Thursday 27 August 2015

तीन तलाक के सख्त खिलाफ मुस्लिम महिलाएं

नारीवादी क्रांति ने भारत सहित अन्य मुस्लिम देशों में अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। अब महिलाओं की शादी के लिए जोर-जबरदस्ती नहीं की जा सकती क्योंकि वे अपने मनपसंद जीवन साथी के साथ बसने से पहले नौकरी या काम-धंधा करने को तवज्जो देने लगी हैं। आज मुस्लिम महिला द्वारा अविवाहित या एकल महिला (सिंगल वूमैन) के रूप में जीवन बिताना कुछ देशों में स्वीकार्य बन गया है। बेशक इस बदलाव की रफ्तार धीमी है पर करियर को प्राथमिकता देने वाली उन महिलाओं में यह सिलसिला शुरू हो चुका है। आज ईरान के शहरों में अविवाहित या एकल महिला का होना असाधारण बात नहीं है। इनकी वास्तविक संख्या के आंकड़े तो उपलब्ध नहीं हैं पर विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों, रियल एस्टेट एजेंटों, परिवारों एवं युवा महिलाओं का मानना है कि पिछले कुछ सालों में बड़ी संख्या में लड़कियों के विश्वविद्यालयों में पढ़ने और तलाक के मामलों में वृद्धि के चलते यह नया सिलसिला जोर पकड़ रहा है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2000 में ईरान में 50,000 तलाक हुए जबकि वर्ष 2010 में इसमें तीन गुना से भी ज्यादा की वृद्धि हुई और यह आंकड़ा 1,50,000 के पार चला गया। पिछले पांच सालों में तो वृद्धि का अंदाजा नहीं। इधर हमारे देश में कई वर्षों से मुस्लिम समाज में तीन तलाक पर बहस चल रही है। लेकिन हाल में मुस्लिम महिला आंदोलन (बीएमएमए) की ओर से किए गए सर्वे की मानें तो भले ही मुस्लिम धर्मगुरुओं की ओर से इस पर कोई भी राय हो पर इससे सबसे अधिक प्रभावित होने वाली मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक के बिल्कुल खिलाफ हैं। उनका मानना है कि तीन तलाक और बहुविवाह प्रथा पर कानूनी तौर पर पाबंदी लगनी चाहिए। सर्वेक्षण में 4710 मुस्लिम महिलाएं शामिल हुईं। 10 राज्यों में यह रायशुमारी कराई गई थी। सर्वे में शामिल कई महिलाओं ने बताया कि उनके शौहर ने मौखिक तलाक दिया। कुछ महिलाओं के मुताबिक चिट्ठी या एसएमएस से उन्हें तलाक की सूचना मिली। 78 फीसदी महिलाओं की असहमति के बावजूद पति ने दिया तलाक। 90 फीसदी महिलाओं ने कहा कि तीन तलाक पर रोक लगनी चाहिए। 88 फीसदी महिलाओं की राय कानूनी प्रक्रिया के तहत हो तलाक। 50 फीसदी महिलाएं ही हैं शिक्षित, जबकि राष्ट्रीय औसत 53 फीसदी है। 90 दिनों तक तलाक--अहसान प्रक्रिया हो ताकि समझौते की गुंजाइश रहे। 92 फीसदी ने कहा कि दूसरी पत्नी रखने की इजाजत नहीं होनी चाहिए। 13 फीसदी मुसलमान देश की कुल 1.2 अरब आबादी में हिस्सेदारी करते हैं। इंडोनेशिया के बाद भारत दुनिया का सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाला देश है। महज तीन बार तलाक कहने से तलाक नहीं होना चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

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