पिछले
दो वर्षों से देश में महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों के प्रति जहां अभूतपूर्व संवेदनशीलता
देखी जा रही है वहीं दुख से कहना पड़ता है कि कुछ महिलाएं इस संवेदनशीलता का दुरुपयोग
भी करने लगी हैं। बेशक देश में महिलाओं के प्रति बलात्कार के मामले पहले के मुकाबले
बहुत ज्यादा दर्ज हो रहे हैं वहीं यह भी सही है कि बलात्कार के बहुत सारे मामले जांच
के बाद फर्जी पाए जा रहे हैं। दिल्ली महिला आयोग ने अपनी पड़ताल में अप्रैल 2013 से जुलाई 2014 तक आई बलात्कार की कुल 2753 शिकायतों में से
1466 को झूठा पाया। इस सूचना से लगता है कि समाज में एक वर्ग ऐसा भी
है जो यौन उत्पीड़न विरोधी कानून की सख्ती का दुरुपयोग करने की कोशिश में लगा हुआ है।
कुछ दिन पहले सरवबानमपट्टी पुलिस को खबर मिली कि महिला छात्रावास के एक कमरे में
22 साल की एक लड़की के साथ दो लड़कों ने बलात्कार किया है। लड़की से
पूछताछ में उसने बताया कि परिवार को होने वाली शर्मिंदगी के कारण उसने पुलिस में इस
घटना के बारे में शिकायत दर्ज नहीं कराई थी। यहां तक कि उसने पुलिस को धमकी भी दी कि
अगर उन्होंने शिकायत दर्ज की तो वह आत्महत्या कर लेगी। पुलिस की जांच में सामने आया
कि 14 साल की उम्र से ही उक्त लड़की का उस लड़के के साथ प्रेम
संबंध था जिसके द्वारा बलात्कार करने का आरोप लड़की ने लगाया था। पुलिस अधिकारियों
द्वारा मामले की गंभीरता के बारे में आगाह किए जाने पर लड़की ने स्वीकार किया कि उसने
बलात्कार की झूठी कहानी बनाई थी। उसने पुलिस को अपने प्रेम संबंध के बारे में भी बताया।
यह मामला इरोड का है। पुलिस अधिकारियों के मुताबिक अंतर्जातीय विवाह होने के कारण लड़की
के माता-पिता लड़के के साथ उसकी शादी कराने को तैयार नहीं थे।
लड़की ने शादी से बचने के लिए बलात्कार का नाटक किया। ज्यादातर फर्जी शिकायतें या तो
बदला लेने की नीयत से या फिर ब्लैकमेलिंग के उद्देश्य से की जाती हैं। इनमें से कई
लिव इन रिलेशन टूटने पर लड़की की ओर से दर्ज कराई गईं जबकि बाकी में पैसा ऐंठने का
मकसद है। निर्भया कांड के बाद माहौल ऐसा बन गया है कि किसी भी महिला द्वारा इस आशय
के बयान को अंतिम सच मान लिया जाता है और कथित आरोपी को गिरफ्तार कर उसके खिलाफ चार्जशीट
दर्ज कर दी जाती है। इसके चलते यौन उत्पीड़न के झूठे मामलों की बाढ़-सी आ गई है। लेकिन महिला आयोग की रिपोर्ट के बाद अगर कोई इस नतीजे पर पहुंच
जाता है कि बलात्कार के काफी मामले झूठे होते हैं तो इसे उसका पुरुषवादी पूर्वाग्रह
ही समझा जाना चाहिए। जाहिर है कि फर्जी मामलों का कुछ इंतजाम जरूर करना होगा लेकिन यौन उत्पीड़न
के सवाल पर आ रही जागृति में ढील हरगिज नहीं दी जानी चाहिए।
-अनिल नरेन्द्र
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