Thursday 20 August 2015

बिहार चुनाव आम चुनाव पार्ट-2

नरेन्द्र मोदी और भाजपा गठबंधन को बिहार में हराने के लिए नीतीश का महागठबंधन बन गया है। बिहार में आरजेडी-जेडीयू-कांग्रेस महागठबन्धन ने सीटों का तालमेल कर चुनावी बिसात बिछा दी है। बिहार पर पूरे देश की नजर लगी हुई है और बिहार चुनाव परिणाम देश के सियासी भविष्य की दशा-दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। महागठबंधन में इन पार्टियों के साथ-साथ चुनाव लड़ने का रास्ता अब पूरी तरह साफ हो चुका है। जद(यू) और राजद के नेताओं ने यह फार्मूला तय करते वक्त इस बात का ख्याल रखा है कि आपसी विवादों के लिए यथासंभव कम से कम जगह छोड़ी जाए। इस फार्मूले के तहत जद(यू) और राजद 100-100 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे और कांग्रेस को 40 सीटें मिलेंगी। इस फार्मूले की खास बात यह है कि दोनों बड़ी पार्टियों को बराबर-बराबर सीटें मिलेंगी और किसी को यह डर नहीं होगा कि दूसरी पार्टी उस पर हावी होगी। सिर्प 100 सीटों पर लड़ने से यह भी सुनिश्चित हो गया है कि अगर महागठबंधन को बहुमत मिलता है तो कोई पार्टी इतनी ताकतवर नहीं हो सकती कि दूसरी पार्टी को धत्ता दिखा सके। बिहार में महागठबंधन की बुनियाद रखे जाने के दिन से ही सहयोगी जद(यू) और इसके नेता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर तमाम तरह का दबाव बनाने के खेल रच रहे राजद सुपीमो लालू पसाद यादव की एक न चली और सीट बंटवारे में उन्हें नीतीश के समक्ष पूर्ण समर्पण की मुद्रा में देखा गया। हां, इन दोनों की शह-मात के खेल में कांग्रेस की जरूर लाटरी लग गई है जिससे उसकी मौजूदा हैसियत से ज्यादा सीटें लड़ने के लिए मिल रही हैं। दूसरी ओर भाजपा को लगता है कि मोदी लहर के सहारे वह बिहार में भी बाजी मार लेगी। विपक्ष का मानना है कि पिछले कुछ महीनों में शुरू हुई उसकी भाजपा विरोधी मुहिम अब कुछ-कुछ जड़ पकड़ने लगी है और बिहार में यह अपना चमत्कार जरूर दिखाएगी। बहरहाल भाजपा के खिलाफ बने सेक्यूलर गठबंधन की एक छोटी चूक भी सीट बंटवारे की घोषणा के साथ ही सामने आ गई है। शरद पवार की एनसीपी का बिहार में कोई खास वजूद तो नहीं है पर फिर भी उसे गठबंधन वार्ता में इज्जत से बिठाए जाने की उम्मीद थी। उसके लिए बिना बातचीत के ही तीन सीटें छोड़ी गईं लेकिन वह इससे संतुष्ट नहीं है और गठबंधन से अलग होकर चुनाव लड़ने के लिए ताल ठेंक रही है। ंइस बार जीतन राम माझी और पप्पू यादव जैसे नेता भी मैदान में हैं जो किसी भी खेमे का खेल बिगाड़ सकते हैं। एनडीए की सबसे बड़ी चुनौती अपने सहयोगी दलों की महत्वाकांक्षा पर नियंत्रण लगाना है। उपेंद्र कुशवाहा और राम विलास पासवान से सीटों की डील करना आसान नहीं होगा कयोंकि इनकी नजर भी सीएम पद पर है और तो और खुद भाजपा में कम से कम पांच लीडर इस कुसी की फिराक में हैं। यह चुनाव सभी पार्टियों के लिए बड़ा महत्वपूर्ण हो गया है। भाजपा ने हालांकि दांव नरेंद्र मोदी की लाकपियता व लहर पर लगाया है पर इससे इंकार वह भी नहीं कर सकती कि पिछले कुछ महीनों में मोदी का ग्राफ गिरा है और शत्रुघ्न सिन्हा सरीखे के नेताओं का भी असर तो होगा ही। नीतीश कुमार की भविष्य की राजनीति उनके तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने पर निर्भर है। लालू पसाद यादव और राजद को दस साल बिहार की सत्ता से बाहर रहते हो गए हैं। उनका सत्ता में आना इसलिए भी जरूरी है कि अगर वह नहीं जीतते तो उनकी और उनकी पाटी का बिहार में राजनीतिक भविष्य चौपट होने का खतरा हो जाएगा। दोनों ही गठबंधनों को अपनी-अपनी पाटी के कार्यकर्ताओं में समन्वय बैठाना भी कम चुनौती नहीं है। ऐसे में इस चुनाव को आम चुनाव पार्ट-2 कहना गलत नहीं होगा।

-अनिल नरेंद्र

No comments:

Post a Comment