Friday, 7 August 2015

ऐतिहासिक शांति समझौता

देश को नगा समझौते का अनूठा उपहार सौंपने के लिए केंद्र सरकार खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शुक्रिया। अंग्रेज जाते-जाते हमारे लिए ऐसा पेंच फंसा गए थे कि हम दशकों से उलझे चल रहे थे। दरअसल आजादी के बाद से ही नगा के करीब आधा दर्जन जनजाति मिलकर नगालिंगम नाम से अलग देश की मांग कर रहे थे। सोमवार को नरेंद्र मोदी सरकार और एनएससीएन (आईएएम) ने समझौते के जरिए छह दशक पुराने उग्रवाद का राजनीतिक हल निकालने में सफलता हासिल की है। समझौते से पहले पीएम मोदी ने ट्विट कर कहा कि पूरा देश सोमवार साढ़े छह बजे एक ऐतिहासिक क्षण का गवाह बनने वाला है। केंद्र सरकार ने नगालैंड के उग्रवादी संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (इसाक-मुईवा) के साथ समझौता कर संकेत दिया है कि वह नगालैंड सहित पूरे पूर्वोत्तर में शांति कायम करने को लेकर गंभीर हैं। प्रधानमंत्री की नजर में यह एक ऐतिहासिक करार है। हमारे मानस में अंग्रेजों ने नगा समाज की जो अराजक छवि बना दी थी उससे भी उभरने में हमें खासा वक्त लगा है। नॉर्थ-ईस्ट राज्यों पर कुटिल नजर रखने वाले चीन ने भी इस समस्या को उलझाए रखने में खासा पसीना बहाया है। इस इलाके के बागियों को हथियारों की सप्लाई करने में चीन की खासी रुचि रहती आई है, हालांकि पूछे जाने पर वह सीधा नकार जाता रहा है। इस समझौते को आकार लेने में करीब दो दशक लगे हैं और जिसमें पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की भी प्रमुख भूमिका रही है। मनमोहन सिंह सरकार ने अगर पहल की होती तो यह उपलब्धि उसके खाते में जा सकती थी। लेकिन उसने न तो ऐसी रुचि दिखाई और न समय पर असरदार फैसले ही ले पाई। करीब तीन दशक पहले 1986 में राजीव गांधी के समय पूर्वोत्तर के उग्रवादी गुट मिजो नेशनल में इस समय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने अहम भूमिका निभाई थी। नगाओं के उग्रवादी संगठन एनएससीएन (आईएएम) के साथ समझौते में अजीत डोभाल हालांकि आधिकारिक वार्ताकार के तौर पर सक्रिय तो नहीं थे लेकिन बातचीत की दशा-दिशा निर्धारित करने का काम वही कर रहे थे। इस विद्रोही गुट से बातचीत के लिए नियुक्त वार्ताकार आरएन रवि उनकी ही पसंद थे। उनकी नियुक्ति के समय ही यह स्पष्ट हो गया था कि परिणाम जल्द आ जाएंगे। मिजो नेशनल फ्रंट से समझौते के समय अजीत डोभाल पूर्वोत्तर में इंटेलीजेंस ब्यूरो का काम देख रहे थे। वह मिजो नेशनल फ्रंट के कमांडरों के बीच अपनी पैठ बनाने और उनका विश्वास जीतने में सफल थे। जब मिजो नेशनल फ्रंट के आठ कमांडर समझौते के लिए राजी हो गए तो उसके नेता लाल  देंगा को न चाहते हुए भी शांति समझौते के लिए राजी होना पड़ा। समझौते के बाद उन्होंने कहा थाöमैं क्या करूं मेरे सारे साथी तो डोभाल के साथ हो लिए थे। अजीत डोभाल के प्रयासों से मिजोरम को 20 साल से चले आ रहे उग्रवाद से निजात मिलेगी। इस मौके पर हमें पूर्व पीएम अटल जी को भी याद कर लेना चाहिए जिन्होंने कोहिमा जाकर वहां की स्थानीय भाषा से अपने उद्बोधन की शुरुआत कर लोगों का दिल जीत लिया था। उनकी इसी परंपरा को मोदी ने भी अपने चिर-परिचित अंदाज में दोहराते हुए कबूल किया कि नगा समुदाय के अनूठे व्यक्तित्व और उन्नत पारिवारिक परंपरा से पूरे देश को सीखने की जरूरत है। हम समझते हैं कि नागालैंड का बहुमत इस समझौते का स्वागत करेगा और साथ देगा पर खापलांग जैसे अन्य विरोधी गुट इस समझौते का विरोध करेंगे और उनके हमले जारी रह सकते हैं। मोदी सरकार को खासकर अजीत डोभाल को उनको भी अमन के रास्ते में लाने की चुनौती अब भी है। बेशक इस समझौते से थोड़ी शांति जरूर होगी पर समस्या का पूर्ण समाधान तभी माना जा सकता है जब नागालैंड के बचे गुटों को शांति टेबल पर लाया जाएगा।

-अनिल नरेन्द्र

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