Sunday, 19 January 2014

मायावती ने फिर दिखाई अपनी सियासी ताकत

श्री नरेंद्र मोदी, अरविंद केजरीवाल की पिछले कुछ दिनों से टीवी और समाचार पत्रों में इतनी चर्चा हुई कि लोग बसपा प्रमुख सुश्री मायावती को तो भूल ही गए थे। बहन जी ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए और देश को यह बताने के लिए कि आज भी वह एक राजनीतिक शक्ति हैं, लखनऊ में एक शानदार रैली की। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने बुधवार को कांग्रेस-भाजपा-सपा पर चौतरफा हमला करते हुए कहा कि बसपा के बढ़ते वर्चस्व को रोकने के लिए तीनों पार्टियां अंदर खाते एक हैं। उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा कि वे इन तीनों के छिपे गठजोड़ से लड़ने के लिए तैयार रहें। मायावती ने यह भी साफ किया कि बहुजन समाज पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव में यूपी समेत पूरे देश में अकेले चुनाव लड़ेगी। लखनऊ के रमा बाई अम्बेडकर स्टेडियम में मायावती ने अपने 58वें जन्मदिन पर आयोजित राष्ट्रीय सावधान रैली में एक विशाल जन रैली को संबोधित करते हुए कहा कि सपा सरकार ने आते ही बसपा की कई जनहित योजनाओं को बंद कर दिया। बहन जी ने कहा कि दलितों की दुर्दशा देखकर कांशी राम ने 14 अप्रैल 1984 को बसपा की नींव रखी थी। तब से पार्टी को सबने मिलकर कई स्तरों पर घेरने की कोशिश की पर कार्यकर्ताओं ने हमारा साथ दिया। 2009 के लोकसभा चुनावों के समय कांग्रेस, भाजपा तथा सपा एकजुट हो गईं और बसपा के खिलाफ चुनाव लड़ा। इसके बावजूद हम 20 सीटों पर जीते और 47 पर दूसरे नम्बर पर रहे। 2012 में भी विधानसभा चुनावों में तीनों ने मिलकर बसपा के खिलाफ चुनाव लड़ा। यदि बसपा का कोई अन्य जाति का नेता होता तो यह ऐसा नहीं करते किन्तु यह लोग एक दलित लड़की को मुख्यमंत्री बनते नहीं देख सकते। मायावती ने आह्वान किया कि देश की दशा और दिशा सुधारने के लिए अगले लोकसभा चुनाव के बाद दिल्ली में सत्ता का संतुलन बसपा के हाथों में होना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि ऐसा हुआ तो बसपा देश में सांप्रदायिक ताकतों को हावी नहीं होने देगी। उन्होंने मुलायम सिंह यादव, नरेंद्र मोदी और केजरीवाल पर जमकर हमले किए।  उन्होंने इन नेताओं पर दलित विरोधी मानसिकता से ग्रस्त होने का आरोप लगाया। बहन जी पूरी फार्म में थीं और उन्होंने अपने 48 मिनट के भाषण में लगभग हर मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की। दिल्ली के हाल में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनावों में बसपा की परफार्मेंस अच्छी नहीं रही। बीएसपी वोटों का 14 से गिरकर दो फीसदी पर आ जाना यह बताता है कि सिर्प अपने नेता के साथ भावनात्मक जुड़ाव एक राजनीतिक संगठन की स्थायी ताकत के लिए काफी नहीं है। लेकिन इसका अच्छा पहलू यह है कि अपने गृह राज्य में जो कि मायावती की मुख्य कर्मभूमि है, उनका बुनियादी आधार उनके ही साथ रहता है। किसी हवा में आकर जल्दी इधर-उधर नहीं होता। लोकसभा 2014 के चुनाव में दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से जाता है। 80 सीटों वाले इस प्रदेश में भाजपा 50 से 60 सीटों का लक्ष्य लेकर चल रही है। कांग्रेस की हालत खस्ता है। बसपा से गठबंधन की  बात हवा में चल रही है। अरविंद केजरीवाल एंड कम्पनी भी मायावती के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए तैयार बैठी है। सपा की कारगुजारी इतनी खराब रही है कि मैं उसे 2014 लोकसभा चुनाव के लिए कोई बड़ी शक्ति नहीं मानती। बेशक मुलायम सिंह पीएम बनने के सपने देख रहे हों  पर आज भी बसपा एक बड़ी शक्ति है और 2014 में वह उल्लेखनीय भूमिका निभा सकती है। मायावती को उम्मीद है कि वह इतनी सीटें जीत लें जिससे अगली सरकार में बसपा की महत्वपूर्ण भूमिका रहे। देखें, आगे क्या होता है?

-अनिल नरेन्द्र

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