Sunday, 9 August 2015

हारदा रेल दुर्घटना रेलवे के लिए सबक भी, सवाल भी?

मंगलवार रात मध्यप्रदेश के हारदा रेलवे स्टेशन के पास इटारसी-खंडवा सेक्टर के पास दो लंबी दूरी की रेलगाड़ियों की कई बोगियां एक साथ पलट गईं। इस भीषण दुर्घटना में 30 से ज्यादा लोगों की मृत्यु हो गई, कई घायल हैं और कुछ के बारे में अब तक कोई जानकारी नहीं है। रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने प्राकृतिक आपदा को बताकर अपने विभाग को बचाने का प्रयास किया है। उनका कहना है कि जिस छोटी-सी नदी के पुल पर यह दुर्घटना हुई है, उसमें अचानक बाढ़ आ गई जिससे पटरियों की बुनियाद ही बह गई। सूत्रों के मुताबिक हारदा और आसपास के इलाकों में पिछले दो दिन से भारी बारिश हो रही है। रेलवे भी यह देख रहा था मगर उसने ट्रेनों के आवागमन को नियंत्रित नहीं किया। जहां ट्रेन हादसा हुआ उस इलाके में पानी भरा होने की वजह से पटरियों के आसपास की मिट्टी कट गई थी जिससे पटरियां कमजोर हो गईं। बारिश के कारण पानी का बहाव तेज होने पर पुलिया के आसपास की मिट्टी कटने से दोनों ट्रेनें दुर्घटनाग्रस्त हो गईं। अगर स्थानीय रेल कर्मचारियों ने दिन में मुआयना किया होता तो शायद दुर्घटना न होती। दुर्घटना की जांच आठ मिनट के घटनाक्रम पर टिकी है। अभी तो नहीं लेकिन जांच में इसका खुलासा जरूर होगा कि आठ मिनट में इतना पानी पुल और पटरी पर कैसे आ गया? यदि ऐसा हुआ होता तो क्या पानी के बहाव को सहने की क्षमता पुल और पटरी के लिए बनाए गए अर्थवर्प में नहीं थी, जिससे वह इसे सह सके। इसमें कहीं अर्थवर्प को लेकर इंजीनियरिंग तौर पर चूक तो नहीं हुई है? रेलवे का कहना है कि आठ मिनट पहले रिवर किया व मिरंगी स्टेशन के बीच पुल पर बनी रेल पटरी से दो ट्रेनें गुजरी थीं। इन पर दोनों ट्रेनों के पायलटों और गार्डों को यह अहसास भी नहीं हुआ कि पुल और पटरी में कोई खामी है। लेकिन आठ मिनट में पटरी पर इतना पानी आ गया कि कामायनी एक्सप्रेस और जनता एक्सप्रेस के डिब्बे पटरी से उतर गए? इस हादसे के लिए सिर्प बारिश और बाढ़ को दोष देना अपनी जिम्मेदारी से बचने का प्रयास है। रेलवे वार्ड के चेयरमैन का यह बयान भी बचकाना लगता है कि हादसे से कुछ मिनट पहले ही दो ट्रेनें इस लाइन से गुजरी थीं, लिहाजा इसके लिए रेलवे को दोषी नहीं माना जा सकता। यदि पटरियां बह गई थीं तो इसका मतलब है कि तेज बारिश के कारण रेल ट्रैक कमजोर पड़ गया था और जाहिर है कि यह एक दिन में नहीं हुआ होगा। सवाल यह है कि पटरियों के रखरखाव की जिम्मेदारी किसकी है? सच तो यह है कि देश के 65,000 किलोमीटर लंबे रेलवे नेटवर्प के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की जरूरत है। नई-नई ट्रेनें चलाने की जगह अगर मौजूदा रेलवे नेटवर्प पर ध्यान दिया जाए तो बेहतर होगा। ऐसा भी नहीं है कि रेलवे की दशा सुधारने के लिए प्रयास नहीं किए गए हैं। राकेश मोहन, अनिल काकोदकर, सैम पित्रोदा और ई. श्रीधरन जैसे विद्वान विशेषज्ञों की अगुवाई में अनेक कमेटियां न जानें कितने सुझाव दे चुकी हैं। यदि इनमें से आधे पर भी अमल हो जाए तो भी रेलवे और रेलयात्रियों का उद्धार हो जाए।

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