Tuesday 23 September 2014

स्कॉटलैंड का नो अलगाववादियों के लिए एक सबक है

भारतीय महाद्वीप सहित दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में राष्ट्रों को विभाजित करने वाला ब्रिटेन खुद टूटने से बाल-बाल बच गया। यदि सिर्प चार लाख स्कॉटिश नागरिक यानि लखनऊ के किसी मुहल्ले के बराबर आबादी के समान स्कॉटलैंड की आजादी के पक्ष में मतदान कर देते तो ग्रेट ब्रिटेन टूट जाता। स्कॉटलैंड ने ब्रिटेन के साथ रहने का फैसला किया है। आजादी के लिए कराए गए जनमत संग्रह में 55 फीसदी लोगों ने नो वोट दिया यानि वह इंग्लैंड से अलग नहीं होना चाहते। ब्रिटेन ही नहीं पूरे यूरोप की सांस इस बात पर अटकी पड़ी थी कि अगर स्कॉटलैंड अलग हो गया तो क्या होगा? यह पिछले काफी वक्त से लग रहा था कि पक्ष और विपक्ष की ताकत लगभग बराबर है, इसलिए आजादी चाहने वालों और इंग्लैंड के साथ रहने की राय रखने वालों का यह मुकाबला कांटे का है। दस दिन में ऐसे बदला यस को नो में। डेविड कैमरन (प्रधानमंत्री) की भावनात्मक अपील ने माहौल बदलने में मदद की। कैमरन मिलिबैंड और निक क्लिक ने स्कॉटलैंड को ज्यादा अधिकार देने के वचन पत्र पर हस्ताक्षर किए। एलिस्टेयर डार्लिंग के साथ ब्रिटिश मीडिया ने भी बैटर टु गेदर अभियान चलाया। महारानी एलिजाबेथ ने बहुत सोच-समझकर वोट देने की अपील की। युवाओं को ललचाया कि ब्रिटेन से आजाद होकर अपनी नौकरी, पेंशन, पाउंड, स्वास्थ्य सेवाओं और भविष्य को खतरे में मत डालो। अगर बहुमत ने अलगाव के पक्ष में वोट दिया होता तो यह ब्रिटिश साम्राज्य या यूनाइटेड किंग्डम की औपचारिक रूप से समाप्ति हो जाती। जिस साम्राज्य का किसी दौर में आधी दुनिया पर राज था और जिसके बारे में कहा जाता था कि उसके राज में सूर्य कभी नहीं डूबता, उस साम्राज्य की व्यवस्था का यह पूर्ण अंत होता। प्रधानमंत्री डेविड कैमरन को इस बिखराव को होने से बचाने का श्रेय अवश्य जाता है। उन्होंने अपना बहुत कुछ दांव पर लगा दिया था। यह जनमत संग्रह ब्रिटेन की श्रेष्ठता ग्रंथि को जवाब है जो दूसरों को कमतर करके आंकता है। स्कॉटलैंड में लंदन के खिलाफ गुस्सा नहीं पनपता अगर वह उसके आत्मसम्मान की कद्र करता। मारग्रेट थैचर के समय उनकी पार्टी स्कॉटलैंड में एक भी सीट हासिल नहीं कर पाई थी, इसी प्रतिशोध में थैचर ने वहां सामुदायिक कर लगाने का फैसला लिया था। डेविड कैमरन की पार्टी के सिर्प एक सांसद स्कॉटलैंड से हैं। इसके बावजूद उसका तौर-तरीका वर्चस्ववादी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि जनमत संग्रह का यह नतीजा ब्रिटिश निरंकुशता पर लगाम लगाने के साथ दुनियाभर के देशों के रवैये पर लचीलापन लाएगा। वैसे यह जनमत अपने आप में एक मिसाल भी है कि इस मुद्दे को किस तरह शांतिपूर्ण, तर्पसंगत तरीके से सुलझाया गया। भारत में जो लोग उग्र राष्ट्रवादी हैं और अनुदार हैं और जो अलगाववादी हैं उन सबके लिए इसमें सबक है। उग्र राष्ट्रवाद और अनुदार रवैये की वजह से अलगाववाद भी मजबूत होता है, लेकिन यह भी सच है कि अलगाव से अलग हुए देश के नागरिकों का भला हो ही, यह जरूरी नहीं। छोटे देश आर्थिक और सामरिक क्षेत्रों में दूसरी ताकतों पर निर्भर रहते हैं और अक्सर ऐसी ताकतों के खेल का हथियार बन जाते हैं। स्कॉटलैंड के लोगों ने बहुत परिपक्व रिस्पांस दिया है। दोनों स्कॉटलैंड और ब्रिटेन बधाई के पात्र हैं।

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