Saturday 27 September 2014

218 में से 214 कोल ब्लॉकों का आवंटन रद्द

अंतत सुप्रीम कोर्ट ने कोयला खदानों के वे सभी आवंटन रद्द कर दिए हैं जिन्हें मनमाने ढंग से वर्ष 1993 से लेकर 2010 तक बांटा गया था। सुप्रीम कोर्ट ने 218 कोल ब्लॉकों में सरकारी कंपनियों से जुड़ी चार खदानों को छोड़कर शेष 214 की खुली और  प्रतिस्पर्धात्मक नीलामी का रास्ता साफ कर दिया है। जिन 46 खदानों को उनसे कोयला उत्पादन शुरू होने के आधार पर राहत मिलने की थोड़ी उम्मीद थी सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें भी कोई रियायत नहीं दी। हालांकि इन खदानों से जुड़ी कंपनियों को आगामी छह महीने तक उत्पादन जारी रखने की इजाजत दी गई है ताकि कोयले की मौजूदा किल्लत और न बढ़ जाए। चूंकि इन खदानों के आवंटन में मनमानी एक घोटाले की शक्ल लेकर सामने आ चुकी थी, इसलिए इसी तरह के फैसले की उम्मीद की जा रही थी, इसलिए और भी, क्योंकि खुद केंद्र सरकार ने यह कहा था कि ऐसे किसी निर्णय से उसे आपत्ति नहीं होगी। एक साथ इतनी बड़ी संख्या में कोयला खदानों का आवंटन रद्द होना नीतियों को लागू करने में मनमानी बरतने के दुष्परिणाम का परिचायक है। प्राकृतिक संसाधनों के मामले में इस तरह की मनमानी और पक्षपात को स्वीकार नहीं किया जा सकता, लेकिन इस तथ्य की भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से पहले से ही संकट अर्थव्यवस्था के लिए भी मुश्किलें पेश कर सकता है। कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने बीते 21 साल के दौरान सत्ता में रही पांच सरकारों के चेहरे पर कालिख पोत दी है। चूंकि इन 21 सालों में सर्वाधिक अवधि 13 साल तक कांग्रेस या उसकी अगुवाई वाली सरकार शासन में रही, इसलिए फैसले की कालिख भी सबसे ज्यादा उसी के हिस्से में आई। सुप्रीम कोर्ट ने अनियमितताओं के कारण जिन 214 कोल ब्लॉकों के आवंटन को रद्द किया है, उनमें सबसे ज्यादा आवंटन नरसिंह राव और मनमोहन सरकार के दो कार्यकाल में हुआ। इस दौरान लंबे वक्त तक तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास कोयला मंत्रालय का प्रभार था और तकरीबन दो-तिहाई कोयला ब्लॉकों का आवंटन भी इसी दौर में हुआ। इस घोटाले में जब कैग ने खुलासा किया और 1.86 हजार करोड़ रुपए के नुकसान का आंकलन सामने आया तो देश को बेहद हैरत हुई लेकिन अधिक हैरत इस चोरी के बाद सत्ताधीशों की सीनाजोरी को देखकर हुई। घाव पर नमक छिड़कने के अंदाज में दलीलें दी गईं कि जब कोयला जमीन से निकला ही नहीं तो नुकसान कैसा! कांग्रेस के नेताओं और मंत्रियों ने तत्कालीन कैग विनोद राय पर व्यक्तिगत हमले तक किए परन्तु तत्कालीन प्रधानमंत्री से सवाल हुए तो उन्होंने हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी... की तर्ज पर मौन धारण कर लिया। जब नागरिक संगठनों के प्रयास से जांच शुरू हुई तो बाद में यह शर्मनाक खुलासा भी हुआ कि एक केंद्रीय मंत्री और पीएमओ के अफसर सीबीआई की जांच रिपोर्ट में तब्दीली कराने में जुटे रहे। सुप्रीम कोर्ट की ओर से यह फैसला मोदी सरकार के लिए आफत साबित हो सकता है। जब देश की अर्थव्यवस्था में थोड़े सुधार के लक्षण दिख रहे हों तब इस तरह की चोट बड़ा नुकसान कर सकती है। कोल आवंटन रद्द होने का असर चौतरफा होगा। बैंकों, स्टील, सीमेंट और बिजली समेत कई निजी और सार्वजनिक कंपनियों पर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का असर पड़ेगा। क्योंकि कोयला सेक्टर पर इनके 7.65 लाख करोड़ रुपए दांव पर  लगे हैं। सबसे ज्यादा असर बैंकों पर पड़ेगा। यह ठीक है कि कोयला खदानों के आवंटन रद्द होने के बाद केंद्र सरकार ने एक नई शुरुआत करने की बात कही है, लेकिन इस काम में देरी नहीं होनी चाहिए। मोदी सरकार को कोई ऐसा रास्ता निकालना होगा जिससे अर्थव्यवस्था के प्रभावित होने की आशंकाओं को दूर किया जा सके। बहरहाल अभी इस बंदरबांट के षड्यंत्र की जांच जारी है। जरूरी है कि शीर्ष पदों पर रहे उन लोगों को भी पूछताछ के दायरे में लाया जाए जिन पर देश के संसाधनों की रक्षा और उनके सही इस्तेमाल का दारोमदार था परन्तु उनके सामने इनकी खुली लूट हो रही थी।

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