के एतराज को देखते हुए केंद्र सरकार को इसे टालना पड़ा और ममता बनर्जी के दबाव में केंद्र सरकार को कदम पीछे लेने पड़े। केंद्र सरकार के लिए ममता का समर्थन बहुत मायने रखता है, इसलिए उसकी कोशिश तृणमूल से अपना गठबंधन हर हाल में जारी रखने की ही होगी। मगर तृणमूल ने कोयला आवंटन में सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों की अनदेखी किए जाने के मुद्दे उठाकर कांग्रेस की दुखती रग छेड़ दी है। नगर निकायों के चुनावों को आमतौर पर स्थानीय या अधिक से अधिक राज्य के भीतर के समीकरणों के हिसाब से देखा जाता है मगर प. बंगाल में नगर पालिका चुनाव ने जहां सत्तारूढ़ गठबंधन में दरार के संकेत दिए हैं वहीं केंद्र सरकार और कांग्रेस पार्टी की मुसीबत बढ़ा दी है।
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