Saturday, 18 January 2014

शर्मसार किया राजधानी में विदेशी महिला के साथ गैंगरेप ने

बड़े दुख के साथ कहना पड़ता है कि राजधानी दिल्ली में व्यवस्था लगता है कभी सुधरने वाली नहीं है। रेप का सिलसिला कहीं थमने वाला नहीं लगता है। ताजा केस डेनमार्प की रहने वाली अधेड़ महिला से आठ युवकों द्वारा लगातार चार घंटे तक रेलवे क्लब के कैम्पस में दरिंदगी का है। दिल्ली के पहाड़गंज इलाके में मंगलवार शाम आठ युवकों ने एक विदेशी महिला से पहले तो लूटपाट की फिर गैंगरेप किया। डेनमार्प निवासी 51 वर्षीय महिला एक जनवरी को घूमने के लिए भारत आई थी। कुछ दिन आगरा में गुजराने के बाद वह दिल्ली के पहाड़गंज स्थित होटल एमेक्स में ठहरी। मंगलवार दोपहर महिला नेशनल म्यूजियम देखने होटल से निकली, लौटते समय करीब चार बजे वह कनॉट प्लेस में रास्ता भटक गई। वह पहाड़गंज जाने के लिए स्टेट एंट्री रोड पर चली गई, जो आगे बंद था। वहां उसने एक युवक से पूछा कि क्या यह रास्ता पहाड़गंज की ओर जाता है? युवक ने कहा हां। थोड़ा आगे जाने पर झाड़ी से आठ युवक निकले और वे महिला को झाड़ियों में ले गए। उन्होंने उससे तीन हजार रुपए, 750 डॉलर, मोबाइल, आइपैड आदि सामान लूट लिया। विरोध करने पर महिला की पिटाई भी की। इसके बाद करीब तीन घंटे तक इन युवकों ने महिला के साथ गैंगरेप किया। रात में करीब 8.30 बजे किसी तरह महिला होटल पहुंची और उसने होटल प्रबंधन और डेनमार्प दूतावास को घटना की जानकारी दी। पुलिस ने अब तक तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है। यह हैंöराजू उर्प भज्जी (23), महेंद्र उर्प गंजा और राजा। क्या राजधानी में व्यवस्था कभी सुधरने वाली है? कहां गए सुरक्षा के तमाम दावे? पुलिस की तैयारियां और फरमानों का फिर पर्दाफाश हुआ है। यह मामला इसलिए भी गम्भीर है कि पीड़िता एक विदेशी है। इससे मामला अंतर्राष्ट्रीय हो जाता है। सारी दुनिया में दिल्ली की थू-थू हो रही है। दुख की बात यह है कि यह पहली विदेशी महिला नहीं है जिससे कुकर्म हुआ हो। 2013 में ही कम से कम पांच ऐसी वारदातें हो चुकी हैं जहां ढाई वर्षीय अफगानी बच्ची और 32 वर्षीय पोलैंड की महिला बलात्कार की शिकार हुई। क्या यह मान लिया जाए कि नौकरशाही की चमड़ी इतनी मोटी है कि उस पर किसी चीज का असर नहीं पड़ता। न तो कोर्ट की फटकार का, मीडिया या जनता के दबाव का। निर्भया कांड के बाद से कई पहलों का दावा किया जा रहा है मसलन ज्यादा पेट्रोलिंग व एफआईआर के तौर-तरीके और टैफिक व्यवस्था तक में बदलाव के दावे किए जा रहे हैं पर दुख से कहना पड़ता कि न तो समाज में सोच बदली है और न ही बलात्कारों में कमी आई है। उलटा बलात्कारों में वृद्धि ही हुई है। आम तौर पर यह कहा जाता है कि बढ़ते कुकर्मों को रोकने के लिए आरोपियों को जल्द सजा दी जानी चाहिए ताकि बाकियों में थोड़ा खौफ पैदा हो पर जमीनी स्थिति यह है कि निर्भया के साथ 16 दिसम्बर 2012 को घिनौनी हरकत हुई थी और एक साल से ज्यादा समय बीतने पर भी अभी भी केस हाई कोर्ट में लटका हुआ है। अकेले पुलिस को दोष देने से काम नहीं चलेगा। समाज से लेकर कानून व्यवस्था और हमारे ज्यूडिशियल सिस्टम को भी बदलना होगा। बेशक कुछ क्षेत्रों में बदल रहा है पर अभी बहुत कमी है। हमें इन क्षेत्रों पर ध्यान देना होगा और प्रयास यह होना चाहिए कि कसूरवारों को जल्द से जल्द सजा मिले। इस घटना से सभी का सिर शर्म से झुक गया है।

-अनिल नरेन्द्र

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