Tuesday 30 September 2014

राहुल के नेतृत्व पर उठते सवालों से कांग्रेस में असमंजस की स्थिति

बड़े दुख से कहना पड़ता है कि लोकसभा चुनावों के निराशाजनक परिणामों से लगे धक्के से कांग्रेस पार्टी इतने दिन बीतने के बाद भी संभल नहीं सकी। जिस आत्म-चिन्तन या आत्म-निरीक्षण की जरूरत थी वह नहीं किया गया और आज भी कांग्रेस पार्टी नेतृत्वविहीन नजर आ रही है। कांग्रेस नेतृत्व में राहुल गांधी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। श्रीमती सोनिया गांधी अब इतनी सक्रिय नहीं हैं। शायद अपने स्वास्थ्य की वजह से वह अब पार्टी के काम को ज्यादा गंभीरता से नहीं कर रही हैं। सारा दारोमदार उन्होंने राहुल गांधी पर छोड़ रखा है और राहुल गांधी का यह हाल है कि हाल में मोदी सरकार के खिलाफ युवा कांग्रेस की आक्रोश रैली में उनका आक्रोश सिर्प पोस्टर और  बैनरों में ही देखने को मिला। दरअसल राहुल गांधी रैली से गायब रहे। ऐसा करके राहुल गांधी एक बार फिर कांग्रेस को आगे बढ़ाकर पीछे हट गए। राहुल की गैर मौजूदगी से एक बार फिर कांग्रेस के अंदर उनकी राजनीतिक सक्रियता को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। संसद के पिछले सत्र के दौरान लोकसभा में देश में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं बढ़ने को लेकर मोदी सरकार को घेरते हुए वे लोकसभा अध्यक्ष के आसन के सामने आ गए थे। मगर जब इस मुद्दे पर बहस का वक्त आया तो उन्होंने बोलना ही मुनासिब नहीं समझा। राहुल गांधी की गैर मौजूदगी से कांग्रेस पार्टी में एक तरह की असमंजस की स्थिति बनी हुई है। महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनावों में क्या राहुल गांधी कांग्रेस की तरफ से प्रचार करेंगे? इस सवाल पर कांग्रेस पार्टी को समझ नहीं आ रहा कि क्या करे? पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी की घटती लोकप्रियता और राहुल गांधी की अधकचरी सियासी समझ के चलते देश की सबसे पुरानी पार्टी पूरी तरह से नेतृत्वविहीनता के जाल में फंसती जा रही है। हालत यह हो गई है कि सारा दारोमदार अब राज्यों के मुख्यमंत्रियों पर आ गया है। हालात इतने खराब हैं कि पार्टी के पास न पश्चिम भारत के महत्वपूर्ण राज्य महाराष्ट्र में और न ही उत्तरी भारत के दिल्ली से सटे हरियाणा में इस पार्टी के पास कोई स्टार प्रचारक बचा है। कांग्रेस पार्टी का दुर्भाग्य यह है कि न तो लोकसभा में और न ही राज्यसभा में पार्टी नेतृत्व ने ऐसे नेताओं को विपक्षी नेता के पद पर बिठाया है जो जमीन के कार्यकर्ताओं या जनता से मिलते हैं और न ही उनकी कार्यकर्ताओं पर पकड़ है। लोकसभा में कर्नाटक के सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे को अपना नेता बनाया है उनका उत्तर भारत से कोई लेना-देना नहीं है। श्री खड़गे को मान्यता प्राप्त विपक्ष के नेता का दर्जा देने से भी मोदी सरकार ने साफ इंकार कर दिया है। शायद सरकार इस बात पर राजी हो सकती थी कि यदि लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी के अपने सबसे वरिष्ठ सांसद को नेता विपक्ष पद पर बिठाने के लिए प्रयास करती। यह योग्यता श्री कमल नाथ में है जो महाराष्ट्र से लगते छिंदवाड़ा क्षेत्र से 1980 से लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं। आज वरिष्ठ कांग्रेसियों से लेकर सड़क पर कार्यकर्ता राहुल गांधी की योग्यता और नीयत पर सवाल उठा रहे हैं। नेहरू-गांधी परिवार कांग्रेस पार्टी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है पर सवाल यह उठता है कि जब राहुल गांधी खुद पार्टी में दिलचस्पी नहीं रखते तो पार्टी का भविष्य चिन्ताजनक बनता जा रहा है।

-अनिल नरेन्द्र

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