Friday 24 January 2014

जिस संविधान व व्यवस्था ने केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनाया उसी की धज्जियां उड़ाईं

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके मंत्रियों का धरना समाप्त हो गया है। सवाल यह उठता है कि क्या केजरीवाल का यह धरना सफल रहा?उनके समर्थकों की नजर में तो यह सफल रहा। उन्हेंने यह संकेत देने में कामयाबी पाई कि दिल्ली पुलिस की कार्यपणाली में सुधार होना चाहिए और दिल्ली की जनता दिल्ली पुलिस की धांधलेबाजी के तरीके से कितनी नाराज है। उनके समर्थक कह रहे हैं कि देखा आपने केजरीवाल खुद रात-भर इतनी ठंड में सड़कों पर उतर आए वह भी जनता की खातिर। कुछ हिंदी चैनल सर्वे दिखा रहे हैं कि केजरीवाल के धरने को 80 फीसदी लोगों से ज्यादा का समर्थन हासिल है। उन्होंने अपना वोट बैंक बरकरार रखा ऐसा भी दावा किया जा रहा है दिल्ली पुलिस को दिल्ली सरकार के अधीन लाने की मांग का भी जनता ने पुरजोर समर्थन किया पर ऐसा उनके समर्थकों का मानना है। हम क्षमा चाहते हैं कि हमारी नजर में तो मुख्यमंत्री का धरना न केवल गलत था बल्कि उन्हें ऐसा करके बहुत नुकसान भी हुआ है। सबसे पहली बात यह कि जो मुद्दा लिया था वह गलत था। सारा झगड़ा दिल्ली सरकार के कानून मंत्री सोमनाथ भारती के साथ मालवीय नगर एसएचओ और एसीपी के व्यवहार को लेकर था। जिस ढंग से सोमनाथ भारती जो पेशे से वकील हैं कानून के जानकार होते हुए भी आधी रात को खिड़की एक्सटेंशन में अफीकी महिलाओं को गिरफ्तार करके कार्रवाई की मांग कर रहे थे वह गलत थी। बेशक वह जो आरोप लगा रहे थे वह ठीक हों पर रात बारह बजे किसी भी महिला को इस तरह पुलिस न तो गिरफ्तार कर सकती है और न ही हमें पुलिस को ऐसी छूट देनी चाहिए। सुपीम कोर्ट की गाइडलाइंस भी है और फिर एक तरफ तो हम इस बात का विरोध करते हैं कि निर्दोष युवकों को आतंकवादी होने के आरोप में पुलिस जब चाहे जहां भी चाहे उठा लेती है दूसरी तरफ हम खुद ऐसी हरकत को बढ़ावा दें कहां तक सही है? किसी को भी गिरफ्तार करने के लिए पुलिस को सही तरीका, समय और ठोस सबूत चाहिए और उनके तहत ही वह कार्रवाई कर सकती है। दूसरी बात यह है कि केजरीवाल साहब ने गलत जगह का चयन किया। गणतंत्र दिवस की परेड हर वर्ष राजपथ पर होती है और आस-पास के इलाके को सील कर दिया जाता है। यह परेड हमेशा से आतंकियों के निशाने पर रही है ऐसे में पुलिस आतंकवादियों का ध्यान करती या मुख्यमंत्री और उनके समर्थकों। छोटे-छोटे बच्चे इतनी ठंड में रिहर्सल करने आते हैं वह राजपथ तक ही नहीं पहुंच पा रहे थे। दो दिन तक मैट्रो स्टेशन बंद रहे, लाखों लोगों को काफी परेशानी झेलनी पड़ी। अरविंद केजरीवाल के धरने के दूसरे दिन मुश्किल से 100-200 उनके कट्टर समर्थक ही रेल भवन पहुंचे। जनता का समर्थन उनके साथ नहीं था। जिस संविधान की शपथ लेकर अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री की कुसी पर बैठे उसकी ही धज्जियां उड़ा दीं। इस सिस्टम से केजरीवाल मुख्यमंत्री बने उसी सिस्टम का अपमान किया। क्या कभी यह कल्पना की जा सकती थी कि देश की राजधानी दिल्ली का मुख्यमंत्री दिल्ली  पुलिस कर्मियों से कहे कि वदी उतारकर मेरे साथ शामिल हो जाओ। क्या यह राष्ट्रद्रोह का मामला नहीं बनता? केजरीवाल ने खुद कहा कि मैं अगर आपकी नजरों में एनार्किस्ट हूं तो मैं एनार्किस्ट हूं यानी मैं अराजक हूं और अराजकता पर विश्वास करता हूं। खुद उन्होंने और उनके साथियों ने कई बार कहा कि हम उसे सिस्टम को ही बदलना चाहते हैं। इसमें सुधार नहीं इसे पलटना है। यह तो विद्रोह है क्या वह देश में उसी तरह का जन-विद्रोह करवाना चाहते हैं जैसा पिछले साल मध्य पूर्व के कुछ देशों में हुआ और अंत में केजरीवाल एंड कंपनी को हासिल क्या हुआ? दो पुलिस अफसर छुट्टी पर भेज दिए गए। पुलिस अधिकारी न तो सस्पेंड हुए न डिसमिस और न ही लाइन हाजिर। मुंह छिपाने के लिए दो अफसरों को पेड लीव पर भेज दिया। इन छुट्टियों का दोनों पुलिस वालों ने स्वागत किया होगा क्योंकि न तो गणतंत्र दिवस पर उन्हें साधारण तौर पर छुट्टी मिलती और न ही यह संदेश जाता कि एक दरोगा ने मुख्यमंत्री को झुका दिया। खास बात यह रही कि मंत्री सोमनाथ भारती से टकराए एसीपी भरत सिंह को छुट्टी  पर नहीं भेजा गया है और पहाड़गंज के पीसीआर इंचार्ज को भी छुट्टी पर भेज दिया गया जिन्हें हटाने की डिमांड ही नहीं की जा रही थी। अब केजरीवाल और खास तौर पर सोमनाथ भारती को अपनी करनी का खामियाजा भुगतना पड़ेगा। मालवीय नगर के खिड़की एक्सटेंशन की अफीकी मूल की महिला ने मजिस्ट्रेट के सामने 164 के तहत अपना बयान दर्ज कराया है और छापेमारी दस्ते के अगुवाई करने वाले के रूप में सोमनाथ भारती की पहचान भी की है। सोमनाथ भारती के त्याग पत्र की मांग जोर पकड़ती जा रही है। देखना यह होगा कि जिस सोमनाथ भारती को बचाने के लिए केजरीवाल ने इतना ड्रामा किया क्या उन्हें वह बचा पाएंगे? अंत में अगर हम भारतीय महिला देवयानी से अमेरिकी पुलिस द्वारा अभद्र व्यवहार पर इतनी हाय-तोबा मचा रहे हैं तो अपने घर में दिल्ली सरकार के कानून मंत्री का एक विदेशी महिला से इस पकार का अभद्र व्यवहार स्वीकार है?

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