Thursday 25 September 2014

इसरो की ऐतिहासिक सफलता है मिशन मंगल

बुधवार 24 सितम्बर की सुबह जब देश नींद की खुमारी से जाग रहा था तब भारत मंगल की दहलीज तक पहुंच चुका था। यह हर्ष और गौरव की बात है कि भारत दुनिया का पहला देश है जो अपने पहले ही पयास में ऐसा करने में सफल रहा। मंगल तक पहुंचने वाले अमेरिका, रूस और यूरोप कई कोशिशों के बाद ही मंगल की कक्षा का स्पर्श कर पाए थे। तीन साल पहले चीन भी ऐसी कोशिश में हार चुका है, इसलिए इस सफलता तक पहुंचने वाले हम पहले एशियाई देश हैं। पृथ्वी से मंगल की औसत दूरी करीब 22 करोड 50 लाख किलोमीटर है। इस दूरी को मंगलयान ने करीब 80 हजार किलोमीटर पति घंटे की रफ्तार से तय किया है। मंगलयान को पिछले साल 5 नवम्बर को 2 बजकर 36 मिनट पर इसरो द्वारा श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से रवाना किया गया था। इसे पोलर सैटेलाइट लांच व्हीकल (पीएसएलवी) सी-25 की मदद से छोड़ा गया। इस पर 450 करोड़ रुपए की लागत आई है। यान का वजन 1350 किलो है। मंगलयान को  छोड़े जाने के बाद से इसकी यात्रा में सात करेक्शन किए गए ताकि यह मंगल की दिशा में अपनी यात्रा जारी रख सके। इस अभियान के पीछे भारत का मकमसद है कि इस मिशन के तहत स्पेस साइंस के मामले में अपना रुतबा कायम करना। हकीकत यही है कि अगर भारत इस मुहिम में कामयाब होता है तो उसे स्पेस साइंस के मामले में दुनिया में नया मुकाम हासिल हो जाएगा। मंगलयान के जरिए भारत मंगल ग्रह पर जीवन के सूत्र तलाशने के साथ ही वहां के पर्यावरण की जांच करना चाहता है। वह यह भी पता लगाना चाहता है कि इस लाल ग्रह पर मीथेन गैस मौजूद है या नहीं? मीथेन गैस की मौजूदगी जैविक गतिविधियों का संकेत देती है। इसके लिए मंगलयान को करीब 15 किलो वजन के कई अत्याधुनिक उपकरणों से लैस किया गया है। इसमें कई पवारफुल कैमरे भी शामिल हैं। मीथेन के अलावा और खनिजों के बारे में भी पता चल सकेगा। इससे उन कारणों का पता चल सकेगा कि जिनके चलते कभी जीवन के लिए अनुकूल यह ग्रह सूखे का शिकार बन गया। अगर हमारी पृथ्वी पर कभी ऐसा जीवन-चरण का खतरा आया तो क्या मंगल हमारी शरणस्थली बन सकता है। इंसान के अस्तित्व से सीधे जुड़े ऐसे गंभीर सवालों के जवाब मंगल ग्रह से जुड़े हैं। एक दिलचस्प तथ्य यह है कि पिछले दिनों अंतरिक्ष अभियान पर हालीवुड में `ग्रेविटी' नामक एक फिल्म बनी थी जिसका बजट हमारे इस मंगल अभियान से दोगुना अधिक था। जो काम 4026 करोड़ रुपए लगाकर अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने किया वह हमने सिर्फ 450 करोड़ रुपए में कर दिखाया। गेविटी फिल्म की लागत भी 600 करोड़ थी। सस्ती लागत लेकिन विश्वसनीय गुणवत्ता वाला हमारा अंतरिक्ष उद्योग दुनिया के गरीब और विकासशील देशों के सपनों को साकार करने का साधन बनने की क्षमता रखता है। इस सफल अभियान का आर्थिक लाभ विदेशी सैटेलाइट लांच करने में मिलेगा। जाहिर है कि स्पेस बिजनेस के मामले में भी भारत कई छलांग लगा सकता है। वैसे अब भी भारत को विदेशी सैटेलाइट छोड़ने के, कई आर्डर मिल चुके हैं। इस अत्यंत महत्वपूर्ण सफलता पर इसरो व तमाम भारतीय वैज्ञानिकों को ढेर सारी बधाई। भारत के स्वर्णमय इतिहास में एक और उपलब्धि जुड़ गई है।

No comments:

Post a Comment