Tuesday 4 August 2015

गतिरोध दूर करने के लिए `नो वर्प नो पे' लागू करना चाहिए

संसद के दो सत्र बर्बाद हो चुके हैं और आगे भी संसद के चलने की संभावना कम ही दिख रही है। जारी गतिरोध को दूर करने के उद्देश्य से एक बार फिर सर्वदलीय बैठक बुलाई गई है पर बैठक से पहले ही कांग्रेस और भाजपा में तीखे जुबानी तीर चलने शुरू हो गए हैं। कांग्रेस अपने पुराने स्टैंड पर ही अड़ी हुई है कि जब तक मोदी सरकार सुषमा स्वराज, वसुंधरा राजे और शिवराज चौहान के इस्तीफों पर कोई ठोस प्रस्ताव सामने नहीं लाती तब तक कांग्रेस सरकार से कोई चर्चा नहीं करेगी। इस पर कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण ने रविवार को कहा कि इस्तीफे पर अड़े रहकर कांग्रेस अपने ही बुने जाल में फंस गई है। इस स्थिति से सम्मानजनक ढंग से निकलने का उसके लिए यही रास्ता होगा कि वह ललित मोदी प्रकरण पर संसद में चर्चा के लिए राजी हो। केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कांग्रेस पर जीएसटी बिल को पास होने से रोकने में अड़चन डालने का आरोप  लगाया। कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने कहा कि वित्तमंत्री और भाजपा नेताओं के बयानों से साफ है कि सरकार संसद में गतिरोध समाप्त करने के प्रति गंभीर नहीं है। कांग्रेसी सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी दोहराया कि जब तक आरोपी भाजपा नेताओं के इस्तीफे नहीं हो जाते तब तक कांग्रेस किसी चर्चा में भाग नहीं लेगी। जनता अपनी गाढ़ी कमाई से अपने जन प्रतिनिधियों को संसद ठप करने के लिए नहीं चुनती। एक मिनट की संसद की कार्यवाही पर करीब ढाई लाख रुपए लगते हैं। इस तरह करोड़ों रुपए बर्बाद हो चुके हैं। इस दौरान संसद में जारी गतिरोध के बीच केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा ने सुझाव दिया है कि सांसदों के लिए `काम नहीं तो वेतन नहीं' की नीति लागू की जानी चाहिए जैसे नौकरशाहों के संबंध में होती है। पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने वाराणसी में पत्रकारों से कहा कि सरकार के वरिष्ठ मंत्री विपक्ष के सम्पर्प में है और कामकाज को सुचारू रूप से चलाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि केंद्र सरकार संसद में कामकाज बाधित होने के मद्देनजर सांसदों के लिए काम नहीं तो वेतन नहीं संबंधी किसी प्रस्ताव पर विचार कर रही है क्योंकि जनता का पैसा बर्बाद हो रहा है। उल्लेखनीय है कि 21 जुलाई से शुरू संसद के मानसून सत्र के दौरान कार्यवाही सुचारू रूप से नहीं चल रही है। लगता है कि गतिरोध दूर करने के लिए अब खुद प्रधानमंत्री को पहल करनी होगी। कोई तो रास्ता निकालना होगा। कांग्रेस अपनी मांग पर इतनी बुरी तरह से अड़ी हुई है कि उसका पीछे हटना मुश्किल लगता है। और सरकार इस्तीफे नहीं करा सकती, महज आरोपों पर। इसलिए कोई बीच का रास्ता ऐसा निकालना होगा जिससे दोनों पक्षों की बात रह जाए और यह काम अब सिर्प पीएम ही कर सकते हैं।

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