Saturday 1 August 2015

याकूब देशद्रोही था उसे मौत की सजा ही मिलनी थी

याकूब मेमन की फांसी के पक्ष और विरोध में व्यक्त किए जा रहे तर्कों ने देश के तटस्थ समाज को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या आतंकवाद और राष्ट्रद्रोह भी अब गंदी राजनीति के खेल के हथकंडों में शामिल हो जाएंगे? फांसी का विरोध करने वाले अगर इस बिना पर विरोध करते हैं कि देश से मृत्युदंड हट जाना चाहिए तो उस पर बहस हो सकती है, लेकिन इस आधार पर बहस हो कि अपराधी किसी धर्म विशेष से ताल्लुक रखता है इसलिए उसे टारगेट किया जा रहा है सरासर गलत है। याकूब मेमन एक आतंकवादी था। 1993 के बम ब्लास्ट में क्या उसके साथियों ने यह देखकर धमाके किए थे कि मरने वालों का मजहब क्या है? याकूब मेमन को कानूनी दृष्टि से जितने अवसर दिए गए उतने शायद किसी देशद्रोही को नहीं दिए गए। सुप्रीम कोर्ट आधी रात को भी बैठी ताकि कोई बाद में यह न कह सके कि सजा पाए गए व्यक्ति को न्याय नहीं मिला। सुप्रीम कोर्ट ने 21 मार्च 2013 को इस केस में अपना 792 पेज का फैसला दिया था। इन 792 पेजों के फैसले में अकेले याकूब मेमन और उसकी इन बम विस्फोटों में भागीदारी पर लगभग 300 पेज थे। माननीय अदालत ने यहां तक कहा कि याकूब मेमन मास्टर माइंड है। यह षड्यंत्र में पूरी तरह शामिल है। हिन्दुस्तान में पहली बार इस्तेमाल आरडीएक्स को इसने छिपाया। इसे हवाला के जरिए टाइगर मेमन, दाऊद इब्राहिम व आईएसआई ने पैसे भेजे। इसने 15 आदमियों को बम रखने के लिए एकत्रित करके उन्हें दुबई ट्रेनिंग के लिए भेजा। जब वह वापस आए तो इसने पुरानी गाड़ियां खरीदीं उनमें बम रखवाए और उनको मुंबई के कौन-कौन से स्थानों पर रखना है यह तय किया। जो 15 आदमी दुबई गए थे उनके पासपोर्ट-वीजा का याकूब ने बंदोबस्त किया था। इस पर तो बहस हो सकती है कि देश में मृत्युदंड समाप्त होना चाहिए या नहीं पर याकूब मेमन निर्दोष था यह कोई नहीं मानता। जो 40 कथाकथित बुद्धिजीवी, छद्म सेक्युलरिस्ट याकूब को आजीवन कारावास की वकालत कर रहे थे वह भी यह मानते थे कि याकूब कसूरवार है पर उसे सजा ज्यादा दी जा रही है और उसके गुनाहों के लिए उसे मृत्युदंड नहीं आजीवन कारावास होना चाहिए। वह भी यह तो मानते ही हैं कि याकूब मेमन कसूरवार है, गिलटी है। यह भी दलील दी जा रही है कि याकूब को भारत की गुप्तचर एजेंसी रॉ एक समझौते के तहत दिल्ली लाई थी। स्वर्गीय रमन का हवाला दिया जा रहा है कि उन्होंने एक लेख में बताया कि मेमन ने आत्मसमर्पण किया और उसे इस आश्वासन पर लाया गया कि तुम्हें मृत्युदंड नहीं दिया जाएगा। एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार याकूब मेमन पाकिस्तान में रहने से तंग आ चुका था इसलिए वह काठमांडु अपने वकील से मिलने आया था यह संभावना देखने और वकील से विचार करने हेतु कि क्या वह भारत वापस आ सकता है और भारत सरकार से किसी प्रकार का समझौता हो सकता है? उसके वकील ने उसे ऐसा करने से रोका और कहा कि आप पाकिस्तान में ही सुरक्षित हो, भारत अभी नहीं आ सकते। याकूब मेमन वापस कराची जा रहा था कि नेपाल पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया और बाद में भारत को सौंप दिया। याकूब मेमन ने कोई सरेंडर नहीं किया और न ही किसी प्रकार की भारत सरकार ने उससे कोई डील की थी। यह दलील गलत है कि उससे विश्वासघात किया गया। स्वर्गीय रमन तो वैसे भी जरूरत से ज्यादा धर्मनिरपेक्ष अफसर थे। उनकी कैंसर से मृत्यु हो गई। याकूब मेमन, मेमन परिवार में सबसे पढ़ा-लिखा था। वह चार्टर्ड अकाउंटेड था। याकूब जब पढ़ाई कर परिवार का स्तर ऊंचा उठाने की कोशिश कर रहा था तब बड़ा भाई इब्राहिम मेमन उर्प टाइगर मेमन माफिया सरगना दाऊद इब्राहिम के गिरोह से तार जोड़ रहा था। मुंबई के धमाकों के पूर्व ही मेमन परिवार दुबई भाग गया था। वहां से पाकिस्तान शिफ्ट हो गया। याकूब को पाकिस्तान पंसद नहीं आया और 18 महीने बाद ही वह भारत आना चाहता था। पांच अगस्त 1994 को दिल्ली रेलवे स्टेशन से सीबीआई ने उसे गिरफ्तार कर लिया। अगर भारत सरकार से कोई समझौता होता तो उसे एप्रूवर (सरकारी गवाह) बना लिया जाता। फिर पिछले 20 सालों में दाऊद इब्राहिम, टाइगर मेमन और आईएसआई ने एक भी कदम क्यों नहीं उठाया याकूब के हक में? 12 मार्च 1993 को मुंबई बम धमाकों की साजिश भले ही टाइगर मेमन, दाऊद इब्राहिम व आईएसआई ने रची थी लेकिन इसका प्रमुख किरदार याकूब मेमन ही था। उसी ने धमाकों में शामिल अन्य लोगों को गोला-बारूद, हथियार, डेटोनेटर आदि सप्लाई किए और लोगों से धमाके के लिए 21.90 लाख रुपए भी इकट्ठे किए। कौन कहां बम रखेगा इसकी पूरी योजना याकूब मेमन ने ही की और सब तय करने के बाद परिवार के साथ कराची फरार हो गया। हम इन कथाकथित सैक्यूलरिस्टों से पूछना चाहते हैं कि यदि इस तरह की वारदात सऊदी अरब या किसी अन्य अरब देश में होती तो आज से 22 साल पहले ही उसके सिर को कलम कर दिया जाता। यह तो हमारे देश का कानून लचीला है और इसीलिए भारत आतंक की चरागाह बनता जा रहा है। इंसान की पहचान उसके कर्मों से होती है न कि उसके मजहब से। कलाम बनकर रहोगे तो मुल्क सिर माथे पर बिठाएगा, याकूब बनने की कोशिश करोगे तो देशद्रोही कहलाओगे। कलाम बनकर रहोगे तो देश सलाम करेगा।
-अनिल नरेन्द्र



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