राहुल गांधी को आगामी लोकसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री
पद का कांग्रेसी उम्मीदवार बनाने पर असमंजस की स्थिति अब साफ हो गई है। राहुल गांधी
पीएम पद के उम्मीदवार फिलहाल नहीं हैं। यह फैसला गुरुवार को कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में लिया गया। राहुल गांधी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित करने की
लम्बे समय से पार्टी में ही मांग की जा रही थी। चर्चा थी कि 17 जनवरी को इसकी घोषणा की जा सकती है। कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने
बताया कि बैठक में सभी सदस्य राहुल को पीएम पद का उम्मीदवार बनाना चाहते थे लेकिन कांग्रेस
अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इसका विरोध किया। उनका कहना था कि कांग्रेस में चुनाव से पहले
पीएम पद का उम्मीदवार घोषित करने की परम्परा नहीं है। अगर किसी ने उम्मीदवार घोषित
किया है तो यह जरूरी नहीं कि हम भी उनके मुताबिक इसका ऐलान करें। द्विवेदी के अनुसार
पूरी चर्चा के बाद आम सहमति बनी कि राहुल चुनाव अभियान के अध्यक्ष बनेंगे और चुनाव
अभियान राहुल के नेतृत्व में होगा। राहुल को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित करने के पीछे
कई दलीलें हैं। मेरी राय में यह कांग्रेस का सही फैसला है, क्योंकि
2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की प्रतिष्ठा के साथ-साथ नेहरू-गांधी परिवार का राजनीतिक भविष्य भी दांव पर
लगा हुआ है। अगर राहुल को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया जाता और कांग्रेस चुनाव
हार जाती तो सोनिया-राहुल और प्रियंका के राजनीतिक भविष्य पर
ही प्रश्नचिन्ह लग सकता था। अब कम से कम यह तो है कि अगर कांग्रेस हार भी जाती है तो
हार का सेहरा राहुल गांधी पर तो नहीं पड़ेगा। यह किसी से अब छिपा नहीं कि भाजपा के
पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के सामने राहुल फिलहाल कहीं नहीं ठहर पा रहे। अरविंद
केजरीवाल तक ने कह दिया है कि लोकसभा चुनाव में असल मुकाबला नरेंद्र मोदी और अरविंद
केजरीवाल के बीच है,
कांग्रेस रेस से बाहर हो चुकी है। कांग्रेस के कई नेता चाहते थे कि
17 जनवरी के एआईसीसी अधिवेशन में राहुल को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित
किया जाए, इसमें देर नहीं करनी चाहिए। ऐसा सोचने वालों का तर्प
है कि इस समय कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल बुरी तरह गिरा हुआ है। पार्टी दिनोंदिन
रक्षात्मक रुख अख्तियार करती जा रही है। ऐसे में अगर राहुल पीएम पद के उम्मीदवार घोषित
होते हैं तो इससे पार्टी कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा आ जाएगी। वर्पर अपने-अपने सांसदों से कह रहे हैं कि इस बार उन्हें नया चेहरा चाहिए (मनमोहन सिंह नहीं) और बिना नया चेहरा देखे वे घर से बाहर
नहीं निकलेंगे। इतनी ही नहीं, जब देश की जनता देखेगी कि एक तरफ
नरेंद्र मोदी जैसा सशक्त चेहरा है और दूसरी ओर लोकप्रियता के शिखर पर बैठे अरविंद केजरीवाल
हैं तो वहीं कांग्रेस का मंच एकदम खाली है तो फिर वे क्या सोचकर कांग्रेस को वोट देंगे?
साथ ही अगर राहुल खुलकर सामने नहीं आए तो विरोधी भी कांग्रेस पर व्यंग्य
कसेंगे कि राहुल ने विपक्ष की आंधी देखते हुए पहले ही हार मान ली है। लिहाजा अब जीत
हो या हार, राहुल को आगे बढ़ा ही देना चाहिए। इस तबके का यह भी
कहना था कि जब यह चुनाव व्यक्तिगत आधारित हो ही गया है तो ऐसे में हमें बिना चेहरे
और उम्मीदवार के चुनाव में नहीं जाना चाहिए। इस तबके की राय है कि राहुल क्लीन इमेज,
भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे पर उनका कड़ा रुख, जन कल्याण
की इच्छाशक्ति और पिछले कुछ समय से राहुल की सक्रियता उन्हें एक बेहतर उम्मीदवार के
तौर पर सामने रखने में कामयाब होगी पर ऐसा लगता है कि सोनिया गांधी ने अपने इस फैसले
से यूपीए सरकार की नाकामियों और मोदी जैसे अनुभवी नेता के खिलाफ राहुल गांधी को सुरक्षा
कवच दिया है। अगर राहुल को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित किया जाता तो चुनावों में खराब
प्रदर्शन की स्थिति से सारी तोहमत उन्हीं के सिर पर आती। लेकिन अब राहुल के लिए स्थिति
बेहतर होगी। कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक से पहले ऑस्कर फर्नांडीस, ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे सभी बड़े नेताओं ने राहुल गांधी को पीएम पद का
उम्मीदवार घोषित करने को कहा था। बैठक में भी ज्यादातर नेताओं की राय इसी पक्ष में
थी। जब सोनिया गांधी ने कांग्रेसी नेताओं की इस मांग पर विराम लगा दिया तो पूर्व मुख्यमंत्री
अजीत जोगी ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष ने कोई लाइन खींच दी तो उस विषय को दोहराने की
परम्परा नहीं है लिहाजा अब राहुल की उम्मीदवारी की मांग नहीं करनी चाहिए। सोनिया के
आदेश के बाद सारे नेता नतमस्तक हो गए और यह अध्याय बंद हो गया।
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