Sunday, 21 September 2014

याद रहे चीन के दो चेहरे हैं, दोस्ती करो पर सावधानी से

ऐसा भारत के इतिहास में कम ही हुआ है जब किसी देश का राष्ट्राध्यक्ष अपनी भारत की यात्रा किसी अन्य भारतीय शहर से करे। मैं  बात कर रहा हूं चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की जिन्होंने अपनी अत्यंत महत्वपूर्ण भारत यात्रा अहमदाबाद से शुरू की। आम तौर पर कोई भी राष्ट्राध्यक्ष जब भारत यात्रा पर आता है तो वह सबसे पहले नई दिल्ली आता है पर यह नरेन्द्र मोदी का करिश्मा ही है जिन्होंने दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश के अध्यक्ष को सबसे पहले अहमदाबाद आने के लिए तैयार कर लिया। भारत और चीन के शीर्ष नेतृत्व ने जिस तरह अहमदाबाद में झूला झूला उससे एक-दूसरे के प्रति विश्वास जताया है वह एशिया के ही लिए नहीं पूरे विश्व के लिए महत्वपूर्ण है। जिस तरह चीन को भारत से तमाम उम्मीदें हैं उसी तरह भारत को भी उससे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का शिखर बैठक में संदेश बहुत साफ था। दुनिया के दो सबसे बड़े विकासशील देशों के नेता द्विपक्षीय संबंधों में यथास्थिति को बनाए नहीं रखना चाहते। बावजूद इसके कि जिनपिंग की यात्रा के दौरान लद्दाख के चुमार सेक्टर में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के घुस आने से तनाव बना हुआ है, दोनों नेताओं ने आपसी रिश्तों को मजबूत करने की प्रतिबद्धता जताई। जिस दिन जिनपिंग दिल्ली आए थे उसी समय लेह के चुमार में चीनी सैनिक दो किलोमीटर अंदर घुसे हुए थे। चीनी सैनिक चुमार में तीन सौ की संख्या और डेमचोक में करीब 40 चीनी सैनिक भारत की धरती पर मौजूद थे। सेना के सर्वोच्च कमांडर होने के बावजूद हो सकता है कि चीनी राष्ट्रपति को सीमा पर घट रही इन छोटी-मोटी घटनाओं की जानकारी न हो लेकिन उनकी सेना के लोगों को तो अपने राष्ट्रपति के इस दौरे की जानकारी यकीनन ही रही होगी। इस बार तो चीनी सेना के गले में बाहें डाले उसके नागरिक भी हमें आंखें दिखाने साथ चले आए हैं। जाहिर है कि चीन अपने इन दोनों चेहरों के साथ भारत की नई सरकार को टटोलने की कोशिश कर रहा है। संतोष की बात है कि उसे हमारी ओर से सटीक जवाब मिल रहा है। हमें इस बात की खुशी है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्पष्ट शब्दों में जिनपिंग से कहा कि सीमा पर शांति के बिना विकास की कल्पना कैसे की जा सकती है। यह पहली बार था जब भारत के किसी प्रधानमंत्री ने चीनी राष्ट्रपति को इतने खुले शब्दों में सीमा पर चल रही चीनी गतिविधियों का मुद्दा उठाया है। इससे पहले दो लाइनों का औपचारिक बयान आ जाता था और रस्म पूरी कर ली जाती थी। शी जिनपिंग और नरेन्द्र मोदी की बातचीत के बाद संयुक्त विज्ञप्ति की जगह दोनों नेताओं का अपना अलग बयान पढ़ना रिश्तों में पेच की कहानी बता रहा था। नरेन्द्र मोदी ने मेहमाननवाजी का पूरा सम्मान रखते हुए बेहिचक देश की तमाम चिंताओं को चीनी राष्ट्रपति के सामने उढेल कर रख दीं। सीमा पर नियमित रूप से होने वाली ऐसी उकसाऊ हरकतें कहीं लड़ाई वाले हालात न बना दें, इस पर नियंत्रण के लिए दोनों देशों के बीच नौ साल पहले बाकायदा समझौता हुआ था और इस पर विशेष प्रतिनिधियों को लगाया भी गया था। वक्त के साथ चीन इसे कैसे भूलता गया, लद्दाख की ताजा घुसपैठ उसका उदाहरण है। भारतीय नागरिकों को नत्थी वीजा देकर भारत की संप्रभुता पर सवाल खड़ा करने और ब्रह्मपुत्र नदी से छेड़छाड़ कर भारत के लिए समस्या खड़ी करने जैसे गंभीर मुद्दों पर चिंता जताने से भी मोदी नहीं चूके। दरअसल दोनों देशों के रिश्तों की राह में सीमा संबंधी मामला सबसे बड़ा रोड़ा है और हकीकत यह है कि 1990 के दशक से कई दौर की बातचीत के बावजूद वास्तविक नियंत्रण रेखा का निर्धारण नहीं हो सका। मोदी ने जब यह मसला उठाया तो जिनपिंग ने इसे जल्दी सुलझाने का वादा किया। यह समझने की जरूरत है कि द्विपक्षीय संबंध अब सिर्प सामरिक ही नहीं बल्कि आर्थिक हितों के आधार पर तय होते हैं। चीन फिलहाल भारत में 20 अरब डॉलर का निवेश करेगा। शिखर वार्ता में दोनों देशों के बीच 12 समझौते हुए जिनमें पांच साल के आर्थिक प्लान पर हुआ करार बेहद अहम है। कैलाश यात्रा के लिए नया रूट, आडियो-वीडियो मीडिया, रेलवे के आधुनिकीकरण, अंतरिक्ष, स्वास्थ्य और सांस्कृतिक क्षेत्र में सहयोग को लेकर भी समझौता हुआ। मुंबई को शंघाई की तरह विकसित करने में चीन मदद करेगा और गुजरात तथा महाराष्ट्र में दो इंस्ट्रीयल पार्प बनाएगा। जाहिर है कि भारत के तेज विकास और आधुनिकीकरण में चीन की अहम भूमिका होगी। निश्चय ही इसका लाभ चीनी इकॉनिमी को भी मिलेगा। हालांकि मोदी की जापान यात्रा जिसमें उन्हें 33 अरब डॉलर के निवेश का भरोसा मिला, के बाद जिनपिंग की भारत यात्रा को लेकर कयास थे कि चीन से भारत को भारी-भरकम निवेश मिल सकता है। इसके उल्टे जिनपिंग की मौजूदगी में हुए समझौतों के तहत अगले पांच वर्षों में भारत में सिर्प 20 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा से थोड़ी मायूसी जरूर हुई। गौर करने की बात यह भी है कि चीन जहां हिन्द महासागर में अपने हित देख रहा है वहीं भारत दक्षिण चीन सागर में अपने। यह संयोग नहीं है कि जिनपिंग भारत आने से पहले श्रीलंका से होकर आए हैं जहां उन्होंने भारतीय सीमा से महज दो सौ किलोमीटर दूर एक समुद्री परियोजना में निवेश की मंजूरी दी तो भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी वियतनाम के साथ दक्षिणी चीन सागर में तेल की संभावनाएं तलाशने के लिए करार कर लौटे हैं। पाकिस्तान के सियासी हलकों और पाक मीडिया  की जिनपिंग की यात्रा पर नजरें टिकी हुई थीं। जिनपिंग ने अपनी पाकिस्तान यात्रा स्थगित कर दी, उन्हें वहां भी जाना था। यह भी चर्चा का विषय बना हुआ था। भारत को यह नहीं भूलना चाहिए कि चीन और पाकिस्तान के बीच बहुत मजबूत रिश्ते हैं। चीन के सरकारी मीडिया और विदेश मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि जिनपिंग के पाक दौरे को आगे बढ़ाया गया है और इसकी तिथियां फिर से तय होंगी। कुल मिलाकर शी जिनपिंग की भारत यात्रा सफल रही। भारत के प्रधानमंत्री ने अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक क्षेत्र में अपनी पहचान बना ली है। नेपाल, जापान, आस्ट्रेलिया, चीन और थोड़े दिनों में अमेरिका की यात्रा पर जाने वाले नरेन्द्र मोदी अब सही मायनों में वर्ल्ड नेता बन गए हैं। बेशक चीन से सीमा मुद्दे पर सहमति न हुई हो पर आर्थिक क्षेत्रों में मोदी ने सफलता जरूर पाई है।

-अनिल नरेन्द्र

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