Tuesday, 23 September 2014

बाल विवाह बलात्कार से भी बदतर बुराई है, इसे समाज से खत्म होना चाहिए

देश में सामाजिक कुरीतियों की फेहरिस्त में  बाल विवाह एक बड़ा अभिशाप है। दुख से कहना पड़ता है कि इससे निजात पाने के लिए तमाम सरकारी प्रयास फेल हो गए हैं। विडम्बना यह है कि तमाम कानूनों के चलते आए दिन बाल विवाह के मामले सामने आते ही रहते हैं। बाल विवाह को बलात्कार से भी बदतर बुराई बताते हुए दिल्ली की एक अदालत ने कहा कि उसे समाज से पूरी तरह समाप्त होना चाहिए। उसने कम उम्र में बच्ची का विवाह करने के लिए लड़की के माता-पिता के विरुद्ध मामला दर्ज करने को कहा। मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट शिवानी चौहान ने लड़की के माता-पिता द्वारा उसके पति और ससुराल वालों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना के मामले की सुनवाई के दौरान यह निर्देश दिया। दहेज देना और लेना कानून के तहत दंडनीय अपराध है। अदालत ने पुलिस को निर्देश दिया कि बाल विवाह रोकथाम कानून और दहेज निषेध कानून के उचित प्रावधानों के तहत 14 वर्षीय लड़की के माता-पिता और उसके ससुराल वालों के खिलाफ मामला दर्ज किया जाए। ससुराल वालों के खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला पहले से ही दर्ज है। मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने कहाöबाल विवाह बलात्कार से भी बदतर बुराई है और इसे समाज से पूरी तरह खत्म किया जाना चाहिए। यदि सरकार जैसे पक्षकार इस तरह के अपराध करने वालों के खिलाफ उचित कार्रवाई नहीं करेंगे, तो ऐसा करना संभव नहीं होगा। उन्होंने दक्षिण दिल्ली के पुलिस उपायुक्त को 19 अक्तूबर को प्रगति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश देते हुए कहा कि अदालत मूकदर्शक बने रहने और इस बुराई होते रहने देने की अपेक्षा नहीं की जा सकती है। अदालत ने लड़की के माता-पिता को भी आड़े हाथ लेते हुए कहा कि उन्होंने भी गंभीर अपराध किया है। अदालत ने कहा कि बाल विवाह के गंभीर नतीजे होते हैं। यह बच्चों के प्रति प्रतिवादियों (पति और उसके परिवार) द्वारा ही नहीं बल्कि उसके अपने माता-पिता द्वारा घरेलू हिंसा का वीभत्स रूप है। वास्तव में इस सामाजिक बुराई का खामियाजा एक अबोध बच्ची को ही नहीं बल्कि कालांतर में पूरे परिवार और अंतत समाज को भुगतना पड़ता है। बाल विवाह किसी भी बच्ची के जीवन में ऐसा स्याह पक्ष है, जिसका दंश उसे अपनी सेहत की बर्बादी के रूप में जीवनभर भोगना ही होता है, कच्ची उम्र में मां का दायित्व निभाने की जिम्मेदारी न होने के कारण वह अपने बच्चों के रूप में भविष्य के जिम्मेदार नागरिकों का निर्माण करने में भी अक्सर असफल होती हैं। विडम्बना यह है कि कानूनी प्रावधानों के बावजूद मूल रूप से गरीबी, अशिक्षा और लिंग भेद के कारण घर कर गई इस बुराई से यूनिसेफ भी चिंतित नजर आया है। उसकी एक रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में होने वाले बाल विवाहों में 40 प्रतिशत अकेले भारत में होते हैं और 49 प्रतिशत बच्चियों का विवाह 18 साल से भी कम आयु में कर दिया जाता है। उसके अनुसार राजस्थान, बिहार, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में बाल विवाह के मामले सबसे  ज्यादा आगे आते हैं। राजस्थान में तो 82 फीसदी बच्चियों का 18 साल से पहले ही विवाह कर दिया जाता है। यह समस्या अकेले कानूनों से दूर होने वाली नहीं, इसमें समाज की मानसिकता को भी बदलने की जरूरत है।

-अनिल नरेन्द्र

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