Sunday 3 June 2012

अर्थशास्त्री पधानमंत्री का नौ साल का आर्थिक रिकार्ड

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 3 June 2012
अनिल नरेन्द्र
जाने-माने अर्थशास्त्राr पधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को पधानमंत्री बने नौ साल पूरे हो चुके हैं। इन नौ सालों में उनकी आर्थिक नीतियों, आर्थिक सुधारों की बड़ी तारीफ होती रही है। कहा गया कि भारत दुनिया की सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। सारी दुनिया में भारत की वाह-वाह होने लगी जबकि आंकड़े कुछ और ही कहानी कह रहे हैं। ताजा आंकड़े बताते हैं कि बीते वित्त वर्ष 2011-12 की चौथी तिहाई में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर छह पतिशत से नीची रही है। पिछले नौ सालों में यह देश की सबसे कम आर्थिक विकास दर है। सरकार की नाकामी से बदहाल हुई अर्थव्यवस्था साफ संकेत दे रही है कि चालू वित्त वर्ष 2012-13 में विकास की रफ्तार और घट जाएगी। सरकार के ताजा आंकड़ों के मुताबिक चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) में जीडीपी की दर घटकर 5.3 पतिशत आ गई है। बीते वर्ष की तीसरी तिमाही में यह दर 6.1 पतिशत थी। विकास दर घटने के पीछे वैसे तो भारी भरकम सब्सिडी, पेंशन और रिटेल में एफडीआई जैसे अटके पड़े विधेयक, उद्योग क्षेत्र की दुर्दशा, तलहटी पर पहुंचा रुपया, आपूर्ति के मोर्चे पर बदहाली और रुके हुए विदेशी निवेश जैसी कई वजहें हैं। लेकिन कृषि और उत्पादन क्षेत्र की खराब हालत हमारी अर्थव्यवस्था के लिए सबसे चिंतनीय है। तेज आर्थिक विकास दर के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा मैन्यूफैक्चरिंग, कृषि और खनन क्षेत्र की खराब स्थिति साबित हो रही है। देश की अर्थव्यवस्था में लगभग 40 फीसद हिस्सेदारी रखने वाले इन तीनों क्षेत्रों की खस्ताहाल स्थिति आम जनता के हितों से सीधे तौर पर जुड़ी हुई है। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर सरकार के आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि इन तीनों क्षेत्रों में इस वित्त वर्ष के दौरान बद से बदतर होती गई है। मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में माना जा रहा था कि कृषि क्षेत्र का बेहतर पदर्शन उद्योग क्षेत्र की दुर्दशा को शायद ढक देगा, लेकिन चौथी तिमाही में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर घटकर 1.7 फीसदी रह गई, जो 2010-11 की चौथी तिमाही में 7.5 पतिशत थी। जिस मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र के दमदार पदर्शन के कारण हमारी आर्थिक विकास दर कभी दोहरे अंकों के नजदीक पहुंची थी, उसी मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की वृद्धि दर चौथी तिमाही में नकारात्मक रह गई। उसकी दो वजह हो सकती हैं। पहली कि हमने इसके बजाए उस सेवा क्षेत्र को ज्यादा महत्व देना शुरू कर दिया जो फिलहाल भले दुधारू गाय की तरह लगे लेकिन इसके अकेले बूते पर हम मजबूत अर्थव्यवस्था नहीं बना सकते। दूसरे चीन के संबंधित आयात ने भी हमारी मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र पर असर डाला, इससे रोजगार पर भी पतिकूल असर पड़ा। चूंकि बढ़े तेल मूल्यों के कारण महंगाई का दौर अभी बना रहेगा। ऐसे में आर्थिक विकास दर की बढ़ोतरी की संभावना फिलहाल कम ही नजर आती है। जिस तरह से यह संपग सरकार और उसके मुखिया चल रहे हैं उससे तो हमें भारत की अर्थव्यवस्था सुधरने के चांस कम ही नजर आते हैं। आर्थिक मंदी के दौर की तो यह शुरुआत है, आगे देखते रहिए क्या-क्या होता है?
Anil Narendra, Daily Pratap, Indian Economy, Manmohan Singh, Prime Minister, Vir Arjun

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