Saturday 16 June 2012

राष्ट्रपति चुनाव के दंगल का पहला अध्याय

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 16 June 2012
अनिल नरेन्द्र
यूपीए ने राष्ट्रपति पद के लिए अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं निवर्तमान वित्त मंत्री का नाम तो घोषित कर दिया, उनके राष्ट्रपति चुने जाने में संदेह भी कम है किन्तु एक बात तो स्पष्ट है कि सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव की अविश्वसनीयता एक बार फिर जगजाहिर हो गई है। पिछले दो दिनों से ममता बनर्जी और मुलायम सिंह यादव की जुगलबंदी ने ऐसा पेंच फंसा दिया था कि कांग्रेस चारों खाने चित हो गई थी। कांग्रेस ने कभी उम्मीद नहीं की होगी कि ममता-मुलायम ऐसा पासा चलेंगे कि जिससे पार्टी के सारे समीकरण ही बदल जाएंगे। देखा जाए तो ममता ने एक तीर से कई निशाने लगाने की कोशिश की थी। यह वही मुलायम सिंह यादव हैं जिन्हें कुछ दिन पहले यूपीए-2 का वार्षिक रिपोर्ट कार्ड पेश करने के लिए सरकार के प्रमुख मंत्रियों के साथ मंच पर खड़ा किया गया और रिपोर्ट को जारी किया गया था। ममता ने कांग्रेस से बदला लेने की कोशिश की थी। कांग्रेस ने यह चेतावनी देने की कोशिश की थी कि ममता आपके पास लोकसभा के 19 सांसद हैं तो हम समाजवादी पार्टी को गले लगाकर उनके 22 सांसदों का समर्थन पा सकते हैं, आप अपनी औकात में रहो। ममता ने एक झटके में कांग्रेस को उसकी औकात दिखाने की कोशिश की। अपने पैनल में सोमनाथ चटर्जी का नाम शामिल करके ममता ने यह भी जता दिया कि वह बंगालियों के खिलाफ नहीं हैं। प्रणब मुखर्जी का समर्थन इसलिए भी करने को ममता को मजबूर किया जा रहा था क्योंकि प्रणब बंगाली हैं और बंगाली होने के नाते ममता उनका समर्थन करने पर मजबूर होंगी पर ममता ने यहां भी कांग्रेस को मात दे दी और सोमनाथ चटर्जी का नाम लेकर इस आलोचना से भी अपने आपको बचा लिया। यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी की पसंद को खारिज करके ममता-मुलायम ने जो पासा फेंका था वह भले ही मुलायम सिंह की वजह से असफल हो गया किन्तु वह आने वाले दिनों में नए ध्रुवीकरण को जन्म देगा। अंतिम समय में जिस ढंग से दोनों नेताओं ने गुगली फेंकी थी उससे कांग्रेस की न सिर्प परेशानी ही बढ़ी थी बल्कि राष्ट्रपति चुनाव को बहुत पेचीदा बना दिया था। दरअसल राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का नाम लेना एक सोची-समझी रणनीति का परिचायक है। कांग्रेस के अन्दर भी एक ऐसा धड़ा है जो मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद से हटाना चाहता है। मनमोहन सिंह का नाम सुझाना एक तरह से संप्रग सरकार के इन दोनों समर्थक दलों द्वारा प्रधानमंत्री में अविश्वास प्रकट करने के समान है। मनमोहन सिंह कांग्रेस पार्टी के लिए एक बोझ बन चुके हैं, वह एसेट कम लाइबिलिटी ज्यादा हैं। सभी जानते हैं कि मनमोहन को हटाना इस समय कांग्रेस के लिए सम्भव नहीं है पर ममता-मुलायम ने पंगा जरूर फंसा दिया है। दोनों ने सोनिया गांधी को यह भी स्पष्ट संदेश दे दिया था कि इस मामले में किसी भी निर्णय तक पहुंचने में तृणमूल और सपा की भूमिका को दरकिनार नहीं किया जा सकता है। ममता और कांग्रेस में तल्खी बढ़ी है। एक कांग्रेसी सांसद अधीर चौधरी ने तो ममता की तुलना मीर जाफर से ही कर दी क्योंकि उन्होंने एक बंगाली (प्रणब मुखर्जी) का विरोध किया है। ममता के इस व्यवहार को सोनिया गांधी भूल नहीं सकतीं, इसलिए दोनों महिलाओं में एक ऐसी दरार पड़ गई है जिसे पाटना आसान नहीं होगा। ममता भी बहुत गुस्से में हैं।
यह तो पहले ही आशंका थी कि मुलायम यूपीए सरकार के सामने सीना तानकर खड़े होने की हैसियत में नहीं हैं लेकिन उन्होंने जिस तरह कांग्रेस को झटका दिया उससे एक बात तो साफ है कि उनके भरोसे कोई पार्टी या गठबंधन अपनी रणनीति तय नहीं कर सकता।
मुलायम तो तब झुके जब उन्हें लगा कि आय से अधिक सम्पत्ति मामले में सुप्रीम कोर्ट में उनके खिलाफ तलवार लटक रही है और जुलाई में ही कांग्रेसी वकील विश्वनाथ चतुर्वेदी द्वारा दायर मुकदमे की सुनवाई है तो उन्होंने ममता को गच्चा दे दिया। लेकिन इससे इतना तो स्पष्ट हो गया है कि ममता की नाराजगी यूपीए से बनी रहेगी जो किसी हद तक जा सकती है।
बहरहाल कांग्रेस को यूपीए घटक दलों एवं बाहर से समर्थन दे रही पार्टियों का प्रणब मुखर्जी के पक्ष में समर्थन तो हासिल हो गया और अब वह चाहेगी कि उसे एनडीए भी समर्थन दे दे ताकि उसके उम्मीदवार निर्विरोध चुन लिए जाएं किन्तु लगता है कि अभी राष्ट्रपति चुनाव तक बहुत सारी राजनीतिक उठापटक होनी है। क्योंकि ममता ने कोलकाता पहुंच कर ऐलान कर दिया कि खेल अभी खत्म नहीं हुआ है। मतलब यह कि राष्ट्रपति चुनाव के दंगल का पहला अध्याय ही खत्म हुआ है आगे महादंगल बाकी है।
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