Monday, 31 August 2015

Significance of the capture of Qasaab-III

Despite the cancellation of NSA level talks Pakistan is unwilling to mend its mischievous behaviour.  Neither its attitude has changed nor its actions.  This has resulted in successful live capture of a terrorist who came across the border by Indian security forces within a month. While Indian Army enjoys high morale on capturing this terrorist on Thursday, Pakistan has been exposed again on international level. Earlier this month, the villages had nabbed a Pakistani terrorist, Naved. It was nice that the terrorist nabbed by security forces in Baramulla second time was not exhibited as earlier in enthusiasm, thus giving time to Pakistan to destroy all the proofs related to him. It is well known that Pakistan avoids treating the captured terrorists as its citizens. We feel India has undergone some changes in its policy. It appears that live capturing of a terrorist, is a part of the new strategy of Indian Security Forces. India intends to expose Pakistan through a live terrorist. That is why security forces have recently insisted on capturing of terrorists instead of killing them. Security experts also agree with this strategy. One expert says Pakistan is constantly being exposed with live capture of terrorists. However Pakistan would ignore the facts again. The world has to understand why Pakistan avoids the dialogue with India? Pakistan is supporting with its total machinery in conspiracy of spreading terrorism in India. Live captured Naved and Sajjad itself are solid proof against Pakistan, yet their interrogation can reveal the conspiracy framed by Lashkar-e-Toiba, Pak Army and ISI against India. The major fact behind Pakistan’s moving backing out from NSA level talks is that India could have submitted the solid proof based on the information collected form Naved.  Stating Kashmir as important issue in relations with India, Pakistan has always intended to take Kashmir issue on international forums, but live captured terrorists have strengthened India’s stand. We can’t understand why doesn’t India insist talking about Pakistan’s claim over Gilgit-Baltistan area of Kashmir? Why doesn’t India raise the issue of the freedom of Baluchistan?  Baluchistan got independence on 11th August, 1947 three days before the independence of Pakistan. Despite being independent, Pakistan is forcibly occupying it, murdering its leaders. Bugati was murdered by Musharraf and the case is still going on in Pakistan.  India has till now harmed itself by adopting defensive stand regarding Kashmir on World forums.  India should also raise the fact on international levels that if Pakistan treats Occupied Kashmir as disputed territory then in which capacity it has given out thousands of kilometres area to China? Now 50000 Chinese soldiers are there to build roads and infrastructure in PoK. Why doesn’t India raise such issue that put Pakistan in a tight spot? India has got a good chance not only to expose this neighbouring country but also to force it to adopt a defensive approach.

Anil Narendra

 

Sunday, 30 August 2015

बिहार चुनाव में भाजपा की बढ़ती चुनौतियां

बिहार विधानसभा चुनाव सियासी तौर पर उलझा हुआ है। जितने दल उतने ही डर व आशंकाएं। बिहार में मुख्य रूप से मुकाबला जद (यू)-राजद व कांग्रेस गठबंधन और एनडीए गठबंधन में होने की संभावना है। बीते आठ महीने से तैयार धार्मिक जनगणना के आंकड़ों को बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जारी करने के पीछे यही संदेश गया कि भाजपा की अगुवाई वाली सरकार इस मुद्दे पर चुनाव में सियासी लाभ उठाने का प्रयास करेगी। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या वास्तव में भाजपा को इसका लाभ मिलेगा? जानकारों का मानना है कि बिहार के आंकड़ों में मुसलमानों की तादाद में बड़ी वृद्धि जैसे विस्फोटक संकेत हैं। लेकिन यह मुद्दा ध्रुवीकरण में मदद कर सकता है। एमआईएम पार्टी के ओवैसी के बिहार में चुनाव लड़ने की घोषणा के साथ वहां ध्रुवीकरण तेज हो गया है। भाजपा की नजर राज्य के लगभग 30 फीसदी वोटरों पर है। भाजपा भले ही प्रधानमंत्री की अगुवाई में विकास के एजेंडे पर चुनाव लड़ने का दावा करे, लेकिन पार्टी को पता है कि नीतीश कुमार भी गवर्नेंस के मुद्दे पर मजबूत हैं। बिहार में ध्रुवीकरण आसान नहीं होगा। राज्य में हाल में धर्म से ज्यादा जातीय स्तर पर लामबंदी दिखी। भाजपा के लिए कुछ चुनौतियां भी पैदा हो गई हैं। पूर्व सैनिकों का वन रैंक वन पेंशन का मुद्दा अगर जल्द न सुलझाया गया तो भाजपा को इसका खामियाजा उठाना पड़ सकता है। बिहार में भी सेवानिवृत्त सैनिकों की संख्या कम नहीं है और इनके लिए जाति से ज्यादा महत्वपूर्ण पेंशन का मुद्दा है। गुजरात में पटेल समुदाय के आरक्षण की मांग और इसके कारण भड़की हिंसा की घटनाओं ने गुजरात के साथ-साथ बिहार को लेकर भी भाजपा की चिंता बढ़ा दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य के लोगों से शांति की अपील के अलावा मुख्यमंत्री और राज्य के प्रमुख नेताओं से चर्चा की है। भाजपा नेतृत्व मान रहा है कि इस पर जल्दी काबू नहीं पाया गया तो हालात को संभालना मुश्किल हो जाएगा। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हार्दिक पटेल का समर्थन कर भाजपा की परेशानी और बढ़ा दी है। बिहार की राजनीति पिछड़े वर्ग पर केंद्रित है इसलिए भी उस पर इस मुद्दे का असर पड़ सकता है। भाजपा खुद भी मोदी को पिछड़ा बताकर बिहार में राजनीति कर रही है। ऐसे में अगर गुजरात के इस युवा पटेल नेता का नीतीश को समर्थन मिलता है तो वह भाजपा के चुनाव अभियान के लिए चुनौती हो सकती है। भाजपा की नजर अरविंद केजरीवाल पर भी है जो बिहार में नीतीश के समर्थन की घोषणा कर चुके हैं। हार्दिक पटेल के आम आदमी पार्टी से भी संबंध रहे हैं। ऐसे में इस आंदोलन के राजनीतिक दिशा में मुड़ने से इंकार नहीं किया जा सकता है। बिहार में इस समय कांटे की टक्कर की स्थिति है। देखें, ऊंट किस करवट बैठता है?

-अनिल नरेन्द्र

कसाब-III की गिरफ्तारी का महत्व

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर की बैठक रद्द होने के बाद भी पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। न तो उसके रवैये में खास अंतर आया है और न ही उसकी हरकतों में। इसी का नतीजा है कि महीनेभर के भीतर ही भारतीय सुरक्षा बलों को सीमा पार से आए एक और आतंकी को जिंदा पकड़ने में कामयाबी मिली है। जहां इस आतंकी के गुरुवार को पकड़े जाने से भारतीय सेना के हौंसले बुलंद हैं वहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फिर पाकिस्तान बेनकाब हुआ है। इससे पहले इसी महीने में एक अन्य पाकिस्तानी आतंकी को ग्रामीणों ने धर-दबोचा था। एक तरह से यह अच्छा हुआ कि बारामूला में सुरक्षा बलों के हाथ लगे आतंकी की वैसी नुमाइश नहीं की गई जैसी पहले जाने-अनजाने में, उत्साह में आकर होने दी गई थी। फिलहाल इस दूसरे आतंकी के पते-ठिकाने के बारे में विस्तार से विवरण नहीं दिया गया है। यह इस दृष्टि से उचित ही है, क्योंकि पाकिस्तान तत्काल प्रभाव से उसे अपना नागरिक मानने से तो इंकार करता ही, साथ ही साथ उससे संबंधित सबूतों को भी नष्ट करने में जुट जाता। जब तक वह उधमपुर में पकड़े गए आतंकी के घर वालों को छिपाने का काम करता तब तक मीडिया की पहुंच उन तक हो चुकी थी। यह तय है कि पाकिस्तान अपने चिर-परिचित अंदाज में इस आतंकी के बारे में भी यही कहेगा कि यह उसका नागरिक नहीं है। लगता है कि भारत की नीति में थोड़ा परिवर्तन किया गया है। दरअसल जिंदा आतंकी को पकड़ना भारत सरकार की नई रणनीति का हिस्सा लगता है। भारत की मंशा जिंदा आतंकियों के जरिये पाकिस्तान को बेनकाब करना है। यही वजह है कि हाल के दिनों में सुरक्षा एजेंसियों की कोशिश आतंकियों को मारने की बजाय जिंदा पकड़ने की रही है। सुरक्षा विशेषज्ञ भी इस रणनीति से सहमत हैं। एक विशेषज्ञ का कहना है कि जिंदा आतंकी के पकड़े जाने से पाकिस्तान लगातार बेनकाब हो रहा है। हालांकि पाकिस्तान एक बार फिर तथ्यों को नकारेगा। लेकिन दुनिया को समझना होगा कि पाकिस्तान आखिर क्यों बातचीत से बचकर भागता है? पाकिस्तान लगातार भारत में आतंक फैलाने की साजिशों में अपने पूरे तंत्र का सहयोग देता रहा है। जिंदा पकड़े गए नावेद और सज्जाद पाकिस्तान के खिलाफ ठोस सबूत तो हैं ही, उनसे पूछताछ में भारत के खिलाफ लश्कर--तैयबा, पाक सेना और आईएसआई द्वारा रची जा रही साजिशों के बारे में भी पता चल सकता है। सच तो यह है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक से पाकिस्तान के पीछे हटने की एक बड़ी वजह यह भी थी कि भारत उन्हें नावेद से मिली जानकारी के आधार पर ठोस सबूत भी पेश कर सकता था। भारत के साथ रिश्तों में कश्मीर को अहम मुद्दा बताने वाले पाकिस्तान की हमेशा से मंशा तो यही रही है कि वह किसी भी तरह कश्मीर मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय मंचों तक ले जा सके, लेकिन जिंदा पकड़े गए आतंकियों से तो भारत का पक्ष ही मजबूत होता है। हमें समझ में यह नहीं आता कि भारत कश्मीर के गिलगित बालटिस्तान क्षेत्र में भी अपने दावे पर जोर क्यों नहीं देता? क्यों नहीं भारत बलूचिस्तान की आजादी का मुद्दा उठाता? बलूचिस्तान 11 अगस्त 1947 को आजाद हुआ था यानि कि भारत और पाकिस्तान की आजादी से तीन दिन पहले। आजाद होने के बावजूद पाकिस्तान ने उस पर जबरन कब्जा कर रखा है, उनके नेताओं की हत्या कर रहा है। बुगती का कत्ल मुशर्रफ ने करवाया और आज भी पाकिस्तान में यह केस चल रहा है। अभी तक भारत ने विश्व मंचों पर कश्मीर को लेकर रक्षात्मक रवैया अपना कर अपना ही नुकसान किया है। अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर यह भी भारत को उठाना चाहिए कि जब पाकिस्तान अपने हिस्से को विवादित मानता है तो किस हैसियत से उसने हजारों वर्ग किलोमीटर चीन को दे दिया? आज वहां 50,000 चीनी सैनिक बैठे हैं जो सड़कें व इंफ्रास्ट्रक्चर बना रहे हैं। आखिर भारत क्यों नहीं इस मुद्दे को उठाता जिससे पाकिस्तान को जवाब देना भारी पड़े? भारत के पास यह अच्छा मौका है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस पड़ोसी मुल्क को न केवल बेनकाब बल्कि सुरक्षात्मक रवैया अख्तियार करने पर मजबूर हो।

Saturday, 29 August 2015

तिहाड़ में गैंगों के बीच वर्चस्व की बढ़ती लड़ाई

रोहिणी कोर्ट में पेशी के बाद तिहाड़ जेल ले जाते समय पुलिस की वैन में दो गुटों में गैंगवार की चौंका देने वाली घटना सामने आई है। पुलिस वैन में नीरज बवानिया व नीटू दाबोदिया गिरोह के  बीच हुई हिंसक झड़प में दो कैदियों की मौत हो गई जबकि पांच कैदी गंभीर रूप से घायल हो गए। जिन दो कैदियों की मौत हुई है, उनकी पहचान पारस व प्रदीप के रूप में हुई है और दोनों मृतक कैदी नीटू दाबोदिया गिरोह के सदस्य बताए जाते हैं। दुखद पहलू यह है कि नीटू दाबोदिया और नीरज बवानिया गिरोह की रंजिश के बारे में पुलिस को जानकारी थी। इसके बावजूद पुलिस ने दोनों गिरोहों के बदमाशों को एक ही वैन में ले जाने की लापरवाही दिखाई। इतना ही नहीं, किसी भी कैदी के हाथ में हथकड़ी नहीं थी। इसी का फायदा उठाकर नीरज और उसके साथियों ने दोहरे हत्याकांड को अंजाम दिया। इस पूरी वारदात के दौरान वैन में लगभग इंचार्ज एवं चालक सहित 12 गार्ड थे लेकिन किसी ने बीच-बचाव नहीं किया। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि दोनों गिरोह एक-दूसरे को मारने से कभी नहीं चूकते। ऐसे में एक ही वैन के अंदर दोनों गिरोह को लाना इस वारदात का कारण बना। रोहिणी अदालत से वैन शाम 4.30 बजे तिहाड़ जेल जाने के लिए निकली थी। वैन के अगले हिस्से में चालक, इंचार्ज और एक गार्ड बैठा था। इसके पीछे बने केबिन में नौ विचाराधीन कैदी थे। सबसे पहले केबिन में नौ गार्ड मौजूद थे। वैन के मधुबन चौक पहुंचते ही दोनों गिरोह आपस में भिड़ गए। नीरज और उसके समर्थकों ने पारस व प्रदीप को जमकर पीटा। फिर उन्हें नीचे गिराकर सिर पर जमकर लात-घूसों से वार किए। पूरी वारदात के दौरान किसी गार्ड ने उनकी मदद नहीं की और न ही बीच-बचाव की कोशिश की। उन्होंने घटना की जानकारी पुलिस को देकर वैन भगवान महावीर अस्पताल की तरफ मोड़ ली। लेकिन वहां पहुंचने तक पारस और प्रदीप की मौत हो चुकी थी। कटु सत्य तो यह है कि तिहाड़ के अंदर अपराधी अपने किए की सजा काटने की बजाय बड़ी आसानी से गैंग चला रहे हैं। मौका मिलते ही अन्य गैंगों के सदस्यों पर हमला कर उसे मौत के घाट उतार देते हैं। इनका खौफ तिहाड़ जेल के अंदर व्याप्त है। यही कारण है कि जेल प्रशासन भी इस पर लगाम लगाने में अभी तक नाकाम रहा है। जेल सूत्रों ने बताया कि तिहाड़ में मुख्य रूप से 22 गैंग सक्रिय हैं जो जेल के अंदर से अपराध को अंजाम दे रहे हैं। इनमें लोगों से फिरौती की मांग और अपहरण की घटनाएं शामिल हैं। कुछ दिन पहले ही जेल नम्बर आठ में एक कैदी दीपक की आंख फोड़कर बड़ी निर्ममता से हत्या की गई थी। कुछ माह पहले अमित भूरा ने जेल में रहते हुए ही राजौरी गार्डन के एक व्यवसायी से फिरौती की मांग की थी। जेल के अंदर ड्रग्स व मोबाइल आसानी से पहुंच जाते हैं। पुलिस प्रशासन को तिहाड़ के अंदर चल रही आपराधिक गतिविधियों पर गंभीरता से ध्यान देना होगा, नहीं तो ऐसी वारदातें होती रहेंगी।

-अनिल नरेन्द्र

असल चिंता का विषय होना चाहिए बेकाबू बढ़ती आबादी

जनगणना के धर्म आधारित आंकड़े बताते हैं कि मुसलमानों के अलावा देश में दूसरे सभी धर्मों के लोगों की आबादी की वृद्धि दर देश की औसत वृद्धि दर से कम है। लेकिन सच्चाई यह भी है कि मुस्लिम जनसंख्या की वृद्धि दर भी लगातार घट रही है। जनगणना 2011 के धर्म आधारित आंकड़े पूर्व की यूपीए सरकार के कार्यकाल में ही तैयार हो गए थे, लेकिन तत्कालीन मनमोहन सरकार ने लोकसभा चुनाव को देखते हुए इसे जारी नहीं किया था। सामान्य तौर पर जनगणना के तीन साल के भीतर धर्म आधारित आंकड़े जारी कर दिए जाते हैं। इस तरह मार्च 2014 तक इन आंकड़ों को जारी कर दिया जाना चाहिए था। लेकिन मनमोहन सरकार ने इसके राजनीतिक फालआउट के डर से इन्हें रोके रखा। मनमोहन के बाद केंद्र में आई मोदी सरकार ने भी इसे दबाए रखा। अब बेहद अहम माने जाने वाले बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले इन आंकड़ों को जारी किया गया है। जनगणना के धार्मिक आंकड़ों का राजनीतिक वजहों से रोकने या जारी करने के आरोप अगर सही हैं तो यह हमारी आज की राजनीति पर ही एक टिप्पणी है। यह बताया ही जा रहा है कि पिछली जनगणना के धार्मिक आंकड़ों को 2014 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए मनमोहन सरकार ने रोका तो इन्हें अब जारी करने के पीछे बिहार के चुनाव को ध्रुवीकृत करने की मंशा है पर राजनीति से परे हटकर देखें तो जनगणना के ये आंकड़े कुछ दिलचस्प और कुछ चिंतनीय निष्कर्ष पेश करते हैं। आंकड़ों के मुताबिक 2001 से 2011 के बीच मुस्लिम आबादी 0.8 फीसदी बढ़ी जबकि हिन्दू जनसंख्या 0.7 फीसदी कम हुई है। हालांकि 2001 की तुलना में 2011 में मुस्लिमों में जनसंख्या वृद्धि की दर हिन्दुओं में जनसंख्या वृद्धि की दर से कम ही हुई है। इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि धर्म आधारित आबादी के आंकड़ों का राजनीतिक इस्तेमाल किया जा सकता है। देश में दोनों प्रमुख मजहबों की ओर से ऐसी शुभेच्छु आवाजें उठती रही हैं जो अपने-अपने धर्म पर खतरा बताकर लोगों से आबादी बढ़ाने का आग्रह करती रही हैं। चूंकि देश का बंटवारा एक बार धर्म के आधार पर हो चुका है, लिहाजा कई बार थोड़े-बहुत लोग ऐसी आवाजों पर कान धरते भी नजर आते हैं। अलबत्ता असम में छह की जगह नौ जिलों का मुस्लिम बहुल हो जाना और पश्चिम बंगाल में सीमांत के जिलों में मुस्लिम आबादी का बढ़ना चिंता का विषय जरूर है। इससे उस तर्प को ही बल मिलता है कि बांग्लादेश से असम और पश्चिम बंगाल में सीमांत के जिलों में अवैध घुसपैठ दबाकर हो रही है। धर्म के आधार पर आंकड़ों को जारी करने की मंशा, खासकर उसकी टाइमिंग पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। लेकिन हैरत की बात यह है कि ऐसी शिकायत करने वालों में वे लोग भी शामिल हैं जो जनगणना के जाति आधारित आंकड़ों को सार्वजनिक करने के लिए आसमान सिर पर उठाए हुए हैं। यह यकीनन दोहरापन है। एक तरफ जाति आधारित जनगणना और उसके आंकड़ों को जाहिर करने की मांग और दूसरी तरफ धर्म आधारित जनगणना और उसके खुलासे का विरोध करना, यकीनन सियासी स्वार्थ से ग्रस्त आचरण है। यदि सिरे से धर्म और जाति आधारित जनगणना कराने के विरोध में स्वर उठे तो बहुत संभव है कि उन्हें व्यापक समर्थन मिल सकता है। बहरहाल बड़ा सवाल यह नहीं कि बढ़ती आबादी में किस धर्म का भारांश बढ़ रहा है बल्कि यह है कि क्या देश इस तरह बेकाबू होती जनसंख्या का भार झेलने में सक्षम है भी? 2001-2011 के बीच देश की आबादी जिस तरह से लगभग 18 फीसदी बढ़ी है, वह बहुत चिंताजनक और चुनौतीपूर्ण है। यदि आबादी की रफ्तार इसी तरह बढ़ती रही तो देश के तमाम संसाधन इसकी जरूरतों के समक्ष ऊंट के मुंह में जीरा साबित होंगे। हिन्दू जनसंख्या के 80 फीसदी से कम होने पर चिंता करने वालों के लिए उससे भी अधिक चिंतनीय तथ्य यह होना चाहिए कि विगत एक दशक में हिन्दुओं को छोड़कर सभी समुदायों में लिंगानुपात सुधरा है। चिंता का सवाल तो यह भी होना चाहिए कि मुस्लिमों की तुलना देश के बहुसंख्यक हिन्दुओं में बाल मृत्यु दर अधिक और औसत उम्र कम क्यों है?

Friday, 28 August 2015

वार्ता रद्द होने पर पाकिस्तान में मिलाजुला असर

भारत-पाक के बीच एनएसए स्तरीय बातचीत टूटने पर सीमा पार में मिक्सड रिएक्शन हुआ है यानि कि खुशी भी है और आलोचना भी हो रही है। पहले बात करते हैं खुशी की। बातचीत टूटने पर सीमा पार जश्न मना। सबसे ज्यादा खुश पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई, पाकिस्तान रेंजर्स और आतंकी संगठन हैं। भारतीय खुफिया एजेंसियों (आईबी, मिलिट्री इंटेलीजेंस और रॉ) ने इस संबंध में सरकार को विस्तृत रिपोर्ट दी है। रिपोर्ट के मुताबिक एनएसए स्तर की बातचीत रद्द होने की घोषणा के तुरन्त बाद पाकिस्तान सीमा पर बड़ा जमावड़ा देखा गया। आतिशबाजी की गई, मिठाइयां भी बंटी। पाक रेंजर्स के डीजी रहे मौजूदा आईएसआई प्रमुख रिजवान अख्तर का संदेश दो मेजरों ने माइक पर पढ़कर सुनाया। इस दौरान लश्कर--तैयबा का कमांडर अबू राशिद खान और उसकी टीम भी मौजूद थी। संदेश थाöहमने दोनों मुल्कों के बीच बातचीत रुकवा दी है। अब आप ज्यादा से ज्यादा फायरिंग करो, घुसपैठ कराओ। खुफिया एजेंसियों ने इस घटनाक्रम का वीडियो फुटेज गृह मंत्रालय को दिया है। आने वाले तीन महीनों में बीएसएफ पोस्ट पर पाक रेंजर्स सघन गोलीबारी करेंगे ताकि आतंकी घुसपैठ कर सकें। अब बात करते हैं आलोचना की। बातचीत टूटने पर नवाज शरीफ सरकार को पाकिस्तान के भीतर भी तीखी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। पाक के अधिकांश अखबारों ने अपने सम्पादकीय व सम्पादकीय पेज पर छपे विशेषज्ञों की राय में शरीफ सरकार को आड़े हाथों लिया है। सबसे अधिक आलोचना ऊफा समझौते में कश्मीर का उल्लेख न करने और बाद में आईएसआई व सेना के दबाव में इस मुद्दे पर अड़ने को लेकर हो रही है। पाक के प्रतिष्ठित अखबार द डॉन के सम्पादकीय पेज पर छपे लेख के शीर्षक में ही बातचीत रद्द करने के लिए सीधे तौर पर नवाज शरीफ को जिम्मेदार ठहराया गया है। इसी अखबार में सिरिल अलमेडा ने लिखा है कि इस वक्त पर कश्मीर मुद्दे को उठाने की कोई तुक नहीं थी। उनके अनुसार ऊफा में भारत की शर्त के आगे झुकते हुए शरीफ कश्मीर को छोड़कर आतंकवाद पर बात करने के लिए राजी हो गए थे। लेकिन वापस लौटने के बाद सेना व आईएसआई का दबाव झेल नहीं पाए। सिरिल ने सीधे सेना और आईएसआई का नाम नहीं लिखा है, उसकी जगह लड़कों शब्द का प्रयोग किया है, लेकिन इशारा साफ है। द न्यूज अखबार ने ऊफा में अहम मुद्दों पर पारदर्शी बातचीत न करने और उसे आम जनता को सही तरीके से नहीं समझाने के लिए अपनी सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। अखबार के अनुसार इससे स्थिति और उलझ गई है जबकि पाकिस्तान आब्जर्वर में छपे लेख में एम. जियायुद्दीन ने हुर्रियत नेताओं से मुलाकात के लिए सरताज अजीज के अड़ने की आलोचना की है। उन्होंने लिखा है कि हुर्रियत नेताओं से मुलाकात के कारण ही ठीक एक साल पहले भारत सचिव स्तर की बातचीत रद्द कर चुका है। ऐसे में शरीफ सरकार ने कैसे सोच लिया कि इस बार ऐसा करने पर वह  बातचीत के लिए तैयार हो जाएंगे? पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) ने डॉन अखबार से कहा है कि अगर भारत के लिए कश्मीर मुद्दा नहीं है तो उसने वहां सात लाख सैनिक क्यों तैनात किए हुए हैं? बातचीत रद्द होने के कारण उन्होंने कहा कि पूरा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय मानता है कि कश्मीर दो देशों के बीच की समस्या है जिसका समाधान निकलना चाहिए।

पूर्ण राज्य का दर्जा दिलवाने हेतु दिल्ली में जनमत संग्रह की मांग?

दिल्ली में अरविंद केजरीवाल सरकार द्वारा दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलवाने के लिए जनमत संग्रह की मांग उठाने से दिल्ली सरकार, चुनाव आयोग और केंद्र सरकार के बीच एक नया टकराव पैदा हो सकता है। अब तक तो जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी कश्मीर का भविष्य तय करने के नाम पर इस तरह की मांग करते रहे हैं। केजरीवाल सरकार ने दिल्ली की शासन प्रणाली पर जनमत संग्रह की जो मांग की है, वह संवैधानिक नहीं है और संविधान में कहीं नहीं है। संविधान के जानकारों का कहना है कि दिल्ली के बारे में कोई भी फैसला संसद कर सकती है। दुनिया में हर देश की राजधानी केंद्र सरकार के ही आधीन है। दिल्ली देश की राजधानी है। इस नाते इस पर देशभर के लोगों का बराबर का अधिकार है। केंद्रीय शासन से पूरी तरह अलग करने  के फैसले पर तो देशभर में जनमत संग्रह करवाना पड़ेगा। दिल्ली केंद्रशासित प्रदेश होने के कारण दिल्ली के सरकारी कर्मचारी केंद्र सरकार के कर्मचारी होते हैं। उन पर केंद्र सरकार के नियम कानून लागू होते हैं। ऐसे में दिल्ली सरकार की भूमिका सीमित रह जाती है। लेकिन कम अधिकार शिक्षा, स्वास्थ्य, सार्वजनिक परिवहन प्रणाली, समाज कल्याण जैसे कामों में बाधक नहीं है। आप के चुनावी घोषणा पत्र के 70 बिन्दुओं में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलवाने की बात की थी, फिर अलग से जनमत संग्रह कराना तो समय की बर्बादी मानी जाएगी। जनमत संग्रह संविधान में है ही नहीं। एक तो कौन-सी संस्था यह काम करेगी, उसकी विश्वसनीयता चुनाव आयोग जैसी हो ही नहीं सकती है। यह जब तय है कि जनमत संग्रह के बाद भी संसद ही फैसला करेगी तो वह अभी केजरीवाल सभी दलों से बात कर सकते हैं। देश की राजधानी पूरी तरह किसी राज्य सरकार के आधीन करना संभव नहीं दिख रहा होगा तभी तो इस मांग की शुरुआत करने वाली भाजपा और कांग्रेस ने पहले मना कर दिया। सरकार द्वारा जनमत संग्रह कराने की योजना पर चुनाव आयोग भी राजी नहीं है। चुनाव आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सरकार को बता दिया है कि संविधान में जनमत संग्रह का कोई प्रावधान नहीं है। ऐसे में रायशुमारी संभव नहीं है। दिल्ली के पूर्ण राज्य दर्जे को लेकर जनमत संग्रह कराने की आम आदमी पार्टी की मांग को असंवैधानिक करार देते हुए दिल्ली प्रदेश कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता शर्मिष्ठा मुखर्जी ने धमकी दी कि अगर केजरीवाल सरकार इस प्रस्ताव को आगे बढ़ाती है तो पार्टी अदालत की शरण लेगी। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि आप पार्टी जनमत संग्रह की बात कर `विभाजनकारी और अलगाववादी ताकतों' के हाथ मजबूत करेगी। आप का कहना है कि 44वें संविधान संशोधन अधिनियम 1978 के पैरा-दो के मुताबिक जनता को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने और मूल अधिकारों पर जनहित के किसी विषय पर जनमत संग्रह किया जा सकता है।

-अनिल नरेन्द्र

Thursday, 27 August 2015

Pak broke negotiations by inviting Hurriyat : US

While allegations and counter allegations are going on for cancellation of Indo-Pak NSA level dialogue but we believe this is a win-win for India.  It had not occurred earlier to Pakistani the Indo-Pak negotiations are broken due to these very   separatists of J&K.  India has given a signal to Pakistan and the world that India will decide the direction and situation of the negotiations.  We feel it has also been decided for future that a handful Pak-pro separatists will not be deciding the Kashmir issue and if felt necessary, Government of India can express it by taking strict action.  US experts have also held Pakistan responsible for cancellation of dialogue.  South Asia Associated Kugelman of a prestigious institute like Woodrow Wilson International Centre said that Pakistan blasted off the bridge of dialogues by inviting Hurriyat.  Former Pak Ambassador to US Hakkani said that Pakistan’s conduct was according to its old efforts of trying to attract international attention towards Kashmir.  New York Times says that Pakistan cancelled dialogue with India citing of ban on the Hurriyat Leaders.  The news reports suggest that it was the result of dispute between two countries over Pak’s plan to meet Kashmiri separatists in India.  Both paid for non-consent as both are blaming each other for failure of dialogue.  LA Times reacted that influential army of Pakistan gave signs of sidelining the Prime Minister Nawaz Shareef.  It’s a big win of Modi government that separatists in J&K themselves have become the target of those parties who had given a warm approach for them.  BJP and Central Government were encircled by the questions arising over some issues soon after the formation of government with PDP in J&K especially on the issue of separatism.  Though the dialogue was not less opposed within BJP itself, especially after the terrorist Naved was captured.  Some leaders were openly demanding to cancel the dialogue.  Whether the opposition may allege the government failure after the cancellation of the dialogue but in our opinion the Government of India succeeded in its strategy.  Pakistan itself fell prey in the game of the government and had to face checkmate.  Modi government killed the snake without breaking the stick.  The credit goes to Prime Minister Narendra Modi, External Affairs Minister Sushma Swaraj and NSA to India Ajit Doval.

Anil Narendra

 

तीन तलाक के सख्त खिलाफ मुस्लिम महिलाएं

नारीवादी क्रांति ने भारत सहित अन्य मुस्लिम देशों में अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। अब महिलाओं की शादी के लिए जोर-जबरदस्ती नहीं की जा सकती क्योंकि वे अपने मनपसंद जीवन साथी के साथ बसने से पहले नौकरी या काम-धंधा करने को तवज्जो देने लगी हैं। आज मुस्लिम महिला द्वारा अविवाहित या एकल महिला (सिंगल वूमैन) के रूप में जीवन बिताना कुछ देशों में स्वीकार्य बन गया है। बेशक इस बदलाव की रफ्तार धीमी है पर करियर को प्राथमिकता देने वाली उन महिलाओं में यह सिलसिला शुरू हो चुका है। आज ईरान के शहरों में अविवाहित या एकल महिला का होना असाधारण बात नहीं है। इनकी वास्तविक संख्या के आंकड़े तो उपलब्ध नहीं हैं पर विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों, रियल एस्टेट एजेंटों, परिवारों एवं युवा महिलाओं का मानना है कि पिछले कुछ सालों में बड़ी संख्या में लड़कियों के विश्वविद्यालयों में पढ़ने और तलाक के मामलों में वृद्धि के चलते यह नया सिलसिला जोर पकड़ रहा है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2000 में ईरान में 50,000 तलाक हुए जबकि वर्ष 2010 में इसमें तीन गुना से भी ज्यादा की वृद्धि हुई और यह आंकड़ा 1,50,000 के पार चला गया। पिछले पांच सालों में तो वृद्धि का अंदाजा नहीं। इधर हमारे देश में कई वर्षों से मुस्लिम समाज में तीन तलाक पर बहस चल रही है। लेकिन हाल में मुस्लिम महिला आंदोलन (बीएमएमए) की ओर से किए गए सर्वे की मानें तो भले ही मुस्लिम धर्मगुरुओं की ओर से इस पर कोई भी राय हो पर इससे सबसे अधिक प्रभावित होने वाली मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक के बिल्कुल खिलाफ हैं। उनका मानना है कि तीन तलाक और बहुविवाह प्रथा पर कानूनी तौर पर पाबंदी लगनी चाहिए। सर्वेक्षण में 4710 मुस्लिम महिलाएं शामिल हुईं। 10 राज्यों में यह रायशुमारी कराई गई थी। सर्वे में शामिल कई महिलाओं ने बताया कि उनके शौहर ने मौखिक तलाक दिया। कुछ महिलाओं के मुताबिक चिट्ठी या एसएमएस से उन्हें तलाक की सूचना मिली। 78 फीसदी महिलाओं की असहमति के बावजूद पति ने दिया तलाक। 90 फीसदी महिलाओं ने कहा कि तीन तलाक पर रोक लगनी चाहिए। 88 फीसदी महिलाओं की राय कानूनी प्रक्रिया के तहत हो तलाक। 50 फीसदी महिलाएं ही हैं शिक्षित, जबकि राष्ट्रीय औसत 53 फीसदी है। 90 दिनों तक तलाक--अहसान प्रक्रिया हो ताकि समझौते की गुंजाइश रहे। 92 फीसदी ने कहा कि दूसरी पत्नी रखने की इजाजत नहीं होनी चाहिए। 13 फीसदी मुसलमान देश की कुल 1.2 अरब आबादी में हिस्सेदारी करते हैं। इंडोनेशिया के बाद भारत दुनिया का सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाला देश है। महज तीन बार तलाक कहने से तलाक नहीं होना चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

जघन्य अपराध में मृत्युदंड की सजा अमानवीय नहीं

पिछले डेढ़ दशक में जिन चार लोगों को फांसी पर लटकाया गया है, उनमें से तीन आतंकवादी थे। इन मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से साफ है कि आतंकवाद से निपटने के लिए फांसी की सजा जरूरी है। मुंबई बम विस्फोटों के दोषी याकूब मेमन की फांसी की सजा की बहस पर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मौत की सजा अमानवीय या बर्बर नहीं है। जघन्य अपराधों में मृत्युदंड जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन नहीं है। न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर, न्यायमूर्ति आरके अग्रवाल और न्यायमूर्ति एके गोयल की तीन सदस्यीय पीठ ने हत्या के मामले में मौत की सजा के एक दोषी की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। एक लड़के के अपहरण और हत्या के दोषी ने अपनी याचिका में तर्प दिया था कि मौत की सजा सिर्प आतंकवादियों पर ही लागू होती है। इस पर पीठ ने कहा कि हत्या के मामले में मौत की सजा दुर्लभ है लेकिन अगर अदालत ने पाया कि यही सजा हो तो उस पर सवाल खड़ा करना मुश्किल है। फिरौती के लिए अगवा करने के बढ़ते मामलों को रोकने के लिए सख्त सजा देना जरूरी है। फिर चाहे अपहरण पैसे के लालच में साधारण अपराधियों ने या संगठित गतिविधि के तौर पर किया हो या आतंकी संगठनों ने। माननीय पीठ ने आईपीसी की धारा 364ए के तहत मृत्युदंड जायज ठहराते हुए टिप्पणी की। पीठ ने कहाöसंसद ने यह कानून देश के नागरिकों की सुरक्षा के लिए बनाया था। इसे तैयार करते वक्त देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता की सुरक्षा पर चिन्ता जताई गई थी। ऐसे में धारा 364ए के तहत मृत्युदंड की सजा को अपराध की तुलना में ज्यादा कूर करार नहीं दिया जा सकता। इसे असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता। उल्लेखनीय है कि विक्रम सिंह को 2005 में एक छात्र के अपहरण और हत्या के मामले में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर मोहर लगा दी थी। फिरौती के लिए अपहरण में धारा 364 का दोषी ठहराए जाने पर उसने सजा के खिलाफ अपील की थी। याकूब मेमन की फांसी के बाद इन मानवाधिकार संगठनों ने हायतौबा मचा दी थी। इस पर विधि आयोग ने फांसी को बनाए रखने के हक में राय देते हुए कहा था कि फांसी की सजा के बारे में कोई भी फैसला करते समय समाज की सुरक्षा और मानवता की रक्षा की जरूरत ध्यान में रखनी होगी। फांसी की जरूरत पर बल देते हुए सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा था कि यहां सवाल भारतीय दंड संहिता का प्रावधान बनाए रखने का नहीं है बल्कि सवाल यह है कि भय पैदा करने वाले दंड को खत्म करने का क्या प्रभाव होगा? मौजूदा मुश्किल और अशांत माहौल में यह निरोधात्मक (डिटेरेंट) दंड अगर नहीं बनाए रखा तो देश में अराजकता छा जाएगी।

Wednesday, 26 August 2015

जाम से हर साल 600 अरब रुपए का नुकसान होता है

राजधानी की भागदौड़ भरी जिन्दगी सड़कों पर ठहरी-सी नजर आती है। दिल्ली के अधिकतर मार्गों पर वाहन चलाते वक्त तो आपके धैर्य की परीक्षा होती है। जाम के झाम से न केवल लुटियन जोन बल्कि दिल्ली के लगभग सभी इलाकों में घंटों सड़क पर कभी-कभी देर तक धैर्य बनाए रखना पड़ता है और यह स्थिति साल दर साल बढ़ती ही जा रही है जिससे निकट भविष्य में कोई राहत नजर नहीं आती। वर्ष 1982 में एशियाई खेलों के आयोजन के वक्त दिल्ली में दूसरे  फ्लाइओवर का निर्माण हुआ था। उसके बाद जाम से निजात दिलाने के लिए इन फ्लाइओवर बनाने का सिलसिला चल पड़ा। एक के बाद एक फ्लाइओवर बनाए गए। वर्ष 2010 में राष्ट्रमंडल खेलों के आसपास यहां फ्लाइओवरों की संख्या 75 तक पहुंच गई थी। उम्मीद थी कि इससे जाम से कराहती दिल्ली को आराम मिलेगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं। 96 लाख से ज्यादा वाहनों का बोझ सह रही दिल्ली जाम के दल-दल में फंसती जा रही है। वाहनों का यह बोझ साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है जबकि सड़कों का डिजाइन वही सालों पुराना है। सड़कें अपेक्षाकृत कम चौड़ी हैं। हर इलाके में लगने वाले जाम के पीछे वजहें भी अलग-अलग उभरी हैं। धरना-प्रदर्शनों से भी जाम लगने लगे हैं। गत वर्ष दिल्ली में 2409 प्रदर्शन, 361 रैलियां, 4170 धरने व हड़ताल, 342 त्यौहार संबंधी कार्यक्रम हुए। इस कारण भी जाम लगता है। एक डीटीसी बस ब्रेक डाउन होती है तो चार घंटे तक ट्रैफिक प्रभावित होता है। बसें हाइड्रोलिक होती हैं इस कारण ब्रेक डाउन के बाद एक इंच भी नहीं हिलतीं। अगर वह टैफिक लाइट या सड़क के बीचोंबीच खराब हो जाए तो वह वहां घंटों खड़ी रहती हैं और ट्रैफिक की ऐसी की तैसी हो जाती है। अगर इन्द्रदेव जब ज्यादा प्रसन्न हो जाएं तो वाहन चालकों की समस्या बढ़ जाती है। बारिश के मौसम में कुल 152 जगहों पर जलभराव होता है। यातायात पुलिस ने इस बारे में सिविक एजेंसियों को चेताया भी है। फिर जलभराव व तेज बारिश के कारण ट्रैफिक सिग्नल काम नहीं करने से वाहनों की लंबी लाइन सड़कों पर लग जाती है। धैर्य नाम की तो कोई चीज दिल्ली वाहन चालकों को है ही नहीं। पहले निकलने के चक्कर में यह स्थिति और खराब कर देते हैं और इन्हीं कारणों से रोडरेज के मामले भी बढ़ रहे हैं। इन जामों से आर्थिक नुकसान भी बहुत भारी हो रहा है। भारतीय यातायात निगम व आईआईएम की एक रिपोर्ट के मुताबिक महानगरों में प्रतिदिन किसी वाहन को 20 प्रतिशत से ज्यादा ईंधन जाम में फंसने पर खर्च होता है। रिपोर्ट में यह भी अनुमान लगाया गया है कि हर साल जाम की वजह से देश का करीब 600 अरब रुपए का ईंधन बर्बाद होता है। दिल्ली में 96.34 लाख वाहन हैं जबकि चेन्नई में 44.70 लाख, मुंबई में 25.02 लाख और कोलकाता में 4.45 लाख वाहन हैं।

-अनिल नरेन्द्र

हुर्रियत को न्यौता देकर पाक ने तोड़ी वार्ता ः अमेरिका

भारत-पाक एनएसए स्तर की बातचीत रद्द होने को लेकर भले ही आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा हो पर हम समझते हैं कि इसमें भी भारत की जीत हुई है। शायद ऐसा पहले कम हुआ है कि जम्मू-कश्मीर के अलगाववादियों को लेकर भारत-पाक वार्ता टूटी हो। इससे पाकिस्तान और विदेशों तक यह संकेत गया है कि वार्ता की दिशा और दशा भारत तय करेगा। हमें लगता है कि भविष्य के लिए भी यह भी तय हो गया है कि कश्मीर का फैसला मुट्ठीभर पाक परस्त अलगाववादी नहीं करेंगे और जरूरी हुआ तो भारत सरकार सख्त कदम उठाकर इसका इजहार भी कर सकती है। अमेरिकी विशेषज्ञों ने वार्ता रद्द होने का जिम्मा भी पाकिस्तान के सिर डाला है। वुडरो विल्सन इंटरनेशनल सेंटर जैसे प्रतिष्ठित संस्थान के साउथ एशिया एसोसिएटेड कुगेलमैन ने कहाöपाक ने हुर्रियत नेतृत्व को आमंत्रण देकर वार्ता के पुल को ही ध्वस्त कर दिया। अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हक्कानी ने कहाöपाक का आचरण कश्मीर की ओर अंतर्राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित करने की उसकी पुरानी कोशिश के अनुसार ही था। न्यूयार्प टाइम्स शीर्षक कहता है कि पाकिस्तान ने रोक का हवाला देते हुए भारत से बातचीत रद्द की। खबर में लिखा है कि पाकिस्तान की भारत में कश्मीरी अलगाववादियों से मिलने की योजना को लेकर दोनों देशों में विवाद के चलते यह निर्णय हुआ। असहमति दोनों पक्षों पर भारी पड़ी क्योंकि दोनों ही वार्ता रद्द होने के लिए एक-दूसरे पर दोषारोपण करने की स्थिति में है। एलए टाइम्स की प्रतिक्रिया थीöपाकिस्तान की प्रभावशाली सेना ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को दरकिनार किए जाने का संकेत दिया। इससे नरेंद्र मोदी की सरकार में वार्ताओं को लेकर संशय हुआ। मोदी सरकार की एक बड़ी जीत का संकेत यह है कि खुद जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी उन दलों के भी निशाने पर आ गए हैं, जिनका रुख उनके प्रति नरम माना जाता था। कश्मीर में पीडीपी के साथ सरकार गठन के बाद से ही कुछ मुद्दों को लेकर उठते रहे सवालों में भाजपा और केंद्र सरकार भी घिरी रही थी। खासकर अलगाववाद के मुद्दे पर। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक बार फिर पाकिस्तान बेनकाब हुआ। वैसे वार्ता का विरोध खुद भाजपा के अंदर भी कम नहीं था, खासकर आतंकी नावेद के पकड़े जाने के बाद। कुछ नेता तो खुलकर वार्ता रद्द करने की मांग करने लगे थे। विपक्षी पार्टियां भले ही वार्ता रद्द होने पर सरकार पर कुछ भी आरोप लगाएं पर हमारी राय में भारत सरकार की कूटनीतिज्ञ चालें सफल रहीं। भारत सरकार की चाल में पाकिस्तान खुद फंस गया और मात खा गया है। मोदी सरकार ने सांप भी मार दिया और लाठी भी नहीं टूटी। इसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और भारत के एनएसए अजीत डोभाल को जाता है।

Tuesday, 25 August 2015

यौन अपराधों पर टिप्पणी करके फिर नेताजी आए विवादों में

समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव समय-बेसमय ऐसे विवादास्पद और बेतुका बयान देते रहते हैं जिससे खुद उनके बेटे अखिलेश की सरकार और पार्टी असहज स्थिति में आ जाती है। एक बार जब पूरा देश महिलाओं के प्रति हिंसा और बलात्कार को लेकर उबल रहा था, तब नेताजी ने इसे `लड़कों से हो जाने वाली छोटी भूल' बताकर लगभग माफीनामा-सा जारी कर हंगामा खड़ा कर दिया था। उनके ऐसे गैर जिम्मेदाराना बयान पर राष्ट्रव्यापी बखेड़ा खड़ा हुआ और पूरे सभ्य समाज, खासतौर से महिला संगठनों ने उन्हें कस कर निशाने पर लिया था। अब मुलायम ने कह दिया कि कई बार बलात्कार एक आदमी करता है और उसमें चार लोगों को नामजद कर दिया जाता है। ऐसा बदले की भावना से किया जाता है। उन्होंने आगे भी यह कहा कि ऐसे उदाहरण भी हैं जिनमें निर्दोषों को फंसा दिया जाता है। अब सामूहिक बलात्कार को असंभव और अव्यावहारिक बताकर फिर विवादों में फंस गए हैं। सामूहिक बलात्कार की बढ़ती घटनाओं को सुप्रीम कोर्ट ने न केवल समय-समय पर चिन्ताजनक बताया है बल्कि इसी साल गैंगरेप के कुछ वीडियो पर स्वत संज्ञान लेते हुए अदालत ने मामले की सीबीआई से जांच कराने का आदेश तक दिया है। लेकिन मुलायम सिंह की अगर मानें तो राष्ट्रीय राजधानी को हिला देने वाले निर्भया गैंगरेप समेत सामूहिक बलात्कार के तमाम मामले झूठे ही कहलाएंगे। जब यौन अपराधों के खिलाफ सख्त सजा पर विचार हो रहा था तब भी यह कहकर कि लड़कों से गलतियां हो जाती हैं, इसके लिए क्या उन्हें फांसी दे दी जाएगी, वरिष्ठ समाजवादी नेता ने सामूहिक बलात्कार को सामान्य घटना बताने की कोशिश की थी। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि हमारे देश में खासकर उत्तर भारत के पुरुष वर्चस्ववादी समाज में औरतों के प्रति गलत और आपत्तिजनक धारणा बनी हुई है। यहां तक कि औरतों के खिलाफ होने वाले अपराधों के लिए भी छोटे और उत्तेजनाजनक कपड़ों और लड़की देर रात बाहर रहने को, कोई जीन्स और मोबाइल को, तो कोई चाऊमीन को जिम्मेदार ठहराता है। लेकिन उत्तर प्रदेश जैसे सूबे का मुख्यमंत्री रह चुके सत्ताधारी पार्टी के मुखिया अगर ऐसी टिप्पणी करता है तो यह गंभीर और चिन्ताजनक है। मुलायम के इस बयान के बाद से सामूहिक और श्रृंखलाबद्ध बलात्कार की घटनाओं के जो मामले सामने आ रहे हैं, उससे प्रदेश सहमा और शर्मसार है। चिराग तले अंधेरे की स्थिति तो सूबे की राजधानी लखनऊ की है जहां स्कूल से लौटती नाबालिग छात्रा को दिनदहाड़े कार से अगवा कर उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। छात्रा की हालत नाजुक है और लखनऊ पुलिस केवल इस बात को साबित करने पर तुली है कि यह बलात्कार की घटना तो है लेकिन सामूहिक बलात्कार की नहीं। मतलब साफ है कि उसे आरोपियों को पकड़ने के बजाय नेताजी की बलात्कार विषयक अवधारणाओं को सत्य साबित करने की चिन्ता है और नेताजी के प्रोत्साहन से उत्साहित लड़के (अपराधी) बलात्कार जैसी गलती दर गलती करते जा रहे हैं। नेताजी लगे हुए हैं यह साबित करने में कि प्रदेशवासियों को संतुष्ट होना चाहिए कि उत्तर प्रदेश में बलात्कार की घटनाओं का आंकड़ा अन्य राज्यों से कम है। हालांकि राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो कुछ और ही कहानी बताता है। उसके मुताबिक 2014 में पूरे देश में बलात्कार के करीब 2300 मामले दर्ज हुए थे जिसमें 525 के करीब केवल यूपी के थे। लिहाजा जिम्मेदार लोगों को ऐसी हल्की टिप्पणियों से परहेज करना चाहिए जिनसे अंतत अपराधियों के ही हौंसले बुलंद होते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

दाऊद इब्राहिम के कराची में होने का पुख्ता सबूत

एक बार फिर इसकी पुष्टि हुई है कि अंडरवर्ल्ड डॉन और 1993 के मुंबई बम विस्फोटों का मास्टर माइंड दाऊद इब्राहिम पाकिस्तान के कराची शहर में ही रह रहा है। भारतीय खुफिया एजेंसियों के पास इसके पुख्ता सबूत हैं। कराची में क्लिफटन रोड सहित अन्य इलाकों में उसके घरों के पते, उसकी बीवी महजबीन शेख का 2015, अप्रैल का टेलीफोन बिल, दुबई और  पाक के बीच यात्राओं का ब्यौरे के साथ ही भारतीय खुफिया एजेंसियों के पास 59 वर्षीय दाऊद की वर्ष 2012 की ताजा तस्वीर और पाकिस्तानी पासपोर्ट की भी प्रति है। मुंबई धमाको में 257 भारतीयों की मौत के जिम्मेदार दाऊद के पास तीन पासपोर्ट (पाकिस्तानी) हैं। दाऊद इब्राहिम की 22 साल बाद नई तस्वीर सामने आई है। साथ ही एक न्यूज चैनल ने दाऊद की  बीवी महजबीन से बातचीत का दावा भी किया है। इस बातचीत में महजबीन ने बताया कि वह कराची से बोल रही है। साथ ही दाऊद के बारे में पूछे जाने पर कहा कि वह अभी भी सो रहा है। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने पाकिस्तानी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) को सौंपने के लिए जो सबूत जुटाए हैं, उनमें दाऊद के कराची स्थित घर के फोन का बिल भी है। इस फोन नम्बर पर एक अंग्रेजी चैनल ने शनिवार दोपहर को दो बार बातचीत की। सुरक्षा एजेंसियों को दाऊद के घर का जो फोन बिल मिला है, उसमें एड्रेस डी-13, ब्लॉक-4, कराची डेवलपमेंट अथारिटी स्कीम-5, क्लिफटन, कराची लिखा है। इस पर नम्बर +92213587... दर्ज है। इसमें कस्टमर आईडी नम्बर 1215871639 है। फोन नम्बर के आखिर पांच अंक अंग्रेजी चैनल व अंग्रेजी न्यूजपेपर ने सार्वजनिक नहीं किए हैं। दाऊद शेख इब्राहिम नाम से जारी पासपोर्ट के जरिए वह कई बार पाकिस्तान और दुबई के बीच यात्राओं पर जा चुका है। उसके परिजन भी पाकिस्तानी पासपोर्ट से ही सफर करते हैं। दाऊद कराची के पॉश क्लिफटन इलाके में पत्नी मजहबीन शेख, बेटे मोइन नवाज और तीन बेटियों महरुख, माहरीन और माजिया के साथ रहता है। दाऊद अकसर पाकिस्तान में अपनी जगह और पता बदलता रहता है। दाऊद की बेटी महरुख की शादी पूर्व पाकिस्तानी क्रिकेटर जावेद मियांदाद के बेटे जुनैद से हुई है। भारतीय एजेंसियों के पास दाऊद की फैमिली के सभी लोगों के पासपोर्ट नम्बर और अन्य एयर टिकट्स की जानकारी भी है। साथ ही आईपीएल क्रिकेट मैच फिक्सिंग में डी कंपनी की बातचीत और कुछ भारतीय व्यापारियों के साथ दुबई और अन्य देशों में साठगांठ का सविस्तार ब्यौरा भी है। मजेदार बात यह है कि तमाम पुख्ता सबूतों के बावजूद पाकिस्तान पिछले दो दशकों से यही कहता आ रहा है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकी घोषित दाऊद पाकिस्तान में नहीं है। वैसे इस तरह के सबूत पिछली भारतीय सरकारें पाकिस्तान को कई बार सौंप चुकी है और इस ताजी जानकारी से शायद ही धरातल पर कुछ बदले। अब भारत के लिए एक दृढ़ निर्णय लेने का वक्त आ गया है। पिछले दिनों टाइगर मेमन की उसकी मां से फोन पर बातचीत होने की रिपोर्ट भारतीय मीडिया में छपी थी। बता दें कि एक अंग्रेजी अखबार ने छापा था कि टाइगर मेमन ने अपनी मां हनीफ मेमन को फोन किया और अपने भाई याकूब मेमन की फांसी का बदला लेने की बात कही थी। हालांकि इस बातचीत के दौरान हनीफ ने कहा था कि बस हो गया। इस अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक टाइगर ने 30 जुलाई को याकूब को फांसी पर लटकाए जाने से एक घंटा पहले फोन किया था। टाइगर ने यह फोन वाइस इंटरनेशनल प्रोटोकॉल से किया था, ताकि मुंबई पुलिस उसका फोन टेप न कर सके। हालांकि महाराष्ट्र के गृह विभाग ने इस बातचीत का खंडन करते हुए कहा था कि मुंबई पुलिस के पास ऐसी किसी बातचीत का ब्यौरा नहीं है और न ही मुंबई पुलिस ने इस तरह की बातचीत का कोई ब्यौरा ही जारी किया है। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी इसकी पुष्टि की है कि दाऊद पाकिस्तान में ही है। क्या मोदी सरकार दाऊद को भारत लाने के लिए अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दबाव डालेगी?

Sunday, 23 August 2015

डेंगू की रोकथाम के लिए जागरुकता जरूरी है

बरसात के मौसम में मच्छरों के काटने से पैदा होने वाले डेंगू, जापानी बुखार, चिकनगुनिया और मलेरिया आदि रोग सालाना चक्र बन गए हैं। अकेले दिल्ली में ही इस वर्ष अब तक डेंगू पीड़ितों की संख्या 277 हो चुकी है। कई मौतें भी हो चुकी हैं। हर बार बरसात शुरू होने से पहले इन बीमारियों से सावधान रहने के लिए कहा जाता है मगर स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा है। विचित्र बात यह है कि इन बीमारियों से निपटने के लिए जहां व्यावहारिक कदम उठाए जाने चाहिए, सियासी दल एक-दूसरे पर दोषारोपण कर सियासी लाभ उठाने का प्रयास करते देखे जाते हैं। अभी कांग्रेस के नेता आम आदमी पार्टी की सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि वह मच्छरजनित बीमारियों की रोकथाम के लिए समुचित उपाय नहीं कर रही। हालांकि इससे पहले कांग्रेस सरकार के समय इस समस्या ने कम भयावह रूप नहीं अख्तियार किया था। दिल्ली सरकार के मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के करीब एक दर्जन प्रशिक्षु डाक्टरों और अर्द्ध सैनिक बलों के कई जवानों का डेंगू की चपेट में आना और भी चिन्ताजनक है। यह इस बात का सबूत है कि न तो मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज और न ही अर्द्ध सैनिक बलों के कैम्पों में साफ-सफाई का उचित प्रबंध है। सबसे हैरानी की बात यह है कि जिस संस्थान के पास लोगों का इलाज करने की जिम्मेदारी है, उसी के परिसर में डेंगू के मच्छर पनप रहे हैं और उसे इसकी भनक तक नहीं है। बहुत से लोगों को यह जानकारी नहीं है कि डेंगू मच्छर से बचाव हो सकता है। सफेद-काले रंग का यह मच्छर नीचे उड़ता है और अमूमन लातों पर ही काटता है। इसलिए बच्चों को जब पार्कों इत्यादि में भेजें तो उनके पांव में ओडोमोस प्रे या आजकल पैच चल रहे हैं वह लगा दें। इनकी खुशबू से डेंगू, चिकनगुनिया मच्छर नजदीक नहीं आ सकेंगे। हालांकि डेंगू का संक्रमण हो भी रहा है पर लोगों में घबराहट ज्यादा है। जबकि इसके गंभीर होने की आशंका केवल एक फीसद होती है और अगर लोगों को खतरे की जानकारी हो तो जान जाने से बचाई जा सकती है। अगर डेंगू के मरीज के प्लेटलेट्स काउंट 10,000 से ज्यादा हो तो प्लेटलेट्स चढ़ाने (ट्रांसफ्यूजन) की कोई जरूरत नहीं होता। अनुचित प्लेटलेट्स नुकसान कर सकते हैं। डेंगू बुखार चार किस्म के डेंगू वायरस के संक्रमण से होती है जो मादा ऐडिस मच्छर के काटने से फैलता है। डेंगू बुखार में तेज बुखार के साथ नाक बहना, खांसी, आंखों के पीछे दर्द, जोड़ों के दर्द और त्वचा पर हल्के रैश (दाने अथवा चकते) होते हैं। हालांकि कुछ बच्चों में लाल और सफेद निशानों के साथ पेट खराब, जी मिचलाना, उल्टी भी हो सकती है। आप भी सरकार की मदद करें। आपके घर में कोई गंदगी न रहे, पानी इकट्ठा न होने दें, कूलरों में पानी बदलते रहें, मौहल्लों में मच्छररोधी दवाओं का नियमित छिड़काव करें। आने वाले दिनों में जब तापमान में थोड़ी कमी आएगी उस वक्त डेंगू के लिए जिम्मेदार ऐडिस मच्छरों का प्रजनन बढ़ेगा। इसलिए जरूरी है कि सभी लोग आज से ही चेत जाएं और बचाव की तैयारी करें। साथ ही लोगों के बीच जागरुकता फैलाएं।

-अनिल नरेन्द्र

तो क्या आईएस छेड़ेगा तीसरा विश्वयुद्ध? नास्त्रsदमस सही होंगे?

फ्रांस में 16वीं सदी के दौरान कई भविष्यवाणियां कर चुके नास्त्रsदमस की एक और भविष्यवाणी के सच होने का समय आ चुका है। नास्त्रsदमस ने 16वीं शताब्दी में ही प्रथम विश्वयुद्ध, द्वितीय विश्वयुद्ध, नेपोलियन के साम्राज्य समेत तमाम भविष्यवाणियां की थीं, जो सच साबित हुई हैं। उन्होंने 21वीं शताब्दी में तीसरे विश्वयुद्ध की भविष्यवाणी की थी, जिसका उद्गम उन्होंने मेसोपेटामिया (आधुनिक इराक-सीरिया) को कहा था। नास्त्रsदमस की भविष्यवाणी के मुताबिक मेसोपेटामिया की पवित्र भूमि से ईश्वर के तीसरे विरोधी के उत्थान की बात कही थी, जो अब तक आईएसआईएस (इस्लामिक स्टेट) के रूप में सच होती नजर आ रही है। ये नास्त्रsदमस की ही भविष्यवाणी थी कि नेपोलियन और हिटलर जैसे ईश्वर विरोधी दुनिया के बड़े हिस्सों में लाखों का खून बहाएंगे। हुआ भी यही। नेपोलियन ने समूचे यूरोप में मारकाट मचाई और फ्रांस के साम्राज्य को विस्तार दिया। ऐसे ही हिटलर ने दुनिया का किया। उसने 60 लाख यहूदियों को गैस चैम्बरों में मारा। अब आईएस के रूप में तीसरे सबसे बड़े ईश्वर विरोधी का उत्भव हो चुका है। नास्त्रsदमस की भविष्यवाणी को अगर इतिहासकारों और विशेषज्ञों की नजर से देखें तो नास्त्रsदमस ने तृतीय विश्वयुद्ध का संभावित समय 2042 बनता है जबकि उससे 27 साल पहले ईश्वर के इस शक्तिशाली विरोधी (आईएस) का बढ़ना। नास्त्रsदमस की भविष्यवाणियों को लेकर चलने वाली एक वेबसाइट पर दावा किया गया है कि तृतीय विश्वयुद्ध से पहले पूरी दुनिया बड़ी मारकाट देखेगी, जो 27 साल तक चलेगी। इस हिसाब से 2015 ही वो समय है और दुर्योग देखिए कि आईएस ने इसी साल दुनिया पर कब्जा करने की अपनी साजिश व प्लान पेश किया है, जिसमें यूरोप, एशिया और अफ्रीका के बड़े हिस्से पर कब्जे की रणनीति को बताया गया है। दुनियाभर में अपनी बर्बरता के लिए कुख्यात आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) का अब एक और दुस्साहस सामने आया है। यह खूंखार आतंकी संगठन अगले पांच सालों में पूरे भारतीय उपमहाद्वीप समेत दुनिया के ज्यादातर हिस्सों पर कब्जा जमाने की फिराक में है। आतंकी संगठन ने 2020 तक भारतीय उपमहाद्वीप के अलावा मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका और यूरोप के कई हिस्सों तक अपनी जड़ जमाने की योजना बनाई है, जहां वह अपनी खिलाफत का परचम लहराना चाहता है। यह खुलासा हुआ है एक किताब से जिसमें आईएस की इस योजना के साथ-साथ बाकायदा इस बारे में नक्शा भी दिया गया है। ब्रिटिश वेबसाइट मिरर की एक रिपोर्ट के मुताबिक अभी इराक और सीरिया के कई हिस्सों में कब्जा जमा चुका आईएस इन देशों की ओर रुख करने की योजना बना रहा है ताकि अगले पांच सालों में खिलाफत का विस्तार किया जा सके। आतंकी संगठन की योजना पश्चिम में स्पेन से लेकर पूर्व में चीन तक के क्षेत्रों पर अपना कब्जा जमाने की है। बीबीसी रिपोर्टर एंड्रयू हास्कन की नई किताब `एम्पायर ऑफ फायर ः इनसाइड द इस्लामिक स्टेट' में आईएस का यह नक्शा दिया है, जिसमें कहा गया है कि आईएस विश्व के अधिकांश इलाकों पर कब्जा जमाना चाहता है ताकि वह इस्लामी दुनिया कायम कर सके। एंड्रयू ने कहा कि खिलाफत के पहले चरण के पूरे होने पर आईएस की दुनिया के बाकी हिस्सों की ओर रुख करना है। नक्शे में भारतीय उपमहाद्वीप का नाम खुरासन दिया है। जबकि यूरोप के जिन इलाकों में आईएस कब्जा जमाना चाहता है, उसका नाम वह अदांलुस दिया गया है जो एक अरबी शब्द है जिसे आठवीं से 15वीं सदी के बीच मुस्लिम कबायली लोगों (मूर्स) द्वारा कब्जा कर लिया गया था। तो क्या आईएस छेड़ेगा तीसरा विश्वयुद्ध, नास्त्रsदमस की भविष्यवाणी सच होगी?

Saturday, 22 August 2015

हाफिज सईद, आईएसआई ने पढ़ाया था नावेद को आतंकी पाठ

मुंबई हमले (26/11) के मास्टरमाइंड और लश्कर--तैयबा का प्रमुख हाफिज सईद भारत के खिलाफ आतंकी साजिश से बाज नहीं आ रहा है। उधमपुर हमले में जिन्दा पकड़े जाने वाले नावेद के अनुसार खुद हाफिज सईद प्रशिक्षण शिविर में आतंक का पाठ पढ़ाता था। इसके साथ ही आतंकियों को सईद के जहरीले भाषणों की वीडियो भी दिखाई जाती थी। आतंकी नावेद ने कई बातें उगली हैं। उसके लाई डिटेक्टर टेस्ट से कई खुलासे हुए हैं। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के अधिकारियों के मुताबिक पूछताछ में नावेद ने कबूला कि वह प्रशिक्षण के दौरान आईएसआई के बड़े अधिकारियों से मिला था। इनमें अबु तल्हा भी शामिल है। हालांकि इससे पहले वह पूछताछ में कश्मीर में अपने सम्पर्कों को लेकर झूठ बोल रहा था। यह पूछे जाने पर कि लाई डिटेक्टर टेस्ट में निकली कितनी बातें सच होंगी, जांच अधिकारियों ने कहा कि नावेद पाकिस्तान में अपने घर-परिवार, लश्कर--तैयबा और उसके आतंकियों के बारे में सही-सही जानकारी दे रहा है। अपने पते का जिक्र वह पहले कर चुका है और उसके सबूत भी मिल चुके हैं। परीक्षण के दौरान सवालों में इसे दोहराया गया और सौ फीसदी एक ही जवाब मिला। हालांकि पॉलीग्राफ टेस्ट की अंतिम रिपोर्ट का अब अधिकारी इंतजार कर रहे हैं। इसके बाद एनआईए और खुफिया एजेंसियों के अधिकारी उससे नए सिरे से पूछताछ करेंगे। लाई डिटेक्टर टेस्ट से यह साफ हो गया है कि वह पाकिस्तान के फैसलाबाद का रहने वाला है और लश्कर--तैयबा के आतंकी अबु कासिम ने उसे प्रशिक्षण दिया था। कश्मीर में पकड़े जाने के दो महीने पहले उसने तीन अन्य आतंकियों के साथ सीमा पार की थी। लेकिन कश्मीर में गुजारे दो महीने के बारे में वह कई बातें छिपा रहा है। नावेद और उसके साथियों ने 6-7 जून को लश्कर के तीन अन्य आतंकियों के साथ तंगमार्ग क्षेत्र की नूरी चौकी से कश्मीर में घुसपैठ की थी। नावेद ने बताया कि उसने मंकजी खैबर स्थित आतंकी शिविर में तीन महीने तक ट्रेनिंग ली। इस शिविर में 20 से 25 आतंकियों को ट्रेनिंग दी गई। यहां पाक सेना और आईएसआई के अफसर उन्हें जेहाद के गुर सिखाते थे। हाफिज सईद के भाषणों के वीडियो भी उन्हें बार-बार दिखाकर जेहाद के लिए प्रेरित किया जाता था। नावेद ने बताया कि उसके पिता का नाम मोहम्मद याकूब है और वह पाकिस्तानी पंजाब के रफीक कॉलोनी, गुलाम मोहम्मदाबाद, टोकियान वाली, जिला फैसलाबाद का रहने वाला है। नावेद के अनुसार उसके माता-पिता आतंकी बनने से खुश नहीं थे, लेकिन लश्कर--तैयबा के आतंकियों ने धमकी देकर उन्हें चुप करा दिया था।

-अनिल नरेन्द्र

इलाहाबाद हाई कोर्ट का दूरगामी ऐतिहासिक फैसला

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों की बदहाली पर कड़ी चोट करते हुए ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। अदालत ने जनप्रतिनिधियों, अधिकारियों और जजों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाना अनिवार्य कर दिया है। जो नहीं पढ़ाएगा, उसे निजी स्कूलों की फीस के बराबर पैसा सरकारी खजाने में जमा कराना होगा। इतना ही नहीं, कोर्ट ने कहा कि जो लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ाएंगे उनका प्रमोशन और इंक्रीमेंट भी रोक दिया जाएगा। फैसला अगले सत्र से लागू होगा। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को आदेश दिया है कि वह तय करें कि सरकारी खजाने से वेतन, मानदेय या किसी और तरीके से पैसा लेने वालों के बच्चे अनिवार्य रूप से यूपी बोर्ड के स्कूलों में ही पढ़ें। अमल पर राज्य सरकार को छह माह का वक्त दिया है। कोर्ट ने कहा कि राज्य में तीन तरह की शिक्षा व्यवस्था है। अंग्रेजी कान्वेंट स्कूल, मध्यम वर्ग के प्राइवेट स्कूल और सरकारी स्कूल। दुख की बात तो यह है कि सरकारी स्कूलों के गिरते स्तर के बारे में पता तो सबको है पर उसे नासूर बनने से रोकने के लिए कोई तैयार नहीं दिखता। इस आदेश की व्यावहारिकता को लेकर बहस हो सकती है कि आखिर यह सब इतनी जल्दी कैसे संभव होगा या इस आदेश को मौलिक अधिकार सहित संविधान प्रदत्त अन्य अधिकारों के साथ जैसे जोड़कर देखा जाए। जाहिर है कि पांच साल के पूर्ण बहुमत की सरकार चला रही समाजवादी पार्टी पर जिम्मेदारी और जवाबदेही का घेरा कसता है क्योंकि वोट बैंक की खातिर उसके कार्यकाल में शिक्षा क्षेत्र में ऐसे प्रयोग किए गए हैं, जिन्होंने कम से कम बुनियाद कहलाने वाली प्राथमिक शिक्षा का तो कचूमर ही निकाल दिया है। शिक्षकों की भर्ती में कदाचार तो आम था ही, सपा ने वोट बैंक बनाने के लिए अप्रशिक्षित, अकुशल शिक्षा मित्रों को ही शिक्षक बना दिया। बहुत संभव है कि हाई कोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के कानूनी विकल्प पर भी विचार किया जा रहा हो पर सच तो यह है कि अदालत ने नीति-नियंताओं और सरकारी कर्मचारियों को आइना दिखा दिया है। आखिर यह जवाबदेही कोई क्यों लेने को तैयार नहीं होता कि सरकारी स्कूलों की दशा दिन--दिन बदतर क्यों होती जा रही है? और यह स्थिति सिर्प उत्तर प्रदेश की ही नहीं बल्कि पूरे देश के प्राथमिक स्कूलों का यही हाल है। 2013-14 की डाइस (डिस्ट्रिक्ट इन्फार्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन) रिपोर्ट बताती है कि किस तरह देश में प्राथमिक स्कूलों का ढांचा चरमरा रहा है। हालत यह है कि देश के प्राथमिक स्कूलों का हर पांचवां शिक्षक योग्यता नहीं रखता। बाकी बुनियादी सुविधाओं की तो बात छोड़ ही दी जाए। यह आदेश मील का पत्थर साबित हो सकता है, क्योंकि कटु सत्य तो यह है कि मंत्री-विधायक, जनप्रतिनिधियों या सरकारी कर्मचारी कोई भी अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में भेजने को राजी नहीं है लिहाजा दशा सुधारों में कोई रुचि नहीं लेता।

Friday, 21 August 2015

बैंकॉक के ब्रह्मा मंदिर पर आतंकी हमला?

थाइलैंड की राजधानी बैंकॉक अमूमन शांत रहने वाले इस शहर में सोमवार को एक जबरदस्त आतंकी हमला हुआ। बैंकॉक में ब्रह्मा मंदिर के सामने सोमवार शाम भीषण बम विस्फोट हुआ। इसमें 27 लोगों की मौत हो गई और 80 से ज्यादा लोग घायल हुए। विस्फोट ऐसे समय किया गया जब भीड़ सबसे ज्यादा थी। कहा जा रहा है कि बम बाइक में रखा गया था। पुलिस ने दो जिन्दा बम भी बरामद किए हैं। रक्षामंत्री प्रावित वांग सुवॉन ने बताया कि बम मंदिर के अंदर भी लगाए गए थे। मध्य बैंकॉक स्थित यह मंदिर भगवान ब्रह्मा का है। शाम के समय मंदिर के अंदर और बाहर लोगों की भीड़ थी। एकाएक पार्किंग में खड़ी एक मोटर बाइक में धमाका हुआ। यह विस्फोट रिमोट के माध्यम से किया गया था। धमाका इतना जोरदार था कि शवों के टुकड़े कई मीटर दूर तक बिखर गए। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार मृतकों में चार विदेशी भी शामिल थे। विस्फोट में घायल अधिकांश लोग पर्यटक हैं। मध्य बैंकॉक में इस तरह की पहली वारदात है। थाई अधिकारियों ने उस संदिग्ध बॉम्बर की तलाश शुरू कर दी है जिस पर उन्हें भगवान ब्रह्मा के बेहद लोकप्रिय मंदिर में बम रखने का संदेह है। प्रधानमंत्री प्रयुत चान--चा ने कहा कि विस्फोट स्थल के पास के सीसीटीवी कैमरे में एक संदिग्ध पुरुष नजर आया है। साजिशकर्ताओं ने इस घटना को अंजाम देने के लिए कई लोगों का इस्तेमाल किया। विस्फोट में जो तरीके अपनाए गए हैं वे देश के दक्षिण में मौजूद मुस्लिम अलगाववादी विद्रोहियों के तौर-तरीकों से मेल नहीं खाते। बम हमला थाई सरकार के हालिया अभियान का प्रतिशोध भी हो सकता है। जिस मंदिर के सामने विस्फोट हुआ वह एरावन श्राइन कहलाता है। हिन्दू और बौद्धों के अलावा अन्य धर्मों के लोग भी यहां जाते हैं। मरने वालों में ज्यादातर चीनी और ताइवानी लोग हैं। किसी भारतीय की इस धमाके में मौत नहीं हुई। रक्षामंत्री वांग सुवॉन ने कहा है कि हमले का लक्ष्य पर्यटन तथा अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने के लिए जानबूझ कर विदेशियों को निशाना बनाया था। उन्होंने पत्रकारों से कहा कि हमलावरों ने विदेशी नागरिकों को निशाना बनाया ताकि थाइलैंड की पर्यटन एवं अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया जा सके। अधिकारियों ने बताया कि संदिग्ध हमलावर की फोटो जारी की गई है। थाइलैंड में मुस्लिम कट्टरपंथी गुट भी सक्रिय हैं। लेकिन फिलहाल उनकी कार्रवाई दक्षिण के मुस्लिम बहुल प्रांतों तक सीमित रहती है। ऐसे में परेशान करने वाला सवाल यह है कि क्या थाइलैंड में भी वैश्विक आतंकवाद से जुड़े किसी समूह का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष प्रभाव तो नहीं बढ़ रहा है?

-अनिल नरेन्द्र

अरविंद केजरीवाल के आरोपों की पुष्टि ः कैग रिपोर्ट

आम आदमी पार्टी के संयोजक व दिल्ली के मुख्यमंत्री आज जरूर प्रसन्न होंगे कि वह जो आरोप दिल्ली में बिजली सप्लाई करने वाली कंपनियों पर लगाते थे उनकी पुष्टि सीएजी ने कर दी है। राजधानी में बिजली वितरण का कार्य कर रही बिजली कंपनियों ने पिछले 12 सालों में ग्राहकों से 8000 करोड़ रुपए ज्यादा की उगाही की है। आम आदमी पार्टी ने यह आरोप सीएजी की एक अंग्रेजी अखबार में रिपोर्ट ड्राफ्ट (लीक होने पर) छपने के बाद लगाया है। डिस्कॉम्स पर जारी रिपोर्ट में कैग ने कहा है कि दिल्ली क्षेत्र की तीन निजी बिजली कंपनियों ने ग्राहकों से बकाया राशि वसूलने की रकम को 8000 करोड़ रुपए बढ़ाकर पेश किया। डिस्कॉम्स पर जारी रिपोर्ट में कैग ने कहा है कि तीन निजी बिजली कंपनियोंöबीएसईएस, यमुना पॉवर लिमिटेड और बीसीईएस राजधानी पॉवर लिमिटेड (अनिल अंबानी के रिलायंस समूह) की कंपनियां और टाटा पॉवर दिल्ली डिस्ट्रिब्यूशन लिमिटेड ने उपभोक्ताओं से संबंधित आंकड़ों में छेड़छाड़ की और बिक्री के ब्यौरे को सही से पेश नहीं किया। साथ ही तीनों कंपनियों ने कई ऐसे फैसले लिए जो उपभोक्ताओं के हितों को नुकसान पहुंचाने वाले थे। ऐसे फैसलों में महंगी बिजली खरीदना, लागत को बढ़ाचढ़ा कर पेश करना, राजस्व को दबाना, बिना टेंडर निकाले ही अन्य निजी कंपनियों के साथ सौदा करना और अपने समूह की कंपनियों को गलत तरीके से फायदा पहुंचाना शामिल है। कंपनियों द्वारा की गई सबसे बड़ी गड़बड़ियों में विनियामक सम्पत्ति को बढ़ाचढ़ा कर बताना शामिल है। विनियामक सम्पत्ति पूर्व में हुआ ऐसा अनुमान होता है, जिससे उपभोक्ताओं से वसूल किया जा सकता है। आम आदमी पार्टी ने आरोप लगाया है कि दिल्ली की पूर्ववर्ती सरकारें, विपक्ष और ऊर्जा विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से निजी बिजली कंपनियां पिछले 12 सालों से जनता को लूटती रही हैं। आम आदमी पार्टी ने बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस करके इस मामले में दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग (डीईआरसी) की भूमिका को भी संदिग्ध बताया। पार्टी ने इस मामले में बिजली कंपनियों के मालिकों से इस गड़बड़झाले में शामिल अधिकारियों-राजनेताओं के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने की मांग की है। उधर सूत्रों के मुताबिक दिल्ली सरकार इस मामले में कानूनी राय लेगी और दिल्ली हाई कोर्ट से अपील करेगी कि सीएजी रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए। रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद सरकार इस मामले में सख्त कदम उठा सकती है। बता दें कि सीएजी ऑडिट के दौरान सीएजी ने कई बार आरोप लगाया था कि बिजली कंपनियां ऑडिट में सहयोग नहीं कर रही हैं जिसकी वजह से ऑडिट में दिक्कत आ रही है। कंपनियों पर यह भी आरोप लगाया गया था कि कंपनियों ने सीएजी को पर्याप्त रिपोर्ट जमा नहीं की है। डिस्कॉम ने सफाई देते हुए कहा है कि यह अंतिम रिपोर्ट नहीं हो सकती। सीएजी ऑडिट मामला दिल्ली हाई कोर्ट में लंबित है और यह ताज्जुब की बात है कि बिना हाई कोर्ट के आदेश के यह रिपोर्ट बाहर कैसे आई? बीएसईएस प्रवक्ता का कहना है कि सीएजी ऑडिट की किसी भी रिपोर्ट के प्रकाशन की अनुमति पर पूरी तरह रोक लगी हुई है क्योंकि यह मामला अदालत के विचाराधीन है। कंपनी प्रवक्ता की यह दलील है कि सीएजी ऑडिट की प्रक्रिया अभी पूरी ही नहीं हुई है कि सीएजी डिस्कॉम के खिलाफ किसी नकारात्मक निष्कर्ष पर पहुंच गई है। बता दें कि राजनीति में आते ही अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की इन बिजली कंपनियों के खिलाफ मुहिम चलाई थी। बिजली बिल में बरती जा रही अनियमितता  के मामले में वे पूर्वी दिल्ली में कई दिनों तक भूख हड़ताल पर भी बैठे थे। वर्ष 2013 में सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री ने बिजली कंपनियों के खिलाफ सीएजी ऑडिट का आदेश जारी किया। आज निश्चित रूप से अरविंद केजरीवाल की मेहनत रंग लाई और इन कंपनियों की धांधलियों, जनता को लूटने के गोरखधंधे का पर्दाफाश हुआ है।

Thursday, 20 August 2015

बिहार चुनाव आम चुनाव पार्ट-2

नरेन्द्र मोदी और भाजपा गठबंधन को बिहार में हराने के लिए नीतीश का महागठबंधन बन गया है। बिहार में आरजेडी-जेडीयू-कांग्रेस महागठबन्धन ने सीटों का तालमेल कर चुनावी बिसात बिछा दी है। बिहार पर पूरे देश की नजर लगी हुई है और बिहार चुनाव परिणाम देश के सियासी भविष्य की दशा-दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। महागठबंधन में इन पार्टियों के साथ-साथ चुनाव लड़ने का रास्ता अब पूरी तरह साफ हो चुका है। जद(यू) और राजद के नेताओं ने यह फार्मूला तय करते वक्त इस बात का ख्याल रखा है कि आपसी विवादों के लिए यथासंभव कम से कम जगह छोड़ी जाए। इस फार्मूले के तहत जद(यू) और राजद 100-100 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे और कांग्रेस को 40 सीटें मिलेंगी। इस फार्मूले की खास बात यह है कि दोनों बड़ी पार्टियों को बराबर-बराबर सीटें मिलेंगी और किसी को यह डर नहीं होगा कि दूसरी पार्टी उस पर हावी होगी। सिर्प 100 सीटों पर लड़ने से यह भी सुनिश्चित हो गया है कि अगर महागठबंधन को बहुमत मिलता है तो कोई पार्टी इतनी ताकतवर नहीं हो सकती कि दूसरी पार्टी को धत्ता दिखा सके। बिहार में महागठबंधन की बुनियाद रखे जाने के दिन से ही सहयोगी जद(यू) और इसके नेता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर तमाम तरह का दबाव बनाने के खेल रच रहे राजद सुपीमो लालू पसाद यादव की एक न चली और सीट बंटवारे में उन्हें नीतीश के समक्ष पूर्ण समर्पण की मुद्रा में देखा गया। हां, इन दोनों की शह-मात के खेल में कांग्रेस की जरूर लाटरी लग गई है जिससे उसकी मौजूदा हैसियत से ज्यादा सीटें लड़ने के लिए मिल रही हैं। दूसरी ओर भाजपा को लगता है कि मोदी लहर के सहारे वह बिहार में भी बाजी मार लेगी। विपक्ष का मानना है कि पिछले कुछ महीनों में शुरू हुई उसकी भाजपा विरोधी मुहिम अब कुछ-कुछ जड़ पकड़ने लगी है और बिहार में यह अपना चमत्कार जरूर दिखाएगी। बहरहाल भाजपा के खिलाफ बने सेक्यूलर गठबंधन की एक छोटी चूक भी सीट बंटवारे की घोषणा के साथ ही सामने आ गई है। शरद पवार की एनसीपी का बिहार में कोई खास वजूद तो नहीं है पर फिर भी उसे गठबंधन वार्ता में इज्जत से बिठाए जाने की उम्मीद थी। उसके लिए बिना बातचीत के ही तीन सीटें छोड़ी गईं लेकिन वह इससे संतुष्ट नहीं है और गठबंधन से अलग होकर चुनाव लड़ने के लिए ताल ठेंक रही है। ंइस बार जीतन राम माझी और पप्पू यादव जैसे नेता भी मैदान में हैं जो किसी भी खेमे का खेल बिगाड़ सकते हैं। एनडीए की सबसे बड़ी चुनौती अपने सहयोगी दलों की महत्वाकांक्षा पर नियंत्रण लगाना है। उपेंद्र कुशवाहा और राम विलास पासवान से सीटों की डील करना आसान नहीं होगा कयोंकि इनकी नजर भी सीएम पद पर है और तो और खुद भाजपा में कम से कम पांच लीडर इस कुसी की फिराक में हैं। यह चुनाव सभी पार्टियों के लिए बड़ा महत्वपूर्ण हो गया है। भाजपा ने हालांकि दांव नरेंद्र मोदी की लाकपियता व लहर पर लगाया है पर इससे इंकार वह भी नहीं कर सकती कि पिछले कुछ महीनों में मोदी का ग्राफ गिरा है और शत्रुघ्न सिन्हा सरीखे के नेताओं का भी असर तो होगा ही। नीतीश कुमार की भविष्य की राजनीति उनके तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने पर निर्भर है। लालू पसाद यादव और राजद को दस साल बिहार की सत्ता से बाहर रहते हो गए हैं। उनका सत्ता में आना इसलिए भी जरूरी है कि अगर वह नहीं जीतते तो उनकी और उनकी पाटी का बिहार में राजनीतिक भविष्य चौपट होने का खतरा हो जाएगा। दोनों ही गठबंधनों को अपनी-अपनी पाटी के कार्यकर्ताओं में समन्वय बैठाना भी कम चुनौती नहीं है। ऐसे में इस चुनाव को आम चुनाव पार्ट-2 कहना गलत नहीं होगा।

-अनिल नरेंद्र

मरहबा (स्वागत) नमो, यूएई की सफल यात्रा

मरहबा नमो। ऐसे हुआ स्वागत हमारे पधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जब वह अबूधाबी के मसदर शहर में गए। पधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो दिवसीय अमीरात की यात्रा कई मायनों में महत्वपूर्ण व ऐतिहासिक रही। एक बहुत लंबे अरसे के बाद भारत का पधानमंत्री यूएई गया। पीएम नरेंद्र मोदी ने अपनी दो दिवसीय यूएई यात्रा के दौरान इस देश के साथ बिजनेस और आतंकवाद जैसे जरूरी मुद्दों पर सहयोग के अलावा भारत को एक शानदार इन्वेस्टमेंट स्पॉट के तौर पर निवेशकों में पेश किया। नरेंद्र मोदी से पहले इंदिरा गांधी यूएई गई थीं। लेकिन मोदी ने चौकाया अबूधाबी की शेख जायद मस्जिद पहुंच कर। पीएम बनने के बाद वह पहली बार किसी मस्जिद में गए। यहां हजारों लोग मोदी-मोदी के नारे लगा रहे थे। मोदी ने मस्जिद के साथ सेल्फी भी ली। सोमवार को मोदी सबसे उंढची इमारत बुर्ज खलीफा गए। मक्का और मदीना के बाद शेख जायद मस्जिद दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी मस्जिद है। 30 एकड़ जमीन पर 960 गुणा 1380 फीट के क्षेत्र में बनी है। इसका निर्माण 1996 से 2007 के बीच 13 देशों के तीन हजार कारीगरों ने पूरा किया। मोदी ने मस्जिद में 40 मिनट बिताए। उन्होंने लगभग 54 करोड़ डॉलर की लागत से बनी इस मस्जिद की गेस्ट बुक में लिखा कि मैं शानदार, विशाल, खूबसूरत इबादतगाह में आकर पसन्न हूं। पधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यूएई यानी संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा इस मायने में ज्यादा अहम है कि भारत के साथ व्यापार और सुरक्षा के मोर्चों पर घनिष्ठ संबंधों के बावजूद विदेश नीति और कूटनीति के स्तर पर दोनों पक्षों के बीच लंबे समय से खामोशी छाई हुई थी। करीब साढ़े तीन दशक पहले तत्कालीन पधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब यूएई की यात्रा की थी तब से वैश्विक परिदृश्य और राजनीति दोनों में काफी बदलाव आ चुका है। आज भारत यूएई के साथ तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है और राजनीतिक लिहाज से भी दोनों पुराने मित्र हैं। आर्थिक संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए यूएई भारत में अपने निवेश को समर्पित आधारभूत संरचना के जरिए बढ़ाकर 75 अरब डॉलर यानी 5 लाख करोड़ रुपए तक करने को सहमत हो गया है। दोनों देशों का अगले पांच वर्षें में द्विपक्षीय व्यापार को 60 पतिशत बढ़ाने पर राजी होना भारत की बड़ी जीत है। पधानमंत्री मोदी इस यात्रा में भी पूर्व सरकारों पर निशाना साधने से नहीं चूके। सोमवार को मसदर शहर में उन्हेंने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए शहर के कारोबारी नेताओं को संबोधित करते हुए कहा कि उनकी सरकार को कुछ कठिनाइयां विरासत में मिली हैं और उसकी तत्काल पाथमिकता पूर्व की सरकारों के अनिर्णय और सुस्ती की वजह से स्थगित हुईं चीजों को शुरू करने की है। पधानमंत्री ने कहा कि मुझे कुछ समस्याएं विरासत में मिली हैं। ऐसा नहीं हो सकता कि मैं केवल अच्छी चीजों को ले लूं और समस्याओं को छोड़ दूं... कुछ चीजें (पिछली) सरकारों के अनिर्णय और सुस्ती की वजह से रुक गई थीं। उन चीजों को शुरू करना मेरी पाथमिकता है। हमारी राय में बेहतर होता कि विदेशी जमीन पर मोदी जी पूर्व सरकारों की आलोचना से बचते। पधानमंत्री की इस यात्रा की एक हाई लाइट थी दुबई से पाकिस्तान को कड़ा संदेश देना। दुबई के स्टेडियम में नमो-नमो के नारों के बीच 50 हजार अपवासी भारतीयों को संबोधित करते पीएम मोदी ने इशारों में पाकिस्तान को बड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि आतंकवाद की मानसिकता वाले देशों के खिलाफ मानवतावाद में विश्वास करने वाले देशों को एक होकर लड़ने का वक्त आ गया है। अच्छा आतंकवाद, बुरा आतंकवाद, अच्छा तालिबान और बुरा तालिबान अब नहीं चलेगा। हर किसी को तय करना होगा कि वह मानवता के साथ है या आतंकवाद के। यूएई में 26 लाख से ज्यादा भारतीय काम करते हैं जो हर साल देश को 12 अरब डॉलर की बड़ी रकम भेजते हैं। जहां यूएई की अर्थव्यवस्था में भारतीयों की इतनी बड़ी भागेदारी है वहीं उन्हें काम और रोजमर्रा के कठिन हालात से जूझना पड़ता है। दलालों की धोखेबाजी के शिकार पवासी मजदूरों की समस्या गहरी है और उसे दूर करना एक बड़ी समस्या है। कुल मिलाकर पधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यूएई यात्रा सफल ही रही।

Wednesday, 19 August 2015

मामला आप विधायक अलका लांबा को पत्थर मारने का

दिल्ली की आम आदमी पार्टी की विधायक और तेज-तर्रार नेता-प्रवक्ता अलका लांबा एक नए विवाद में उलझती दिख रही हैं। चांदनी चौक से आम आदमी पार्टी की विधायक अलका लांबा गत रविवार सुबह कश्मीरी गेट स्थित हनुमान मंदिर के पास नशे के खिलाफ अभियान में शामिल हुईं। अभियान के दौरान कुछ लोगों द्वारा पत्थरबाजी में वह घायल हो गईं। अलका ने बताया कि रविवार सुबह वो अपने कुछ कार्यकर्ताओं के साथ भारत छोड़ो आंदोलन दिवस के अवसर पर आईएसबीटी (कश्मीरी गेट) हनुमान मंदिर के पास यमुना बाजार में नशे के खिलाफ अभियान में शामिल हुई थीं ताकि लोगों को नशे की लत से छुटकारा मिल सके। इसी दौरान कुछ लोगों ने उन पर पत्थर फेंके जिससे उनके सिर पर चोट आ गई। आप नेता ने आरोप लगाया कि भाजपा विधायक ओम प्रकाश शर्मा की दुकान के स्टाफ ने यह पत्थर फेंका था।  उन्होंने कहा कि यह हमला एक साजिश के तहत किया गया। अलका लांबा के इस बयान पर बवाल खड़ा हो गया। भाजपा विधायक ओम प्रकाश शर्मा ने अलका लांबा पर ड्रग्स लेने और ड्रग एडिक्ट होने का ही आरोप लगा दिया। शर्मा ने चेतावनी दी कि अगर अलका और उनके समर्थकों ने दुकानदारों को फिर से परेशान किया तो वह बचकर नहीं जा सकेंगी बल्कि उन्हें स्ट्रेचर पर जाना पड़ेगा। डीसीपी (नॉर्थ) के मुताबिक अलका लांबा ने सुबह आईएसबीटी के नजदीक हनुमान मंदिर के बाहर बनी कुछ दुकानों को बंद कराने की कोशिश की। वो अपने साथ एमसीडी कर्मियों को लेकर नहीं गई थीं जबकि यह काम एमसीडी का है। दुकान बंद करवाने के दौरान छत पर खड़े एक लड़के ने उन्हें पत्थर मार दिया, जैसा कि अलका लांबा कह रही हैं। पत्थर मारने वाले लड़के को हमने हिरासत में लिया है। अलका लांबा की शिकायत पर हम उसे गिरफ्तार कर लेंगे। क्षेत्र के व्यापारियों ने पुलिस से विधायक की शिकायत कर मुकदमा दर्ज करवाया है और परिणामस्वरूप सीसीटीवी फुटेज भी जारी किया है जिसमें विधायक को दुकान में तोड़फोड़ करते देखा जा सकता है। विधायक का कहना है कि यह फुटेज हमले के बाद का है। क्षेत्र के 200 से अधिक व्यापारी अलका की छापेमारी कार्रवाई के विरोध में उपराज्यपाल नजीब जंग से मिले और मांग रखी कि मामले की न्यायिक जांच होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि उन्होंने केवल फोटो छपवाने के लिए सुबह छह बजे छापेमारी की। इस दौरान उन्होंने झूठ बोला कि वहां नशे का व्यापार चल रहा है जबकि सीसीटीवी फुटेज में वह खुद ही दोषी दिख रही हैं। इस मौके पर व्यापारियों ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को कानून अपने हाथ में लेने का अधिकार नहीं है। यमुना बाजार में प्राचीन हनुमान मंदिर के पास रविवार सुबह कुछ दुकानों में घुसकर तोड़फोड़ करने के मामले में कश्मीरी गेट थाना पुलिस ने अलका लांबा समेत अज्ञात आप कार्यकर्ताओं के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया है। एफआईआर में केवल अलका लांबा को नामजद किया गया है। वारदात के आसपास लगे कई सीसीटीवी कैमरे में घटना की तस्वीरें कैद की गई थीं इसी की बिना पर केस दर्ज हुआ है। एक मिनट के लिए मान भी लिया जाए कि हमले के बाद की स्थिति का फुटेज है तब भी अलका लांबा ने कानून हाथ में लेने और तोड़फोड़, अराजकता की है और इसकी इजाजत कतई नहीं दी जा सकती। जवाब में भाजपा विधायक लांबा को नशे की लत और देर रात की अराजक गतिविधियों में लिप्त होने का जो आरोप लगा रहे हैं वह भी सही नहीं है। इतना ही नहीं, दोबारा क्षेत्र में दिखने पर स्ट्रेचर से वापस जाने की भी धमकी दे रहे हैं। ऐसा लगता है कि अलका लांबा भी गलतबयानी कर रही हैं। वह नशा मुक्ति अभियान में नहीं, उनकी नजरों में अवैध निर्माण के खिलाफ अभियान में गई थीं। अहम की इस लड़ाई में भले दो विधायकों में से कोई जीते-हारे किन्तु बेचारी दिल्ली की जनता को तो हारना ही है जिसने बड़ी हसरतों से इन्हें चुना है।

-अनिल नरेन्द्र

शिवराज सिंह चौहान ने कांग्रेस को करारा जवाब दिया

मध्यप्रदेश में व्यापमं घोटाले और उससे जुड़ी करीब 49 मौतों के चलते सियासी मुश्किलों का सामना कर रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को नगर निकाय चुनावों के नतीजों ने थोड़ी ताकत दे दी है। रविवार को आए नतीजों में भाजपा ने 10 में से आठ निकायों में कामयाबी हासिल की है। भाजपा ने कांग्रेस से आठ सीटें छीन लीं जबकि कांग्रेस एक ही सीट बचा पाई। अब राज्य के 16 नगर निगमों पर भाजपा का ही कब्जा है। कहने को तो यह 10 निकायों का चुनाव था, लेकिन भाजपा इसे शुरू से ही प्रतिष्ठा का सवाल मानकर लड़ रही थी। खासकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चुनाव की तारीखें आते ही जी-तोड़ मेहनत की। वह सभी जगह ऐसे घूमे, प्रचार किया मानो स्वयं मैदान में हों। मंत्रियों की भी ड्यूटियां लगाईं। घोटाले पर सियासी बढ़त लेने के प्रयास में जुटी कांग्रेस के हिस्से में सिर्प एक ही निकाय आया। एक निर्दलीय के कब्जे में चला गया। ये चुनाव बृहस्पतिवार को हुए थे। उज्जैन व मुरैना नगर निगम में फिर भाजपा का डंका बजा। इससे पहले 14 निगमों में हुए चुनावों में भाजपा पहले ही जीत चुकी है। इस तरह मध्यप्रदेश के सभी 16 निगमों पर भगवा झंडा फहरा गया। यदि कांग्रेस बेहतर नतीजे ले आती तो वह इसे व्यापमं घोटाले से जोड़ कर मुख्यमंत्री की दिक्कतें और बढ़ाने का काम करती या उनके इस्तीफे की मांग को तेज कर देती। बिहार चुनाव से ठीक पहले आए इन नतीजों से भाजपा के हौंसले बुलंद हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्यप्रदेश भाजपा को जीत की मुबारकबाद देकर अपने इरादे साफ कर दिए हैं। वहीं बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आए इन परिणामों से कांग्रेस कमजोर हुई है। यूएई के दौरे पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शिवराज सिंह चौहान को बधाई देना नहीं भूले और कहा कि राज्य के निकाय चुनाव के नतीजे खुश कर देने वाले हैं। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और भाजपा का खुश होना स्वाभाविक भी है। आखिर इसी व्यापमं घोटाले को लेकर कांग्रेस ने संसद के मानसून सत्र में कोई कामकाज नहीं होने दिया। हालांकि घोटाला सामने आने के बाद शिवराज सिंह चौहान ने ही उसकी एसआईटी के जांच के आदेश दिए थे। हाई कोर्ट ने भी माना था कि एसआईटी जांच ठीक दिशा में हो रही है और उसने सीबीआई जांच का आदेश देने से भी इंकार कर दिया था। लेकिन कांग्रेस ने संसद से लेकर सड़क तक ऐसा शोर मचाया मानो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भ्रष्टाचारी और अपराधी हैं, बिना न-नुक्कर किए शिवराज ने भी उसकी सीबीआई जांच के आदेश दे दिए ताकि दूध का दूध-पानी का पानी हो सके। व्यापमं और कांग्रेस और उसके नेताओं का जिक्र किए बिना शिवराज ने ट्विट कियाöयह नकारात्मक राजनीति करने वालों को जनता का संदेश है।

Tuesday, 18 August 2015

Pakistan: Out of Control

Internal situation in Pakistan is getting out of control. This can be gauged by the fact that it couldn't even save its own state home minister. It's shocking news that provincial Home Minister of Pakistani Punjab Shuja Khanzada was killed in a bomb blast in his very home. Two suicide bombers exploded themselves at the patriarchal residence of Pakistani Provincial Home Minister Shuja Khanzada in Attock district on Sunday in which 15 people including Khanzada were killed. Khanzada was known as a strong opponent of Taliban. Pak officials said that 15 people including Khanzada (71) and a DSP were assassinated in a suicide bomb attack at his political office in his patriarchal village Shadi Khan. The explosion was so powerful that 15 people were killed and many more were injured. Khanzada was a retired colonel and was holding a Jirga (meeting) at his farmhouse at Shadi Khan, almost hundred kilometers away from Islamabad, attackers succeeded in entering his house and exploded the bomb. Deputy Commissioner of Police Shaukat Shah was also among the deceased. It can easily be made out that how unmanageable the internal situation of Pakistan is?  Nobody cares for civil administration. In Pakistan, army and ISI are on one side and these Jehadi organization on the other, that really matters.  Presently these are the real powers in Pakistan. Pakistan is incessantly firing on LoC in J&K. Pakistan has crossed the J&K LoC 35 times in the month of August alone.  Defence spokesperson Colonel Manish Mehta told that Pak army is attacking with mortars at advance Indian posts and nearby villages in sector 5 of Punch district since Monday morning. Indian Army is also responding.  Even the funeral of the deceased couldn't take place due to this incessant firing from across the border. Many a people have started migrating from the border villages due to incessant firing. Indian Army has taken strict attitude over Pak firing. India and Pakistan NSA propose having peace talks. In such a situation where neither the internal situation of Pakistan nor the Pakistan Army is under control, what is the use of having dialogues with Pakistani civil and political group?  These talks should be cancelled and no dialogues with Pakistan be held until it stops its nefarious adventure. What can Pakistan ultimately give to India? Whenever there is dialogue with Pakistani Government and Army, it is known that these non-state actors spoil the broth. Are these non-state actors ultimately your kids? Don't they attack from your territory?  Whenever India extends the friendship hand towards Pakistan, it only get 26/11 or Gurdaspur in return. At present, we should avoid dialogue with Pakistan. Let the situation be normalise, before we think of a dialogue. At present Pakistan is out of control.

-        Anil Narendra

वन रैंक-वन पेंशन पर सरकार जल्द फैसला करे

जिस तरह से वन रैंक-वन पेंशन की मांग को लेकर पूर्व सैनिकों को दिल्ली पुलिस ने जबरन जंतर-मंतर से हटाने की कार्रवाई की वह निंदनीय है। 61 दिनों से धरना दे रहे पूर्व सैनिकों को शुक्रवार को दिल्ली पुलिस ने हटाना चाहा। पुलिस ने 15 अगस्त के सुरक्षा प्रबंधों के चलते यह कदम उठाया। लेकिन जिस तरह जबरन हटाना चाहा उससे हंगामा खड़ा होना स्वाभाविक ही था। आप पूर्व सैनिकों से इस तरह का व्यवहार नहीं कर सकते। शुक्रवार सुबह एनडीएमसी और दिल्ली पुलिस द्वारा चलाए गए इस साझा अभियान का पूर्व सैनिकों ने जमकर विरोध किया। इस दौरान कई सैनिकों को गंभीर चोटें भी आईं। पूर्व सैनिकों के विरोध के बाद दिल्ली पुलिस ने बाद में सैनिकों को जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करने की अनुमति दे दी। इस घटना का सियासी लाभ उठाने जब कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी जंतर-मंतर पहुंचे तो उन्हें `गो बैक' का नारा सुनना पड़ा। राहुल वापस जाओ के नारे लगे। कुछ सैनिकों ने राहुल पर राजनीति करने का आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने इस मुद्दे को कभी भी संसद में क्यों नहीं उठाया? राहुल का जब विरोध होने लगा तो वह कुछ समय के लिए असहज हो गए और बमुश्किल 15 मिनट ही रुके। हालांकि मंच के नीचे बैठे कुछ पूर्व सैनिकों ने राहुल का स्वागत भी किया। बाद में पत्रकारों से बातचीत में राहुल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर वादाखिलाफी का आरोप लगाया। उन्होंने वन रैंक-वन पेंशन लागू करने को लेकर पीएम से स्पष्ट तारीख बताने की मांग की। उधर रक्षामंत्री मनोहर पार्रिकर ने कहा कि सरकार वन रैंक-वन पेंशन लागू करने के लिए वचनबद्ध है, लेकिन कुछ तकनीकी बाधाएं हैं। सरकार अपने कार्यकाल में और जल्दी लागू करने का प्रयास करेगी। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से अपने स्वतंत्रता दिवसीय भाषण में कहा कि सरकार समान रैंक पर एक जैसी पेंशन को बहुत जल्द पूरा करेगी। दशकों पुरानी मांग पर सरकार सिद्धांत रूप से सहमत है। बस इसे लागू करने के ब्यौरे तय किए जा रहे हैं। पूर्व फौजियों की इस मांग पर शनिवार को पीएम ने कहाöमेरे सेना के जवानों, सिद्धांतत वन रैंक-वन पेंशन हमने स्वीकार कर लिया है। लेकिन संगठनों से बातचीत का दौर चल रहा है, यह अंतिम दौर में है। जिस विश्वास के साथ वार्ता चल रही है मैं सुखद परिणाम की आशा करता हूं। वन रैंक-वन पेंशन के मुद्दे पर पूर्व सैनिकों ने प्रधानमंत्री के मौखिक आश्वासन से एक कदम आगे बढ़कर अब लिखित आश्वासन पर जोर दिया है। जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर रहे पूर्व सैनिकों ने कहा कि मोदी ने 16 माह पहले भी वन रैंक-वन पेंशन लागू करने का भरोसा दिया था। इस बार लिखित आश्वासन के साथ वह अभी तक उठाए गए कदमों की जानकारी भी चाहते हैं। पूर्व सैनिक सतवीर सिंह ने कहा कि 15 अगस्त पर प्रधानमंत्री के आश्वासन से उम्मीद तो जगी है। लेकिन इसके लागू करने के समय पर संदेह है। हम वन रैंक-वन पेंशन का पूर्ण समर्थन करते हैं और उम्मीद करते हैं कि इसे जल्द से जल्द लागू किया जाए।
-अनिल नरेन्द्र


पाकिस्तान की स्थिति बेकाबू और नियंत्रण से बाहर है

पाकिस्तान की अंदरूनी स्थिति बेकाबू होती जा रही है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह अपने गृहमंत्री को भी सुरक्षित नहीं रख सकती। चौंकाने वाली खबर आई है कि पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के गृहमंत्री शुजा खानजादा को उनके घर में ही बम से उड़ा दिया गया है। पाक के पंजाब प्रांत के अटक जिले में रविवार को राज्य के गृहमंत्री शुजा खानजादा के पैतृक आवास पर दो आत्मघाती बम हमलावरों ने खुद को उड़ा लिया जिसमें खानजादा सहित 15 लोगों की मौत हो गई। खानजादा तालिबान के कड़े विरोध के लिए जाने जाते थे। पाक अधिकारियों ने बताया कि खानजादा के पैतृक गांव शादी खान में उनके राजनीतिक कार्यालय पर आत्मघाती हमलावरों के हमले में खानजादा (71) और एक डीएसपी सहित 15 लोगों की मौत हो गई। विस्फोट इतना प्रभावशाली था कि 15 लोग तो मारे गए और इससे ज्यादा लोग घायल हो गए। खानजादा एक सेवानिवृत्त कर्नल थे और इस्लामाबाद से करीब 100 किलोमीटर दूर शादी खान में अपने घर पर जिरगा (बैठक) कर रहे थे, हमलावर वहां घुसने में कामयाब रहे और खुद को बम से उड़ा दिया। मरने वालों में पुलिस उपायुक्त शौकत शाह भी शामिल हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान के अंदरुनी हालात कितने बेकाबू हैं। पाकिस्तान में सिविल एडमिनिस्ट्रेशन को तो कोई पूछता ही नहीं। एक तरफ पाक सेना व आईएसआई और दूसरी तरफ यह जेहादी संगठन। असल शक्तियां यह हैं मौजूदा पाकिस्तान में। जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर पाक कई दिनों से लगातार गोलाबारी कर रहा है। अगस्त के ही महीने में 35 बार जम्मू-कश्मीर नियंत्रण रेखा पर पाक उल्लंघन कर चुका है। रक्षा प्रवक्ता कर्नल मनीष मेहता ने बताया कि पाक सेना रविवार सुबह से ही पुंछ के पांच सैक्टर में अग्रिम चौकियों व आसपास के गांवों पर गोलियों और मोर्टारों से हमला कर रही है। भारतीय सेना भी इसका करारा जवाब दे रही है। सीमा पर लगातार हो रही गोलीबारी के कारण मारे गए लोगों का अंतिम संस्कार भी नहीं हो सका। सीमा के पास स्थित गांवों से कई लोगों ने गोलीबारी से त्रस्त होकर पलायन शुरू कर दिया है। भारतीय सेना ने भी पाक गोलीबारी पर सख्त रुख अपनाया है। रक्षामंत्री मनोहर पार्रिकर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से भी इस मुद्दे पर बातचीत करेंगे। इन परिस्थितियों के चलते जहां पाकिस्तान के अंदरूनी हालात भी काबू में नहीं हैं और न ही पाक सेना नियंत्रण में है पाकिस्तान की सिविल व सियासी जमात से बातचीत का औचित्य क्या है? 23-24 अगस्त को एनएसए स्तर की वार्ता रद्द होनी चाहिए और पाकिस्तान से तब तक बातचीत नहीं होनी चाहिए जब तक वह अपनी हरकतें बंद नहीं करता। आखिर पाकिस्तान हिन्दुस्तान को दे क्या सकता है? पाक सरकार और सेना से जब भी बात होती है वह हमेशा यह बहाना बना देता है कि यह नॉन स्टेट एक्टर माहौल बिगाड़ रहे हैं। यह नॉन स्टेट एक्टर आखिर हैं तो आपकी पैदायश? आपकी सर-जमीन से ही तो हमला करते हैं? जब-जब भारत ने पाक की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है जवाब में कारगिल, 26/11 व गुरदासपुर ही मिला है। हमें पाकिस्तान से फिलहाल कोई बातचीत नहीं करनी चाहिए। पहले स्थिति सामान्य हो फिर बातचीत का सोचा जाए। अभी तो पाकिस्तान की स्थिति बेकाबू है, नियंत्रण से बाहर।