Thursday, 18 September 2014

क्या मोदी लहर की समाप्ति का संकेत है उपचुनावों के परिणाम?

नरेन्द्र मोदी लहर पर सवार होकर दिल्ली की गद्दी पर पहुंची भारतीय जनता पार्टी को ताजा उपचुनावों में जनता ने एक झटके में ही आईना दिखा दिया है। वैसे उपचुनावों के नतीजे कभी भी भविष्य की पूरी तस्वीर तो पेश नहीं करते फिर भी वह जीते-हारे राजनीतिक दलों को कुछ न कुछ संदेश अवश्य देते हैं। तीन लोकसभा और 33 विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनावों के नतीजों से जिस दल को सबक सीखने की जरूरत है तो वह है भाजपा। ऐसे कई सारे इलाकों में जहां पिछले आम चुनाव में भाजपा को जबरदस्त जीत हासिल हुई थी वहां उसे हार का सामना करना पड़ा है। खासकर उत्तर प्रदेश में जिस तरह अपने ही सांसदों द्वारा रिक्त की गई ज्यादातर सीटों को बचाने में नाकाम रही वह पार्टी के लिए खासा चिंता का सबब होना चाहिए। परिणाम इस बात की गवाही दे रहे हैं कि प्रदेश के लोकसभा चुनाव के नतीजे नरेन्द्र मोदी के हक में ज्यादा थे, पार्टी भाजपा के पक्ष में कम। राजस्थान में भाजपा ने लोकसभा चुनाव में सारी 25 सीटों पर जीत दर्ज की थी और उससे पहले विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस की सफाई हो गई थी। मगर इन उपचुनावों में कांग्रेस ने राजस्थान की चार में से तीन सीटें जीत ली हैं और भाजपा के हाथ एक सीट ही लगी। यह सही है कि हाल के और इसके पहले हुए उपचुनावों में मोदी सरकार की परीक्षा नहीं हो रही थी, लेकिन यह भी अपेक्षित नहीं था कि भाजपा के मुकाबले उसके विरोधी दल बढ़त हासिल करने में सफल रहेंगे। पहले उत्तराखंड और अब बिहार, राजस्थान के साथ-साथ एक हद तक गुजरात में भी ऐसा ही हुआ। इनसे एक बात साफ होती है कि लोकसभा और विधानसभा चुनावों में लोग अलग-अलग किस्म से मतदान करते हैं। लोकसभा चुनावों में नरेन्द्र मोदी का प्रधानमंत्री पद का दावेदार होना एक बड़ा कारण था जिसकी वजह से लोगों ने भाजपा को वोट दिया था और कई स्थानीय मुद्दे और समीकरण भुला दिए थे। इन उपचुनावों में नरेन्द्र मोदी कोई मुद्दा नहीं थे, इन उपचुनावों से उनके पीएम बने रहने पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है इसीलिए मतदाताओं ने अन्य वजहों को तरजीह दी और नतीजे भाजपा के विरुद्ध गए। अगर यह कहा जाए कि इन उपचुनावों में मोदी फेक्टर प्रमुख मुद्दा था तो शायद गलत नहीं होगा। अगर लोकसभा चुनाव में मोदी की छवि ने जीत दिलाई तो इन उपचुनावों में भाजपा की हार भी मोदी की गिरती छवि के कारण हुई। भाजपा नेताओं के अहंकार ने भी पार्टी को भारी नुकसान पहुंचाया। आज कार्यकर्ता निराश हैं और मायूस होकर घरों में बैठ गए हैं। चुनाव नेता कम कार्यकर्ता ज्यादा जिताते हैं और सत्ता में आने के बाद भाजपा नेता मानो सातवें आसमान पर जा बैठे हों जहां कार्यकर्ता पहुंच ही नहीं सकता, सो कार्यकर्ता भी कहीं आपको सबक चखाते हैं। भाजपा  विरोधी दल उपचुनावों के नतीजों की व्याख्या जैसे चाहें क्यों न करें वे अपनी जीत के उत्साह में यह कहने से बचें तो बेहतर होगा कि हमें मोदी सरकार के प्रति जनता में मोह भंग होने का लाभ मिला। भाजपा को भी इस तर्प की आड़ लेने से बचना होगा कि उपचुनावों के नतीजे तो राज्य में सत्तारूढ़ दल के पक्ष में ही जाते हैं। राजस्थान इस तर्प की काट पेश कर रहा है। गुजरात में भी ऐसा ही कुछ दिखाई दे रहा है। उत्तर प्रदेश के हालात ऐसे नहीं थे कि भाजपा की आठ सीटें उस समाजवादी पार्टी के खाते में चली जातीं जिसके शासन की सर्वत्र आलोचना हो रही थी। पश्चिम बंगाल से अलबत्ता भाजपा के लिए अच्छी खबर है। दो विस सीटों में से एक जीतकर पार्टी संकेत देने में सफल रही है कि ममता बनर्जी के सामने अब वही मुख्य सियासी ताकत है। गैर भाजपा खेमे की बात करें तो यूपी में समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन उसके लिए बहुत लाभकारी और राहतकारी है। सपा ने 11 में से आठ विस सीटें तो जीती हीं, मैनपुरी पर अपना कब्जा बरकरार रखा है। इस जीत से यकीनन सपा का लोकसभा चुनाव में खोया रुतबा कायम हुआ है और पार्टी भाजपा पर अपना दबदबा साबित करने में सफल रही है। जहां तक कांग्रेस का सवाल है राजस्थान के नतीजे उसके लिए संजीवनी का काम करेंगे, साथ ही गुजरात में तीन सीटों पर मिली जीत को भी पार्टी खास मान रही है। दुख से कहना पड़ता है कि भाजपा ने यूपी में उपचुनाव जीतने के लिए जिस रणनीति पर अमल किया वही उसकी पराजय का कारण बनी। पता नहीं उसके नेता यह कैसे भूल गए कि लोकसभा चुनावों में उसकी प्रचंड जीत का आधार विकास पर बल देना था, न कि लव जेहाद सरीखे मुद्दों को धार देना। बहरहाल उपचुनावों की खासियत होती है कि इनमें जीतने वाले परिणामों को विपक्षियों के खिलाफ जनादेश बताते हैं लेकिन हारने वाला स्थानीय कारणों को इसका जिम्मेदार बताकर परिणामों को महत्वहीन साबित करने की कोशिश करता है। वैसे अगले माह जब महाराष्ट्र और हरियाणा के नतीजे आएंगे तब ठीक-ठीक साफ होगा कि राजनीति कौन-सी करवट ले रही है। तब तक उपचुनावों के नतीजों का विश्लेषण जारी रहेगा। इतना तय है कि नरेन्द्र मोदी और भाजपा नेतृत्व को अपना आचरण बदलना होगा अगर भविष्य में चुनाव जीतने हैं।

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