Friday, 31 January 2014

आसमान से गिरे खजूर पर अटके नीतीश कुमार

बिहार में कांग्रेस ने अपने पुराने विश्वास पात्र गठबंधन साथियों के साथ फिर मिलकर 2014 लोकसभा चुनाव लड़ने का मन बना लिया है। श्री लालू पसाद यादव और रामविलास पासवान के दलों के साथ चुनावी गठबंधन लगभग तय है सिर्फ औपचारिक घोषणा बाकी है। कांग्रेस-राजद-लोजपा के नेताओं की एक जल्द बैठक हो सकती है जिसमें सीटों का बंटवारा मुख्य मुद्दा होगा, वहीं राजद से तालमेल और सामंजस्य की समस्या उठाई जा सकती है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का हाल यह है कि वह न तीन में हैं न तेरह में। आसमान से गिरे खजूर पर अटके। नीतीश कुमार ने बड़ी धूमधाम से भाजपा से सालों पुराना गठबंधन नरेन्द्र मोदी की उम्मीदवारी को लेकर तोड़ा था। गठबंधन तोड़ने के बाद अल्पसंख्यकों की गोद में जाकर बैठ गए और कई दिनों तक नरेन्द्र मोदी को गालियां देत रहे। आज न तो कांग्रेस उनको साथ ले रही है और न ही अल्पसंख्यक। नीतीश को कांग्रेस से बड़ी उम्मीद थी कि शायद वह इन्हें बिहार के लिए विशेष दर्जा व पैकेज दे दे। कांग्रेस ने नीतीश का खूब इस्तेमाल किया। उनसे आए दिन नरेन्द्र मोदी को गाली दिलवाई और अंत में बाबा जी का ठुल्लू दिखा दिया। रहा सवाल अल्पसंख्यकों का तो हमें नहीं लगता कि वह भी नीतीश के जनता दल यू के साथ हैं। सब कुछ होने के बावजूद बिहार का मुस्लिम मतदाता पमुख रूप से लालू के राजद के साथ है, कुछ कांग्रेस के साथ है और बचे हुए नीतीश के साथ आ सकते हैं, यानि बिहार में मुस्लिम वोट एकमुश्त किसी को नहीं जाएगा। इसका उल्टा लाभ भाजपा को मिल सकता है। ताजा घटनाकम से नीतीश कुमार का बौखलाना स्वाभाविक ही है। मंगलवार को पटना में विधानसभा परिसर में नीतीश ने कहा कांग्रेस कायर है, राहुल गांधी दिखावटी। राहुल ने बस दिखावे के लिए उस अध्यादेश को फाड़ा जिससे दागी पतिनिधि को बड़ी राहत मिलने वाली थी। असलियत में राहुल या कांग्रेस को दागियों से परहेज नहीं है। इसका पमाण राजद और कांग्रेस की दोस्ती है। हालांकि इस दौरान नीतीश ने राजद सुपीमो लालू यादव का नाम नहीं लिया पर उनका इशारा साफतौर पर उन पर ही था। नीतीश ने आगे कहा कि हमने भाजपा के पुरजोर विरोध के बावजूद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) की किशनगंज शाखा के लिए जमीन दी लेकिन हमें ही शिलान्यास समारोह का आमंत्रण नहीं दिया गया। आमंत्रण न मिलने पर जब नीतीश से पूछा गया तो उनका जवाब था ये (कांग्रेसी) कितने कायर लोग हैं, पता नहीं क्या दिखाना चाहते हैं, क्यों डर गए हैं? शायद उन्हें किसी पकार का डर होगा तभी मुझे नहीं बुलाया है जबकि राज्य सरकार के सुझाव पर ही इसे किशनगंज में स्थापित किया जा रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी 30 जनवरी को किशनगंज जा रहीं हैं। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के कैंपस के उद्घाटन के बाद सोनिया गांधी कार्यकम स्थल से थोड़ा अलग एक रैली को सम्बोधित करेंगी। इस रैली में सोनिया का निशाना भाजपा के अलावा संभवत नीतीश सरकार पर भी होगा। पाटी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि जदयू-भाजपा की साझा सरकार पूर्व में रही है इसलिए पदेश में पार्टी के निशाने पर निश्चित रूप से नीतीश कुमार भी होंगे। पाटी को उम्मीद है कि फरवरी के पहले हफ्ते तक कांग्रेस-राजद-लोजपा गठबंधन की तस्वीर साफ हो सकती है।

-अनिल नरेन्द्र

चर्चा-ए-आम हुआ राहुल गांधी का इंटरव्यू

टीवी चैनल टाइम्स नाउ में राहुल गांधी का अर्णव गोस्वामी के साथ इंटरव्यू देखकर बहुत दुख व निराशा हुई। राहुल गांधी के इस इंटरव्यू का इंतजार हर कोई कर रहा था। संसद में कदम रखने के दस साल बाद वह पहली बार औपचारिक तौर पर मीडिया के चुभते सवालों से  रूबरू हुए थे। पार्टी में भले ही राहुल उपाध्यक्ष पद पर हों पर उनकी असली हैसियत सारा देश जानता है कि वही कांग्रेस की ओर से पधानमंत्री पद के अकेले दावेदार हैं। मुझे इस इंटरव्यू से घोर निराशा भी हुई और दुख भी। अर्णव गोस्वामी जैसे मझे हुए एंकर के सामने राहुल का वह हाल था जैसे शेर के सामने मेमने का होता है। एक अंग्रेजी एलिटेस्ट चैनल को पहला इंटरव्यू देना ही मेरी राय में गलत था। अगर इंटरव्यू देना ही था तो किसी हिंदी चैनल वह भी जो थोड़ी कांग्रेस के पति हमदर्दी रखता हो, उसको देना चाहिए था। अंगेजी चैनल को देश के सर्व-सम्पन्न अंग्रेजी बोलने वाले लोग देखते हैं। यह बेशक पभाव तो रखते हैं पर यह थोक भाव से वोट देने नहीं निकलते। फिर राहुल ने रटे-रटाए स्किप्ट पर ही बोला, सवाल कुछ था जवाब कुछ था। राहुल ने सारा जोर महिलाओं और युवाओं के शक्तिकरण पर दिया। 1984 के दंगों पर राहुल को मेरी राय में यह कभी नहीं कहना चाहिए था कि हे सकता है कुछ कांग्रेसी दंगों में शामिल हों। अगर मुझे जवाब देना होता तो मैं कहता कि कांग्रेस इन दंगों में बिल्कुल शामिल नहीं थी। अगर कोई नेता इसमें शामिल था तो अदालत तय करेगी और तय करने के बाद कानून अपना काम करेगा। पाटी के तमाम नेता तो इंदिरा जी के शव के साथ थे। हमारा इन दंगों से कुछ लेना देना नहीं था। जब यह पूछा गया कि अगर अरविंद केजरीवाल शीला दीक्षित और उनके मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे तो कांगेस समर्थन वापस ले सकती है? राहुल को जवाब देना चाहिए था कि हम पाक साफ हैं हमने कोई भ्रष्टाचार नहीं किया अगर किया होता या हमारे मन में चोर होता तो हम केजरीवाल जैसे घाघ व्यक्ति को दिल्ली की गद्दी पर न बैठातेराहुल को नरेन्द्र मोदी का खौफ कितना है साफ हो गया।उन्होंने इस हद तक कह डाला कि 2002 के गुजरात दंगों में शामिल थी मोदी सरकार। उन्हें इस हद तक नहीं जाना चाहिए था। अदालतों ने मोदी को क्लीन चिट दे दी है फिर भी अगर राहुल ऐसी बात करते हैं तो वह अपना खौफ ही पदर्शित कर रहे हैं। उनसे उम्मीद थी कि वह अपने विजन की बात करते। महंगाई को कैसे टैकल करना चाहते हैं, इस पर विस्तार से बताते। घोटालों को रोकने पर बेशक उन्होंने कुछ उठाए कदमों का जिक किया पर पभावी ढंग से नहीं। बेरोजगारी कम करने और युवाओं में उत्साह पैदा करने के उपायों पर विस्तार से बताना चाहिए था। विदेश नीति, आर्थिक नीतियों पर अपने विजन का खुलासा करना चाहिए था। असल में दिक्कत यह है कि पिछले नौ-दस सालों से राहुल आन-आफ होते रहे हैं। उन्हें मनमोहन सरकार की आर्थिक नीतियों में ज्यादा दखलअंदाजी करनी चाहिए थी। आज अगर कांगेस की यह दयनीय स्थिति बनी हुई है तो उसका पमुख कारण हैं मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियां। राहुल इस पोजीशन में तो थे ही कि वह चाहते तो जनविरोधी नीतियों का विरोध करते और उनको लागू न होने देते। अब जब पानी सिर से गुजर गया है पछताने से क्या फायदाराहुल से ज्यादा मैं उनके सलाहकारों और होमवर्क करवाने वालों को दोष देता हूं। वह पूरे इंटरव्यू में होमवर्क के बिना दिखे। उनके पास तथ्य पूरे नहीं थे और कई पुरानी जानकारियों का अभाव दिखा। सीधे सवालों से बचते हुए और कई सवालों पर कमजोर तर्क दिए। आम चुनाव और मौजूदा समस्याओं मसलन महंगाई, भ्रष्टाचार के सवाल पर कोई रिस्पांस नहीं। सिस्टम बदलने की बार-बार बात राहुल करते हैं लेकिन इसके साथ-साथ वह विरोधाभासी तर्क में भी उलझते रहे। कुल मिलाकर इस इंटरव्यू में कुछ पाजिटिव बातें भी रही। पहली बात तो राहुल खुल कर चुनावी दंगल में कूदते नजर आए। एक घंटे तक चले इंटरव्यू में राहुल ने अपना संयम बरकरार रखा और वैसे सवालों का जवाब नहीं दिया जिनका जवाब वह नहीं देना चाहते थे। राहुल के इंटरव्यू के बाद नरेन्द्र मोदी पर भी सवालों का सामना करने का दबाव बढ़ गया है। मोदी ने भी लंबे समय से कोई इंटरव्यू नहीं दिया है। राहुल ने खुद को सिस्टम से जूझने वाले लीडर के तौर पर पस्तुत करने की कोशिश की जिसे मिडिल क्लास तबके में पसंद किया जाता है और अंत में इस इंटरव्यू की बदौलत वह आखिर चर्चा में तो आ ही गए।

Thursday, 30 January 2014

भारत-जापान के बढ़ते रिश्तों से चीन में बेचैनी

यह पहला अवसर है जब जापान के पधानमंत्री हमारे गणतंत्र दिवस पर बतौर विशेष अतिथि आए। जापान के पधानमंत्री शिंजो अवे की यात्रा के दौरान दोनों देशों के पधानमंत्रियों ने कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर बातचीत की। भारत और जापान के बीच विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित आठ महत्वपूर्ण समझौते हुए। यह खास बात देखने को मिली कि जापानी पधानमंत्री शिंजो ने भारत से नजदीकी बढ़ाने में दिलचस्पी दिखाई। सात साल पहले अपने पिछले कार्यकाल में भारत की संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करने वाले भी वे जापान के पहले पधानमंत्री थे।  उनकी ताजा यात्रा से कुछ पहले पिछले महीने ही जापान के सम्राट और सम्राज्ञी भारत आए थे जो कि अमूमन देश से बाहर नहीं जाते। दोनों नेताओं की इस बार की शिखर वार्ता में सुरक्षा संबंधी मसला छाया रहा। दोनों ही हमें चीन की बढ़ती सैनिक गतिविधियों से पभावित हैं। हम समझते हैं कि शिखर वार्ता में भी चीन ही छाया रहा है। चीन को ठेंगा दिखाते हुए भारत ने अमेरिका के साथ इस वर्ष होने वाले नौसेना के संयुक्त अभ्यास में जापान को भी शामिल कर लिया है। सात साल पहले चीन के भारी विरोध के कारण भारत ने अमेरिका के साथ नियमित रूप से चलने वाले ऐसे अभ्यास में किसी और देश को शामिल करने का इरादा छोड़ दिया था। चीन को ऐसे संयुक्त अभ्यासों से डर लगता है क्येंकि वह ऐसे अभ्यासों को अपने खिलाफ साजिश मानता है। वर्ष 2007 में आस्ट्रेलिया और सिंगापुर के इन नौसैनिक अभ्यासों में शामिल होने पर चीन ने कड़ा ऐतराज जताया था और उस समय से किसी भी अन्य देश को इसमें शामिल नहीं किया जा रहा था। चीन सागर में एक टापू के स्वामित्व विवाद को लेकर इन दिनों जापान से चीन की ठनी हुई है ऐसे में भारत का यह फैसला चीन को कितना नागवार गुजरेगा इसकी सहज कल्पना की जा सकती है। इतना ही नहीं, चीन सागर में दूसरे देशों के आवागमन को रोकने के लिए चीन ने वहां जो एकतरफा पतिबंध लगाए हैं उसके खिलाफ भारत ने पहली बार मुंह खोला है और जापान को खुला समर्थन दे दिया है। पहली बार भारत के गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के तौर पर आए जापान के पीएम शिंजो अवे की मौजूदगी में हुईं इन तमाम घोषणाओं ने चीन के लिए दो-टूक संकेत दिया है जिससे उसका तिलमिलाना तय है। जापान भी पहली बार अपने आधुनिक युद्धक उपकरणों को किसी दूसरे देश को मुहैया कराने के लिए तैयार हो गया है जिसका पहला फायदा भारत को ही मिलने जा रहा है। जापान अपने यहां पिछले कुछ वर्षें के आर्थिक टकराव के बावजूद दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बना हुआ है। वहीं भारत एक विशाल बाजार के तौर पर उभरा है। लिहाजा दोनों के बीच व्यापार तेजी से बढ़ा है। इसे और गति देने के लिए दोनों देश इच्छुक हैं जो कि ताजा समझौतों से जाहिर है। जापान ने भारत में आधारभूत ढांचे खासकर शहरी परिवहन व्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण मदद की है। जिसका सबसे बड़ा पमाण दिल्ली मेट्रो है। श्ंिाजो की इस मेट्रो सेवा के विस्तार के लिए कम ब्याज दर दो अरब डालर का कर्ज देने की घोषणा का स्वागत है। जापान-भारत गठबंधन का लाभ आर्थिक हितों पर भी जोरदार रूप से पड़ेगा क्येंकि अब तक चीन को अपने निवेश का मुख्य ठिकाना बनाने वाला जापान अब भारत की ओर रुख करने का मन बना चुका है।

-अनिल नरेन्द्र

केजरीवाल एंड कंपनी की तीस दिन की बैंलेंस शीट

अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पाटी सरकार एक महीने का कार्यकाल पूरा कर चुकी है। 28 दिसम्बर को मुख्यमंत्री पद की केजरीवाल ने शपथ ली थी। सरकार गठन के साथ ही आप नेतृत्व ने एक पखवाड़े के भीतर कई बड़े वायदे पूरे करने का संकल्प किया था। इस दिशा में सरकार ने काम भी किया है लेकिन उसके सभी संकल्प पूरे नहीं हुए। इस बीच कई ऐसी घटनाएं हुईं जिनको लेकर सरकार की साख भी धूमिल हुई है। अपनों के बीच भी इस सरकार की लोकपियता का ग्राफ गिरा है। इसको लेकर नेतृत्व चिंतित भी है और डेमैज कंट्रोल की कोशिशें तेज हो गई हैं। सरकार ने वायदेनुसार पत्येक परिवार को 666 लीटर निशुल्क पानी की व्यवस्था की है। बिजली का बिल आधा करने का वायदा भी था, सरकार ने इसमें राहत देकर इसे आंशिक तौर पर पूरा कर लिया है। स्कूलों की मनमानी रोकने के लिए हेल्पलाइन शुरू की है। रिटेल मार्केट एफडीआई रोकने के लिए सरकार ने संकल्प लिया है। यह वायदे तो जरूर एक हद तक पूरे हुए हैं लेकिन इस बीच कई ऐसे काम भी हुए हैं जिनको लेकर सरकार की खासी आलोचना हो रही है। सरकार ने एक तरफ निशुल्क पेयजल की व्यवस्था की है दूसरी तरफ चुपचाप पानी की दरों में दस फीसदी इजाफा भी कर दिया है। कानून मंत्री सोमनाथ भारती लगातार विवादों में हैं। पहले उन्होंने जजों की बैठक बुलाकर विवाद पैदा कर दिया। इसको लेकर मंत्रालय के सचिव से ही उनकी भिड़ंत हो गई थी। 15-16 जनवरी की रात में कानून मंत्री ने खिड़की एक्सटेंशन में छापेमारी करके एक बड़े विवाद को न्यौता दे दिया। कुछ अफीकन महिलाओं ने छापे के दौरान बदसलूकी करने का मामला कानून मंत्री के खिलाफ दर्ज कराया है। चार पुलिस वालों के ट्रांसफर के मुद्दे को लेकर केजरीवाल समेत उनकी पूरी सरकार ने धारा 144 को तोड़कर रेल भवन के सामने धरना दिया। कोर्ट ने इस पर सख्त ऐतराज किया है और इस में कानून तोड़ने के कारण केजरीवाल एंड कंपनी फंस सकती है। केजरीवाल एंड कंपनी दावा करती है कि सोमनाथ भारती का खिड़की एक्सटेंशन में ड्रामे को भारी जन समर्थन मिला है। इस विषय पर हम एबीपी-न्यूजöनीलसन का ताजा सर्वे पस्तुत करना चाहते हैं। दिल्ली की आधी से ज्यादा जनता का कहना है कि सोमनाथ भारती ने खिड़की एक्सटेंशन में सैक्स और ड्रग्स के नाम पर आधी रात को जिस तरह छापेमारी की उससे आम आदमी पाटी की छवि को नुकसान हुआ है। इसके साथ ही आधी जनता इस घटना के बाद अरविंद केजरीवाल के धरने को जायज भी ठहरा रही है। सर्वे के दौरान जब दिल्ली की जनता से सवाल किया गया कि क्या खिड़की एक्सटेंशन की घटना के बाद आम आदमी पाटी की छवि धूमिल हुई तो 55 फीसदी जनता का मानना था कि आप की छवि को नुकसान हुआ है। हालांकि 40 फीसदी लोगों ने इससे इंकार किया। इस तरह जब लोगों से पूछा गया कि खिड़की एक्सटेंशन की घटना के बाद केजरीवाल का अपने मंत्रियों के साथ धरने पर बैठना सही था तो आधी जनता यानी 50 फीसदी ने इसे गलत बताया। हालांकि थोड़ कम यानि 48 फीसदी जनता इस मुद्दे पर केजरीवाल के साथ दिखी। केजरीवाल की सरकार बने एक महीना हो गया है और खुद केजरीवाल का दावा है कि बीते एक महीने में उन्होंने जो काम कर दिया है आज तक किसी सीएम ने नहीं किया है। बीते एक महीने में सरकार के कई फैसलों पर बवाल मचा, सवाल उठे और क्लाईमैक्स था आप के विधायक विनोद कुमार बिन्नी की बगावत।

Wednesday, 29 January 2014

4 करोड़ नए वोटर तय करेंगे 2014 लोकसभा चुनाव परिणाम

यह अच्छा संकेत है कि सोशल मीडिया पर वक्त गुजारने वाला युवा मतदाता अब देश की दशा-दिशा तय करने में रुचि लेने लगा है। हाल ही में संपन्न हुए पांच राज्यों के चुनाव से यह साबित होता है कि इन राज्यों में वोटर टर्न आउट में पांच फीसदी से लेकर 14 फीसदी तक युवा वोटरों के मतदान में इजाफा हुआ है। दिल्ली चुनावों की यदि हम बात करें तो यहां मतदाताओं ने सबसे ज्यादा, मताधिकार का इस्तेमाल किया। अक्टूबर 2012 में जहां 18-19 साल के मतदाताओं की संख्या 50 हजार थी वहीं नवम्बर 2013 में यह संख्या 4.05 लाख तक पहुंच गई। यही नहीं चुनाव के बाद 50 हजार से ज्यादा ऐसे मतदाताओं के आवेदन फिर आए हैं। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में 66 फीसदी रिकार्ड मतदान हुआ। इसमें 18 से 21 वर्ष के मतदाताओं की कुल भागीदारी 73 फीसदी थी। मतदान में युवा लड़कों की भागीदारी 78 फीसदी थी, जबकि युवतियों की तादाद 67 फीसदी रही। ओवर आल मतदान में महिलाओं के भी 8.5 फीसदी का इजाफा हुआ। दिल्ली के मुख्य निर्वाचन अधिकारी विजय देव के अनुसार, मतदाता पहले से ज्यादा जागरुक हुए हैं, इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि 2014 लोकसभा चुनाव में युवाओं का दिल जीतने वाला दल ही मैदान मार सकेगा। इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देश के 65 फीसदी मतदाताओं की उम्र 35 वर्ष से कम है। खासतौर पर पहली बार मतदान का अधिकार हासिल करने वाले करीब 4 करोड़ मतदाता सत्ता की चाबी अपने हाथ में रखेंगे। इन मतदाताओं में से 1.27 करोड़ मतदाता तो ऐसे हैं जिन्होंने कुछ महीने पहले ही मताधिकार हासिल करने के लिए अनिवार्य 18 वर्ष की उम्र की शर्त पूरी की है। लोकसभा चुनाव के लिए मतदाता सूची को 31 जनवरी तक अंतिम रूप दे दिया जाएगा। पहले की तुलना में मतदाता सूची में महिलाओं की औसत संख्या में भी वृद्धि हुई है। चुनाव आयोग का मानना है कि इस बार देश में कुल मतदाताओं की संख्या 80 करोड़ पार कर जाएगी। चूंकि मतदाता सूची में युवाओं की भरमार है, इसलिए इस लाकसभा चुनाव में मतदान के सारे पुराने कीर्तिमान ध्वस्त होने के भी आसार नजर आ रहे हैं। युवा मतदाताओं की ताबातोड़ ब़ढ़ी संख्या ने सभी दलों को इस वर्ग को लुभाने के लिए मजबूर कर दिया है। चुनाव आयोग के महानिदेशक अक्षय राउत ने चौथे राष्ट्रीय मतदाता दिवस की पूर्व संख्या पर देश के मतदाताओं की संख्या 80 करोड़ का आंकड़ा पार कर जाने की उम्मीद जताई। राउत के मुताबिक चुनाव आयोग का लक्ष्य है कि देश का हर वह नागरिक जो 18 वर्ष की उम्र पूरा कर चुका है उसका नाम मतदाता सूची में शामिल हो। आयोग की दूसरी कोशिश है कि मतदाता बनने के बाद ज्यादा से ज्यादा लोग मतदान में हिस्सा लें। अगला चरण मतदाताओं को पकियात्मक रूप से जागरुक करने के लिए जारी रहेगा। उन्होंने बताया कि जनवरी 2013 में जब मतदाता सूची का नवीनीकरण किया गया था तो कुल 2.32 करोड़ नए मतदाता बने थे। उस समय अंतिम सूची में देश में 78.8 करोड़ मतदाता थे। इस साल यह संख्या 80 करोड़ को पार कर सकती है। 31 जनवरी तक मतदाता सूची अंतिम रूप से तैयार हो जाएगी।   

-अनिल नरेन्द्र

लोकसभा चुनाव रेस में नरेन्द्र मोदी-भाजपा अभी तक सबसे आगे

जैसे-जैसे 2014 लोकसभा चुनाव करीब आते जा रहे हैं सभी पमुख दल अपना पचार अभियान तेज करते जा रहे हैं। टीवी चैनल अपने-अपने सर्वेक्षणों में भी तेजी ला रहे हैं। आमतौर पर ताजा स्थिति के अनुसार भारतीय जनता पाटी रेस में अव्वल नंबर पर चल रही है। आम आदमी पाटी का ग्राफ जितनी तेजी से दिल्ली विधानसभा चुनाव में बढ़ा था धीरे-धीरे गिर रहा है। जनता का पाटी से तेजी से मोहभंग हो रहा है। जैसी कुछ लोंगों की उम्मीद थी कि लोकसभा चुनाव में केजरीवाल एंड कंपनी बड़ा धमाका कर सकती है। अब उन्हीं का कहना है कि केजरीवाल एंड कपंनी से उन्हें मायूसी हुई है। जिस ढंग से केजरीवाल ने दिल्ली सरकार चलाई है अगर ऐसी ही सरकार वह गठबंधन से केन्द्र में भी चलाएंगे तो यह देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण ही नहीं होगा, बल्कि डिसास्टर होगा। आप की खराब कारगुजारी का सीधा लाभ दोनों भाजपा और कुछ हद तक कांग्रेस को भी हो रहा है। जनता अब खुलेआम कहने लगी है कि आप की सरकार से तो शीला दीक्षित सरकार बेहतर थी। राष्ट्रीय लेवल पर भी कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अब खुलकर मैदान में आ गए हैं और दिन-रात कड़ी मेहनत में लगे हुए हैं पर आज की स्थिति में भारतीय जनता पाटी सबसे आगे है। उधर न्यूज चैनल सीएनएन-आईबीएन और सीएसडीएस की ओर से बताए गए सर्वे  के अनुसार अगर अभी चुनाव हुए तो भाजपा अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ पदर्शन कर सकती है। इसके मुताबिक भाजपा को अकेले 192-210 सीटें मिल सकती हैं तो एनडीए को 211 से 231 और यूपीए को 107 से 127  सीटें मिलने का अनुमान है। सर्वे के अनुसार इस चुनाव में कांग्रेस का पदर्शन काफी निराशाजनक रहने वाला है। कांग्रेस को 92 से 108 सीटें मिलने का अनुमान है जबकि तृणमूल कांग्रेस और एआईएडीएमके जैसी क्षेत्रीय पार्टियां काफी फायदे में रह सकती हैं। ममता बनजी की तृणमूल कांग्रेस को 20-28 सीटें और जयललिता की एआईएडीएमके  को 15 से  23 सीटें मिलने का अनुमान है। लेफ्ट पार्टियों को 15 से 23 सीटें और आम आदमी पाटी (आप) को 6ö12 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है। उत्तर पदेश में समाजवादी पाटी को महज 8 से 14 और बीएसपी को 11 से 16 सीटें मिलने का अनुमान है। एबीपी न्यूज-नीलसन ओपिनियन पोल के मुताबिक 52 फीसदी लोगों का मानना है कि केन्द्र में मौजूद यूपीए सरकार से बेहतर एनडीए सरकार थी। यूपीए को सिर्फ 24 फीसदी लोगें का ही समर्थन मिला है। दिलचस्प यह है कि 61 फीसदी लोग यूपीए सरकार को दोबारा मौका नहीं देना चाहते हैं। यही नहीं, 43 फीसदी लोगों ने कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए की सरकार की परफारमेंस को काफी कमजोर आंका है। सर्वे के अनुसार पधानमंत्री पद के लिए देश में नरेन्द्र मोदी की लहर है। इस सर्वे में पीएम पद के लिए मोदी  पहली पसंद हैं और इस रेस में सबसे आगे चल रहे हैं। राहुल गांधी मोदी से पीछे हैं। यह बात बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड और ओड़ीसा में आम लोगों पर हुए सर्वे में सामने आई है। सर्वे के तहत भाजपा को बिहार में जबर्दस्त फायदा होने वाला है। बिहार में मोदी 39 फीसदी लोग की पहली पसंद हैं जबकि नीतीश कुमार कुल 15 फीसदी लोगों की पसंद हैं। यह स्थिति आज की है। चुनाव में तस्वीर तेजी से बदलती रहती है।

Tuesday, 28 January 2014

अमेरिका में हर पांचवीं महिला बलात्कार की शिकार

पूरी दुनिया में ही बलात्कारों की समस्या बढ़ती जा रही है। हम अपने देश में दिल्ली में बलात्कारों को लेकर हैरान-परेशान हैं पर दुनिया के सबसे ताकतवर, सम्पन्न देश अमेरिका में इन घटनाओं के आंकड़े देखकर तो हम चौंक गए और एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में पत्येक पांच में से एक महिला अपने जीवन में बलात्कार का शिकार होती है और आधी से अधिक महिलाएं 18 साल की उम्र से पूर्व ही इस हमले का सामना करती हैं। व्हाइट हाउस की एक रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी वर्गें, नस्लों और देशों की महिलाओं को निशाना बनाया जाता है लेकिन कुछ महिलाएं अन्य के मुकाबले अधिक शिकार होती हैं। 33.5 फीसदी बहुनस्लीय महिलाओं से बलात्कार किया गया जबकि अमेरिकी भारतीय मूल और अलास्का नेटिव 27 फीसदी महिलाओं को हवस का शिकार बनाया गया। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि बलात्कार की शिकार होने वाली अधिकतर महिलाओं पर उनके परिजनों ने यह हमला किया और 98 फीसदी हमलावर पुरुष थे। करीब दो करोड़ 20 लाख अमेरिकी महिलाओं और 16 लाख पुरुषों को अपने जीवनकाल में बलात्कार का शिकार होना पड़ा है। व्हाइट हाउस कौंसिल की राष्ट्रपति बराक ओबामा की अध्यक्षता में होने वाली कैबिनेट स्तर की बैठक से पूर्व व्हाइट हाउस ने यह रिपोर्ट जारी की है। अमेरिका के कालेजों और विश्वविद्यालयों में महिलाएं बलात्कार या यौन शोषण के मामलों में ज्यादा शिकार हो रही हैं। परिसर में यौन उत्पीड़न की घटनाओं को शराब और मादक द्रव्यों के सेवन से बढ़ावा मिलता है जो पीड़ितों को कमजोर बना देता है। अपराधकर्ता पाय सीरियल अपराधी होतें हैं। खुद राष्ट्रपति ओबामा ने अमेरिका के कालेजों में यौन उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने ऐसे मामलों में कालेजों, विश्वविद्यालयों और पुलिस की जिम्मेदारी पुख्ता करने की जरूरत पर बल देते हुए इन संस्थाओं पर दबाव बढ़ा दिया है, साथ ही वरिष्ठ अधिकारियों का एक कार्यबल बना रहे हैं जो इस संबंध में संघीय पयासों में तालमेल बनाएगा। राष्ट्रपति ओबामा ने उन खामियों की तरफ भी ध्यान आकर्षिक किया जिनकी वजह से यौन उत्पीड़न और बलात्कारों की घटनाएं अकसर गुमनामी में दबा दी जाती हैं। बदनामी के डर से कालेजों में यौन उत्पीड़न की शिकार छात्राएं सामने नहीं आतीं। पुलिस को ऐसे मामलों की जांच के लिए गम्भीरता से पशिक्षित नहीं किया जाता। फिर विश्वविद्यालय भी अपनी पतिष्ठा कम होने की वजह से ऐसी घटनाओं को दबाना बेहतर विकल्प समझते हैं। कुल 8 मामलों में से महज एक मामला दर्ज हो पाता है? 7 पतिशत पुरुषों ने ही बलात्कार की कोशिश करने की बात मानी है। 2.22 करोड़ के करीब महिलाएं अपने जीवन काल में रेप की शिकार होती हैं। बराक ओबामा ने साफ कहा कि हमें युवाओं, पुरुषों और महिलाओं को उत्साहित करने की जरूरत है। यौन उत्पीड़न अस्वीकार्य है। उन्हें बहादुरी से खड़े होने की जरूरत है। खासकर तब जब उन पर मुंह खोलने के नतीजों का डर दिखाते हुए चुप रहने का सामाजिक दबाव हो। शेष दुनिया में भी यह समस्या बढ़ती जा रही है। भारत में भी बलात्कार और यौन उत्पीड़न एक अहम सामाजिक अपराधिक समस्या है। निर्भया कांड के बाद भारत में कई कानूनी, न्यायिक परिवर्तन किए गए हैं, बलात्कारियों को सख्त सजा देने के इरादे से एंटी रेप बिल 2013 लाया गया है पर अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है। पुलिस से ज्यादा समाज की सोच को बदलना होगा और वह भारत हो या अमेरिका।

-अनिल नरेन्द्र

लीक से हटकर महामहिम का चेतावनी पूर्ण सियासी भाषण

राष्ट्रपति पणब मुखजी ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर शनिवार को अरविंद केजरीवाल और उनकी सरकार का नाम लिए बिना आप सरकार को आड़े हाथों लिया। महामहिम ने दो-टूक शब्दों में कहा कि सुशासन का विकल्प लोकलुभावन, अराजकता नहीं हो सकता। संपग सरकार के संकटमोचक रहे पणब मुखजी ने पूरी तरह से सियासत से लबरेज माहौल में भाषण भी दिया। सिर्फ योजनाओं और नीतियों पर केन्द्रित न होते हुए उन्होंने दिल्ली और देश के हालिया घटनाकम पर बेबाक टिप्पणियां कीं। राष्ट्रपति ने अपने भाषण में किसी राजनेता या दल का नाम तो नही लिया लेकिन निशाने पर मुख्यत पिछले दिनों पिय-अपिय कारणों से चर्चा में रही आम आदमी पाटी की नीतियां और कृत्य थे। भाजपा की सियासत को भी उन्होंने नहीं बख्शा। भाजपा के सम्भावित अवसरवादी गठबंधन से भी सावधान किया। पिछले दिनों आए चुनावी सर्वेक्षणों में जिस तरह मुख्य विपक्षी पाटी भाजपा की चुनाव बाद गठबंधन से सरकार बनाने की सम्भावना दिख रही है उससे भी उन्होंने जोरदार शब्दों में सावधान करते हुए कहा कि मनमौजी, अवसरवादियों के हवाले खंडित सरकार बनने पर अनर्थ की आशंका है। उन्होंने कहा कि साम्पदायिक शक्तियां तथा आतंकवादी अब भी सौहार्द बिगाड़ने तथा हमारे देश की अखंडता को अस्थिर करना चाहते हैं। परंतु वे कामयाब नहीं होंगे। उन्होंने फूट डालो और राज करो की सियासत पर भी चेताया। स्वाभाविक रूप से उनके निशाने पर भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी थे। आम आदमी पाटी को चेतावनी भरे स्वर में महामहिम ने कहा कि चुनाव किसी व्यक्ति को भ्रांतीपूर्ण अवधारणाओं को आजमाने की अनुमति नहीं देता। सरकार कोई परोपकारी निकाय नहीं है। लोकलुभावन, अराजकता शासन का विकल्प नहीं हो सकते। झूठे वायदों की परिणति मोहभंग में होती है। जिससे कोध भड़कता है तथा इस कोध का एक ही स्वाभाविक निशाना होता है-सत्ताधारी वर्ग। यह कोध तभी शांत होगा जब सरकारें वह परिणाम देंगी जिसके लिए उन्हें चुना गया है। वैसे यह बात सत्तारूढ़ संपग सरकार पर भी फिट बैठती है। लीक से हटकर राष्ट्रपति ने इस बार जबरदस्त सियासी भाषण दिया है। भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने पतिकिया स्वरूप कहा कि हम राष्ट्रपति के इस विचार का समर्थन करते हैं कि देश को स्थायी सरकार की जरूरत है। अराजकतावादी राजनीति पर उनकी टिप्पणी का भी हम स्वागत करते हैं। कांग्रेस की ओर से जेपी अग्रवाल ने कहा कि महामहिम पणब मुखजी ने सही कहा है और यह बात आम आदमी पाटी पर लागू होती है। जद-यू के केसी त्यागी ने कहा कि मैं पणब मुखजी की टिप्पणी का सम्मान करता हूं। पार्टियां वोट पाने के लिए लोकलुभावन और असंभव वादे करती हैं। ऐसी बातों ने हमारे लोकतंत्र को खोखला कर दिया है। राष्ट्रपति के भाषण पर आम आदमी पाटी ने सतर्क पतिकिया दी। आप के नेता बने आशुतोष से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति ने जो कहा, हम उस पर टिप्पणी नहीं करना चाहते क्योंकि वह देश के पथम नागरिक हैं। अगर उन्होंने हमारे बारे में कुछ कहा है तो हम ध्यान से सुनेंगे और विचार करेंगे। इससे पहले आप के नेता योगेन्द्र यादव ने कहा कि राष्ट्रपति का भाषण आप के बारे में नहीं था। हमें पूरा विश्वास है कि राष्ट्रपति के मन में निश्चित रूप से बड़ी बातें रही होंगी। अराजकता की बात उन्होंने देश के मद्देनजर कही होगी।

Sunday, 26 January 2014

...और अब पश्चिम बंगाल की बर्बर पंचायत ने सामूहिक दुष्कर्म करवाया

एक बार फिर बर्बर पंचायत का एक शर्मनाक फरमान सुनने को मिला है। किस्सा है पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले का। जिले के लामपुर ब्लॉक में एक आदिवासी 20 वर्षीय लड़की को मंगलवार रात अन्य जाति के युवकों के साथ बैठे देखा गया था। इसके बाद दोनों को पेड़ से बांधकर पंचायत बुलाई गई। पंचायत ने दोनों के परिजनों से 25-25 हजार रुपए जुर्माने की राशि देने को कहा। युवक के परिजनों ने जुर्माने की राशि दे दी और उसे छोड़ दिया गया। लेकिन युवती के परिजनों ने तीन हजार रुपए देकर शेष राशि नहीं होने की बात कही तो पंचायत के निर्देश पर उसके साथ 12 लोगों ने सामूहिक बलात्कार किया। बुधवार को वह खून से लथपथ एक झोंपड़ी में मिली। परिजनों के मामला दर्ज कराने के बाद आदेश देने वाले पंचायत पमुख व सभी दुष्कर्मियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। लड़की का कसूर सिर्फ इतना था कि वह पड़ोस के गांव के एक गैर-आदिवासी लड़के से प्यार करती थी। लड़की खुद आदिवासी थी। सोमवार रात लड़का शादी का पस्ताव लेकर उसके घर आया। गांव वालों ने लड़के को देख लिया। सबके सब लड़की के घर जमा हो गए। इसके बाद पंचायत बैठी। फिर क्या हुआ यह ऊपर मैंने बता ही दिया है। पीड़ित युवती ने बतायाः गांव के लोग मेरे बेहोश होने तक गंदा काम करते रहे। पता नहीं कितने लोगों ने यह गंदा कृत्य किया। लेकिन कम से कम 10-12 लोग तो थे ही। उनमें से कुछ एक ही परिवार के थे। दुष्कर्म करने वालों में लड़की के छोटे भाई से लेकर उसके पिता के उम्र तक के लोग शामिल थे। पीड़ित लड़की की उम्र 20 साल है। पं. बंगाल के महिला एवं बाल विकास मंत्री ने बताया कि लड़की अस्पताल में है। पुलिस के अलावा आयोग भी मामले की जांच करेगा। घटना को लेकर जबरदस्त विरोध हो रहा है। राज्यपाल एमके नारायणन ने भी कार्रवाई की मांग की है। दुखद बात यह है कि यह पहली ऐसी घटना नहीं है। वीरभूम जिले में पंचायत ने 2010 में भी ऐसी ही सजा सुनाई थी। तब ऐसे ही मामले में लड़की को निर्वस्त्र कर गांव में घुमाया गया था। घटना का वीडियो भी बनाया गया था। पदेश में लगातार हो रही दुष्कर्म की घटनाओं पर विपक्षियों ने ममता सरकार को आड़े हाथों लिया है। कांग्रेस के पदेश अध्यक्ष पदीप भट्टाचार्य ने 28 जनवरी से पदेश भर के थानों के समक्ष विरोध पदर्शन करने की घोषणा की है। माकपा राज्य सचिव विमान बोस ने कहा कि सरकार दुष्कर्म की घटनाओं पर रोक लगाने में विफल रही है। यह घटना इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक से गुजर रहे समाज में एक त्रासद और अविश्वसनीय घटना लगती है। लेकिन पंचायत के आदेश पर अमल करते हुए करीब 13 लोगों ने उस युवती के साथ सामूहिक बलात्कार किया। ऐसा करने वालों में पड़ोस के वे लोग भी शामिल थे जिन्हें वह लड़की काका, दादा और भाई कहकर बुलाती थी। सवाल यह है कि सामान्य अपराध के आरोप में भी भोले-भाले ग्रामीणों को परेशान या गिरफ्तार करके मुस्तैदी दिखाने वाली पुलिस या दूसरे सरकारी अधिकारी ऐसी घटनाओं से कैसे अनजान रह जाते हैं? क्या यह चकाचौंध में डूबे कुछ महानगरों के बरक्स केवल दूरदराज के पिछड़े इलाकों में मुश्किल पहुंचना है या फिर घनघोर लापरवाही का, जिसके चलते लोगों को बाकायदा पंचायत बिठाकर ऐसी आपराधिक वारदात को अंजाम देने में कोई हिचक नहीं होती? हरियाणा और पश्चिमी उत्तर पदेश की खाप पंचायतों का रवैया किसी से छिपा नहीं है, जहां गोना या जाति के सवाल पर बर्बर तरीके से पेमी जोड़ों पर किए गए हमलों के मामले अकसर सामने आते हैं अब इन क्षेत्रों में पश्चिम बंगाल की पंचायतें भी जुड़ गई है 
-अनिल नरेन्द्र

गरमाता उत्तर पदेश का सियासी अखाड़ा

गोरखपुर और वाराणसी में दूरी 200 किलोमीटर की है लेकिन बृहस्पतिवार को सपा पमुख मुलायम सिंह यादव व भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने एक-दूसरे पर तीखे शब्द बाण चलाए तो लगा कि दोनों नेताओं के मंच आमने-सामने सजे हों। हमले एक-दूसरे की हैसियत याद दिलाने की सीमा तक पहुंच गए। उत्तर पदेश का सियासी समर भाजपा बनाम सारे में तब्दील होता नजर आ रहा है। हालांकि बृहस्पतिवार को मोदी बनाम मुलायम में सियासी जंग नजर आई। दोनों नेताओं की यही कोशिश रही कि यूपी की चुनावी जंग में कांग्रेस को मुख्य मुकाबले से दूर रखा जाए। सिर्फ शब्दों से एक-दूसरे पर पहार नहीं हुए बल्कि वोटों के इंतजाम के लिए हर बात पर नजर भी टिकी रही। बृहस्पतिवार को ही अमेठी में राहुल गांधी भी पहुंचे और मुंशीगंज गेस्ट हाउस में स्थानीय पतिनिधियों से बात करते हुए, कहा कि मैं भोंपू नहीं हूं। उनके पिता स्वगीय राजीव गांधी ने कहा था कि बस कामकाज करना, भोंपू मत बनना। कांग्रेस देश के लिए एक विजन लेकर चल रही है जो कुछ समय बाद दिखेगा। दरअसल दोनें मुलायम सिंह यादव और राहुल गांधी की चिंता इससे भी बढ़ गई होगी कि तमाम मीडिया सर्वेक्षणों में लगातार नरेन्द्र मोदी और भाजपा की बढ़त दिखाई जा रही है। अगर भीड़ एक परिचायक है लोकपियता की तो गोरखपुर की रैली में रिकार्ड तोड़ भीड़ थी। इतनी बड़ी रैली उत्तर पदेश में किसी की नहीं हुई। ताजा सर्वेक्षणों में दावा किया गया है कि इस बार यूपी में भाजपा का दबदबा बढ़ने वाला है। क्योंकि धीरे-धीरे मोदी की लहर का फिर से विस्तार होने लगा है। उल्लेखनीय है कि उत्तर पदेश की 80 सीटों में भाजपा के पास कुल दस सीटें हैं। वर्ष 2004 के चुनाव में भी उसे इतनी ही सीटें मिली थी। इस बार 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 35 से 40 सीटें मिल सकती हैं जबकि सपा और बसपा का चुनावी ग्राफ नीचे गिरेगा। सबसे खराब हालत कांग्रेस की बताई गई है। कहा जा रहा है कि इस चुनाव में कांग्रेस को 21 सीटों के मुकाबले तीन-चार सीटों पर ही संतोष करना पड़ सकता है। हालांकि सर्वेक्षणों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जाते हैं पर फिर भी ट्रेंड तो कम से कम नजर आता ही है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अघोषित रूप से पाटी के पीएम इन वेटिंग हैं। अमेठी दौरे पर उन्होंने लोगों को खुद कह दिया कि यदि चुनाव में जीत मिलती है और पाटी के सांसद उन्हें अपना नेता चुनते हैं तो वह पधानमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाल लेंगे। पहली बार सार्वजनिक तौर पर राहुल ने यह जिम्मेदारी सम्भालने की बात की है। मुजफ्फरनगर दंगों के बाद यूपी के अल्पसंख्यक सपा से कट चुके हैं। यह या तो बसपा को वोट देंगे या फिर कांग्रेस को। सर्वेक्षणों के अनुसार बसपा यूपी में दूसरी बड़ी पाटी बनकर उभर सकती है। उसके 24 सीटों पर जीतने की संभावना दिखाई गई है। एवीपी न्यूज-नीलसन सर्वे के मुताबिक भाजपा उत्तर पदेश के बुंदेलखण्ड में दो सीटें जीतकर खाता खोलेगी। पिछले लोकसभा चुनाव में पाटी यहां खाता नहीं खोल पाई थी। वहीं पश्चिमी उत्तर पदेश में दबदबा रखने वाली चौधरी अजीत सिंह की पाटी राष्ट्रीय लोकदल को महज एक सीट का नुकसान होगा। पाटी को 4 सीटों पर जीत मिलने का अनुमान है। वहीं बहुचर्चित आम आदमी पाटी का जलवा यूपी में ज्यादा नहीं दिखाई दे रहा है और सर्वेक्षण में उसे महज दो सीटों पर जीतने का अनुमान लगाया गया है। दिल्ली की गद्दी का रास्ता यूपी से जाता है और फिलहाल इस रेस में नरेन्द्र मोदी सबसे आगे हैं।

Saturday, 25 January 2014

कांग्रेस रणनीतिकारों का चतुर रास्ता ः सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को समर्थन देने पर विवाद जिस तरीके से धरना समाप्त हुआ उससे बढ़ गया है। इसके दो पहलू हैं-पहला यह कि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की मिलीभगत का यह एक और उदाहरण है, दूसरी तरफ कांग्रेस समर्थक यह कह रहे हैं कि केन्द्र सरकार और खासकर गृह मंत्रालय के कड़े रुख की वजह से ही यह नाटक समाप्त हुआ। पहले नजर डालते हैं आप और कांग्रेस की मिलीभगत पर। कहा तो यह जा रहा है कि आम आदमी पाटी तथा उनके द्वारा उत्पन्न की जा रही अराजकता जैसी स्थिति में कांग्रेस भी बराबर की हिस्सेदार है। उसके रणनीतिकार समझते हैं कि कांग्रेस के मुख्य पतिद्वंद्वी नरेन्द्र मोदी को टीवी के पर्दे और आम चर्चा से हटाना है तो आप के हो-हल्ला को जितना बढ़ावा मिलेगा भाजपा को उतना ही ज्यादा नुकसान होगा भले ही कांगेस को फायदा न हो। कांग्रेस हाई कमान की ओर से शिंदे को साफ दिशा-निर्देश दिए गए थे कि मुख्यमंत्री केजरीवाल की मांग किसी हाल में न मानी जाए जिससे कि उनको आंदोलन करने का भरपूर मौका मिले और जब तक 26 जनवरी बिल्कुल पास न आ जाए तब तक उन्हें धरना स्थल से हटाने के पयास भी न किए जाएं। कहा तो यह भी जा रहा है कि कांग्रेस की युवा विंग एनएसयूआई के लोग भी केजरीवाल समर्थकों साथ भेज दिए गए थे जो आंदोलन को हुड़दंग बनाने में काफी बड़ी भूमिका निभा रहे थे। यही कारण था कि राष्ट्रपति भवन और उसके आस-पास के क्षेत्र को आंदोलन की आड़ में अपने कब्जे में ले चुके अराजक तत्वों के खिलाफ केन्द्र सरकार किसी तरह की सख्ती नहीं बरत रही थी। दूसरी ओर केजरीवाल न केवल गृहमंत्री शिंदे को अपमानित कर रहे थे बल्कि पूरे राजपथ को लोगों से भरने की धमकी भी दे रहे थे तथा उनके समर्थक केन्द्राrय मंत्रियों से हाथापाई तक कर रहे थे और कांग्रेस नेतृत्व हाथ पर हाथ धरे तमाशा देख रहा था। केजरीवाल की जवान और तमीज पर आश्चर्य होता है जब वह कहते हैं कि शिदें कौन ? क्या शिंदे हमें बताएगा कि हम कहां बैठे इत्यादि-इत्यादि। बाकी सारी बातें छोड़ भी दें तो एक मुख्यमंत्री को देश के गृहमंत्री के पति इस तरह से संबोधित करना चाहिए। इन सबके बावजूद अगर कांग्रेस नेतृत्व तमाशा देख रहा था तो इसका मतलब क्या हुआ? कांग्रेस नेता आधिकारिक तौर पर तो केजरीवाल को बुरा-भला कह रहे हों पर अंदर खाते खूब चटखारे ले रहे थे। वे सिर्फ इस बात से खुश हैं कि पिछले कई दिनों से नरेन्द्र मोदी टीवी के पर्दे से गायब हैं। कांग्रेस के एक बड़े नेता का कहना है कि दिल्ली की तरह केन्द्र में भी केजरीवाल भाजपा का खेल बिग़ाड़ने वाले हैं। उनका तो यहां तक कहना है कि अगर चुनाव बाद किसी तीसरे मोर्चे की सरकार बनने की नौबत आती है तो कांग्रेस भाजपा और नरेन्द्र मोदी को सत्ता से दूर रखने के लिए अपना बाहरी समर्थन उसे दे सकती है। सियासी दांव-पेंच और चालों में माहिर कांग्रेसियों को यह मालूम है कि कब ढील देनी है और कब सख्ती दिखानी है। जैसे-जैसे 26 जनवरी की परेड करीब आती गई पाटी रणनीतिकारों ने कहा कि अब सख्ती करने का समय आ गया है। गृहमंत्री सुशील कुमार ने यह साबित करने की कोशिश की है कि वह एक मजबूत एडमिनिस्ट्रेटर हैं। उनके कड़े रुख का समर्थन पीएम ने भी किया और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी। उन्होंने ऐसा रास्ता खोजने के लिए दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग से कहा कि ऐसा रास्ता निकालो जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। गृहमंत्रालय ने नजीब जंग से संपर्क साधा। तब जाकर श्री जंग ने पयास किया। उन्होंने दो पुलिसकर्मियों को छुट्टी पर भेज कर केजरीवाल को मुंह छिपाने का रास्ता खोजा। और केजरीवाल से गणतंत्र दिवस की मर्यादा को देखते हुए और उनकी आंशिक मांग मानते हुए धरना समाप्त करने की अपील की जिसे केजरीवाल तुरन्त मान गए। इसके साथ-साथ केजरीवाल के धरना समाप्त करने से पहले पुलिस को लाठीचार्ज करने का भी आदेश दे दिया ताकि केजरीवाल को डंडे की भाषा समझ आ जाए। इस मिलीभगत से दोनों केन्द्र सरकार व गृहमंत्रालय भी यह दर्शाने में सफल रहे कि केन्द्र सरकार न तो दिल्ली सरकार को पुलिस देगी और न ही आम आदमी पाटी सरकार को अराजकता की आज्ञा देगी। केजरीवाल को भी यह छिपाने और दिखाने का बहाना मिल गया। केजरीवाल को तो अपनी सेहत की भी चिंता थी। अगर वह इस खांसी की हालत में एक दिन-रात और खुले में पड़े रहते तो उन्हें निमोनिया हो सकता था। क्या है या नहीं मिलीभगत?

öअनिल नरेन्द

नकली नोट व ब्लैक मनी को रोकने के लिए आरबीआई का ताजा आदेश

रिजर्व बैंक आफ इंडिया ने 31 मार्च 2005 से पहले छपे सभी नोटों को वापस लेने का फैसला लिया है। बुधवार को जारी बयान में आरबीआई ने कहा है कि 31 मार्च 2014 तक आरबीआई सभी पुराने नोटों का सर्कुलेशन बंद कर देगी।अगर आप ने अपनी गाढ़े पसीने की कमाई घर या बैंक लाकरों में नोटों की गड्डी के रूप में रख छोड़ी है तो सावधान हो जाइए, तुरंत जांच कीजिए कि यह नोट किस साल में छपे हैं। अगर यह वर्ष 2005 के पहले के छपे हैं तो इनकी कीमत आने वाले दिनों में कूड़े से अधिक नहीं रह जाएगी। नोट के पिछले हिस्सों में सबसे नीचे नोट के पकाशन वर्ष लिखा होता है। जिन नोटों पर पकाशन का वर्ष नहीं मिलता है इसका मतलब है कि वह नोट साल 2005 से पहले के छपे हैं। सरकार का मानना है कि इस कदम से कालेधन के इस्तेमाल पर रोक लग सकेगी। इस कदम को आगामी लोकसभा चुनाव से भी जोड़कर देखा जा रहा है। इससे बाजार में बड़े पैमाने पर मौजूद कालाधन पर अंकुश लगाया जा सकेगा परिचय पत्र दिखाने के कारण बड़े नोटों में नकदी का खुलासा होगा। अपैल-मई में सम्भावित लोकसभा चुनाव में काले धन के इस्तेमाल पर रोक लगेगी। 2009 लोकसभा चुनाव में सीएमएस की रिपोर्ट के अनुसार 2500 करोड़ रुपए का कालाधन चुनाव में लगा था। वैसे 1978 में जनता पाटी की सरकार के समय में 100, 500 और 10,00 के नोट रिजर्व बैंक ने वापस ले लिए थे पर इस बार सभी तरह के नोटों पर यह शर्त लागू होगी। बीजेपी इसे चुनाव से जोड़कर देख रही है। पाटी का मानना है कि काले धन के मामले में सरकार का यह महज दिखावटी कदम है।  जिसके घर में अघोषित रकम है तो वह उस रकम को टुकड़ों में बैंक में जाकर बदल लेगा और फिर नए नोट लाकर घर में फिर रख लेगा। 65 फीसदी लोगों के पास बैंक खाते नहीं हैं। किसी ने मकान के लिए पैसे ज़ोड़े हैंकिसी ने लड़की की शादी के लिए जोड़े हैं, किसी ने लड़के की पढ़ाई के लिए तो किसी ने बीमारी की इमरजेंसी के लिए, ऐसे लोगों को नोट बदलने के लिए बहुत दिक्कत होगी। वैसे आरबीआई ने यह तो साफ नहीं किया कि मार्केट में 2005 से पहले के कितने नोट हैं लेकिन जानकारों का मानना है कि यह 5.7 पतिशत से ज्यादा नहीं है। दिल्ली की होलसेल मार्केट से लेकर रिटेल मार्केट्स तक इस नए फरमान से हड़कम्प मचना स्वाभाविक ही है। ज्वैलरी जैसे बेशकीमती और कैश बेस्ड सेल वाले व्यापारियों और इम्पोर्ट्स ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि कुछ लोगों के पास बड़े पैमाने पर कैश स्टाक है, जो उसे बदलने और खपाने की चिंता में डूब गए हैं। फिर हर आदमी को अब नोट लेने पर उसकी जांच करनी होगी जो एक नया सिरदर्द बन जाएगी। देश में नकली नोटों की भरमार और ब्लैक मनी पर मचे बवाल के बाद यह स्पष्ट दिख रहा था कि रिजर्व बैंक इस सन्दर्भ में कोई कार्रवाई जरूर करेगा। पिछले दिनों हल्ला मचा था कि नोटों पर अगर कुछ लिखकर उसे गंदा कर दिया गया हो तो ऐसे नोट बैंक में चल नहीं पाएंगे। इस अफवाह ने पूरे देश को चिंतित कर दिया था क्येंकि शायद ही कोई दिन जाता हो जब लोगों के पास ऐसे नोट नहीं आते हों। बाद में रिजर्व बैंक ने इस अफवाह का खंडन कर दिया था। रिजर्व बैंक के ताजा आदेश से लोगों में अफरा-तफरी मच सकती है। जिसने नोट बदलने की तय सीमा 1 जुलाई 2014 तक अपने नोट बदल लिए तो वह ठीक है पर जो किसी कारणवश रह जाता है तो उसे 500 या 1000 के 10 से अधिक ऐसे नोटों के बदलने के लिए अपनी पहचान और पता बैंक को बताना होगा या पैन कार्ड दिखाना होगा। जानकारों का कहना है कि जाली नोटों की बाढ़ और ब्लैक मनी पर काबू पाने के लिए ही यह नई रणनीति अपनाई गई है।  मार्च 2012 तक एक अनुमान के अनुसार देश में करीब 5 लाख जाली नोट पकड़े गए थे। चिंता की बात यह थी कि पिछले साल की तुलना में इसमें 31 फीसद का उछाल दिखा था। माना जा रहा है कि 2005 के पहले वाले नोटों की सीरीज में ही सबसे अधिक जाली नोट चलाए जा रहे हैं क्योंकि उसके बाद से नोटों के डिजाइन और सुरक्षा उपायों को भरसक पुख्ता बनाने की कोशिश शुरू हो गई थी। सबसे ज्यादा दिक्कत तो राजनेताओं और नौकरशाहों को होगी क्योंकि कहा तो यह जाता है कि इनके पास सबसे ज्यादा ब्लैक मनी है। पर उन्होंने आरबीआई के आदेश जारी होने से पहले ही अपना पुख्ता पबंध कर लिया होगा। असल मुसीबत तो छोटे व्यापारी, दुकानदार, नौकरी पेशा, मजदूर वर्ग की होगी जिसने जीवन के कुछ महत्वपूर्ण कामों के लिए एक-एक रुपया जोड़ा है। वह कहां बैंकों की लाइन में लगेगा। रोटी कमाएगा या घंटों लाइन में लगेगा? आंकड़ें बताते हैं कि 2005 के मार्च महीने तक देश में पौने चार लाख रुपए मूल्य की करेंसी बाजार में थी जो अगले आठ वर्षों में तीन गुना उछलकर साढ़े ग्यारह लाख करोड़ से अधिक तक पहुंच गई है।

Friday, 24 January 2014

बड़े नेताओं के रोमांस के चर्चे, पति-पत्नी और वो

यह अजीब इत्तिफाक है कि पिछले कुछ दिनों से विश्व के बड़े नेताओं के रोमांस की जबरदस्त चर्चाएं हैं और यह नेता जबरदस्त सुर्खियां बटोर रहे हैं। कम से कम दो बड़े राष्ट्रपति के पेम संबंधों के बारे में चर्चा है। पहले हैं अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा। दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति ओबामा बेशक अमेरिका के राष्ट्रपति हें पर इसका मतलब यह कतई नहीं कि वह किसी महिला से कभी-कभी फ्लर्ट नहीं कर सकते। यह और बात है कि पत्नी मिशेल को बराक की हरकतें पसंद न आ रही हों। मिशेल के 50वें जन्मदिन से ठीक पहले एक अमेरिकी वेबसाइट ने दावा किया कि अमेरिका के फर्स्ट कपल के बीच कुछ खटपट चल रही है। कहा यहां तक गया कि मिशेल ने तलाक के लिए वकीलों तक से बात की है। सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि नेलसन मंडेला की शोक सभा में ओबामा और डेनमार्क की पधानमंत्री हेले शिमर `सेल्फी' से मिशेल खासी अपसेट हैं। दोनों के बीच झगड़ा शिमर के साथ फ्लर्ट को लेकर ब़ढ़ा था, लेकिन दावा यह भी किया गया है कि मिशेल को उस वक्त गुस्सा आ गया जब उन्हें पता चला कि सीकेट सर्विस ने दो बार ओबामा की धोखेबाजी को छिपाया था। उस वक्त ओबामा किसी महिला के साथ पकड़े गए थे। एक पेपर ने ओवल ऑफिस इनसाइडर के हवाले से बताया कि व्हाइट हाउस में ओबामा और मिशेल अलग-अलग बेडरूम में सोते हैं। दूसरा किस्सा फांसीसी राष्ट्रपति फांसबा ओलांद की कथाकथित बेवफाई का है। क्लोजर नामक मैगजीन ने उनके पेम पसंग का खुलासा किया है। एक फोटोग्राफर ने उनकी तब तस्वीर खींची जब वह अपने एक बाडीगार्ड के साथ स्कूटर पर बैठकर ही अपनी पेमिका से मिलने पहुंच गए। उनकी जबरदस्त आलोचना हो रही है। कुछ उनके चरित्र पर सवाल उठा रहे हैं तो कुछ उनके इस तरीके से जाने को लेकर उनकी सुरक्षा पर? उनकी पार्टनर और पांस की फर्स्ट लेडी वेलेरी ट्रियरवीलर को तो इस खबर ने ऐसा सदमा दिया कि उन्हें अस्पताल में भती करना पड़ा। वेलेरी से हालांकि ओलांद ने शादी नहीं की है। वे लिव-इन रिलेशनशिप में हैं। उस पर कहा यह भी गया कि राष्ट्रपति की नई पेमिका जुलिया चार महीने की गर्भवती हैं। जाहिर है इस मामले से ओलांद खासे परेशान हैं। वह यह भी तय नहीं कर पा रहे हैं कि अब आधिकारिक रूप से देश की पथम महिला किसे घोषित करें। फिलहाल तो उन्होंने यह कहकर मामला टाल दिया है कि इस बारे में अमेरिका के 11 फरवरी के दौरे से पहले वह स्पष्ट कर देंगे और तीसरा मामला तो हमारे देश का ही चल रहा है। यह है शशि थरूर और उनकी पत्नी सुनंदा पुष्कर थरूर और पाकिस्तानी पत्रकार मेहर तरार का। जब मोदी ने सुनंदा पुष्कर को थरूर की 50 करोड़ वाली गर्लपेंड कहा तो शशि थरूर ने पलटकर कहा था कि सुनंदा पुष्कर तो पाइसलेस है। लेकिन तीन साल बाद वह दिन भी आया जब पाइसलेस सुनंदा ने थरूर से तलाक की धमकी तक दे दी। एक शाम अचानक ही ट्विटर पर थरूर और सुनंदा के बीच `वो' की खबर आ गई और फिर खबर आई कि सुनंदा ने दिल्ली के एक पांच सितारा होटल लीला में आत्महत्या कर ली। यह आत्महत्या थी या फिर हत्या यह अभी तक साफ नहीं हो सका। डाक्टरों ने पोस्टमार्टम के बाद बस इतना ही कहा है कि इट इज ए सडन अननेचुरल डैथ। यानी अपाकृतिक अचानक मृत्यु। कहा तो बहुत कुछ जा रहा है पर यह अलग से बताने का विषय है। फिलहाल तो पति-पत्नी और वो के चर्चे जोरों पर हैं। 
-अनिल नरेन्द्र


जिस संविधान व व्यवस्था ने केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनाया उसी की धज्जियां उड़ाईं

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके मंत्रियों का धरना समाप्त हो गया है। सवाल यह उठता है कि क्या केजरीवाल का यह धरना सफल रहा?उनके समर्थकों की नजर में तो यह सफल रहा। उन्हेंने यह संकेत देने में कामयाबी पाई कि दिल्ली पुलिस की कार्यपणाली में सुधार होना चाहिए और दिल्ली की जनता दिल्ली पुलिस की धांधलेबाजी के तरीके से कितनी नाराज है। उनके समर्थक कह रहे हैं कि देखा आपने केजरीवाल खुद रात-भर इतनी ठंड में सड़कों पर उतर आए वह भी जनता की खातिर। कुछ हिंदी चैनल सर्वे दिखा रहे हैं कि केजरीवाल के धरने को 80 फीसदी लोगों से ज्यादा का समर्थन हासिल है। उन्होंने अपना वोट बैंक बरकरार रखा ऐसा भी दावा किया जा रहा है दिल्ली पुलिस को दिल्ली सरकार के अधीन लाने की मांग का भी जनता ने पुरजोर समर्थन किया पर ऐसा उनके समर्थकों का मानना है। हम क्षमा चाहते हैं कि हमारी नजर में तो मुख्यमंत्री का धरना न केवल गलत था बल्कि उन्हें ऐसा करके बहुत नुकसान भी हुआ है। सबसे पहली बात यह कि जो मुद्दा लिया था वह गलत था। सारा झगड़ा दिल्ली सरकार के कानून मंत्री सोमनाथ भारती के साथ मालवीय नगर एसएचओ और एसीपी के व्यवहार को लेकर था। जिस ढंग से सोमनाथ भारती जो पेशे से वकील हैं कानून के जानकार होते हुए भी आधी रात को खिड़की एक्सटेंशन में अफीकी महिलाओं को गिरफ्तार करके कार्रवाई की मांग कर रहे थे वह गलत थी। बेशक वह जो आरोप लगा रहे थे वह ठीक हों पर रात बारह बजे किसी भी महिला को इस तरह पुलिस न तो गिरफ्तार कर सकती है और न ही हमें पुलिस को ऐसी छूट देनी चाहिए। सुपीम कोर्ट की गाइडलाइंस भी है और फिर एक तरफ तो हम इस बात का विरोध करते हैं कि निर्दोष युवकों को आतंकवादी होने के आरोप में पुलिस जब चाहे जहां भी चाहे उठा लेती है दूसरी तरफ हम खुद ऐसी हरकत को बढ़ावा दें कहां तक सही है? किसी को भी गिरफ्तार करने के लिए पुलिस को सही तरीका, समय और ठोस सबूत चाहिए और उनके तहत ही वह कार्रवाई कर सकती है। दूसरी बात यह है कि केजरीवाल साहब ने गलत जगह का चयन किया। गणतंत्र दिवस की परेड हर वर्ष राजपथ पर होती है और आस-पास के इलाके को सील कर दिया जाता है। यह परेड हमेशा से आतंकियों के निशाने पर रही है ऐसे में पुलिस आतंकवादियों का ध्यान करती या मुख्यमंत्री और उनके समर्थकों। छोटे-छोटे बच्चे इतनी ठंड में रिहर्सल करने आते हैं वह राजपथ तक ही नहीं पहुंच पा रहे थे। दो दिन तक मैट्रो स्टेशन बंद रहे, लाखों लोगों को काफी परेशानी झेलनी पड़ी। अरविंद केजरीवाल के धरने के दूसरे दिन मुश्किल से 100-200 उनके कट्टर समर्थक ही रेल भवन पहुंचे। जनता का समर्थन उनके साथ नहीं था। जिस संविधान की शपथ लेकर अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री की कुसी पर बैठे उसकी ही धज्जियां उड़ा दीं। इस सिस्टम से केजरीवाल मुख्यमंत्री बने उसी सिस्टम का अपमान किया। क्या कभी यह कल्पना की जा सकती थी कि देश की राजधानी दिल्ली का मुख्यमंत्री दिल्ली  पुलिस कर्मियों से कहे कि वदी उतारकर मेरे साथ शामिल हो जाओ। क्या यह राष्ट्रद्रोह का मामला नहीं बनता? केजरीवाल ने खुद कहा कि मैं अगर आपकी नजरों में एनार्किस्ट हूं तो मैं एनार्किस्ट हूं यानी मैं अराजक हूं और अराजकता पर विश्वास करता हूं। खुद उन्होंने और उनके साथियों ने कई बार कहा कि हम उसे सिस्टम को ही बदलना चाहते हैं। इसमें सुधार नहीं इसे पलटना है। यह तो विद्रोह है क्या वह देश में उसी तरह का जन-विद्रोह करवाना चाहते हैं जैसा पिछले साल मध्य पूर्व के कुछ देशों में हुआ और अंत में केजरीवाल एंड कंपनी को हासिल क्या हुआ? दो पुलिस अफसर छुट्टी पर भेज दिए गए। पुलिस अधिकारी न तो सस्पेंड हुए न डिसमिस और न ही लाइन हाजिर। मुंह छिपाने के लिए दो अफसरों को पेड लीव पर भेज दिया। इन छुट्टियों का दोनों पुलिस वालों ने स्वागत किया होगा क्योंकि न तो गणतंत्र दिवस पर उन्हें साधारण तौर पर छुट्टी मिलती और न ही यह संदेश जाता कि एक दरोगा ने मुख्यमंत्री को झुका दिया। खास बात यह रही कि मंत्री सोमनाथ भारती से टकराए एसीपी भरत सिंह को छुट्टी  पर नहीं भेजा गया है और पहाड़गंज के पीसीआर इंचार्ज को भी छुट्टी पर भेज दिया गया जिन्हें हटाने की डिमांड ही नहीं की जा रही थी। अब केजरीवाल और खास तौर पर सोमनाथ भारती को अपनी करनी का खामियाजा भुगतना पड़ेगा। मालवीय नगर के खिड़की एक्सटेंशन की अफीकी मूल की महिला ने मजिस्ट्रेट के सामने 164 के तहत अपना बयान दर्ज कराया है और छापेमारी दस्ते के अगुवाई करने वाले के रूप में सोमनाथ भारती की पहचान भी की है। सोमनाथ भारती के त्याग पत्र की मांग जोर पकड़ती जा रही है। देखना यह होगा कि जिस सोमनाथ भारती को बचाने के लिए केजरीवाल ने इतना ड्रामा किया क्या उन्हें वह बचा पाएंगे? अंत में अगर हम भारतीय महिला देवयानी से अमेरिकी पुलिस द्वारा अभद्र व्यवहार पर इतनी हाय-तोबा मचा रहे हैं तो अपने घर में दिल्ली सरकार के कानून मंत्री का एक विदेशी महिला से इस पकार का अभद्र व्यवहार स्वीकार है?

Thursday, 23 January 2014

आखिरकार पूरी हुई जैन समाज की पुरानी मांग

लोकसभा चुनाव को देखते हुए केन्द्र सरकार ने जैन समुदाय को राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक का दर्जा दे दिया है। पधानमंत्री की अध्यक्षता में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के पस्ताव को मंजूरी दे दी गई है। अल्पसंख्यक का दर्जा हासिल होते ही जैन समाज को सरकारी नौकरियों में आरक्षण और केन्द्र की विभिन्न योजनाओं का लाभ मिल सकेगा। इस फैसले के जरिए सरकार ने 2014 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले देशभर के 60 लाख से अधिक जैन समाज के लोगों को लुभाने की कोशिश की है। राजस्थान, दिल्ली, आंध्र पदेश, कर्नाटक, उत्तर पदेश में इस समुदाय के लोगों की खासी संख्या है। दिल्ली, आंध्र पदेश और राजस्थान सहित लगभग दर्जनभर से अधिक राज्यों में पहले ही जैन समुदाय को राज्य स्तर पर अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जा चुका है। जैन समाज का एक वर्ग राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक के दर्जे के लिए कई दशकों से मांग करता आ रहा है। वैसे केन्द्र सरकार ने वोट बैंक पालिटिक्स के चक्कर में जैन समुदाय को अल्पसंख्यक दर्जे में शामिल करने का राजनीतिक मन पहले ही बना लिया था मगर चुनाव से पहले इसका सेहरा राहुल गांधी के सिर बांधने के लिए रविवार को इसकी पटकथा लिखी गई। जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा देते हुए केन्द्र सरकार ने चुनावी मौसम में राहुल गांधी के एक और आश्वासन पर मुहर लगा दी। यह फैसला उपाध्यक्ष राहुल गांधी के जैन समुदाय के पतिनिधियों से मुलाकात के बाद आया। केन्द्र के इस निर्णय के बाद जैन धर्मविलबी मुस्लिम, सिख, इसाई, पारसी और बौद्ध समुदाय के बाद अल्पसंख्यक श्रेणी में शािमल होने वाला बड़ा वर्ग है। महत्वपूर्ण है कि अल्पसंख्यक वर्ग में शामिल होने के बाद जैनियों को केन्द्राrय योजनाओं के बाद आवंटन के साथ ही कल्याण योजनाओं व छात्रवृत्तियों का भी लाभ मिल सकेगा। इसके अलावा उन्हें अपने शैक्षणिक संस्थन चलाने का भी विशेष अधिकार हासिल होगा। वैसे आमतौर पर जैन समुदाय सम्पन्न वर्ग है। इनमें अधिकतर कारोबारी हैं और मुझे नहीं लगता कि बहुत ज्यादा जैनियों को इस दर्जे में शामिल होने की दिलचस्पी होगी। जैन समुदाय को अल्पसंख्यक दर्जा देने के खिलाफ  लोगों का मानना है कि चूंकि जैन समाज, एक धर्म विशेष की शाखा है, लिहाजा उसे विशेष दर्जा देना इस समाज को बांटने के समान है। हिंदुओं ने कभी भी जैन समुदाय को अलग नहीं समझा। आज चाहे राजनीति का क्षेत्र हो, व्यापार का क्षेत्र हो, त्यौहार हो, जीवनशैली हो जैन समाज अधिकतर हिन्दू समाज से जुड़ा है। दूसरी ओर यह भी कहा जाता है कि जैनागम और इतिहास का तटस्थ अध्ययन यह बताता है कि जैन धर्म विश्व के पाचीनतम धर्मों में एक है। यह एक स्वतंत्र धर्म है। यह न वैदिक धर्म की एक शाखा है और न ही बौद्ध धर्म की। पुरातत्व, भाषा, विज्ञान, साहित्य और विज्ञान आदि से स्पष्ट है कि वैदिक काल से भी पहले भारत में एक बहुत समृद्ध संस्कृति थी। यही संस्कृति आज जैन संस्कृति के नाम से जानी जाती है। जैन धर्म के अपने मौलिक सिद्धांत, परम्परा, इतिहास और ग्रंथ हैं जो इसे  अन्य धर्में से अलग करते हैं। जाति, धर्म के आधार पर मंडल कमीशन ने भी जैन समुदाय को हिंदू धार्मिक ग्रुप में मुस्लिम, सिख, बौद्ध व ईसाइयों के साथ रखा है। जाहिर है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और मनमोहन सिंह सरकार ने काफी सोच-समझकर ही यह फैसला लिया होगा।

-अनिल नरेन्द्र

सुनंदा पुष्कर थरूर की मौत की वजह जहर भी हो सकती है?

जैसा शक था वैसा ही सही साबित होता दिख रहा है। केन्द्राrय मंत्री शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर थरूर की मौत जहर खाने की वजह से भी हो सकती है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सुनंदा पुष्कर की मौत के पीछे विषाक्तता मुख्य कारण बताए जाने के बाद दिल्ली पुलिस को एसडीएम ने आदेश दिया है कि वह इस रहस्यमयी मौत की जांच हत्या और आत्महत्या दोनों कारणों से करे। सुनंदा एक तगड़ी स्वभाव की महिला थी। वह यूं ही अपने जीवन का अंत नहीं कर सकती थी। फिर वह और शशि थरूर एक ऐसी सोसायटी में शामिल थे जो पेज थ्री संस्कृति की थी। वहां पर पति का किसी और महिला से और महिला का किसी और पुरूष से अफेयर होना बहुत बड़ी बात नहीं मानी जाती फिर वह इतना बड़ा कदम क्यों उठातीं? ऐसा नहीं है कि व्यक्ति जब अशान्त और डिपेसेड होता है तो वह खुद का जीवन अन्त नहीं कर सकता पर इसके लिए स्पष्ट संकेत आने लगते हैं। यह मुश्किल है कि सुनंदा दोपहर को होटल लाबी में टहलतीं नजर आएं, सिगरेट मांगें और रात को नींद की गोलियां खाकर जीवन का अंत कर लें? सुनंदा बहुत अमीर महिला थीं। वह 100 करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति की मालिक थीं। सात करोड़ से ज्यादा के तो सुनंदा के बैंक डिपाजिट, शेयर, फिक्स्ड डिपाजिट इत्यादि थे। कनाडा में एक मकान था जिसकी कीमत लगभग 1.85 करोड़ रुपए है। जम्मू में 2 कनाल जमीन थी। दुबई में सुनंदा के नाम 12 अपार्टमेंट थे। जिसकी कीमत 79.5 करोड़ थी। 5 करोड़ की तो 25 विदेशी घड़ियां थीं। उनके पास दो करोड़ से ज्यादा की ज्वैलरी थी। शाहतूश शाल, हुमायूं के समय की तलवार इत्यादि 30 लाख रुपए से ज्यादा का सामान था। कहने का भाव यह है कि सुनंदा पैसे से बहुत मजबूत थीं। उनकी अगर हत्या हुई है तो पैसा भी एक मोटिब हो सकता है। सुनंदा ने अपने ट्वीट में  मेहर तरार को आईएसआई एजेंट कहा था। मरने के कुछ घंटे पहले सुनंदा ने पत्रकार नलिनी सिंह को फोन पर कहा था कि वह कुछ रहस्योद्घाटन करना चाहती हैं पर वह यह बातें पुलिस को ही बताएंगी। यह बात नलिनी सिंह ने मीडिया को बताई। ऐसी कौन सी बात थी जो सुनंदा केवल पुलिस को ही बताना चाहती थी? क्या सुनंदा की मौत का दाउद इब्राहिम के अंडरवर्ल्ड से कोई कनेक्शन हो सकता है? आप को याद होगा कि आईपीएल में कोच्चि की एक टीम होती थी। मैच फिक्सिंग के आरोप लगने पर टीम को आईपीएल से बाहर कर दिया गया था। यह टीम सुनंदा और शशि थरूर की थी। आरोप लगा था कि दाउद और उनके गुर्गें ने मैच फिक्सिंग की थी। क्या यह संभव है कि सुनंदा ने अंडरवर्ल्ड और भारतीय कनेक्शनों के नाम बताने की धमकी दी थी और यह सारा किस्सा वह पुलिस के सामने बताना चाहती थी? क्योंकि जब वह मेहर तरार को आईएसआई एजेंट कह रही थीं तो इसका मतलब आईएसआई-दाउद, अंडरवर्ल्ड भी हो सकता थासारा मामला दब जाता क्योंकि पहली पोस्टमार्टम  रिपोर्ट में तो यही आया था कि नींद की गोलियों के ओवरडोज से मौत हुई है। यह तो एसडीएम द्वारा आलोक शर्मा की ड्यूटी लगाई गई है कि मामले की छानबीन कर रिपोर्ट दें। दरअसल आईपीसी की धारा 176 के तहत पुलिस व एसडीएम को हर उस मौत की बारीकी से जांच करनी होती है जिसमें शादी के सात साल के अंदर रहस्यमय कारणों से मौत हो जाए। देखें, जांच में क्या निकलता है? चूंकि मामला बहुत हाईपोफाइल है इसलिए संभव है कि सारा मामला दबा दिया जाए और सुनंदा पुष्कर थरूर की मौत की असलियत कभी सामने न आए। उम्मीद करते हैं कि पुलिस बारीकी से छानबीन करेगी और यह नहीं देखेगी कि पति एक पभावशाली केन्द्राrय मंत्री है।

Wednesday, 22 January 2014

मोदी की विजन-2014 और आडवाणी की चेतावनी व नसीहत

अभी तक अपने भाषणों में कांग्रेस पर निशाना साध रहे भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने भाजपा की नई दिल्ली में रविवार को हुई राष्ट्रीय परिषद की बैठक में पहली बार देश के सामने अपना विजन-2014 पेश किया। यह अच्छी बात है कि मोदी ने देश को बताया कि अगर भाजपा सत्ता में आई तो वह देश की ज्वलंत समस्याओं से कैसे निपटना चाहेगी। अभी तक मोदी के खिलाफ यह प्रचार हो रहा था कि वह सिवाय कांग्रेस की आलोचना के यह नहीं बताते कि उनका विजन-2014  आखिर क्या है? पहली बार नरेंद्र मोदी ने इस विजन-2014 पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने स्मार्ट सिटी और सैटेलाइट सिटी और पूरे देश को जोड़ने का सपना भी दिखाया और इंडिया की क्राडिंग पर भी जोर दिया। इसके लिए मोदी ने `फाइव-टी' फॉर्मूला भी पेश किया। इसमें टैलेंट, टेडिशन, टूरिज्म, ट्रेड टेक्नोलॉजी आते हैं। दूसरी बात जो मोदी ने कही वह यह थी कि हेल्थ इंश्योरेंस नहीं, एश्योरेंस (भरोसा) चाहिए। तीसराöहर राज्य में आईआईटी, आईआईएम, एम्स की सुविधा हो। चौथाöसैटेलाइट सिटी बनें। 100 स्मार्ट सिटी बनाएंगे। पांचवांöआठ साल में देश को चारों तरफ से बुलैट ट्रेन से जोड़ेंगे। छठाöहम काला धन का एक-एक पैसा वापस लाएंगे। सातवांöखेती से जुड़ा रीयल टाइम डेटा होना चाहिए। आठवांöमहंगाई के मद्देनजर गरीबों के लिए फंड बने और नौवां व अंतिमöविकास के लिए पीएम और सीसी सीएम की टीम बने। मेरी राय में यह काफी काप्रेहेसिंक टारगेट हैं जिनका स्वागत होना चाहिए। राष्ट्रीय परिषद में भाजपा के पितामह श्री लाल कृष्ण आडवाणी ने सही चेतावनी और नसीहत दी। उन्होंने जहां नरेंद्र मोदी को पीएम बनाने के लिए सभी कार्यकर्ताओं को कमर कसने की हिदायत दी वहीं यह भी कहा कि हमें ओवर कान्फिडेंस में नहीं रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसी ओवर कान्फिडेंस की वजह से पार्टी 2004 के आम चुनाव में हार गई थी। आडवाणी ने कहा कि एक दशक बाद सत्ता हासिल करने और नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के प्रयासों में भाजपा कार्यकर्ताओं को कोई ढिलाई नहीं बरतनी चाहिए। आडवाणी ने कहा कि आजादी के बाद से यह 16वां चुनाव होगा, मैंने सभी चुनाव देखें हैं और अब तक जितने भी चुनाव हुए हैं, उनमें पार्टी में ऐसा उत्साह नहीं देखने को मिला। हम 2004 में चुनाव हार गए और इसका कारण अति आत्मविश्वास था। इस लोकसभा चुनाव में हमें सुनिश्चित करना है कि हम केवल विश्वास के साथ चुनाव लड़ें। मोदी की प्रशंसा करते हुए आडवाणी ने कहा कि बड़ा लक्ष्य हो तो महत्वाकांक्षा भी बड़ी होनी चाहिए। पिछले पांच-छह महीने से नरेंद्र भाई के साथ पार्टी ने अभियान चलाया, बड़ी-बड़ी जनसभाओं को सम्बोधित किया, किसी अन्य नेता ने लगातार इस तरह लोगों के सामने अपनी बात नहीं रखी। उन्होंने नरेंद्र भाई की तारीफ करते हुए कहा कि मोदी अपनी अन्य उपलब्धियों पर गर्व कर सकते हैं लेकिन जिस तरह से नर्मदा का पानी लेकर साबरमती नदी का कायाकल्प किया वह वाकई गर्व की बात है। सुशासन देने और उसका स्वाभाविक लाभ गरीबों को हो, ऐसा काम उन्होंने किया है, आप किसी भी देवी की पूजा करते हो, आने वाले 50 वर्षों के लिए उन्हें सोने दें और एक देवी की पूजा करें, उसे जागृत रखें वह है देवी भारत माता। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ने 15वीं लोकसभा एक जून को गठित होने की बात कही है, हम यह सोच लेकर चलें कि जून महीने में नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बनें।

-अनिल नरेन्द्र

सड़क छाप राजनीति के माहिर अरविंद केजरीवाल

सोमवार को देश की राजधानी दिल्ली में एक ऐसी घटना घटी जो भारत के इतिहास में पहले शायद कभी नहीं देखी गई। दिल्ली पुलिस के तीन अफसरों को निलंबित करने की मांग पर अड़ी केजरीवाल सरकार सड़क पर उतर आई। यह सम्भवत पहली बार है जब कोई मुख्यमंत्री इस तरह केंद्र सरकार के खिलाफ धरने पर बैठा हो, जिस तरह 21 दिन पुरानी दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल बैठे। सम्भव है कि आम आदमी पार्टी और सरकार के समर्थक आज केजरीवाल को हीरो मान रहे हों और उनके इस कदम की जमकर तारीफ कर रहे हों पर हमारा मानना है कि एक जिम्मेदार संवैधानिक पद पर बैठे अरविंद केजरीवाल ने असंवैधानिक काम किया है। उन्होंने न केवल हमारे संविधान की धज्जियां उड़ाई हैं पर अपने समर्थकों से भी धोखा किया है। जनता ने उन्हें इसलिए नहीं चुना था कि वह एक छोटे से मुद्दे पर केंद्र सरकार से ही टकरा जाएं? 26 जनवरी की गणतंत्र दिवस परेड में भी बाधा पैदा कर दें। चूंकि केजरीवाल जनता की ज्वलंत समस्याओं का समाधान नहीं कर पा रहे, अपने वादों को पूरा नहीं कर पा रहे, इसलिए जनता का ध्यान बांटने के लिए इस प्रकार की अराजकता पैदा कर रहे हैं और यह उन्होंने स्वयं माना भी। उन्होंने कहा कि अगर आप मुझे एनार्किस्ट (अराजक) कहते हो तो हां मैं एनार्पिस्ट हूं। एक मुख्यमंत्री जब यह कहे कि हां मैं एनार्पिस्ट हूं तो देश को वह किस ओर ले जाना चाहते हैं? वह और उनके साथी बार-बार यह दोहराते हैं कि हमें तो देश की व्यवस्था बदलनी है। यानि कि आम आदमी पार्टी न तो भारत के लोकतंत्र में विश्वास करती है और न ही लोकतांत्रिक व्यवस्था पर। फिर केजरीवाल एंड कम्पनी और नक्सलियों, माओवादियों में फर्प क्या रह गया? वह भी तो यही बात कहते हैं। वह हथियार से व्यवस्था परिवर्तन करना चाहते हैं तो आम आदमी पार्टी बैलेट से। बुलेट और बैलेट का ही फर्प है, मकसद दोनों का एक ही है। तीन-चार मझले दर्जे के पुलिसकर्मियों के निलंबन या तबादले की मांग इतनी बड़ी नहीं है कि उसके लिए ऐसा कदम उठाया जाए। आमतौर पर ऐसी मांगों के लिए राजनीतिक पार्टियों को जिला या मोहल्ला स्तर की इकाइयां आंदोलन करती हैं, लेकिन छोटी-मोटी जंग में एटम बम का इस्तेमाल `आप' की शैली बन गई है। यह सच है कि भारत में पुलिस व्यवस्था बहुत खराब है और उसमें भ्रष्टाचार, अकुशलता और गैर-पेशेवाराना रवैया मौजूद है। यह भी मुमकिन है कि जिन मुद्दों पर आप के दो मंत्रियोंöसोमनाथ भारती और राखी बिड़ला का पुलिस से टकराव हुआ था उनमें पुलिस की लापरवाही हो लेकिन आप को यह समझना चाहिए कि अगर पुलिस में यह दोष है तो वे छापामार लड़ाई या धरने से दूर होने से तो रहे, यह मसला इतना बड़ा नहीं था। उपराज्यपाल ने न्यायिक जांच के आदेश दे दिए थे। क्या केजरीवाल एंड कम्पनी को जांच परिणाम की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए थी? इससे मुझे एक सोची-समझी रणनीति नजर आती है। सम्भव है कि सोमनाथ भारती प्लानिंग और रणनीति के तहत मालवीय नगर खिड़की एक्सटेंशन में गए और पुलिस व गृह मंत्रालय और केंद्र सरकार से टकराने के लिए इसे बहाना बनाया गया हो? एक पैटर्न नजर आने लगा है। आप के `थिंक टैंक' के एक अन्य सदस्य प्रशांत भूषण कश्मीर में सेना हटाने की बात कर रहे हैं तो केजरीवाल पुलिस से टकरा रहे हैं। यानि भारत की व्यवस्था से टकराव। सेना और पुलिस किसी भी सरकार के दो बहुत महत्वपूर्ण अंग हैं। इनसे सीधा टकराना संविधान और लोकतांत्रिक व्यवस्था को चुनौती देना है। दुख की  बात तो यह है कि कांग्रेस और यूपीए सरकार मूकदर्शक बनकर सारा तमाशा देख रही है। जिस पार्टी के समर्थन पर टिकी यह सरकार है वही खुलेआम कहती है कि देखना लोकसभा चुनाव में जनता कांग्रेस को कैसा मजा चखाती है। कांग्रेस का अपना ही गेम प्लान है। वह इस सरकार से समर्थन वापस नहीं लेगी। कम से कम लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने तक तो नहीं। अधिसूचना जारी होने से ठीक पहले शायद ले ले पर इसमें भी संदेह है, क्योंकि कांग्रेस ने गेम प्लान के तहत ही आम आदमी पार्टी को खड़ा किया है। उसे उम्मीद है कि आम आदमी पार्टी लोकसभा चुनाव में इतनी सीटें ले ले जिससे भाजपा और नरेंद्र मोदी उस जादुई आंकड़ा 272+ तक न पहुंच सकें। इस चक्कर में देखना यह होगा कि आम आदमी पार्टी, कांग्रेस, यूपीए सरकार, भारत के लोकतंत्र और भारत के संविधान को कितना नुकसान और पहुंचाएगी?

Tuesday, 21 January 2014

फिजूल विवादों में उलझकर केजरीवाल जनता की नजरों में तेजी से गिर रहे हैं

दिल्ली की जनता को तो श्री अरविंद केजरीवाल और उनकी सरकार से बहुत उम्मीदें थीं। उसे लगा कि आखिर कोई तो ऐसा व्यक्ति सामने आया है जो कि लीक से हटकर एक भ्रष्टाचार मुक्त, जवाबदेही और जनता के प्रति हमदर्दी रखने, उसकी ज्वलंत समस्याओं का समाधान करने वाला शासन देगा पर जैसे-जैसे दिन बीतते गए जनता का केजरीवाल एंड कम्पनी से मोह भंग हो रहा है। बजाय इसके कि वह अपने वो वादे पूरे करें जिनकी बिनाह पर वह सत्ता में आए। यह तो जनता का ध्यान बांटने के लिए उल्टा रोज नए-नए विवाद खड़े कर रहे हैं। बताइए कि दिल्ली के लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने में उलझ रही दिल्ली की आम आदमी  पार्टी की सरकार केंद्र सरकार से ही उलझ गई है। अरविंद केजरीवाल ने ऐलान किया है कि उनके दो मंत्रियों के साथ उलझने वाले पुलिस अधिकारियों को निलंबित किया जाए और उन्होंने गृह मंत्रालय को सोमवार सुबह 10 बजे तक का टाइम दिया था। साथ ही कहा था कि नहीं तो वह गृह मंत्रालय के बाहर धरने पर बैठ जाएंगे। दिल्ली के राजनीतिक इतिहास में यह पहली बार हुआ है जब राज्य सरकार ने सीधे तौर पर केंद्र सरकार के खिलाफ धरने पर बैठने की बात कही है। मुख्यमंत्री ने दिल्ली पुलिस को प्रदेश सरकार के अधीन करने की भी मांग की है। दिल्ली सरकार के मंत्री मनीष सिसोदिया ने सरकार और पुलिस के बीच लड़ाई को लेकर कहा है कि पुलिस को हम सुधारेंगे, यह शीला दीक्षित सरकार नहीं है। आम आदमी पार्टी की सरकार यह बहाना लेकर नहीं  बैठेगी कि पुलिस उसके पास नहीं है। हम एक्शन लेंगे। ड्रग्स और वेश्यावृत्ति के मामले में 48 घंटे  बीत जाने पर भी वारंट जारी नहीं हुए हैं, न कोई कार्रवाई की गई। दरअसल सारा विवाद तब खड़ा हुआ जब दिल्ली के कानून मंत्री सोमनाथ भारती मालवीय नगर के खिड़कीपुर एक्सटेंशन इलाके में आधी रात पहुंचे और वहां पर एक मकान में अफ्रीकी महिलाओं को वेश्यावृत्ति करने और ड्रग्स इत्यादि में लिप्त होने के अपराध में गिरफ्तार करवाना चाहते थे। पुलिस ने कायदे-कानूनों का हवाला देते हुए कहा कि आधी रात को हम ऐसी कार्रवाई नहीं कर सकते, सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी है। इस पर सोमनाथ भारती और स्थानीय एसीपी के बीच बहसबाजी भी हो गई। पुलिस के सामने अपने आपको बेइज्जत होने पर केजरीवाल एंड कम्पनी दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग के पास शिकायत और पुलिस अफसरों को सस्पेंड करने की मांग को लेकर पहुंच गए। उपराज्यपाल से अरविंद केजरीवाल, मंत्री मनीष सिसोदिया, सोमनाथ भारती और राखी बिड़ला ने एक साथ सेक्स व ड्रग्स रैकेट मामला, महिला को कथित  जलाए जाने और विदेशी महिला के साथ बलात्कार के मामले में दोषी पुलिस अधिकारियों को निलंबित करने की मांग रखी। बैठक में पुलिस ने इन मामलों में अपनी रिपोर्ट उपराज्यपाल को पेश की। उपराज्यपाल ने मामले को सुनने के बाद पुलिस अधिकारियों के निलंबन की मांग मानने से इंकार कर दिया और सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अगुवाई में जांच के आदेश दिए पर केजरीवाल इससे संतुष्ट नहीं हुए और वह गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे से मिले और वहां धमकी दे आए कि उनकी मांगें मानी नहीं गईं तो वह धरने पर बैठेंगे। अफ्रीकी मूल की मालवीय नगर के खिड़कीपुर एक्सटेंशन इलाके में चार महिलाओं को टैक्सी में बंधक बनाने और जबरन उनका मेडिकल कराने के मामले पर नाइजीरिया के उच्चायुक्त निडुबुइशी वी आमाकू ने नाराजगी जताई है। आमाकू ने कहा कि अफ्रीकी मूल के व्यक्ति के तौर पर मैं खुद को अपमानित और क्षुब्ध महसूस कर रहा हूं कि 21वीं सदी में भी इस तरह की घटनाएं नागरिकों के खिलाफ घट रही हैं, चाहे वह भारतीय हों या अन्य देशों के। उन्होंने केंद्र व दिल्ली सरकार से मांग की कि विदेशी नागरिकों खासकर अश्वेत और अफ्रीकी मूल के लोगों को आश्वस्त किया जाए। इस मामले पर न केवल खेद जताया जाए बल्कि इस पर कार्रवाई भी होनी चाहिए। खबर तो यह भी है कि मालवीय नगर की खिड़कीपुर एक्सटेंशन में एक आप समर्थक महिला प्रॉपर्टी डीलर ने शिकायत की थी कि इलाके में जो नाइजीरियाई लोग रहते हैं उनके लिए प्रॉपर्टी डीलर जिम्मेदार हैं। महिला का आरोप था कि नाइजीरियाई लोग गैर-कानूनी काम करते हैं और ज्यादा किराया देने की वजह से प्रॉपर्टी डीलर व मकान मालिक नाइजीरियाई लोगों के गैर-कानूनी कामों को नजरअंदाज करते हैं। इसी शिकायत को लेकर सोमनाथ भारती अपने समर्थकों के साथ इलाके में आधी रात पहुंचे और नाइजीरियाई महिलाओं से बदतमीजी की। नाइजीरियाई और युगांडा की   महिलाओं को रोक कर रखना, वेश्यावृत्ति और ड्रग्स स्मगलिंग का गलत आरोप लगाने के आरोप में भारती के खिलाफ केस दर्ज करने के फैसले पर विचार हो रहा है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार और दिल्ली पुलिस के बीच जैसी ठन गई है वह अफसोसजनक होने के साथ खतरनाक भी है। आप के दो मंत्री सोमनाथ भारती और राखी बिड़ला जिस प्रकार से अलग-अलग मामलों में सार्वजनिक रूप से पुलिस अधिकारियों से उलझ गए और दोनों पक्षों द्वारा एक-दूसरे की ओर अंगुली उठाने का जो दृश्य हम देख रहे हैं, उससे आने वाले दिनों को लेकर आशंका पनपती है। ऐसे दृश्य तो देश ने कई बार देखे होंगे जिनमें पुलिस वाले नेताओं की चापलूसी और चरण वंदना करते, यहां तक कि उनके जूते पहनाते दिखे हैं। लेकिन ऐसा नजारा कम ही देखने को मिलता है जब पुलिस वाले किसी मंत्री को उसकी हद बताते हुए दिखें या उनके आदेशों की अवहेलना करें। दोनों मंत्री अपने पद की गरिमा को ध्यान में न रखते हुए आंदोलनकारी ज्यादा दिखे। यही आरोप केजरीवाल पर भी लग सकता है। चूंकि वह तमाम जीवन आंदोलनकारी रहे हैं, इसलिए मुख्यमंत्री बनने के बाद भी धरने-प्रदर्शन करने की बात करते हैं। इसे तो सरकार की गुंडागर्दी भी कहा जा सकता है। आप के बागी विधायक विनोद कुमार बिन्नी भी यही कहते हैं। उन्होंने केजरीवाल को नसीयत देते हुए कहा कि मंत्री पुलिस को धमका नहीं सकते। भारती कानून मंत्री हैं और उनसे अपेक्षा की जाती है कि वह कानून का पालन करेंगे लेकिन उन्होंने तो उल्टा किया। बिन्नी आरोप लगाते हैं कि पार्टी में हिटलरशाही है, कुछ लोगों को छोड़कर पार्टी में किसी विधायक की कोई सुनवाई नहीं है। चार-पांच नेता एक बंद कमरे में सारे फैसले कर लेते हैं। सरकार चलाने के नाम पर गुंडागर्दी हो रही है। आप पर निशाना साधते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने आप पर व्यवस्था खराब करने वाला अराजकता का आरोप लगाया है। उन्होंने यह भी एक चैनल पर कहा कि देशभर के कुछ सबसे खराब, नाकारा और थर्ड ग्रेड लोग आप में शामिल हैं। आप के लोगों से अराजकता की बू आती है। वे समय पर जांची-परखी तमाम चीजों को नीचा दिखाते हैं। वे हर व्यवस्था पर न केवल सवाल खड़ा कर रहे हैं पर स्थापित व्यवस्था  और मूल्यों को बदलने की भी बात कर रहे हैं। जैसा मैंने कहा कि अरविंद केजरीवाल और उनकी सरकार व पार्टी जनता के मूल मुद्दों से ध्यान हटाने के उद्देश्य से रोज नया-नया विवाद खड़ा कर रहे हैं। अगर यह इनकी रणनीति है तो इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। आज सड़क पर किसी से पूछ लें कि क्या केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी की वही छवि है जो चुनाव परिणाम आने के बाद आठ दिसम्बर को थी?

-अनिल नरेन्द्र

Sunday, 19 January 2014

मायावती ने फिर दिखाई अपनी सियासी ताकत

श्री नरेंद्र मोदी, अरविंद केजरीवाल की पिछले कुछ दिनों से टीवी और समाचार पत्रों में इतनी चर्चा हुई कि लोग बसपा प्रमुख सुश्री मायावती को तो भूल ही गए थे। बहन जी ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए और देश को यह बताने के लिए कि आज भी वह एक राजनीतिक शक्ति हैं, लखनऊ में एक शानदार रैली की। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने बुधवार को कांग्रेस-भाजपा-सपा पर चौतरफा हमला करते हुए कहा कि बसपा के बढ़ते वर्चस्व को रोकने के लिए तीनों पार्टियां अंदर खाते एक हैं। उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा कि वे इन तीनों के छिपे गठजोड़ से लड़ने के लिए तैयार रहें। मायावती ने यह भी साफ किया कि बहुजन समाज पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव में यूपी समेत पूरे देश में अकेले चुनाव लड़ेगी। लखनऊ के रमा बाई अम्बेडकर स्टेडियम में मायावती ने अपने 58वें जन्मदिन पर आयोजित राष्ट्रीय सावधान रैली में एक विशाल जन रैली को संबोधित करते हुए कहा कि सपा सरकार ने आते ही बसपा की कई जनहित योजनाओं को बंद कर दिया। बहन जी ने कहा कि दलितों की दुर्दशा देखकर कांशी राम ने 14 अप्रैल 1984 को बसपा की नींव रखी थी। तब से पार्टी को सबने मिलकर कई स्तरों पर घेरने की कोशिश की पर कार्यकर्ताओं ने हमारा साथ दिया। 2009 के लोकसभा चुनावों के समय कांग्रेस, भाजपा तथा सपा एकजुट हो गईं और बसपा के खिलाफ चुनाव लड़ा। इसके बावजूद हम 20 सीटों पर जीते और 47 पर दूसरे नम्बर पर रहे। 2012 में भी विधानसभा चुनावों में तीनों ने मिलकर बसपा के खिलाफ चुनाव लड़ा। यदि बसपा का कोई अन्य जाति का नेता होता तो यह ऐसा नहीं करते किन्तु यह लोग एक दलित लड़की को मुख्यमंत्री बनते नहीं देख सकते। मायावती ने आह्वान किया कि देश की दशा और दिशा सुधारने के लिए अगले लोकसभा चुनाव के बाद दिल्ली में सत्ता का संतुलन बसपा के हाथों में होना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि ऐसा हुआ तो बसपा देश में सांप्रदायिक ताकतों को हावी नहीं होने देगी। उन्होंने मुलायम सिंह यादव, नरेंद्र मोदी और केजरीवाल पर जमकर हमले किए।  उन्होंने इन नेताओं पर दलित विरोधी मानसिकता से ग्रस्त होने का आरोप लगाया। बहन जी पूरी फार्म में थीं और उन्होंने अपने 48 मिनट के भाषण में लगभग हर मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की। दिल्ली के हाल में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनावों में बसपा की परफार्मेंस अच्छी नहीं रही। बीएसपी वोटों का 14 से गिरकर दो फीसदी पर आ जाना यह बताता है कि सिर्प अपने नेता के साथ भावनात्मक जुड़ाव एक राजनीतिक संगठन की स्थायी ताकत के लिए काफी नहीं है। लेकिन इसका अच्छा पहलू यह है कि अपने गृह राज्य में जो कि मायावती की मुख्य कर्मभूमि है, उनका बुनियादी आधार उनके ही साथ रहता है। किसी हवा में आकर जल्दी इधर-उधर नहीं होता। लोकसभा 2014 के चुनाव में दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से जाता है। 80 सीटों वाले इस प्रदेश में भाजपा 50 से 60 सीटों का लक्ष्य लेकर चल रही है। कांग्रेस की हालत खस्ता है। बसपा से गठबंधन की  बात हवा में चल रही है। अरविंद केजरीवाल एंड कम्पनी भी मायावती के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए तैयार बैठी है। सपा की कारगुजारी इतनी खराब रही है कि मैं उसे 2014 लोकसभा चुनाव के लिए कोई बड़ी शक्ति नहीं मानती। बेशक मुलायम सिंह पीएम बनने के सपने देख रहे हों  पर आज भी बसपा एक बड़ी शक्ति है और 2014 में वह उल्लेखनीय भूमिका निभा सकती है। मायावती को उम्मीद है कि वह इतनी सीटें जीत लें जिससे अगली सरकार में बसपा की महत्वपूर्ण भूमिका रहे। देखें, आगे क्या होता है?

-अनिल नरेन्द्र

सुनंदा थरूर की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत?

शुक्रवार को एक ऐसी चौंकाने वाली खबर आई जिसने सबको हिलाकर रख दिया। केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री शशि थरूर की पत्नी सुनंदा थरूर ने दिल्ली के एक फाइव स्टार होटल के कमरे में आत्महत्या कर ली। पुलिस ने बताया कि सुनंदा का शव दिल्ली के सरोजनी नगर स्थित लीला होटल के कमर नम्बर 345 में मिला। होटल स्टाफ को जब काफी देर तक दरवाजा खटखटाने पर जवाब नहीं मिला तो पुलिस को बुलाकर दरवाजा खोला गया। थरूर के निजी सचिव अभिनव कुमार ने बताया कि थरूर रात करीब साढ़े आठ बजे होटल के कमरे में पहुंचे थे, तब तक सुनंदा की मौत हो चुकी थी। सुनंदा का शव बैड पर पड़ा था। उनके शरीर में हालांकि किसी भी तरह के निशान नहीं थे पर पुलिस फिर भी तहकीकात कर रही है कि यह आत्महत्या का मामला है या फिर आत्महत्या जैसे लगने वाली हत्या का मामला है। सुनंदा ने आत्महत्या क्यों की? अभी तक यह सामने नहीं आया। जो सामने आया है कि मियां-बीवी में पिछले कई दिनों से तकरार चल रही थी, अनबन बहुत बढ़ गई थी। जो कारण बताया जा रहा है वह शशि थरूर और एक पाकिस्तानी पत्रकार मेहर तरार के बीच संबंधों को लेकर था। पिछले दो दिनों से ट्विटर पर सुनंदा और तरार के बीच विवाद चल रहा था। सुनंदा ने मेहर पर कई आरोप लगाए थे। बुधवार को शशि थरूर के वेरिफाइड अकाउंट से कुछ बेहद पर्सनल किस्म के ट्विट्स किए गए थे।  यह ट्विट कथित रूप से पाकिस्तानी जर्नलिस्ट तरार की ओर से उन्हें भेजे गए थे। बाद में थरूर ने दावा किया था कि उनका अकाउंट हैक कर लिया गया था। गुरुवार को थरूर और सुनंदा ने संयुक्त बयान जारी करके कहा था कि उनकी खुशी-खुशी शादी हुई लेकिन वह अलग रहना चाहते हैं। इस पर सुनंदा ने एक बड़े अखबार से बातचीत में कहा था कि उनके पति शशि थरूर का यह दावा एकदम गलत है कि उनकी सोशल मीडिया साइट हैक कर ली गई है बल्कि उन्होंने अपने पति के प्रेम-प्रसंग की सच्चाई दुनिया को बताने के लिए खुद ही कई संदेश पोस्ट किए थे जो कि उन्हें एक पाकिस्तानी पत्रकार मेहर तरार ने भेजे हैं। मेहर तरार पाकिस्तान की डेली टाइम्स की स्तम्भकार रह चुकी हैं और पाकिस्तान की जानी-मानी पत्रकार हैं। शशि थरूर और मेहर तरार की दोस्ती के और भी सबूत सामने आए हैं। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने खुलासा किया कि उन्होंने एक माह पहले मेहर तरार को एक इंटरव्यू दिया था। इसके लिए शशि थरूर के दफ्तर से आग्रह आया था। सुनंदा ने तरार के बारे में कहा कि वह अप्रैल से ही उनके पति के पीछे पड़ी हैं और प्रेम तथा रोमांस की पींगें बढ़ा रही हैं। यह आईएसआई एजेंट हैं लेकिन वह अपने रोमांस में उनके पति को पागल बना रही हैं। इसमें कुछ ऐसे पोस्ट भी जारी किए गए, जिसमें मेहर तरार ने तथाकथित रूप से कहाöमैं आपसे प्यार करती हूं, शशि थरूर। आपके प्यार ने मुझे दीवाना बना दिया है और मैं इससे पीछे नहीं हटूंगी। तकलीफ हो रही है पर हमेशा आपकी रहूंगीöमेहर। शशि अब मैं न तो और रुपूंगी, न ही बिखरुंगी। मैं पहले से ज्यादा स्पष्ट हो गई हूं। मुझे ज्यादा पता नहीं पर इतना जानती हूं कि आप मेरी जिंदगी हैं। उधर मेहर तरार ने कहा कि मैं शशि थरूर की पत्नी सुनंदा से कहना चाहूंगी कि वह मुझे आईएसआई एजेंट न कहें। मेहर ने ट्विट कियाöमेरा नाम मेहर है। मैं कोई आईएसआई, सीआईए या रॉ की एजेंट नहीं हूं। संयोग से तरार का 13 साल का बेटा मुसा निशान भी ट्विटर पर उनके 275 फालोवर में शामिल है। उल्लेखनीय है कि शशि थरूर 2010 में भी आईपीएल कोच्चि के एक विवाद में फंसे थे तो उन्हें सरकार से अलग होना पड़ा था। उस दौर में कश्मीरी बाला सुनंदा पुष्कर से उनके रोमांस के किस्से चर्चा में आए। बाद में उन्होंने सुनंदा से बाकायदा विवाह कर लिया। बहरहाल यह अत्यंत दुखद समाचार है कि सुनंदा ने आत्महत्या कर ली है। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे। रही बात सुनंदा ने आत्महत्या की या उन्हें जहर देकर मार दिया गया, यह तो पुलिस तहकीकात के बाद ही निश्चित रूप से पता चलेगा। शशि थरूर को दोहरी मार पड़ी है। एक ओर तो पत्नी गई वहीं दूसरी ओर उनका सियासी जीवन खतरे में पड़ता नजर आ रहा है।

Saturday, 18 January 2014

शर्मसार किया राजधानी में विदेशी महिला के साथ गैंगरेप ने

बड़े दुख के साथ कहना पड़ता है कि राजधानी दिल्ली में व्यवस्था लगता है कभी सुधरने वाली नहीं है। रेप का सिलसिला कहीं थमने वाला नहीं लगता है। ताजा केस डेनमार्प की रहने वाली अधेड़ महिला से आठ युवकों द्वारा लगातार चार घंटे तक रेलवे क्लब के कैम्पस में दरिंदगी का है। दिल्ली के पहाड़गंज इलाके में मंगलवार शाम आठ युवकों ने एक विदेशी महिला से पहले तो लूटपाट की फिर गैंगरेप किया। डेनमार्प निवासी 51 वर्षीय महिला एक जनवरी को घूमने के लिए भारत आई थी। कुछ दिन आगरा में गुजराने के बाद वह दिल्ली के पहाड़गंज स्थित होटल एमेक्स में ठहरी। मंगलवार दोपहर महिला नेशनल म्यूजियम देखने होटल से निकली, लौटते समय करीब चार बजे वह कनॉट प्लेस में रास्ता भटक गई। वह पहाड़गंज जाने के लिए स्टेट एंट्री रोड पर चली गई, जो आगे बंद था। वहां उसने एक युवक से पूछा कि क्या यह रास्ता पहाड़गंज की ओर जाता है? युवक ने कहा हां। थोड़ा आगे जाने पर झाड़ी से आठ युवक निकले और वे महिला को झाड़ियों में ले गए। उन्होंने उससे तीन हजार रुपए, 750 डॉलर, मोबाइल, आइपैड आदि सामान लूट लिया। विरोध करने पर महिला की पिटाई भी की। इसके बाद करीब तीन घंटे तक इन युवकों ने महिला के साथ गैंगरेप किया। रात में करीब 8.30 बजे किसी तरह महिला होटल पहुंची और उसने होटल प्रबंधन और डेनमार्प दूतावास को घटना की जानकारी दी। पुलिस ने अब तक तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है। यह हैंöराजू उर्प भज्जी (23), महेंद्र उर्प गंजा और राजा। क्या राजधानी में व्यवस्था कभी सुधरने वाली है? कहां गए सुरक्षा के तमाम दावे? पुलिस की तैयारियां और फरमानों का फिर पर्दाफाश हुआ है। यह मामला इसलिए भी गम्भीर है कि पीड़िता एक विदेशी है। इससे मामला अंतर्राष्ट्रीय हो जाता है। सारी दुनिया में दिल्ली की थू-थू हो रही है। दुख की बात यह है कि यह पहली विदेशी महिला नहीं है जिससे कुकर्म हुआ हो। 2013 में ही कम से कम पांच ऐसी वारदातें हो चुकी हैं जहां ढाई वर्षीय अफगानी बच्ची और 32 वर्षीय पोलैंड की महिला बलात्कार की शिकार हुई। क्या यह मान लिया जाए कि नौकरशाही की चमड़ी इतनी मोटी है कि उस पर किसी चीज का असर नहीं पड़ता। न तो कोर्ट की फटकार का, मीडिया या जनता के दबाव का। निर्भया कांड के बाद से कई पहलों का दावा किया जा रहा है मसलन ज्यादा पेट्रोलिंग व एफआईआर के तौर-तरीके और टैफिक व्यवस्था तक में बदलाव के दावे किए जा रहे हैं पर दुख से कहना पड़ता कि न तो समाज में सोच बदली है और न ही बलात्कारों में कमी आई है। उलटा बलात्कारों में वृद्धि ही हुई है। आम तौर पर यह कहा जाता है कि बढ़ते कुकर्मों को रोकने के लिए आरोपियों को जल्द सजा दी जानी चाहिए ताकि बाकियों में थोड़ा खौफ पैदा हो पर जमीनी स्थिति यह है कि निर्भया के साथ 16 दिसम्बर 2012 को घिनौनी हरकत हुई थी और एक साल से ज्यादा समय बीतने पर भी अभी भी केस हाई कोर्ट में लटका हुआ है। अकेले पुलिस को दोष देने से काम नहीं चलेगा। समाज से लेकर कानून व्यवस्था और हमारे ज्यूडिशियल सिस्टम को भी बदलना होगा। बेशक कुछ क्षेत्रों में बदल रहा है पर अभी बहुत कमी है। हमें इन क्षेत्रों पर ध्यान देना होगा और प्रयास यह होना चाहिए कि कसूरवारों को जल्द से जल्द सजा मिले। इस घटना से सभी का सिर शर्म से झुक गया है।

-अनिल नरेन्द्र

राहुल पीएम पद के उम्मीदवार नहीं होंगे ः सोनिया ने चर्चा समाप्त की

राहुल गांधी को आगामी लोकसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री पद का कांग्रेसी उम्मीदवार बनाने पर असमंजस की स्थिति अब साफ हो गई है। राहुल गांधी पीएम पद के उम्मीदवार फिलहाल नहीं हैं। यह फैसला गुरुवार को कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में लिया गया। राहुल गांधी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित करने की लम्बे समय से पार्टी में ही मांग की जा रही थी। चर्चा थी कि 17 जनवरी को इसकी घोषणा की जा सकती है। कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने बताया कि बैठक में सभी सदस्य राहुल को पीएम पद का उम्मीदवार बनाना चाहते थे लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इसका विरोध किया। उनका कहना था कि कांग्रेस में चुनाव से पहले पीएम पद का उम्मीदवार घोषित करने की परम्परा नहीं है। अगर किसी ने उम्मीदवार घोषित किया है तो यह जरूरी नहीं कि हम भी उनके मुताबिक इसका ऐलान करें। द्विवेदी के अनुसार पूरी चर्चा के बाद आम सहमति बनी कि राहुल चुनाव अभियान के अध्यक्ष बनेंगे और चुनाव अभियान राहुल के नेतृत्व में होगा। राहुल को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित करने के पीछे कई दलीलें हैं। मेरी राय में यह कांग्रेस का सही फैसला है, क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की प्रतिष्ठा के साथ-साथ नेहरू-गांधी परिवार का राजनीतिक भविष्य भी दांव पर लगा हुआ है। अगर राहुल को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया जाता और कांग्रेस चुनाव हार जाती तो सोनिया-राहुल और प्रियंका के राजनीतिक भविष्य पर ही प्रश्नचिन्ह लग सकता था। अब कम से कम यह तो है कि अगर कांग्रेस हार भी जाती है तो हार का सेहरा राहुल गांधी पर तो नहीं पड़ेगा। यह किसी से अब छिपा नहीं कि भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के सामने राहुल फिलहाल कहीं नहीं ठहर पा रहे। अरविंद केजरीवाल तक ने कह दिया है कि लोकसभा चुनाव में असल मुकाबला नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल के  बीच है, कांग्रेस रेस से बाहर हो चुकी है। कांग्रेस के कई नेता चाहते थे कि 17 जनवरी के एआईसीसी अधिवेशन में राहुल को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित किया जाए, इसमें देर नहीं करनी चाहिए। ऐसा सोचने वालों का तर्प है कि इस समय कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल बुरी तरह गिरा हुआ है। पार्टी दिनोंदिन रक्षात्मक रुख अख्तियार करती जा रही है। ऐसे में अगर राहुल पीएम पद के उम्मीदवार घोषित होते हैं तो इससे पार्टी कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा आ जाएगी। वर्पर अपने-अपने सांसदों से कह रहे हैं कि इस बार उन्हें नया चेहरा चाहिए (मनमोहन सिंह नहीं) और बिना नया चेहरा देखे वे घर से बाहर नहीं निकलेंगे। इतनी ही नहीं, जब देश की जनता देखेगी कि एक तरफ नरेंद्र मोदी जैसा सशक्त चेहरा है और दूसरी ओर लोकप्रियता के शिखर पर बैठे अरविंद केजरीवाल हैं तो वहीं कांग्रेस का मंच एकदम खाली है तो फिर वे क्या सोचकर कांग्रेस को वोट देंगे? साथ ही अगर राहुल खुलकर सामने नहीं आए तो विरोधी भी कांग्रेस पर व्यंग्य कसेंगे कि राहुल ने विपक्ष की आंधी देखते हुए पहले ही हार मान ली है। लिहाजा अब जीत हो या हार, राहुल को आगे बढ़ा ही देना चाहिए। इस तबके का यह भी कहना था कि जब यह चुनाव व्यक्तिगत आधारित हो ही गया है तो ऐसे में हमें बिना चेहरे और उम्मीदवार के चुनाव में नहीं जाना चाहिए। इस तबके की राय है कि राहुल क्लीन इमेज, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे पर उनका कड़ा रुख, जन कल्याण की इच्छाशक्ति और पिछले कुछ समय से राहुल की सक्रियता उन्हें एक बेहतर उम्मीदवार के तौर पर सामने रखने में कामयाब होगी पर ऐसा लगता है कि सोनिया गांधी ने अपने इस फैसले से यूपीए सरकार की नाकामियों और मोदी जैसे अनुभवी नेता के खिलाफ राहुल गांधी को सुरक्षा कवच दिया है। अगर राहुल को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित किया जाता तो चुनावों में खराब प्रदर्शन की स्थिति से सारी तोहमत उन्हीं के सिर पर आती। लेकिन अब राहुल के लिए स्थिति बेहतर होगी। कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक से पहले ऑस्कर फर्नांडीस, ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे सभी बड़े नेताओं ने राहुल गांधी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित करने को कहा था। बैठक में भी ज्यादातर नेताओं की राय इसी पक्ष में थी। जब सोनिया गांधी ने कांग्रेसी नेताओं की इस मांग पर विराम लगा दिया तो पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष ने कोई लाइन खींच दी तो उस विषय को दोहराने की परम्परा नहीं है लिहाजा अब राहुल की उम्मीदवारी की मांग नहीं करनी चाहिए। सोनिया के आदेश के बाद सारे नेता नतमस्तक हो गए और यह अध्याय बंद हो गया।