हमारे
देश में यह अत्यंत दुख की बात है कि महिलाओं,
किशोरियों व बच्चियों के खिलाफ यौन शोषण की घटनाएं थमने का नाम नहीं
ले रहीं। सुबह अखबार देख कर दिल बैठ जाता है जब खबर पढ़ते हैं कि फलां जगह एक छोटी
बच्ची से, किशोरी से या महिला से बलात्कार हुआ या गैंग रेप हुआ।
इस सिलसिले में यूनाइटेड नेशंस चिल्ड्रन फंड (यूनिसेफ)
की एक रिपोर्ट जारी हुई है। रिपोर्ट का शीर्षक है हिडन इन प्लेन साइट,
इसमें समाज के स्याह पहलू से रूबरू कराते कुछ ऐसे ही डरावने सच सामने
आए हैं। यूनिसेफ की रिपोर्ट बताती है कि समाज में लड़कियों, बच्चों,
किशोरों और शादीशुदा महिलाओं को या तो शारीरिक हिंसा अथवा यौन हिंसा
का शिकार होना पड़ता है। 15 से 19 के बीच
की उम्र की लगभग आधी लड़कियां अपने माता-पिता द्वारा की गई शारीरिक
हिंसा झेलती हैं। यूनिसेफ की रिपोर्ट बताती है कि समाज में बच्चों के पति हिंसा इस
कदर घुली-मिली है कि कई बार ते इसे जानबूझ कर अनदेखा कर दिया
जाता है या सामान्य मानकर छोड़ दिया जाता है। रिपोर्ट के मुताबिक 15 से 19 आयु वर्ग की 77 पतिशत लड़कियां अपने पति या पार्टनर द्वारा
कम से कम एक बार बलात्कार का शिकार होती हैं। दक्षिण एशियाई देशों में हर पांच में
से एक लड़की पार्टनर से पीड़ित होती है चाहे वह शादी-शुदा हो
अथवा नहीं। इस मामले में भारत और बांग्लादेश दोनों ही बदनाम हैं। रिपोर्ट कहती है कि
15 से 19 साल के बीच 34 पतिशत
शादी-शुदा लड़किया पतियों के शारीरिक यौन अथवा भावनात्मक हिंसा
का शिकार होती हैं। इस एज ग्रुप में 21 फीसदी लड़कियां शारीरिक
हिंसा का शिकार होती है। इसके अलावा सिंगल या कहें कि अविवाहित लड़कियों को किसी पारिवारिक
सदस्य या किसी दोस्त अथवा किसी परिचित या यहां तक कि शिक्षकों द्वारा शारीरिक हिंसा
का शिकार होना पड़ता है। अजरबैजान, कंबोडिया, हैती, भारत, लाइबेरिया और सिमोर
लेस्त देशों में ज्यादातर मामलों में पीड़िता की मां या सौतेली मां ही हिंसा के लिए
दोषी पाई जाती है। 2012 में युवाओं की घरों में होने वाली हत्याओं
के मामले में भारत तीसरे नंबर पर रहा था। भारत में शून्य से 19 साल के बीच के लगभग 9400 बच्चे और किशोर 2012
में मारे गए थे। विडंबना तो यह है कि 15-19 साल
के बीच की 41 फीसदी
लड़कियां पति या पार्टनर द्वारा उनके साथ की गई शारीरिक हिंसा
को जायज भी ठहराती हैं। यूनिसेफ द्वारा इस रिपोर्ट में बचाव के 6 उपाय या रणनीतियां भी सुझाई गई हैं। इनमें पैरेंट्स को सपोर्ट करते हुए बच्चों
को लाइफ स्किल्स सिखाना, एटीट्यूड बदलना, सोसायटी की जूडिशियल, किमिनल और सोशल सिस्टम व सर्विस
में बदलाव लाने और हिंसा के ज्यादा से ज्यादा सबूत जुटाकर उनका इस्तेमाल जागरुकता में
इस तरह करना कि उससे चुकाई जाने वाली मानवीय, सामाजिक व आर्थिक
कीमत को लोग समझ सकें।
-अनिल नरेंद्र
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