Sunday 5 January 2014

मनमोहन सिंह की 9 साल में फ्लॉप तीसरी प्रेस कांफ्रेंस

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने  लगभग 10 साल के  अपने कार्यकाल में तीसरी प्रेस कांफ्रेंस की। शुक्रवार को नए बने नेशनल मीडिया सेंटर पर खासतौर से चुनिंदा पत्रकारों को बुलाया गया था। प्राप्त जानकारी के अनुसार पीएमओ ने अपने 185 चहेते पत्रकारों को विशेष निमंत्रण कार्ड देकर इस पत्रकार सम्मेलन में आमंत्रित किया था। पीआईबी द्वारा रजिस्टर्ड 1500 से अधिक पत्रकारों में से 185 ऐसे पत्रकारों व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को बुलाया गया था जो इस कांफ्रेंस में मनमोहन सिंह से ज्यादा तीखे, चुभने वाले सवाल न पूछें। जाहिर-सी बात है कि दैनिक वीर अर्जुन, दैनिक प्रताप और सांध्य वीर अर्जुन से किसी को इस निमंत्रण के लायक नहीं समझा गया। खैर छोड़िए, हमें तो आदत पड़ गई है। पिछले लगभग 10 साल के अपने कार्यकाल में डॉ. मनमोहन सिंह ने हमें तो एक बार भी अपने निवास पर नहीं बुलाया। अटल जी तो साल में कई बार तमाम पत्रकार बिरादरी को रेस कोर्स रोड बुला लेते थे, विदेश यात्राओं में भी साथ ले जाते थे पर मनमोहन सिंह ने अपनी तमाम राजनीतिक रबर स्टैम्प, नौकरशाही की गुलामी में और रिमोट कंट्रोल के अधीन राज किया। इस प्रेस कांफ्रेंस का हमें तो मतलब ही नहीं समझ आया। हां, एक बात यह जरूर उभरकर आई कि मनमोहन सिंह अंतत रिटायर हो रहे हैं। वह अगले पीएम की रेस में शामिल नहीं होंगे और राहुल गांधी अगले पीएम पद के उम्मीदवार होंगे। माननीय प्रधानमंत्री ने घोटालों को न रोक पाने के जवाब में कहा कि यह सब यूपीए-1 के कार्यकाल में हुए और उसके बाद तो 2009 में हम दूसरी बार जीतकर आ चुके हैं। इससे  लगता है कि वोटरों ने भ्रष्टाचार के आरोपों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। हालांकि उन्होंने माना कि इन मामलों में गड़बड़ियां हुई हैं। उनका कहना था कि मेरी कमजोरियों के कारण (कांग्रेस) किसी ने मुझे इस्तीफा देने के लिए नहीं कहा। मनमोहन सिंह ने अंतत इस बात को स्वीकार किया कि हाल में सम्पन्न विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की पराजय की एक वजह महंगाई रही। महंगाई के कारण लोग कांग्रेस के खिलाफ हो गए। इसकी वजह हमारे नियंत्रण से बाहर थी, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय उत्पादों की कीमतें बढ़ रही थीं। ऐसे में हमारे लिए मूल्य नियंत्रित करना मुश्किल था यानि कि प्रधानमंत्री ने महंगाई भी अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों पर थोप दी और यह नहीं स्वीकार किया कि महंगाई उनकी सरकार की गलत आर्थिक नीतियों और पार्टी द्वारा किए गए घोटालों के कारण बढ़ी और  बढ़ रही है। इधर मनमोहन सिंह प्रेस कांफ्रेंस कर रहे हैं और शाम होते-होते पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ा रहे हैं। सीएनजी के रेट पहले ही बढ़ चुके हैं और गैस सिलेंडर की दरों में बढ़ोत्तरी की तैयारी है। सबसे दुखद पहलू इस प्रेस कांफ्रेंस का शायद यह रहा कि उन्होंने भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी पर सीधा हमला बोला। आमतौर पर मुंह न खोलने वाले शालीन स्वभाव के डॉ. मनमोहन सिंह ने प्रेस कांफ्रेंस में ऐसी बात कह दी जो न किसी पीएम को शोभा देती है और न ही उनसे ऐसी कोई उम्मीद थी। मनमोहन सिंह ने असामान्य रूप से कड़े तेवर अपनाते हुए मुख्य विपक्षी दल भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी पर तीखा प्रहार किया और कहा कि 2002 के गुजरात दंगों में निर्दोष लोगों के जनसंहार की अनदेखी करने वाले को अगर कोई मजबूत प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार कहता है तो वे इससे सहमत नहीं हैं। अगर मजबूत प्रधानमंत्री को मापने का आपका पैमाना अहमदाबाद की सड़कों पर नागरिकों के जनसंहार की अनदेखी करना है तो मैं नहीं मानता कि देश को इस तरह के मजबूत प्रधानमंत्री की जरूरत है। उनका प्रधानमंत्री बनना विनाशकारी होगा। प्रधानमंत्री के रूप में मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दिया है और देश को विकास की अच्छी गति प्रदान की है। मैं नहीं मानता कि मैं एक कमजोर प्रधानमंत्री हूं। यह इतिहासकार ही फैसला करेंगे। भाजपा और उनके सहयोगी जो चाहे कहते रहें। प्रधानमंत्री को इस तरीके से देश के एक मुख्यमंत्री को सिंगल आउट करके इन शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए था। दंगे तो 84 में भी हुए, असम में भी हुए और हाल में मुजफ्फरनगर में भी हुए, फिर सिर्प गुजरात के दंगों की अकेली बात करना कहां तक तर्पसंगत और शोभनीय है? खासकर जब हाल ही में सुप्रीम कोर्ट, एसआईटी, अदालतों ने मोदी को क्लीन चिट दे दी है। भाजपा पीएम के खिलाफ मानहानि का दावा भी कर सकती है। मनमोहन सिंह का लम्बा राजनीतिक सफर जो 22 साल के करीब का है अंत होने जा रहा है। 5 साल तक वह वित्तमंत्री रहे जो हमारी नजरों में उनका सबसे अच्छा कार्यकाल था, क्योंकि उन्होंने देश को सही आर्थिक दिशा दी। उसके बाद 8 साल वह नेता विपक्ष रहे और फिर 9 साल के लिए बतौर प्रधानमंत्री रहे। इतने दिन राजनीति में रहने के बावजूद वह गैर राजनीतिक ही रहे और एक नौकरशाह से बढ़कर कुछ नहीं बन सके। उनके कार्यकाल को पता नहीं इतिहासकार कैसे लिखेंगे। हमारी नजरों में तो वह निहायत फेल, असहाय, मायूस और रबर स्टैम्प नेता रहे जिन्होंने अपनी सारी जिंदगी रिमोट कंट्रोल से चलाई।

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