Wednesday, 5 August 2015

पहली बार हाई कोर्ट में पांच माह का बच्चा पेश

पिछले कुछ दिनों से हमारी अदालतें नए-नए कीर्तिमान बना रही हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट याकूब मेमन केस में देर रात तक बैठी और याकूब मेमन को हरसंभव मौका दिया अपना बचाव करने में। अब शनिवार को राजस्थान हाई कोर्ट ने एक दूधमुंहे बच्चे के अधिकार से जुड़ा केस छुट्टी होने के बावजूद सुना। हाई कोर्ट में जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी सुनवाई के लिए विशेष तौर पर कोर्ट पहुंची। पहली बार पांच माह का बच्चा कोर्ट में पेश हुआ। मां ने ही जिंदगी दी है, इसलिए मां ईश्वर है और गुरु तो पहले दिन से ही मां है फिर कैसे एक मां अपने पांच माह के बच्चे को किसी साधू को सौंप सकती है? कोई भी धर्म, कोई भी धर्मगुरु एक मासूम को उसे मां के दूध से वंचित नहीं रख सकता। यह उसी फैसले का हिस्सा है जो जस्टिस त्रिवेदी ने सुनाया। जज महोदया सुनवाई के लिए बच्चे के माता-पिता से भी पहले अदालत पहुंच गई थीं। सुनवाई सुबह 11.15 पर शुरू हुई। धर्म-आस्था, सरोकार पर बहस हुई। सवाल भी उठे कि जिसके लिए मां का दूध ही जिंदगी हो, क्या उसे एक साधू को सौंपा जा सकता है? दो घंटे बहस चली। फैसला शाम पांच बजे आया। जस्टिस त्रिवेदी ने कहाöबच्चे को साधू से ज्यादा मां की जरूरत है। उसे माता-पिता को सौंप दिया जाए। दादा-दादी और नाना-नानी निगरानी रखें। गोदनामे पर अगले आदेश तक रोक लगा दी गई। गृहस्थ और संन्यास के बीच उलझे मासूम का यह मामला सात दिन पुराना है। लेक्चरार मां पूजा और बिल्डर पिता पवन ने अपने दूधमुंहे बेटे मुल्कराज को 23 जुलाई को खंडवा (मप्र) के साधू राम दयाल उर्प छोटे सरकार को सौंप दिया था। गोदनामा भी लिख दिया। दादा-दादी विरोध में आए लेकिन उनकी एक न सुनी। आखिर दादा राजेंद्र पुरोहित हाई कोर्ट पहुंचे। सुनवाई के दौरान बच्चा कई बार रोया। मां चुप कराती रही। लगातार रोने लगा तो कोर्ट अफसर ने बाहर घुमा लाने को कहा ताकि वह चुप हो जाए। बाहर दादा-दादी भी खड़े थे। बच्चे ने उन्हें देखा और रोना बंद कर दिया। जब कोर्ट ने फैसला सुनाया तो दादा वहां वकील के गले लगकर रोने लगे। दादी ने कहा कि साधू ने उनके घर का सुख-चैन छीन लिया है। दादा-दादी का आरोप था कि बेटे-बहू पर बाबा ने वशीकरण कर दिया है। इसीलिए मेरे पोते को उस तांत्रिक के हवाले कर दिया है। वह उसकी बलि भी दे सकता है। इस पर कोर्ट ने मां से पूछाöबच्चा अभी मां का दूध पी रहा है। कैसे रहेगा मां के बिना? कहीं सच में बलि का इरादा तो नहीं था? मां ने कहाöहम पढ़े-लिखे हैं सोच-समझ कर गोद दिया है। बाबा ने बच्चे को विदेश में पढ़ाने का वादा किया है। बाबा बोलाöमैं संन्यासी हूं, ब्रह्मचारी नहीं। दादा दरबार का प्रमुख भी हूं। कानूनी तौर पर बच्चे को गोद ले सकता हूं।

-अनिल नरेन्द्र

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