Tuesday 9 September 2014

अलकायदा की ताजा धमकी को हल्के में न लें

अलकायदा के मुखिया अयमान अल जवाहिरी ने भारत में जेहाद शुरू करने से संबंधित जो वीडियो जारी किया है उसे हम सिर्प इसलिए नजरअंदाज नहीं कर सकते कि यह कमजोर पड़ते इस आतंकी संगठन की विवशता का उदाहरण है। यह सही है कि आईएस के उभार के सामने अलकायदा अब खुद कमजोर पड़ रहा है। कुछ दिन पहले ही अमेरिका ने आगाह कर दिया था कि अलकायदा भारत को नए सिरे से निशाना बनाने की साजिश रच रहा है। इसलिए भारतीय खुफिया एजेंसियों के लिए अलकायदा के सरगना का नया वीडियो टेप कोई हैरत की बात नहीं रही होगा। पर इससे खतरे की पुष्टि जरूर होती है और यह हमारे लिए गंभीर चिन्ता की बात है। दरअसल अलकायदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इस्लाम के दुश्मन के तौर पर चित्रित करना चाहता है। अमेरिका के एक दिग्गज आतंकवाद-रोधी विशेषज्ञ ने गुरुवार को यह चेतावनी दी। सीआईए के पूर्व विशेषज्ञ ब्रंस रिडेल ने बताया कि इस साल अलकायदा सरगना अयमान अल जवाहिरी का यह पहला वीडियो है और इसे बहुत संजीदगी से लेना चाहिए। रिडेल ने कहा कि अलकायदा का पाकिस्तान में आधार है, इसका लश्कर--तैयबा के साथ करीबी गठजोड़ है और लश्कर का इंडियन मुजाहिद्दीन से सम्पर्प है। इस गठजोड़ की वजह से अलकायदा भारत के लिए खतरा है। विश्लेषक भले ही इसे ज्यादा कट्टर आतंकवादी संगठन आईएस (पूर्व नाम आईएसआईएस) के सामने अपने बौने पड़ते अस्तित्व को बचाने की, अलकायदा की कवायद करार दे किन्तु भारत के प्रति इसके इरादों को हल्के में नहीं लिया जा सकता। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने देश की शीर्ष खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों की बैठक बुलाकर इस चुनौती की समीक्षा की है। यह जरूरी भी है क्योंकि भारत के लिए चौतरफा खतरा है। जिस आईएस से अलकायदा के भयभीत होने की चर्चा है उसके ही विस्तारवादी मानचित्र में भारत भी शामिल है। जब तक इराक में आईएस के बैनर तले लड़ने के लिए भारत से तीन सौ नौजवानों की भर्ती जैसी खबरें आती रहेंगी तब तक हमारे लिए चुनौती बड़ी है। प्रधानमंत्री ने सही कहा है कि हर अपराधी या आतंकी किसी का पुत्र, भाई, पड़ोसी भी है, वहीं पर अंकुश लगे तो यह ज्यादा कारगर रहेगा। पाकिस्तान और अफगानिस्तान में आतंकी तत्वों की मौजूदगी के साथ आईएस के बढ़ते असर को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकारों को आतंकी खतरे से निपटने के लिए और अधिक सक्रियता का परिचय देना होगा। यह भी आवश्यक है कि भारत सरकार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी आतंकवाद के खिलाफ और अधिक सक्रिय हो, क्योंकि आतंकी संगठनों को प्रत्यक्ष और परोक्ष ढंग से समर्थन देने वाले देशों और विशेष रूप से सउदी अरब एवं पाकिस्तान पर कोई लगाम नहीं  लग पा रही है। बात चाहे अलकायदा की हो या फिर आईएस में तब्दील हुए आतंकी संगठन की इन दोनों को खाद-पानी उपलब्ध कराने में सउदी अरब की भूमिका किसी से छिपी नहीं। यह भी जगजाहिर है कि पाकिस्तान ने अपनी खुफिया एजेंसी आईएसआई के जरिए तालिबान और अलकायदा के साथ किस तरह किस्म-किस्म के अन्य आतंकी संगठनों को पालने-पोसने का काम किया। विडम्बना यह है कि आतंकी संगठनों के उभार के पीछे एक बड़ी भूमिका अमेरिका की भी है जिसने आतंकवाद के खिलाफ अभियान छेड़ा हुआ है। यह सब जानते हैं कि अमेरिका की वॉर ऑन टेरर लड़ाई केवल उसके खिलाफ खतरे तक ही सीमित है। उसे भारत की कोई चिन्ता नहीं है। अमेरिका पाकिस्तान के प्रति इसलिए भी नरम रुख अख्तियार किए हुए है क्योंकि उसे अफगानिस्तान से निकलना है और इस काम में उसके लिए भारत से ज्यादा पाकिस्तान उपयोगी है। लिहाजा आतंकी संगठनों के इरादों को ध्वस्त करने के लिए भारत को अपनी सुरक्षा व्यवस्था, खुफिया एजेंसियों, केंद्र-राज्य बेहतर तालमेल को चाकचौबंद करने की जरूरत है, साथ ही देश में सांप्रदायिक सौहार्द बना रहे यह भी देखना जरूरी है। यह इसलिए भी जरूरी है ताकि देश विरोधी देश हमारी इस कमजोरी को हमारे ही खिलाफ इस्तेमाल करने की चाल में सफल न हो पाएं।

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