Friday, 5 September 2014

भारत-जापान की दोस्ती को नया रंग देगी मोदी की यात्रा

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी सरकार के सौ दिन पूरे होने से ऐन पहले जापानी प्रधानमंत्री शिंजो अबे के साथ मिलकर द्विपक्षीय रिश्तों के एक अध्याय का आगाज किया है। यूं तो जापन से हमारी दोस्ती बहुत पुरानी रही है पर मोदी ने तमाम राजनयिक बाधाओं से आगे बढ़कर इसमें विश्वास और स्नेह की गर्माहट पैदा की है। यहां यह भी कहना वाजिब होगा कि ठीक वैसी ही गर्मजोशी जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे की तरफ से भी देखने को मिली। भारत-जापान की दोस्ती का असर न केवल एशिया पर बल्कि वैश्विक राजनीति पर भी पड़ना तय है। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते मोदी ने जापान की यात्राएं की थीं और उसी दौरान दोनों नेताओं के बीच बेहतर तालमेल बन गया था, जिसकी परिणति दोनों देशों के बीच हुए महत्वपूर्ण समझौतों के रूप में देखी जा सकती है। जापान की सांस्कृतिक नगरी क्योटो को काशी से जोड़कर मोदी ने दोनों देशों की जनता को यह संदेश देने का प्रयास किया कि हमारे आपसी संबंध कूटनीति और कारोबार से ज्यादा एक साझा संस्कृति की बुनियाद पर टिके हैं। जापान यात्रा में नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री से अधिक ऐसे राजदूत की भूमिका में दिखे जिन्होंने दो प्राचीन और असरदार मुल्कों को अपने रिश्तों की गहराई और ताकत का अहसास कराया। दुनिया मान रही है कि इक्कीसवीं सदी एशिया की होगी लेकिन इस मान्यता में चीन का भय भी छिपा हुआ है। शक्तिशाली होता जा रहा चीन जिस प्रकार अपने आस-पड़ोस को ही खूंखार नजरों से घूरने लगा है उसमें इस भय का पनपना स्वाभाविक है। प्रधानमंत्री मोदी ने टोक्यो में जापान के साथ मित्रता की नई आधारशिला रखते हुए जिस तरह चीन को भी यह संदेश दिया कि वह अपनी विस्तारवादी नीति का परित्याग करे उसका महत्व इसलिए और बढ़ जाता है क्योंकि कुछ ही दिनों में चीनी राष्ट्रपति भारत की यात्रा पर आने वाले हैं। चीन को संदेश देकर नरेन्द्र मोदी ने यह स्पष्ट किया कि उसके मुकाबले भारत और जापान के संबंध कहीं अधिक मजबूत हैं। इस आधार को बल प्रदान करने का काम किया दोनों देशों के बीच हुए विभिन्न समझौतों ने। जापानी प्रधानमंत्री ने अगले पांच वर्षों में भारत में दो लाख 10 हजार करोड़ रुपए के निवेश का वादा कर नई दिल्ली के साथ बदलते रिश्ते के महत्व को रेखांकित किया है। इसके तहत आधारभूत संरचना, मैन्युफैक्चरिंग, स्मार्ट सिटी, स्वच्छ ऊर्जा और गंगा तथा अन्य नदियों की साफ-सफाई से जुड़ी परियोजनाओं में निवेश होना है।  प्रधानमंत्री बनने के बाद से मोदी इन मुद्दों खासतौर पर मैन्युफैक्चरिंग पर जोर दे रहे हैं, क्योंकि इसमें निवेश का मतलब है नए रोजगार पैदा होना। हालांकि दोनों देशों के बीच परमाणु सहयोग बढ़ाने पर सहमति हुई है, लेकिन अमेरिका की तरह का असैन्य समझौता नहीं हो सका है। एटॉनमिक सहयोग पर भले ही इस बार बात नहीं बन पाई हो लेकिन जापान ने अपने अत्याधुनिक सुरक्षा उपकरणों का मुंह हमारी ओर खोल दिया है। इसका तत्काल फायदा हमें हिन्द महासागर और बंगाल की खाड़ी में मिलना है। अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर जिस प्रकार चीन की नजरें गड़ी हैं वह भारी चिन्ता का सबब है। मोदी इसी महीने अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा से मिलने वाले हैं। मोदी की जापान यात्रा के बाद अब भारत, जापान और अमेरिका का ताकतवर त्रिकोण बनने का रास्ता साफ हो गया है। मोदी का बुलेट ट्रेन का सपना अब जापान साकार करेगा जिसमें वह पैसे और तकनीक की भरपूर मदद देने जा रहा है। गंगा के उद्धार में भी जापान का शामिल होना, इस अभियान की सफलता का एक शुभ संकेत माना जा सकता है। अंतरिक्ष और रक्षा क्षेत्र में काम कर रही हमारी छह कम्पनियों से प्रतिबंध हटाकर जापान ने उनके आधुनिकीकरण का रास्ता साफ कर दिया है। जापान के औद्योगिक क्षेत्र के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय में विशेष प्रकोष्ठ बनाने की घोषणा कर मोदी ने जता दिया है कि वह इस रिश्ते को कितनी गंभीरता से लेते हैं। चीनी राष्ट्रपति के भारत आगमन के बाद मोदी अमेरिका की यात्रा के लिए रवाना होंगे और इस यात्रा से दोनों देशों को तमाम उम्मीदें हैं। यदि वह पूरी होती हैं तो सितम्बर माह विदेश नीति के मोर्चे पर एक मील का पत्थर के रूप में जाना जा सकता है। भारत-जापान के रिश्ते दुनिया के शक्ति संतुलन में निश्चित रूप से एक नया आयाम गढ़ने में सफल होंगे, इसमें कोई संदेह नहीं दिखता।

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