Saturday 20 September 2014

आईएस की बढ़ती बर्बरता और ताकत से कैसे निपट़ें

दो अमेरिकी पत्रकारों के बाद अब इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने तीसरे बंधक ब्रिटिश नागरिक और सामाजिक कार्यकर्ता डेविड हैंस की हत्या कर अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी पर दबाव बनाने की कोशिश की है। यदि यह खबर सही है कि उसके कब्जे में अब भी 24 से अधिक पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता और अन्य लोग हैं तो यह वाकई सभी के लिए एक चिंता की बात है। यह अलग बहस का विषय हो सकता है कि इराक और सीरिया की वर्तमान दुर्दशा में अमेरिका और उसके गठबंधन साथियों की कितनी भूमिका है लेकिन इस्लामिक स्टेट (आईएस) द्वारा खिलाफत (इस्लामिक राज्य) की स्थापना और जिस बर्बरता का प्रदर्शन वह कर रहे हैं उसे रोकना और उसके खिलाफ सैन्य कार्रवाई जरूरी हो गई है। यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने ब्रिटेन के मानवीय सहायता कर्मी डेविड हैंस की जघन्य और कायराना हत्या किए जाने पर इस आतंकी समूह आईएस की कड़ी निंदा की है और कहा है कि इस संगठन को हराया जाना चाहिए तथा उसके द्वारा अपनाई गई हिंसा को उखाड़ फेंका जाना चाहिए। 15 सदस्यीय परिषद ने एक बयान में कहा कि यह अपराध याद दिलाता है कि सीरिया में मानवीय सहायता कर्मियों के लिए हर रोज खतरा बढ़ रहा है। यह एक बार फिर आईएस की बर्बरता को दिखाता है जो हजारों सीरियाई और इराकी लोगों के खिलाफ अपराधों के लिए जिम्मेदार है। आईएस लगातार अमेरिका सहित तमाम देशों को जिस तरह चुनौती दे रहा है उससे अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी उसके खिलाफ कार्रवाई करने पर मजबूर है। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 9/11 की बरसी पर कहा कि अमेरिका आईएस को पूरी तरह से मिटाकर ही दम लेगा। उन्होंने कहा कि जो देश अमेरिका के लिए खतरा बनेगा, उसका नामोनिशान मिटा दिया जाएगा। अपने भाषण में उन्होंने इराक और सीरिया में आईएस के खिलाफ बड़े सैन्य अभियान का ऐलान भी किया। जिसमें सीरिया में अमेरिकी हवाई हमले और इराक में 475 से ज्यादा सैन्य सलाहकारों की तैनाती भी शामिल है। विडम्बना यह भी है कि अमेरिका में बराक ओबामा की सियासी हैसियत पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बुश जूनियर द्वारा अफगानिस्तान और इराक में छेड़े गए युद्धों का विरोध करते हुए बनी थी। इराक से अमेरिकी सैनिकों की वापसी को उन्होंने बड़ी उपलब्धि बताया था। अफगानिस्तान से इस वर्ष के अंत तक उनके देश के फौजी लौटने वाले हैं। इस बीच खिलाफत का खतरा उठ खड़ा हुआ। दो अमेरिकी पत्रकारों की बर्बर हत्या के बाद उनके देश में एक बार फिर जज्बाती माहौल बना और इस्लामी चरमपंथियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग तेज हो गई। नतीजतन ओबामा को यह फैसला लेना पड़ा जो संभवत वे नहीं लेना चाहते थे। इस बीच आईएस के खिलाफ आगे की रणनीति तय करने के लिए पेरिस में एक अहम बैठक हुई जिसमें 10 अरब सुन्नी देशों सहित 30 से अधिक देश शामिल हुए। यह भी विडम्बना ही है कि पिछले तीन वर्षों से अमेरिका सीरिया राष्ट्रपति बशर अल असद को हटाने की मुहिम में जुटे लड़ाकों की मदद करता रहा है जबकि आईएस पर कार्रवाई का लाभ अल असद को भी मिलेगा। अमेरिका के लिए तो इधर पुंआ है तो उधर खाई। देखें, आगे क्या स्थिति बनती है?

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