Saturday 25 January 2014

नकली नोट व ब्लैक मनी को रोकने के लिए आरबीआई का ताजा आदेश

रिजर्व बैंक आफ इंडिया ने 31 मार्च 2005 से पहले छपे सभी नोटों को वापस लेने का फैसला लिया है। बुधवार को जारी बयान में आरबीआई ने कहा है कि 31 मार्च 2014 तक आरबीआई सभी पुराने नोटों का सर्कुलेशन बंद कर देगी।अगर आप ने अपनी गाढ़े पसीने की कमाई घर या बैंक लाकरों में नोटों की गड्डी के रूप में रख छोड़ी है तो सावधान हो जाइए, तुरंत जांच कीजिए कि यह नोट किस साल में छपे हैं। अगर यह वर्ष 2005 के पहले के छपे हैं तो इनकी कीमत आने वाले दिनों में कूड़े से अधिक नहीं रह जाएगी। नोट के पिछले हिस्सों में सबसे नीचे नोट के पकाशन वर्ष लिखा होता है। जिन नोटों पर पकाशन का वर्ष नहीं मिलता है इसका मतलब है कि वह नोट साल 2005 से पहले के छपे हैं। सरकार का मानना है कि इस कदम से कालेधन के इस्तेमाल पर रोक लग सकेगी। इस कदम को आगामी लोकसभा चुनाव से भी जोड़कर देखा जा रहा है। इससे बाजार में बड़े पैमाने पर मौजूद कालाधन पर अंकुश लगाया जा सकेगा परिचय पत्र दिखाने के कारण बड़े नोटों में नकदी का खुलासा होगा। अपैल-मई में सम्भावित लोकसभा चुनाव में काले धन के इस्तेमाल पर रोक लगेगी। 2009 लोकसभा चुनाव में सीएमएस की रिपोर्ट के अनुसार 2500 करोड़ रुपए का कालाधन चुनाव में लगा था। वैसे 1978 में जनता पाटी की सरकार के समय में 100, 500 और 10,00 के नोट रिजर्व बैंक ने वापस ले लिए थे पर इस बार सभी तरह के नोटों पर यह शर्त लागू होगी। बीजेपी इसे चुनाव से जोड़कर देख रही है। पाटी का मानना है कि काले धन के मामले में सरकार का यह महज दिखावटी कदम है।  जिसके घर में अघोषित रकम है तो वह उस रकम को टुकड़ों में बैंक में जाकर बदल लेगा और फिर नए नोट लाकर घर में फिर रख लेगा। 65 फीसदी लोगों के पास बैंक खाते नहीं हैं। किसी ने मकान के लिए पैसे ज़ोड़े हैंकिसी ने लड़की की शादी के लिए जोड़े हैं, किसी ने लड़के की पढ़ाई के लिए तो किसी ने बीमारी की इमरजेंसी के लिए, ऐसे लोगों को नोट बदलने के लिए बहुत दिक्कत होगी। वैसे आरबीआई ने यह तो साफ नहीं किया कि मार्केट में 2005 से पहले के कितने नोट हैं लेकिन जानकारों का मानना है कि यह 5.7 पतिशत से ज्यादा नहीं है। दिल्ली की होलसेल मार्केट से लेकर रिटेल मार्केट्स तक इस नए फरमान से हड़कम्प मचना स्वाभाविक ही है। ज्वैलरी जैसे बेशकीमती और कैश बेस्ड सेल वाले व्यापारियों और इम्पोर्ट्स ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि कुछ लोगों के पास बड़े पैमाने पर कैश स्टाक है, जो उसे बदलने और खपाने की चिंता में डूब गए हैं। फिर हर आदमी को अब नोट लेने पर उसकी जांच करनी होगी जो एक नया सिरदर्द बन जाएगी। देश में नकली नोटों की भरमार और ब्लैक मनी पर मचे बवाल के बाद यह स्पष्ट दिख रहा था कि रिजर्व बैंक इस सन्दर्भ में कोई कार्रवाई जरूर करेगा। पिछले दिनों हल्ला मचा था कि नोटों पर अगर कुछ लिखकर उसे गंदा कर दिया गया हो तो ऐसे नोट बैंक में चल नहीं पाएंगे। इस अफवाह ने पूरे देश को चिंतित कर दिया था क्येंकि शायद ही कोई दिन जाता हो जब लोगों के पास ऐसे नोट नहीं आते हों। बाद में रिजर्व बैंक ने इस अफवाह का खंडन कर दिया था। रिजर्व बैंक के ताजा आदेश से लोगों में अफरा-तफरी मच सकती है। जिसने नोट बदलने की तय सीमा 1 जुलाई 2014 तक अपने नोट बदल लिए तो वह ठीक है पर जो किसी कारणवश रह जाता है तो उसे 500 या 1000 के 10 से अधिक ऐसे नोटों के बदलने के लिए अपनी पहचान और पता बैंक को बताना होगा या पैन कार्ड दिखाना होगा। जानकारों का कहना है कि जाली नोटों की बाढ़ और ब्लैक मनी पर काबू पाने के लिए ही यह नई रणनीति अपनाई गई है।  मार्च 2012 तक एक अनुमान के अनुसार देश में करीब 5 लाख जाली नोट पकड़े गए थे। चिंता की बात यह थी कि पिछले साल की तुलना में इसमें 31 फीसद का उछाल दिखा था। माना जा रहा है कि 2005 के पहले वाले नोटों की सीरीज में ही सबसे अधिक जाली नोट चलाए जा रहे हैं क्योंकि उसके बाद से नोटों के डिजाइन और सुरक्षा उपायों को भरसक पुख्ता बनाने की कोशिश शुरू हो गई थी। सबसे ज्यादा दिक्कत तो राजनेताओं और नौकरशाहों को होगी क्योंकि कहा तो यह जाता है कि इनके पास सबसे ज्यादा ब्लैक मनी है। पर उन्होंने आरबीआई के आदेश जारी होने से पहले ही अपना पुख्ता पबंध कर लिया होगा। असल मुसीबत तो छोटे व्यापारी, दुकानदार, नौकरी पेशा, मजदूर वर्ग की होगी जिसने जीवन के कुछ महत्वपूर्ण कामों के लिए एक-एक रुपया जोड़ा है। वह कहां बैंकों की लाइन में लगेगा। रोटी कमाएगा या घंटों लाइन में लगेगा? आंकड़ें बताते हैं कि 2005 के मार्च महीने तक देश में पौने चार लाख रुपए मूल्य की करेंसी बाजार में थी जो अगले आठ वर्षों में तीन गुना उछलकर साढ़े ग्यारह लाख करोड़ से अधिक तक पहुंच गई है।

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