Tuesday, 7 January 2014

बेबाक दिल्ली पुलिस कमिश्नर भीम सेन बस्सी यह

तो मानना ही पड़ेगा कि आखिर दिल्ली को एक ऐसे पुलिस कमिश्नर मिले हैं जो अपराध के आंकड़ों को छिपाने या दबाने में यकीन नहीं करते और खुलकर कहते हैं कि आंकड़ों की परवाह नहीं, दर्ज होंगे मामले। यह व्यक्ति है श्री बीएस बस्सी। नए साल में दिल्ली पुलिस की मंशा आंकड़ों पर गौर करने की बजाय अपराधियों पर नकेल कसने की है। शुक्रवार को दिल्ली पुलिस आयुक्त भीम सेन बस्सी ने वार्षिक प्रेस वार्ता में `ब्रोकन विंडो' सिद्धांत का हवाला देते हुए ऐलान किया कि जुर्म असहनीय है। जुर्म करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। अपराध दर्ज होंगे, तभी अपराधी पकड़े जाएंगे। हम उनके विचारों का स्वागत करते हैं। आम तौर पर हम मीडिया वाले पुलिस की आलोचना करते रहते हैं पर जब पुलिस अच्छा काम करती है तो उसकी सराहना करना भी हमारा फर्ज है। बात शुरू करते हैं महिला उत्पीड़न मामलों से। पुलिस आयुक्त ने बताया कि 2013 में दुष्कर्म के 1559 मामले दर्ज हुए, जिनमें से 1398 मामलों को सुलझा लिया गया। इनमें 78 फीसदी मामलों को सुलझाने में एक से दो हफ्ते लगे। दूसरी ओर एक सत्य यह भी है कि एक बार दिल्ली फिर साबित हुई अपराध की राजधानी। साल 2012 की तुलना में न केवल दुष्कर्म की घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि हुई बल्कि डकैती, लूटपाट, हत्या के प्रयास, महिलाओं से छेड़छाड़, फिरौती के लिए अपहरण, सेंधमारी, झपटमारी में भी काफी बढ़ोत्तरी हुई है। आंकड़ों को देखें तो साल 2013 में यह आंकड़ा कहीं ज्यादा बढ़कर 73958 पर पहुंच गया। 2012 की तुलना में करीब दोगुने से अधिक रेप के 1559 मामले सामने आए। 2012 में यह आंकड़ा 680 था। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि निर्भया कांड के बाद अब युवतियां खुलकर दुष्कर्म के खिलाफ शिकायतें दर्ज कर रही हैं। सभी के लिए चिंता का विषय ड्रग्स तस्करी मामलों में हुई वृद्धि होना चाहिए। वर्ष 2012 के मुकाबले 2013 में दिल्ली के ड्रग्स तस्करी के मामलों में वृद्धि हुई है। दिल्ली पुलिस की नारकोटिक्स टीम ने साल 2013 में ड्रग्स तस्करी के 435 मामले दर्ज किए जो पिछले साल के मुकाबले दिल्ली में ड्रग्स तस्करी के मामलों में बढ़ोत्तरी के साथ-साथ तस्करी की जाने वाली ड्रग्स में भी इजाफा हुआ है। दिल्ली पुलिस अब महिलाओं से दुष्कर्म के मामलों में 20 दिन के अन्दर अदालत में चार्जशीट पेश कर देगी। बस्सी साहब ने एक आदेश जारी करते हुए कहा कि पीड़ित को त्वरित न्याय मिले, इसके लिए जांच की गति बढ़ानी होगी। जिन मामलों में 20  दिन में चार्जशीट पेश नहीं होगी, उसकी वजह संयुक्त आयुक्त को बताई जाएगी। पुलिस को अन्य मामलों में भी डील करना पड़ता है। दिल्ली में विभिन्न मामलों पर राजधानीवासियों का गुस्सा, रैलियों और धरने-प्रदर्शनों के मामलों में तिगुना वृद्धि हुई। निर्भया मामला, भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई या फिर गांधी नगर में पांच वर्षीय बच्ची से बलात्कार की दिल दहलाने वाली घटना पर दिल्लीवासियों में जबरदस्त आक्रोश देखने को मिला। लोगों ने न केवल सिस्टम के खिलाफ अपने गुस्से को धरने-प्रदर्शनों के माध्यम से पूरी राजधानी के लोगों तक पहुंचाया बल्कि उन्हें इस लड़ाई में शामिल किया। वहीं दूसरी ओर दिल्ली पुलिस भी कानून व्यवस्था को बनाने में साल भर जूझती रही। जानते हैं कि राजधानी के पुलिस कंट्रोल रूम (पीसीआर) में साल 2013 में कितनी कॉलें आईं? साल भर में 2013 में पीसीआर को हर रोज करीब 25 हजार कॉल्स प्राप्त हुईं।  पीसीआर ने 30,130 घायलों को अस्पताल पहुंचाया। पीसीआर कर्मियों के पास 807 वैन, 138 मोटर साइकिलें हैं। हमें यह भी समझना चाहिए कि दिल्ली पुलिस कितने मोर्चों पर पब्लिक का साथ देती है। हम आलोचना तो करते हैं पर कभी तो पॉजिटिव साइड भी देखनी चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

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