Saturday 25 January 2014

कांग्रेस रणनीतिकारों का चतुर रास्ता ः सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को समर्थन देने पर विवाद जिस तरीके से धरना समाप्त हुआ उससे बढ़ गया है। इसके दो पहलू हैं-पहला यह कि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की मिलीभगत का यह एक और उदाहरण है, दूसरी तरफ कांग्रेस समर्थक यह कह रहे हैं कि केन्द्र सरकार और खासकर गृह मंत्रालय के कड़े रुख की वजह से ही यह नाटक समाप्त हुआ। पहले नजर डालते हैं आप और कांग्रेस की मिलीभगत पर। कहा तो यह जा रहा है कि आम आदमी पाटी तथा उनके द्वारा उत्पन्न की जा रही अराजकता जैसी स्थिति में कांग्रेस भी बराबर की हिस्सेदार है। उसके रणनीतिकार समझते हैं कि कांग्रेस के मुख्य पतिद्वंद्वी नरेन्द्र मोदी को टीवी के पर्दे और आम चर्चा से हटाना है तो आप के हो-हल्ला को जितना बढ़ावा मिलेगा भाजपा को उतना ही ज्यादा नुकसान होगा भले ही कांगेस को फायदा न हो। कांग्रेस हाई कमान की ओर से शिंदे को साफ दिशा-निर्देश दिए गए थे कि मुख्यमंत्री केजरीवाल की मांग किसी हाल में न मानी जाए जिससे कि उनको आंदोलन करने का भरपूर मौका मिले और जब तक 26 जनवरी बिल्कुल पास न आ जाए तब तक उन्हें धरना स्थल से हटाने के पयास भी न किए जाएं। कहा तो यह भी जा रहा है कि कांग्रेस की युवा विंग एनएसयूआई के लोग भी केजरीवाल समर्थकों साथ भेज दिए गए थे जो आंदोलन को हुड़दंग बनाने में काफी बड़ी भूमिका निभा रहे थे। यही कारण था कि राष्ट्रपति भवन और उसके आस-पास के क्षेत्र को आंदोलन की आड़ में अपने कब्जे में ले चुके अराजक तत्वों के खिलाफ केन्द्र सरकार किसी तरह की सख्ती नहीं बरत रही थी। दूसरी ओर केजरीवाल न केवल गृहमंत्री शिंदे को अपमानित कर रहे थे बल्कि पूरे राजपथ को लोगों से भरने की धमकी भी दे रहे थे तथा उनके समर्थक केन्द्राrय मंत्रियों से हाथापाई तक कर रहे थे और कांग्रेस नेतृत्व हाथ पर हाथ धरे तमाशा देख रहा था। केजरीवाल की जवान और तमीज पर आश्चर्य होता है जब वह कहते हैं कि शिदें कौन ? क्या शिंदे हमें बताएगा कि हम कहां बैठे इत्यादि-इत्यादि। बाकी सारी बातें छोड़ भी दें तो एक मुख्यमंत्री को देश के गृहमंत्री के पति इस तरह से संबोधित करना चाहिए। इन सबके बावजूद अगर कांग्रेस नेतृत्व तमाशा देख रहा था तो इसका मतलब क्या हुआ? कांग्रेस नेता आधिकारिक तौर पर तो केजरीवाल को बुरा-भला कह रहे हों पर अंदर खाते खूब चटखारे ले रहे थे। वे सिर्फ इस बात से खुश हैं कि पिछले कई दिनों से नरेन्द्र मोदी टीवी के पर्दे से गायब हैं। कांग्रेस के एक बड़े नेता का कहना है कि दिल्ली की तरह केन्द्र में भी केजरीवाल भाजपा का खेल बिग़ाड़ने वाले हैं। उनका तो यहां तक कहना है कि अगर चुनाव बाद किसी तीसरे मोर्चे की सरकार बनने की नौबत आती है तो कांग्रेस भाजपा और नरेन्द्र मोदी को सत्ता से दूर रखने के लिए अपना बाहरी समर्थन उसे दे सकती है। सियासी दांव-पेंच और चालों में माहिर कांग्रेसियों को यह मालूम है कि कब ढील देनी है और कब सख्ती दिखानी है। जैसे-जैसे 26 जनवरी की परेड करीब आती गई पाटी रणनीतिकारों ने कहा कि अब सख्ती करने का समय आ गया है। गृहमंत्री सुशील कुमार ने यह साबित करने की कोशिश की है कि वह एक मजबूत एडमिनिस्ट्रेटर हैं। उनके कड़े रुख का समर्थन पीएम ने भी किया और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी। उन्होंने ऐसा रास्ता खोजने के लिए दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग से कहा कि ऐसा रास्ता निकालो जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। गृहमंत्रालय ने नजीब जंग से संपर्क साधा। तब जाकर श्री जंग ने पयास किया। उन्होंने दो पुलिसकर्मियों को छुट्टी पर भेज कर केजरीवाल को मुंह छिपाने का रास्ता खोजा। और केजरीवाल से गणतंत्र दिवस की मर्यादा को देखते हुए और उनकी आंशिक मांग मानते हुए धरना समाप्त करने की अपील की जिसे केजरीवाल तुरन्त मान गए। इसके साथ-साथ केजरीवाल के धरना समाप्त करने से पहले पुलिस को लाठीचार्ज करने का भी आदेश दे दिया ताकि केजरीवाल को डंडे की भाषा समझ आ जाए। इस मिलीभगत से दोनों केन्द्र सरकार व गृहमंत्रालय भी यह दर्शाने में सफल रहे कि केन्द्र सरकार न तो दिल्ली सरकार को पुलिस देगी और न ही आम आदमी पाटी सरकार को अराजकता की आज्ञा देगी। केजरीवाल को भी यह छिपाने और दिखाने का बहाना मिल गया। केजरीवाल को तो अपनी सेहत की भी चिंता थी। अगर वह इस खांसी की हालत में एक दिन-रात और खुले में पड़े रहते तो उन्हें निमोनिया हो सकता था। क्या है या नहीं मिलीभगत?

öअनिल नरेन्द

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