Friday 10 January 2014

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गांधी परिवार का भविष्य भी दांव पर होगा

17 जनवरी को नई दिल्ली में एक दिवसीय अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (एआईसीसी) की बैठक होने जा रही है। यह बैठक लोकसभा चुनाव से पहले हो रही है, इसलिए इसका महत्व ज्यादा हो गया है। कोशिश की जा रही है कि इस बैठक से पहले ही पार्टी और सरकार में बड़े बदलाव की कवायद पूरी कर ली जाए। प्राप्त संकेतों से राहुल गांधी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित करने की तैयारियां फाइनल की जा रही हैं। एआईसीसी का एजेंडा तय करने के लिए मंगलवार को राहुल की गैर मौजूदगी में उनके ही घर  पर प्रियंका गांधी वाड्रा ने कांग्रेस संगठन से  जुड़े दिग्गज नेताओं के साथ बैठक की। प्रियंका ने अहमद पटेल, जनार्दन द्विवेदी, जयराम रमेश, मधुसूदन मिस्त्राr, मोहन गोपाल और अजय माकन जैसे दिग्गज नेताओं से मुलाकात की। यह नेता कांग्रेस संगठन से और 10 जनपथ के करीबी माने जाते हैं। लगता यह है कि मैडम सोनिया अपनी सेहत की वजह से अब ज्यादा सक्रिय भूमिका नहीं सम्भाल पा रही हैं और राहुल को कांग्रेस की बागडोर पूरी तरह देना चाहती हैं। लोकसभा 2014 के चुनाव कांग्रेस के लिए तो महत्वपूर्ण हैं ही पर साथ-साथ नेहरू-गांधी परिवार के राजनीतिक भविष्य को भी तय करेंगे। अगर 2014 में कांग्रेस गठबंधन सरकार नहीं  बना पाती तो निश्चित रूप से यह नेहरू-गांधी के राजनीतिक भविष्य पर भी प्रश्नचिन्ह लग सकता है, इसलिए दांव पर न केवल पार्टी का ही भविष्य है बल्कि सोनिया, राहुल और प्रियंका का भविष्य भी दांव पर होगा। आम आदमी पार्टी के राजनीतिक परिदृश्य में आने से कांग्रेस पार्टी में हड़कम्प मचना स्वाभाविक है। बेशक कांग्रेस की दिल्ली में केजरीवाल सरकार को बिना समर्थन देने से मिलीभगत साफ साबित होती है पर कांग्रेस को इतिहास से सबक लेना चाहिए। ऐसे ही जरनेल सिंह भिंडरावाला  को पहले तो कांग्रेस ने अकालियों को डाउन करने के लिए खड़ा किया बाद में वही भिंडरावाला कांग्रेस पर कितना भारी पड़ा, यह सभी को मालूम है। इसी वजह से सभी दिग्गजों के विश्वास पात्र केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने बेबाक टिप्पणी कर दी। रमेश को कहना पड़ रहा है कि `आप' का उभार स्थापित राजनीतिक दलों के लिए एक चेतावनी है। यदि उन्होंने लोगों की आवाज नहीं सुनी तो वे जल्द ही इतिहास बन जाएंगे। रमेश ने कहा कि आम आदमी पार्टी ने राजनीतिक आकांक्षाओं को फिर से स्थापित किया है। उसने राजनीतिक विमर्श भी बदल डाला है। अब तक यह दिल्ली तक ही सीमित थी। लेकिन यदि कांग्रेस, भाजपा और क्षेत्रीय दलों ने लोगों की आवाज नहीं सुनी तो वे शीघ्र ही इतिहास बन जाएंगे। दरअसल कांग्रेस में कुशल राजनेताओं की कमी नहीं पर उन्हें आगे आने का मौका नहीं दिया जाता। राहुल गांधी पर आप 500 करोड़ रुपए छवि चमकाने में बेशक लगा दें,  17 जनवरी को उनके नाम पर मुहर लगवा लें पर इससे कांग्रेस की स्थिति बदलने वाली नहीं। इस समय कांग्रेस के अन्दर कई लॉबियां काम कर रही हैं इनमें 10 जनपथ की सोनिया लॉबी है, राहुल की अपनी लॉबी है, मनमोहन सिंह की अपनी लॉबी है। सभी लॉबियों में अधिकतर गैर-राजनीतिक, नौकरशाह प्रवृत्ति के लोग हैं जो जनता से  बुरी तरह कटे हुए हैं। उन्हें न तो जनता का दुख-दर्द समझ में आता है और न ही उनमें जनता के प्रति हमदर्दी है। जो कार्यकर्ता व नेता जनता से जुड़े हैं वह नेतृत्व में नीतियां बनाने में नदारद हैं। कांग्रेस अगर जनता से कट रही है तो वह मनमोहन सरकार की जनता विरोधी आर्थिक नीतियों के कारण है और जब खुद प्रधानमंत्री यह कहें कि महंगाई और घोटालों पर हमारा कोई कंट्रोल नहीं है तो जनता कांग्रेस से क्या उम्मीद कर सकती है? इन परिस्थितियों में कांग्रेस का नेतृत्व चाहे राहुल को दे दो या प्रियंका को, हमें नहीं लगता कि कांग्रेस की स्थिति में कोई सुधार होगा। बाकी तो तस्वीर 17 जनवरी को एआईसीसी अधिवेशन के बाद पता चल ही जाएगी। कांग्रेस में बड़े बदलाव होने की उम्मीद है। देखें, क्या-क्या बदलाव होते हैं पर कांग्रेस को बड़े सोच-विचार करके बदलाव करने होंगे, क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनाव में केवल कांग्रेस पार्टी का भविष्य ही नहीं निर्भर करेगा बल्कि खुद नेहरू-गांधी परिवार का राजनीतिक भविष्य भी दांव पर होगा।

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