Wednesday 10 September 2014

दिल्ली-एनसीआर में सरकारी अस्पतालों की दयनीय स्थिति

न सिर्प भारत में बल्कि पूरी दुनिया में डाक्टरों को भगवान का दर्जा दिया जाता है। उनसे कतई उम्मीद नहीं की जाती कि वह अपने पेशे में  लापरवाही बरतें या फिर अनुचित तरीके से ज्यादा पैसे कमाने के लिए अपने पेशे को कलंकित करने वाले हथकंडे अपनाएं। दुख से कहना पड़ता है कि आज कुछ डाक्टर सारे अनुचित काम कर रहे हैं। गरीबों के लिए राजधानी और एनसीआर के 46 अस्पतालों में मुफ्त इलाज की शर्त है पर इसे शायद ही कोई अस्पताल लागू करता है। आए दिन खबर आती रहती है कि इन तमाम अस्पतालों में जितने बिस्तर बीपीएल (बिलो पावर्टी  लाइन) कार्ड धारकों के लिए आरक्षित हैं उतना एडमिशन नहीं दिया जाता। गरीब मरीज लाखों का बिल देने को मजबूर हैं। यहां तक कि मरीज द्वारा पेश किए जाने वाले डाक्यूमेंट में कोई न कोई कमी निकाल कर मामला लटका दिया जाता है। निजी अस्पतालों में गरीब के इलाज को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार यदि किसी व्यक्ति की मासिक आय 8086 रुपए से कम है तो उसे गरीब माना जाएगा। इनके लिए दिल्ली-एनसीआर के 46 अस्पतालों में तकरीबन 700 बैड को आरक्षित रखना होगा पर ऐसा हो नहीं रहा। अस्पतालों का यह हाल है कि डाक्टर कभी-कभी इतनी लापरवाही बरतते हैं जिसका हिसाब नहीं। अब अदालतें भी सख्त होती जा रही हैं और लापरवाही के केसों में अदालतों ने मुआवजा देना आरम्भ कर दिया है ताकि डाक्टर जवाबदेह बनें और मरीज के साथ लापरवाही न बरतें। हाल ही में एक लड़की के चिकित्सकीय लापरवाही का शिकार बनने के 12 वर्ष बाद उच्चतम न्यायालय ने 20 लाख रुपए मुआवजा देने का निर्देश देते हुए कहा कि उसने जो समस्याएं झेलीं और भविष्य में उसको जो कठिनाइयां आएंगी उसे देखते हुए यह उचित है कि तर्पसंगत आदेश दे। अस्पताल की लापरवाही के कारण दो वर्षीय बच्ची का मांस सड़ गया जिससे उसका दाहिना हाथ काटना पड़ा। लड़की को अगस्त 2002 में सर्दी, खांसी और बुखार के उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उसकी नसों में तरल पदार्थ दिया गया लेकिन नस के बजाय गलती से यह धमनी में घुस गई जिससे दाहिनी भुजा में खून की आपूर्ति बंद हो गई और उसका मांस सड़ गया। सरकारी अस्पतालों का यह हाल है कि छह माह से अधिक समय से दिल्ली सरकार के एकमात्र सुपर स्पेशयलिटी अस्पताल के न्यूरो सर्जरी विभाग में बच्चों की सर्जरी टालनी पड़ रही है। महज एक ड्रिल मशीन की खरीद नहीं होने से जरूरतमंद बच्चों को सर्जरी के लिए दूसरे अस्पतालों में रेफर करना पड़ रहा है। मामला दिल्ली सरकार के गोविंद बल्लभ पंत अस्पताल के न्यूरो सर्जरी विभाग का है। यहां ड्रिल मशीन खराब होने और नई मशीन नहीं आने की वजह से बच्चों की न्यूरो सर्जरी टालनी पड़ रही है। चिकित्सकों की मानें तो बिना ड्रिल मशीन के बच्चों की न्यूरो सर्जरी करना खतरनाक होता है, लिहाजा अस्पताल के चिकित्सक जोखिम नहीं लेना चाहते और मरीजों को दूसरे अस्पतालों को रेफर कर देते हैं। यह संतोष की बात है कि हमारे स्वास्थ्य मंत्री डाक्टर हर्षवर्धन खुद एक चिकित्सक हैं। उम्मीद की जाती है कि डाक्टर साहब गरीबों की चिकित्सा में आईं इन कमियों और सरकारी अस्पतालों में जरूरी इक्विपमेंट पर ध्यान देंगे और इन्हें पूरा करेंगे।

-अनिल नरेन्द्र

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