Thursday 4 September 2014

मोदी के 100 दिन अच्छा न खराब, औसत है कामकाज

महंगाई, भ्रष्टाचार और सुशासन के मुद्दे पर केंद्र में सत्ता में आई मोदी सरकार के 100 दिन पूरे हो गए हैं। नई सरकार के लिए यह सौ दिन खट्टे- मीठे अनुभवों वाले रहे। सरकार ने पिछले 100 दिनों में एक के बाद एक कई कड़े फैसले लिए हैं। इनमें से कुछ विवादास्पद रहे तो कुछ की सराहना हुई। चलिए मोदी के 100 दिन के कार्यकाल का आंकलन करें। पुरानी दिल्ली में पराठे वाली गली से गुजरिए, तैयार होते पराठों की खुशबू भूख भड़का देती है। रही बात लज्जत की, यह बनाने वाले के हुनर पर टिकी है। मोदी सरकार के पहले 100 दिन के कामकाज पर राय ऐसी ही है। अब जब सरकार ने पहला पड़ाव पार कर लिया है महंगाई डायन का गाना अभी रिपीट मोड पर कायम है। कुछ फैसले बहरहाल ऐसे जरूर हुए हैं जिनसे लगता है कि लाल फीताशाही खत्म होगी, व्यवस्था में सुधार और जन सुविधाओं की गुणवत्ता सुधरेगी। लोग देश में बड़ा बदलाव चाहते हैं और इसीलिए नरेंद्र मोदी को समय दे रहे हैं। उन्होंने रेल किराये में जबरदस्त बढ़ोतरी चुपचाप सह ली। महंगाई पर यूपीए सरकार की तर्ज पर सरकार की बहानेबाजी भी सुनी। अर्थव्यवस्था में रातों रात सुधार नहीं हो सकने का तर्क भी सुना। यह सब सिर्फ इन उम्मीदों पर कि देगची से खुशबू आ रही है। अबकी बार महंगाई पर वार का नारा दे कर सत्ता में आई मोदी सरकार पहले दिन से ही महंगाई के मोर्चे पर जूझ रही है। भाजपा ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में मूल्य स्थिरता कोष और नेशनल एग्री मार्केट जैसी पहल के बूते महंगाई रोकने का दम भरा था पर दुख से कहना पड़ता है कि महंगाई के मोर्चे पर अभी तक तो मोदी सरकार फेल हुई है। पिछले तीन महीने से महंगाई की मार बदस्तूर जारी है। फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार प्याज नहीं टमाटर 80 रुपए किलो बिक रहा है। राहत सिर्फ इतनी है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम गिरने से पेट्रोल करीब तीन रुपए सस्ता हुआ है। सिर्फ फल-सब्जियों को मंडी कानून से बाहर करने जैसे उपायों से महंगाई थमने वाली नहीं है। असल में हमें महंगाई को देखने और मापने का नजरिया बदलना पड़ेगा। प्याज और आलू की कीमतों पर 26 मई से 28 अगस्त के बीच 24-25 फीसदी वृद्धि हुई है। इसी अवधि में टमाटर 15 रुपए पति किलो से 50 रुपए जो कि 293 फीसदी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। दूध जैसी रोजमर्रा की वस्तु 36 रुपए से 38 रुपए, आटा 21 से 22 रुपए, अरहर दाल 75 रुपए से 80 रुपए यानी 6 फीसदी बढ़ी है। न खाऊंगा, न खाने दूंगा के दावे के साथ पधानमंत्री ने भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने का वादा किया था। उनके 100 दिन के कार्यकाल में इस दिशा में कुछ कदम चलने की आहट जरूर दिखी है लेकिन अभी सख्त और बड़े कदमों का इंतजार है। मसलन मोदी ने जहां अपने सांसदों को यह नसीहत दी है कि वह ट्रांसफर, पोस्टिंग की सिफारिश लेकर न आएं, इसी तरह सरकारी बाबुओं पर अंकुश लगाने के लिए फैसलों में पारदर्शिता लाने की शुरुआती पहल की है। इसके बावजूद देश में भ्रष्टाचार के खात्मे को लेकर लोकपाल के लिए उठी आवाज को अमली जामा पहनाने की दिशा में मोदी सरकार ने पहले 100 दिनों में एक भी कदम आगे नहीं बढ़ाया है जबकि इस मामले में सुपीम कोर्ट भी सरकार से सवाल पूछ चुका है। सुशासन देने का वादा करके सत्ता में आए नरेंद्र मोदी महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे पर अभी तक तो फेल नजर आ रहे हैं। दिल्ली शहर जो कि पधानमंत्री की आंख के नीचे है, में बलात्कार की वारदातें का रिकॉर्ड टूट गया है। दिल्ली अब रेप कैपिटल बन गई है। दिल्ली की कानून व्यवस्था दिल्ली सरकार के न बनने के कारण केंद्र के गृह मंत्रालय के अधीन आती है जो कि मोदी सरकार के हाथ में है। दिल्ली में सरकार की बात करें तो यह बहुत दुख की बात है कि 100 दिन बीत जाने के बाद भी मोदी यह फैसला नहीं कर सके कि दिल्ली में चुनाव होना है या सरकार बननी है। नतीजा यह है कि दिल्ली एक तरह से लावारिस है जिसका कोई देखभाल करने वाला नहीं। बीते तिमाही में देश के विकास की रफ्तार में 5.7 फीसदी की बढ़ोतरी हुई जो बीते 9 तिमाही यानी लगभग ढाई साल में सबसे अधिक विकास दर है। इस आंकड़े के आते ही मोदी सरकार के मंत्रियों ने इसका श्रेय लेने के लिए होड़ लगा दी। यह 5.7 फीसदी का आंकड़ा अपैल 2014 से जून 2014 के बीच का है। मोदी सरकार 26 मई को सत्ता में आई और महज एक माह के भीतर विकास दर बढ़ी है तो उसका श्रेय यूपीए सरकार को जाता है, मोदी सरकार को नहीं। कई ऐसी योजनाएं हैं जो मनमोहन सरकार के कार्यकाल में शुरू हुईं पर फीता उसके लिए मोदी ने काटा है। उदाहरण के तौर पर दिल्ली से कटरा रेल चलाई यह योजना कई साल पहले यूपीए सरकार ने बनाई और उस पर काम किया। बेशक फीता मोदी ने काटा पर उन्हें श्रेय नहीं लेना चाहिए। मोदी का विवादों से पुराना रिश्ता है। पहला विवाद अध्यादेश के जरिए मोदी द्वारा नृपेंद्र मिश्र को पधान सचिव बनाने का रहा। रातों-रात अध्यादेश जारी कर यह फैसला लिया गया। मोदी ने अपने फैसलों में अच्छे-बुरे का तालमेल बनाए रखा। पड़ोसियों के साथ दोस्ती का हाथ भी बढ़ाया और उनकी हरकतों का जवाब भी दिया। पधानमंत्री जन-धन योजना में हर परिवार के बैंक खाते खोलने के आदेश की सराहना हो रही है। देश की न्यायपालिका में हस्तक्षेप करते हुए न्यायाधीशों की नियुक्ति पणाली में बदलाव लाना और पुराने कालेजियम को भंग करने का भी आमतौर पर स्वागत हुआ है। पहली कैबिनेट बैठक में काले धन की वापसी पर एसआईटी के गठन पर सुपीम कोर्ट ने भी सराहना की है। राज्यपालों के इस्तीफे से जरूर थोड़ा विवाद पैदा हुआ पर कुल मिलाकर यह एक बड़ा फैसला था। मंत्रियों पर अंकुश लगाने के लिए उनके रिश्तेदारों को पर्सनल स्टाफ में रखने पर रोक भी सही कदम रहा। हर सांसद को टारगेट दिया गया है वह अपने क्षेत्र के एक गांव को 2016 तक आदर्श गांव बनाएं, का भी स्वागत किया है। महिलाओं के लिए शौचालय की अपील का भी स्वागत किया गया है। मोदी के मीडिया दोनों इलेक्ट्रॉनिक और पिंट को अपने से दूर रखने के फैसले के पीछे उनकी निजी नाराजगी नजर आती है। वह 2002 से उनके खिलाफ चलाए गए अभियान से मीडिया से नाराज हैं। अमित शाह को भाजपा अध्यक्ष बनाकर मोदी ने पाटी और सरकार पर पूरा नियंत्रण कर लिया है। कुल मिलाकर मोदी के सौ दिन का कार्यकाल न तो अच्छा रहा न और ही खराब, बल्कि औसत है कामकाज। महंगाई, भ्रष्टाचार, महिला सुरक्षा जैसे ज्वलंत मुद्दों जिन पर मोदी सत्ता में आए थे उन पर संतोषजनक राय नहीं रखती देश की जनता। उम्मीद करते हैं कि आने वाले दिनों में इनमें सुधार होगा।

-अनिल नरेंद्र

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