Thursday, 30 June 2016

दुनिया के सबसे बड़े फुटबॉलर का 29 साल में संन्यास

हार-जीत हर खेल का हिस्सा है लेकिन एक जिस किसी खिलाड़ी को 29 वर्ष की उम्र में ही खेल से संन्यास लेने पर विवश कर दे तो हर कोई चौंकेगा ही? चिली और अर्जेंटीना के बीच खेले गए कोपा अमेरिका फुटबॉल टूर्नामेंट के फाइनल में मैच के विनर का फैसला पेनल्टी शूटआउट में हुआ। इस शूटआउट में दोनों टीमें अपनी-अपनी पहली किक मिस कर गईं। चिली के आर्तुरो विडाल तो अर्जेंटीना के लियोनल मेसी पेनल्टी किक पर गोल नहीं दाग सके और चिली जीत गया और लगातार दूसरी बार कोपा अमेरिका का चैंपियन बना। मेसी इस हार से इतने आहत हुए कि उन्होंने मीडिया के साथ बातचीत के दौरान अंतर्राष्ट्रीय फुटबॉल से ही संन्यास लेने की घोषणा कर डाली। मैच खत्म होने के चन्द पलों बाद संन्यास लेने की मेसी की घोषणा ने दुनिया में फुटबॉल प्रेमियों में तूफान मचा दिया। सवाल हो रहे हैं कि दुनियाभर को अपना दीवाना बना देने वाला मेसी क्यों हार का जिम्मेदार है? जबकि इसी मेसी ने कोपा अमेरिका 2016 के पिछले मैचों में बेहतरीन प्रदर्शन करके टीम को फाइनल तक पहुंचाया? बावजूद इसके मेसी को हार का जिम्मेदार इसलिए ठहराया जा रहा है कि उनसे यह कतई उम्मीद नहीं थी कि वह फाइनल मैच में पेनल्टी मिस कर जाएंगे। पिछले कुछ वर्षों में मेसी ने प्रदर्शन, गेंद पर नियंत्रण, पासिंग और दमदार गोल की बदौलत पूरी दुनिया को अपना दीवाना बना दिया है। यही खासियत मेसी और उनकी टीम अर्जेंटीना की पहचान बन गई। जबकि हकीकत यह है कि अर्जेंटीना में लावेज, डी मारिया, फर्नांडीस जैसे और भी स्टार खिलाड़ी हैं जो अबकी बार चोटिल होने के कारण फाइनल में नहीं खेल सके। लेकिन पांच बार के इस चैंपियन खिलाड़ी से मैदान में उनके दीवाने कुछ ज्यादा ही उम्मीदें लगा लेते हैं। वैसे इसी टूर्नामेंट में मेसी का जादू खुलकर बोला। यहां तक कि जिस चिली के खिलाफ उनका फाइनल मुकाबला था, उसे वे ग्रुप मुकाबलों में 2-1 से हरा चुके हैं। ऐसा नहीं कि कोपा अमेरिका में जीतने से मेसी की महानता कुछ और बढ़ जाती, पर नहीं जीतने से क्लब के लिए हीरो और देश के लिए जीरो की बातें फिर से होनी लगी है। मेसी के आलोचक भी मानते हैं कि अगर उनके नाम वर्ल्ड कप और कोपा अमेरिका खिताब होता तो वे सर्वकालिक महानतम खिलाड़ी कहलाते। स्किल के लिहाज से उन्हें ब्राजील के पेले (तीन वर्ल्ड कप) और हमवतन डिएगो माराडोना के समक्ष रखा जाता है। लेकिन अर्जेंटीना के लिए एक भी बड़ा खिताब नहीं जीत पाने के कारण वे ग्रेटेस्ट फुटबॉलर की होड़ में पिछड़ गए। हार के बाद लियोनल मेसी ने कहाöहम लगातार तीसरा फाइनल हारे। हमने पूरी कोशिश की लेकिन यह ट्राफी हमारे लिए नहीं थी। मेरे पेनल्टी मिस करने से हमें हार झेलनी पड़ी, सिर्प फाइनल तक पहुंचना काफी नहीं। जीतना जरूरी है।

-अनिल नरेन्द्र

अखिलेश यादव के नए तेवर

उत्तर प्रदेश के ज्यों-ज्यों विधानसभा चुनाव करीब आते जा रहे हैं सूबे की राजनीति में उबाल आता जा रहा है। सभी पार्टियों की नजर पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक मतदाताओं को लुभाने में लगी है। अखिलेश यादव को ही ले लीजिए। अखिलेश का एक नया स्वरूप देखने को मिल रहा है। मामला चाहे उनके मंत्रिमंडल विस्तार का हो या मुख्तार अंसारी के नेतृत्व वाली कौमी एकता पार्टी के सपा में विलय होने का पुरजोर विरोध का रहा हो या फिर मुख्यमंत्री का अपने चाचा व राज्य के मंत्री शिवपाल सिंह यादव के खिलाफ जाने का हो। यह सब कुछ अचानक नहीं हुआ। शिवपाल कौमी एकता दल का सपा में विलय चाहते थे पर अखिलेश ऐसा नहीं चाहते थे। यह टकराव इतना बढ़ गया कि विलय में मुख्य भूमिका निभाने वाले बलराम यादव को मंत्री पद से हाथ धोना पड़ा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वह मुख्तार अंसारी जैसे लोगों को पसंद नहीं करते और यही वजह है कि पार्टी में उनके शामिल होने का विरोध किया। सामान्य तौर पर अपने कार्यकाल के अंतिम वर्ष में मुख्यमंत्री चुनावी तैयारियों को ध्यान में रखकर ही अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल करते हैं। लेकिन अखिलेश ने अपने सातवें और कार्यकाल के संभवत आखिरी फेरबदल में जिन परिस्थितियों में महज एक हफ्ते पहले हटाए गए बलराम सिंह यादव को दोबारा मंत्रिमंडल में शामिल किया उससे उनकी मजबूरी झलकती है। इस  लिहाज से जेल में बंद मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल का सपा में विलय रोकने के लिए कड़ा रुख अख्तियार करना सही है। दरअसल 2012 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को स्पष्ट बहुमत दिलाने में अखिलेश की युवा, क्लीन छवि और कड़ी मेहनत जिम्मेदार थी। पर मुख्यमंत्री बनने के बाद चौतरफा पारिवारिक दबाव के चलते, अधिकारियों की तैनाती को लेकर व नीतिगत फैसलों तक में अखिलेश फिसलते नजर आए। अब अखिलेश ने साहस से काम लेने का फैसला किया है। उन्होंने कहा कि जनता ने मुझे चुनकर भेजा है और नेता जी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया है। जो मुझे ठीक लगेगा वह मैं करूंगा। निर्णय चाचा-भतीजे का नहीं, बल्कि समाजवादी पार्टी सरकार का होता है और सरकार वही फैसला लेती है जो जनता के हित में है, आरोप तो लगते ही रहते हैं। एक बार तो डॉ. राम मनोहर लोहिया को भी लोकसभा में गुंडा कह दिया गया था, इसका मतलब तो यह नहीं कि लोहिया जी गुंडे थे। सपा और बसपा उत्तर प्रदेश की पारंपरिक रूप से दो बड़ी प्रतिद्वंद्वी पार्टियां हैं और दोनों को इसका अहसास होगा कि पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 73 सीटें जीतकर अपने लिए बड़ी जगह बना ली है। मंत्रिमंडल विस्तार में अखिलेश ने नए तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं, देखिए आगे-आगे होता है क्या?

Wednesday, 29 June 2016

कश्मीर में सुरक्षा बलों पर बढ़ते हमले

श्रीनगर के बाहरी क्षेत्र पांपोर में शनिवार शाम केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की बस पर हमले को हमें गंभीरता से लेना चाहिए क्योंकि यह सुरक्षा बलों पर विगत तीन वर्षों में सबसे बड़ा हमला था। सीआरपीएफ के काफिले पर किए गए हमले में आठ जवानों के शहीद होने से पूरे देश में क्षोभ और गम का माहौल है। किसी सामान्य आतंकी हमले में इतनी संख्या में सुरक्षा बल हताहत नहीं होते। दुखद पहलू यह भी है कि अगर सीआरपीएफ ने खुफिया अलर्ट को गंभीरता से लिया होता तो इस हमले में हमें आठ जवान न गंवाने पड़ते। सभी सुरक्षा एजेसियों को समय रहते सूचित किया गया था कि श्रीनगर से अनंतनाग के बीच विशेषकर पांपोर और अवंतीपोरा तक आतंकी किसी बड़ी वारदात को अंजाम दे सकते हैं। शनिवार सुबह यह अलर्ट जारी हुआ था। इसमें साफ कहा गया था कि सीआरपीएफ के वाहनों को आतंकी निशाना बना सकते हैं। हमले की जांच कर रहे एक अधिकारी के अनुसार आतंकियों का निशाना बने सीआरपीएफ के वाहनों के साथ कथित तौर पर कोई एस्कार्ट वाहन भी नहीं था। बेशक जवाबी कार्रवाई में सुरक्षा बल के जवानों ने दो आतंकियों को ढेर कर दिया, पर अगर सचमुच दो आतंकी ऑल्टो कार में भागने में सफल रहे तो यह चिन्ता की बात जरूर है। कहा तो यह जा रहा है कि कार में सवार आतंकी सड़क पर इंतजार कर रहे थे, पर किसी की नजर उन पर नहीं पड़ी। लश्कर--तैयबा के प्रवक्ता द्वारा स्थानीय समाचार एजेंसी को दिए बयान में इस हमले की जिम्मेदारी लेना साबित करता है कि एक बार फिर हमले की साजिश सीमा पार से रची गई थी। जिस ढंग से मस्जिद के पास एक मोड़ के निकट यह हमला हुआ, उससे साफ पता चलता है कि यह सुनियोजित था। उस जगह गाड़ियां धीमी हो जाती हैं। आतंकियों को यह जानकारी थी कि सीआरपीएफ के जवान अभ्यास के बाद यहीं से  लौटने वाले हैं। आतंकियों ने बस के आगे एक कार खड़ी कर दी और अंधाधुंध फायरिंग करने लगे। बताया जा रहा है कि हमलावरों की चपेट में जवानों की पांच बसें आ गई थीं। जाहिर है कि जवानों ने आतंकियों का डटकर सामना किया और दो आतंकियों को मारने में सफलता हासिल की। आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल के मुकाबले इस वर्ष अब तक सीमा पार से घुसपैठ की घटनाएं भी बढ़ी हैं। ये तमाम तथ्य आतंकियों के खिलाफ त्वरित जवाबी कार्रवाई के अलावा सुरक्षा व गुप्तचर मोर्चे पर और अधिक चौकसी की भी मांग करते हैं। यह चौकसी इसलिए भी जरूरी है क्योंकि शीघ्र ही अमरनाथ यात्रा आरंभ होने वाली है। सीमा पार के इन आतंकियों के आकाओं को कड़ा संदेश देना जरूरी है।

-अनिल नरेन्द्र

ब्रेग्जिट पर ब्रिटेन व यूरोप में राजनीतिक भूचाल

बृहस्पतिवार को ब्रिटेन में हुए जनमत संग्रह से यूरोप की राजनीति में भूचाल आ गया है। इस जनमत संग्रह में ब्रिटेन की बहुमत जनता ने ईयू (यूरोपीय संघ) से अलग होने का फैसला किया था। अब इस जनमत संग्रह के खिलाफ ब्रिटेन में ही आवाज तेज होती जा रही है। इसे रद्द करने तथा दूसरा जनादेश लेने की मांग जोर पकड़ती जा रही है। ताजा समाचार के अनुसार इस फैसले के खिलाफ सरकारी वेबसाइट पर याचिका देने वालों की संख्या 30 लाख से अधिक हो चुकी है। यह संख्या इस विषय पर ब्रिटिश संसद के सदन हाउस ऑफ कॉमन्स में बहस के लिए अपेक्षित आधार संख्या एक लाख से अधिक है। पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने दूसरे जनमत संग्रह की संभावनाओं से इंकार नहीं किया है। उधर स्काटलैंड की फर्स्ट मिनिस्टर निकोला स्टर्जिओन ने जनमत संग्रह पर तीखे तेवर दिखाते हुए कहा कि स्काटलैंड की संसद ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग होने के फैसले को रोकने के लिए हर संभव प्रयास करेगी। उन्होंने कहा कि वह संसद में सदस्यों से ब्रेग्जिट पर कानूनी सहमति न देने के लिए आग्रह करेंगी। एक समाचार एजेंसी के अनुसार यदि संसद में स्काटलैंड के व्यापक हितों को संजीदगी से समझा गया तो ब्रेग्जिट को रोकने का मुद्दा संसद की टेबल पर होगा। 129 सदस्यीय स्काटिश संसद में स्टर्जिओन की स्काटिश नेशनल पार्टी के 63 सदस्य हैं। कंजरवेटिव पार्टी में डेविड कैमरन की जगह लेने के लिए नेताओं ने जोड़-तोड़ शुरू कर दी है। अक्तूबर में होने वाले पार्टी के अधिवेशन में नया नेता चुना जाएगा। लंदन के पूर्व मेयर बोरिस जॉनसन और गृहमंत्री थेरेसा मे के बीच कड़ी टक्कर लग रही है। संडे टाइम्स के मुताबिक माइकल गोवे ने जानसन को समर्थन दिया है, वहीं कैमरन समर्थन में साथ हैं। ब्रेग्जिट के बाद क्या अब फ्रांस ईयू से निकलने के लिए फ्रेग्जिट करवाएगा? राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलांद ने संभावना से इंकार किया है। लेकिन 2017 में होने वाले चुनावों के कारण वे दबाव में हैं। धुर दक्षिणपंथी नेता मेरिन ले पें चाहती हैं कि ब्रिटेन जैसा जनमत संग्रह फ्रांस में भी हो। उधर यूरोपीय संसद ने कहा है कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन को यूरोपीय संघ से अलग होने की औपचारिक प्रक्रिया 28 जून से शुरू कर देनी चाहिए। 28 29 जून को यूरोपीय संघ की विशेष बैठक होगी। इसके साथ ही यूरोपीय संघ ने अलग होने की प्रक्रिया में औपचारिकताओं को न्यूनतम करने के लिए कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। ब्रिटेन में यूरोपीय संघ की सदस्यता पर गुरुवार को कराए गए जनमत संग्रह में 52 प्रतिशत लोगों ने संघ से बाहर आने के पक्ष में वोट दिया था। विलियम ऑलिवर होले ने दोबारा जनमत संग्रह कराने की मांग करते हुए याचिका जारी की थी। याचिका में लिखा हैöहम अधोहस्ताक्षरित लोग ब्रिटिश सरकार का आह्वान करते हैं कि वह यह नियम लागू करे कि अगर बेग्जिट में 75 प्रतिशत से कम लोग वोट दें और ईयू में बने रहने और अलग होने के लिए 60 प्रतिशत से कम वोट हों तो दोबारा जनमत संग्रह कराया जाए। ब्रिटेन में अभी जनमत संग्रह में 72.2 प्रतिशत लोगों ने वोट दिया था। पार्लियामेंट की याचिका समिति ही संसदीय याचिकाओं के कामकाज को देखती है और वही निर्णय लेती है कि अगर किसी याचिका पर एक लाख से अधिक हस्ताक्षर हों तो उस पर हाउस ऑफ कॉमन्स में बहस कराई जाए या नहीं। ऐसा भी देखा जा रहा है कि अलग होने के लिए वोट देने वाले ब्रिटिश नागरिक अपने फैसले पर खेद जताने लगे हैं। लंदनवासी एक महिला ने कहाöअवसर दिया जाए तो मैं फैसला बदलना चाहूंगी। यह भी कहा जा रहा है कि जनमत संग्रह का नतीजा ब्रिटिश सरकार पर बाध्य नहीं है। देखें, ब्रिटेन और यूरोप में आए इस सियासी भूचाल में आगे क्या-क्या होता है?

Tuesday, 28 June 2016

भाजपा-शिवसेना हनीमून खत्म ः तलाक की तैयारी

महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना का हनीमून अब समाप्त होता जा रहा है और दोनों के संबंध तलाक की ओर बढ़ रहे हैं। शिवसेना और भाजपा में खटास व खाई बढ़ती ही जा रही है। भाजपा प्रवक्ता माधव भंडारी ने शिवसेना से पूछा कि भाजपा से कब तलाक ले रहे हो? जवाब में पार्टी के राज्यसभा सदस्य संजय राऊत ने शुक्रवार को कहा कि महाराष्ट्र में हमारे दम पर सरकार टिकी है, इस बात का ध्यान रखना...वरना। तुम छगन भुजबल, सुनील तरकरे और अजित पवार के समर्थन से सरकार चलाने के लिए स्वतंत्र हो। ऐसा करने पर जनता का जो भी फैसला होगा वह करेगी। भाजपा द्वारा उद्धव ठाकरे को फिल्म शोले का असरानी कहे जाने पर भड़के राऊत ने कहा कि इस बयान से शिवसेना में भयंकर असंतोष है। यह फूट पड़ी तो तुम्हें भारी पड़ेगी। शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे की कोर टीम में सदस्य माने जाने वाले राऊत ने कहाöभाजपा नेताओं के बयान अधिकृत हैं तो सीएम फ़ड़नवीस को इसका खुलासा करना च]िहए। महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनाव ज्यों-ज्यों करीब आ रहे हैं, भाजपा-शिवसेना में टकराव बढ़ता जा रहा है। राऊत ने कड़े शब्दों में कहा कि उद्धव ठाकरे के खिलाफ जिस प्रकार की भाषा का इस्तेमाल भाजपा नेता कर रहे हैं, यदि वह आगे भी जारी रहा तो भाजपा को राकांपा के समर्थन से सरकार चलानी पड़ सकती है। भाजपा को जवाब देते हुए शिवसेना पार्षद किशोरी पेडणेकर ने कहा कि अमित शाह को फिल्म शोले के गब्बर की भूमिका शोभा देती है। जो हालत गब्बर की हुई थी, वैसी भाजपा की होते देर नहीं लगेगी। उद्धव के खिलाफ तीखी टिप्पणी के बाद शिवसेना नेताओं की दहाड़ का लगता है भाजपा पर असर पड़ा है। प्रदेशाध्यक्ष राव साहेब दानवे ने राऊत की धमकी के जवाब में कहा कि सरकार पूरे पांच साल चलेगी। 25 साल से हम लोग मित्र हैं। दानवे ने कहा कि दोनों दलों के कार्यकर्ताओं को एक-दूसरे के नेताओं का आदर करना चाहिए। किसी अखबार में कोई खबर प्रकाशित हुई तो इसका मतलब यह नहीं कि वह पार्टी की भूमिका है। भाजपा ने इस संबंध में अपने कार्यकर्ताओं को आदेश दिया है। शिवसेना को भी इस तरह का आदेश देना चाहिए। पिछले कुछ दिनों से शिवसेना मोदी सरकार पर सीधे हमले कर रही है। उदाहरण के तौर पर शिवसेना ने शुक्रवार को कहा कि वह डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी के विचारों की सराहना करती है और भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि पार्टी गांधी परिवार के खिलाफ नेशनल हेराल्ड मामले में स्वामी का इस्तेमाल करने के बाद मुख्य आर्थिक सलाहकार से जुड़ी उनकी टिप्पणियों से पल्ला झाड़ नहीं सकती। शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में एक संपादकीय में कहाöहमें स्वामी के साथ एक जुड़ाव महसूस होता है, क्योंकि वह हिन्दुत्व और भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने रुख के लिए मशहूर हैं।

-अनिल नरेन्द्र

30 साल बाद होवित्जर तोपों के सौदे को मंजूरी

1980 के दशक में स्वीडन से बोफोर्स तोपों की खरीददारी के बाद पिछले 30 साल से अधिक समय में भारत ने कोई होवित्जर गन का सौदा नहीं किया। हालांकि थलसेना को इसकी भारी आवश्यकता थी। यूपीए-1 और यूपीए-2 सरकार के कार्यकाल में बोफोर्स तोपों की खरीद से उठे विवाद के कारण कांग्रेस सरकार ने देश की सैनिक जरूरतों को नजरअंदाज किया। वह तोपों की खरीद के सौदे को मंजूरी देने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाई। अब मोदी सरकार ने शनिवार को अमेरिका से 145 एमएम-777 अल्ट्रालाइट होवित्जर आर्टिलरी गन्स (बेहद हल्की तोपें) की खरीद को मंजूरी दी है। यह सौदा करीब 75 करोड़ अमेरिकी डॉलर का होगा। इसके साथ ही 18 धनुष तोपों के उत्पादन के प्रस्ताव को भी मंजूर किया गया है। बोफोर्स तोप घोटाले के तीन दशक के बाद तोपों की यह पहली खरीद होगी। रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर की अध्यक्षता वाली रक्षा अधिग्रहण परिषद 28 हजार करोड़ रुपए के प्रस्तावों, जिसमें नई योजनाएं भी शामिल थीं, को चर्चा के बाद मंजूरी दी। बच इंडियन श्रेणी के तहत 13 हजार 600 करोड़ रुपए की लागत से अगली पीढ़ी के मिसाइल तैयार करने के एक अन्य महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट को एओएन (एक्सप्टेंस ऑफ नेसेसिटी) दिया गया। रक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि डीएसी ने अमेरिका से विदेशी सैन्य खरीद की चल रही प्रक्रिया को मंजूरी दी। इन तोपों की आपूर्ति भारत में ही होगी, जिससे परिवहन लागत की पर्याप्त बचत होगी। अधिकारी ने बताया कि भारत ने चीन से लगती सीमा पर अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात की जाने वाली इन तोपों की खरीद में रुचि दिखाते हुए अमेरिकी सरकार को एक पत्र लिखा था। अमेरिकी स्वीकृति पत्र मिलने के  बाद डीएसी ने नियम और शर्तों पर विचार किया और इसे मंजूरी दे दी। इन तोपों की निर्माता बीएई सिस्टम भारत में महिन्द्रा के साथ साझेदारी में 20 करोड़ डॉलर के निवेश से असेम्बली इंटीग्रेशन एंड टेस्ट फैसीलिटी यूनिट स्थापित करेगी। अमेरिका से 25 तोपें बिल्कुल तैयार हालत में भारत आएंगी जबकि बाकी को भारतीय इकाई में जोड़कर तैयार किया जाएगा। सूत्रों ने बताया कि सौदे की खास बात यह है कि तोपों का मूल्य भारत में आपूर्ति करने के आधार पर तय किया गया है, जिससे उनकी परिवहन लागत पर काफी खर्च बचेगा। इन होवित्जर तोपों की कुछ खासियत हैंö25 किलोमीटर दूर तक सटीक तरीके से लक्ष्य भेदने में यह सक्षम है।  155 एमएम की यह तोप टाइटेनियम के इस्तेमाल के कारण वजन में हल्की हैं। पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्रों में तैनाती में सुगम हैं। 115 एमएम कैलिबर की यह तोप एक मिनट में पांच राऊंड फायर करती है।

Sunday, 26 June 2016

पाकिस्तान के जाने-माने कव्वाल अहमद साबरी की हत्या

पाकिस्तान के कराची शहर से चौंकाने वाली खबर बुधवार को आई। यह हैरान-परेशान और अत्यंत दुखद समाचार था। कव्वाली गायन क्षेत्र के मशहूर जोड़ी साबरी ब्रदर्स के अमजद साबरी की बुधवार को कराची में गोली मारकर हत्या कर दी गई। घटना में अमजद के एक साथी की भी मौत हो गई। पुलिस के अनुसार 45 वर्षीय अमजद अपने एक साथी के साथ कार से शहर के लियाकताबाद इलाके में पहुंचे थे। तभी बाइक सवार अज्ञात बंदूकधारियों ने उनकी कार पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। गोली लगने से घायल अमजद और उनके साथी को गंभीर हालत में शहर के अब्बासी शहीद अस्पताल ले जाया गया, जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। अमजद को सिर में दो और कान के पास एक गोली लगी थी। ईशनिन्दा केस में फंसे साबरी की हत्या तालिबानी आतंकियों ने की होगी। हमले के वक्त साबरी खुद कार चला रहे थे और वह एक निजी टीवी चैनल के स्टूडियो जा रहे थे। तालिबान से अलग हुए हकीमुल्ला मेहसूद गुट ने साबरी की हत्या की जिम्मेदारी ली है। आतंकी संगठन के प्रवक्ता सैफुल्ला मेहसूद ने कहा कि हमने साबरी की हत्या की, क्योंकि उन्होंने ईशनिन्दा की थी। दरअसल साबरी ने धार्मिक व्यक्तियों से जुड़ी एक कव्वाली गाई थी, जिसको दो चैनलों ने सुबह के शो में प्रसारित किया था। एक वकील ने इस कव्वाली से धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाया था। ईशनिन्दा के केस में 2014 में इस्लामाबाद हाई कोर्ट ने अमजद साबरी और दो निजी टीवी चैनल के खिलाफ नोटिस जारी किए थे। पाकिस्तान में ईशनिन्दा को लेकर कानून बेहद सख्त है। इसमें फांसी की सजा का प्रावधान है। हालांकि ईशनिन्दा के मामलों में अकसर कट्टरपंथी खुद ही आरोपियों की हत्या कर देते हैं। अमजद साबरी पाक के मशहूर कव्वाल खानदान से थे। उनके पिता गुलाम फरीद साबरी और चाचा मकबूल साबरी मशहूर कव्वाल थे। अमजद साबरी ने हाल ही में फिल्म बजरंगी भाईजान में अपने पिता गुलाम फरीद साबरी की मशहूर कव्वाली `भर दो झोली मेरी' को बिना अनुमति के शामिल किए जाने का विरोध किया था। फिल्म में इस कव्वाली को अदनान सामी ने गाया है। साबरी बंधुओं की ताजदार--हरम और मेरा कोई नहीं है तेरे सिवाय जैसी मशहूर कव्वालियां हैं। साबरी की कव्वाली के दीवाने सिर्प पाकिस्तान में ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में हैं। उन्होंने यूरोप, अमेरिका में भी अपने कार्यक्रमों में शानदार प्रस्तुति दी। उनको कव्वाली का रॉक स्टार भी कहा जाता था। रमजान के पवित्र महीने में खुदा के एक बंदे की निर्मम हत्या पर सभी को अफसोस है। साबरी परिवार खुद को संगीत सम्राट तानसेन का सीधा वंशज बताता है। हम उनकी हत्या की कड़ी निन्दा करते हैं और उनको अपनी श्रद्धांजलि पेश करते हैं।
-अनिल नरेन्द्र


यूरोपीय संघ से अलग हुआ ग्रेट ब्रिटेन

द्वितीय महायुद्ध के बाद ब्रिटेन में ईयू यानि यूरोपियन यूनियन से बाहर निकलने (ब्रेक्सिट) के लिए हुआ जनमत संग्रह दूसरी बड़ी घटना है। यह एक ऐसा जनमत संग्रह है जिसके दूरगामी परिणाम होंगे। इसके नतीजों की समीक्षा व परिणाम कई महीनों तक विश्लेषक करते रहेंगे। मोटे तौर पर कुछ प्रभाव जल्द सामने आ सकते हैं। सबसे पहले बता दें कि आखिर यह जनमत संग्रह था क्या? 23 जून यानि गुरुवार को ब्रिटेन में ईयू (यूरोपीय संघ) के साथ रहने या हटने के लिए ब्रिटेन की जनता ने वोट डाले। यह ब्रिटेन के साथ-साथ 28 देशों के समूह यूरोपीय संघ के इतिहास की एक अहम तारीख थी। मतदाताओं को तय करना था कि ब्रिटेन ईयू में बना रहेगा या नहीं? क्या है ईयू, यह यूरोपीय महाद्वीप में स्थित 28 देशों का राजनीतिक और आर्थिक संगठन है। इसकी अलग करेंसी (यूरो), संसद, सेंट्रल बैंक, कोर्ट हैं। ईयू ने आंतरिक रूप से एक बाजार अर्थव्यवस्था बनाई हुई है। इसके कानून सभी सदस्यों पर समान रूप से लागू होते हैं। ग्रीनलैंड के बाद ईयू से बाहर निकलने वाला ब्रिटेन दूसरा देश है। ब्रिटेन में हुए जनमत संग्रह से अलग होने के पक्ष में 51.9 प्रतिशत वोट पड़े। हालांकि प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने ईयू में बने रहने के पक्ष में काफी सक्रियता के साथ प्रचार किया था। जनमत संग्रह के परिणाम की आधिकारिक घोषणा के कुछ ही देर बाद अपना संक्षिप्त बयान देने के लिए कैमरन 10 डाउनिंग स्ट्रीट से बाहर निकले और उन्होंने यह कहते हुए इस्तीफा देने की अपनी मंशा जता दी कि नए प्रधानमंत्री यूरोपीय संघ से बाहर निकलने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए अक्तूबर में पदभार ग्रहण करेंगे। जनता में इनका सम्मान होना चाहिए। ब्रिटेन ईयू से बाहर क्यों निकला, इसके कारणों का विश्लेषण तो लंबे समय तक चलेगा पर मोटे तौर पर एक बड़ा कारण ब्रिटेन पर खर्चा रहा। ईयू से अलग होने के बाद ब्रिटेन को 99 हजार 300 करोड़ रुपए की सालाना बचत होगी। ये रकम ब्रिटेन को ईयू में बने रहने के लिए मेम्बरशिप फीस के रूप में चुकानी पड़ती थी। यूरोपियन यूनियन में जारी अफसरशाही ब्रिटेन के लोगों को बिल्कुल भी पसंद नहीं है। ब्रेक्सिट का समर्थन कर रहे लोगों का कहना है कि ईयू तानाशाही रवैया अपनाता है। सिर्प कुछ नौकरशाह मिलकर ब्रिटेन समेत 28 देशों के लोगों का भविष्य तय करते हैं। एक अनुमान के मुताबिक ईयू में करीब 10 हजार अफसर काम करते हैं। इनमें से कई पूर्व राजनेता हैं और अपने देश में राजनीतिक पारी खत्म होने के बाद ये नेता ईयू का हिस्सा बन जाते हैं और मोटी सैलरी भी लेते हैं। ब्रेक्सिट की मांग कर रहे लोगों का दावा है कि ईयू में काम करने वाले ज्यादातर अफसरों की सैलरी ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन से भी ज्यादा है। यूरोपियन यूनियन के सांसदों को 19 हजार रुपए का दैनिक भत्ता मिलता है और सालभर में अलग-अलग तरह के खर्च के लिए 31 लाख रुपए मिलते हैं। जबकि स्टाफ रखने के खर्च के नाम पर इन सांसदों को सालभर में एक करोड़ 70 लाख रुपए अलग से मिलते हैं। यूरोपियन यूनियन से अलग होने के बाद अब ब्रिटेन को अमेरिका और भारत जैसे देशों से मुक्त व्यापार करने की छूट मिल गई है। ब्रिटेन में फिलहाल 50 प्रतिशत से भी ज्यादा कानून ईयू के ही लागू हैं। ईयू के मुकाबले ब्रिटेन बाकी दुनिया को करीब दोगुना ज्यादा निर्यात करता है। ईयू से अलग होने की मुहिम का नेतृत्व बहुत हद तक लंदन के पूर्व मेयर बोरिस का दूसरी ओर कहना है कि ब्रिटेन की पहचान, आजादी और संस्कृति को बचाए रखने के लिए ऐसा करना जरूरी है। ये लोग प्रवासियों का भी विरोध कर रहे हैं। 2008 की मंदी के बाद यह विरोध और तेज हो गया है। ब्रिटेन को लगभग नौ अरब डॉलर ईयू के बजट में देने होते हैं, इसका भी विरोध हो रहा है। ईयू के इस जनमत संग्रह के फैसले का राजनीतिक पहलू भी है। ईयू से अलग होने के ब्रिटिश जनता के फैसले के बाद ईयू के लिए और बुरी खबर आई है। डच एंटी-इमिग्रेशन लीडर जीई वाइल्ड्स ने ब्रेक्सिट के नतीजे के बाद नीदरलैंड से भी ईयू को लेकर जनमत संग्रह कराने की मांग की है। सीनियर ईयू अधिकारियों ने गोपनीय तरीके से चेतावनी दी है कि ब्रिटेन की तर्ज पर कई देश ईयू से अलग होने की राह पर बढ़ सकते हैं। इनका कहना है कि यह संक्रमण का रूप ले सकता है। उधर खुद ब्रिटेन के इस फैसले से ब्रिटेन के राजनीतिक भविष्य और एकता पर प्रभाव पड़ सकता है। राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि इस जनमत संग्रह के दौरान वोटिंग का जो पैटर्न देखा गया उससे साफ है कि स्काटलैंड और उत्तरी आयरलैंड के लोगों ने ईयू के पक्ष में रहने के लिए वोट दिया। ब्रिटेन के अलग होने की सुगबुगाहट लंबे अरसे से चल रही थी। उत्तरी आयरलैंड में पिछले कई दशकों से ब्रिटेन से अलग होने का आंदोलन चल रहा है तो दो साल पहले ही स्काटलैंड में ब्रिटेन से अलग होने का रेफरेंडम मामूली वोटों से गिरा था। अब वहां एक दो साल में फिर से रेफरेंडम कराने की मांग जोर पकड़ रही है। ब्रिटेन के इस जनमत संग्रह का असर पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। भारत पर भी इसका सीधा असर हो सकता है। ब्रिटेन भारत का तीसरा सबसे बड़ा निवेशक है। ब्रिटेन में इस वक्त 800 से ज्यादा भारतीय कंपनियां कारोबार कर रही हैं। ब्रिटेन में भारतीय कंपनियों ने दो लाख 47 हजार करोड़ का दांव लगा रखा है। भारतीय कंपनियों की ब्रिटेन में रुचि की एक बड़ी वजह है कि ब्रिटेन के रास्ते यह कंपनियां यूरोप के 28 देशों के बाजार तक सीधी पहुंचती हैं।

Saturday, 25 June 2016

पाक सूबे सरकार ने दिए 30 करोड़ रुपए आतंकी फैक्ट्री को

अमेरिका के रक्षा विभाग पेंटागन ने अपनी छमाही रिपोर्ट में कहा है कि पाकिस्तान में आतंकवादियों की पनाहगाहें बनी हुई हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका लगातार पाकिस्तान के साथ उन कदमों के बारे में स्पष्ट रहा है, जो उसे सुरक्षा का माहौल सुधारने और आतंकियों और चरमपंथी समूहों को सुरक्षित ठिकाने न मिलने देने के  लिए उठाने चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया  है कि इसकी वजह से सुरक्षा और अफगानिस्तान में स्थिरता की वार्ता तो प्रभावित होती ही है साथ-साथ सुरक्षा सहयोग जैसे अन्य मुद्दों की चर्चा के दौरान अमेरिका-पाकिस्तान द्विपक्षीय संबंध पर भी असर पड़ता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि हैरानी की बात है कि ओसामा बिन लादेन को छिपाए जाने की घटना के बाद पाकिस्तान में सीआईए के सेक्शन प्रमुख को जहर दे दिया जाता है। वह अमेरिका वापस आ गए। उनका और सीआईए का मानना है कि उन्हें पाकिस्तानी आईएसआई ने जहर दिया। मैं उनसे सहमत हूं। पाकिस्तान हर किसी के साथ खेल रहा है। उन्होंने कहा कि हमारा धन लेकर यह आईएसआई के हाथों से होता हुआ अंतत उस तालिबान और अफगानिस्तान के हाथ में जाता है जो अमेरिकियों की हत्या कर रहे हैं। आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले पाकिस्तान का चेहरा एक बार फिर बेनकाब हुआ है। वहां की खैबर पख्तूनख्वा प्रांत की सरकार ने अपने बजट में अफगान तालिबान से जुड़े एक मदरसे को 30 करोड़ रुपए का अनुदान दिया है। इस मदरसे को आतंक की फैक्ट्री के तौर पर माना जाता है। तालिबान अफगान के पूर्व सरगना मुल्ला उमर समेत कई शीर्ष आतंकी वहां के छात्र रह चुके हैं। यह घोषणा सूबे के वित्तमंत्री शाही फरमान ने विधानसभा में बजट पेश करते हुए की। तालिबान अफगानिस्तान से जुड़े ये मदरसे जेहादियों की यूनिवर्सिटी कहलाते हैं। वित्तमंत्री ने कहाöमैं गर्व के साथ घोषणा करता हूं कि दारुल हक्कानिया नौशेरा को सालाना खर्च के लिए 30 करोड़ रुपए दिए जा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान को अमेरिकी मदद (आर्थिक) पर संकट इसी हक्कानी नेटवर्प की वजह से है। तालिबान के पूर्व सरगना मुल्ला उमर को इसी मदरसे से डॉक्ट्रेट की मानद उपाधि मिली है। मदरसे के पूर्व छात्रों में हक्कानी नेटवर्प के संस्थापक जलालुद्दीन हक्कानी, भारतीय उपमहाद्वीप में अलकायदा का सरगना असीम उमर और अफगान तालिबान का सरगना मुल्ला अख्तर मंसूर शामिल हैं। हैरानी तो इस बात पर है कि अमेरिका सब कुछ जानते हुए भी, समझते हुए भी पाकिस्तान को आर्थिक मदद करता है। पाकिस्तान इस मामले को छिपाता भी नहीं है। यह है अमेरिका की वॉर ऑन टेरर की लड़ाई का दोहरा चेहरा।
-अनिल नरेन्द्र


योग ने पूरे विश्व को एकजुट किया

विश्वभर में मंगलवार को योग का जलवा देखने को मिला। दूसरे अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस में योग ने पूरी दुनिया को एकजुट कर दिया। जल, थल और नभ में लोगों ने योग दिवस पर आसन किए। भारत में इसकी कमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दिल्ली में तो पीएम नरेंद्र मोदी ने चंडीगढ़ में संभाली। अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और ब्रिटेन समेत दुनिया के सभी प्रमुख देशों में लोग योगासन करते नजर आए। संयुक्त राष्ट्र महासचिव बॉन की मून ने एक कार्यक्रम में कहा कि मैं आग्रह करता हूं कि धार्मिक भेदभाव के बगैर स्वस्थ जीवन के लिए योग अपनाएं। यही नहीं, धार्मिक कट्टरपंथी माने जाने वाले देशों में भी योग के प्रति सोच में बदलाव देखने को मिल रहा है। इस्लामिक देश कतर में योग ने धीरे-धीरे अपनी जगह बनानी शुरू कर दी है। इसी तरह ईरान, इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे मुस्लिम बहुल देशों में भी लोग योग को अपना रहे हैं। कतर में महिलाओं को योग सिखाने वाली फ्रांसीसी मूल की महिला नूर को अपनी आस्था और योग के बीच कभी कोई विवाद नजर नहीं आता। वह कहती हैंöयोग और इस्लाम दोनों ही अध्यात्म हैं। दोनों की जड़ें एक-सी हैं। योग के जरिये लोग मानसिक शांति हासिल कर सकते हैं, जिसमें खुदा से जुड़ने का रास्ता आसान हो सकता है। गृहयुद्ध से तबाह हो चुके यमन को छोड़कर संयुक्त राष्ट्र के 192 सदस्य देश मंगलवार को दूसरे अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस में हिस्सेदार बने। यहां तक कि पिछले तीन वर्षों से आपसी गुटों की लड़ाई में तबाह हो चुके लीबिया में भी योगाभ्यास हुआ। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर संयुक्त राष्ट्र ने गत वर्ष 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया था, क्योंकि दुनिया के बड़े हिस्से में यह सबसे लंबा दिन होता है। चंडीगढ़ के कैपिटल कॉम्प्लैक्स में आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने अगले वर्ष के दौरान योग से डायबिटीज को दूर करने का आह्वान किया। अगर प्रयोग सफल रहा तो अगले साल दूसरी बीमारी को योग से दूर करने का प्रयास किया जाएगा। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर स्पाइस जेट के यात्रियों ने 33 हजार फीट की ऊंचाई पर योग किया तो सियाचिन में भारतीय सैनिकों, नौसेना और तटरक्षक बल के जवानों ने आईएनएस ऐरावत, विराट और आईसीजीएस सागर जैसे पोतों पर समुद्र के बीच किया योग। संयुक्त राष्ट्र महासचिव बॉन की मून का अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर सटीक संदेश थाöयोग का संदेश सद्भावना को बढ़ावा देना है। आज दुनिया के सभी देशों के नागरिक नस्ल, आस्था और लिंग से ऊपर उठकर एकता का संकल्प लें। इस दिन और हर दिन को समान मानव परिवार के सदस्य के तौर पर मनाएं।

Friday, 24 June 2016

एक तरफ महबूबा का चुनाव दूसरी तरफ अमरनाथ यात्रा की चिंता

जम्मू-कश्मीर एक निहायत खतरनाक दौर से गुजर रहा है। आए दिन सुरक्षा बलों पर आतंकी हमले हो रहे हैं। आने वाले दिन और भी ज्यादा संवेदनशील होंगे। एक तरफ तो अनंतनाग से जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती चुनाव लड़  रही है तो दूसरी तरफ इस वर्ष की अमरनाथ यात्रा आरम्भ होने वाली है। यही नहीं अनंतनाग विधानसभा उपचुनाव पर तो पाकिस्तान की भी नजर है। अलगाववादियों के बहिष्कार का आह्वान बेअसर होता नजर आ रहा है, शनिवार को आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन द्वारा अनंतनाग विधानसभा क्षेत्र में चुनाव बहिष्कार के पोस्टर चिपकाने की सूचना आई थी। हालांकि माना जा रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन से उत्पन्न संवेदना के कारण उपचुनाव में मतदान का पतिशत पिछले चुनावों से बढ़ सकता है। 2002 में तो अनंतनाग में मतदान का पतिशत 7.16 फीसदी तक पहुंच गया था। दरअसल लगातार यहां आतंकवाद के दौर में मतदाताओं को धमकी देना, वोटिंग का बहिष्कार करने तथा सरकार के पति नफरत का भाव पैदा करने की वजह से मतदाता वोट देने से कतराने लगे। पर्याप्त सुरक्षा इंतजाम के बाद भी वे घर से निकलकर बूथ तक नहीं जाते थे। पाकिस्तान लगातार घाटी में जम्हूरियत के खिलाफ रहा है। वह किसी न किसी पकार इसमें खलल डालने की कोशिशें करता रहा है। आईएसआई तथा आतंकी संगठन लगातार यहां चुनाव से पहले गड़बड़ी फैलाने की साजिश रचते रहे हैं। अनंतनाग से महबूबा की जीत-हार का दोनों देशों के बीच संबंध पर भी सीधा असर पड़ेगा। महबूबा लगातार अमन शांति के लिए पाकिस्तान से बातचीत की हिमायती रही हैं। इस वजह से भी पाकिस्तान अनंतनाग उप चुनाव पर लगातार नजरें बनाए हुए है। दूसरा खतरा है वार्षिक अमरनाथ यात्रा का। वैसे भी  मौसम चिंता का विषय बना हुआ है ऊपर से यह आतंकियों के लिए नर्म यात्रा। जम्मू-कश्मीर सरकार ने राज्य में अमरनाथ यात्रा के पूरे मार्ग को आतंकवादी हमले के लिहाज से अत्यधिक संवेदनशील घोषित किया है और सुरक्षा एजेंसियों को निर्देश दिया है कि श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं। राज्य सरकार द्वारा जारी निर्देश में सेना, पुलिस और अन्य सुरक्षा बलों को कहा गया है कि वे इस मामले में सभी नियमों का पालन करें ताकि 2 जुलाई से शुरू हो रही यात्रा की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। श्राइन बोर्ड ने अमरनाथ यात्रा में शामिल होने के लिए लाखों लोगों को न्यौता तो दे दिया लेकिन अब वह परेशान हो गया है। उसकी परेशानी का कारण बदलते हालात तो हैं ही बदलता मौसम भी है। आधिकारिक सूत्र कहते हैं कि अनंतनाग जिले में आतंकी घटनाएं पिछले कुछ दिनों से ब़ढ़ी हैं। खतरा सिर्फ अनंतनाग में ही नहीं यात्रा को भी है।
-अनिल नरेंद्र


भारत अब दुनिया की सबसे खुली अर्थव्यवस्था

ऐसे समय जब आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन की अचानक बिदाई की घोषणा से वित्तीय बाजारों में चिंता का माहौल है। राजग सरकार ने अपने कार्यकाल के सबसे बड़े और अहम आर्थिक सुधारों को लागू करने का फैसला किया है। पधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में हुई उच्चस्तरीय बैठक में सिविल एविएशन, रक्षा, सिंगल ब्रांड रिटेल व ब्राडकास्टिंग समेत नौ उद्योगों में विदेशी निवेश के नियमों को आसान कर दिया गया है। इन सुधारों के साथ यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत अब दुनिया की सबसे खुली अर्थव्यवस्थाओं में से एक हो गया है। इस कदम का उद्देश्य दुनिया भर के निवेशकों को एक पोजिटिव मेसेज देना है। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि नरेन्द्र मोदी के पधानमंत्री बनने के बाद दुनिया की नजरों में भारत की छवि सुधरी है और पिछले कुछ समय से अंतर्राष्ट्रीय कारोबारी और अर्थ विश्लेषक हमें बड़ी उम्मीद के साथ देखने लगे हैं। कई रेटिंग एजेंसियों ने भारत को निवेश के लिए सर्वाधिक उपयुक्त जगह माना है। इस फैसले का पूरा-पूरा फायदा मिले, इसके लिए सरकार को कई मोर्चों पर अब भी जूझना होगा। सबसे पहले राजनीतिक विपक्ष इसका जोरदार विरोध करेगा, उस विरोध का सामना करना पड़ेगा। दूसरा बड़ा मोर्चा भारत का पशासनिक तंत्र है। यानि सरकार को अपने ही तंत्र को इतना चुस्त और पारदर्शी बनाना होगा कि वह एफडीआई के  रास्ते में रुकावटें खड़ी न करे। तीसरा मोर्चा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का है, जहां नए निवेश और उद्यम के लिए ज्यादा उत्साह नहीं है। फिर रघुराम राजन के पद छोड़ने से देश की अर्थव्यवस्था के बारे में जो संदेह पैदा हुए हैं या किए जा रहे हैं उससे भी सरकार को निपटना होगा। यहां यह बताना जरूरी है कि विदेशी निवेशक रातोंरात थैलियां लेकर भारत नहीं पहुंचने वाले। जो भी निवेशक भारत में बड़ी पूंजी लगाना चाहेगा वह सबसे पहले यह देखेगा कि देश में इस फैसले के मुताबिक माहौल बन पाया है या नहीं? नौकरशाह के कामकाज का तरीका भी बदलना होगा। विदेशी मल्टीनेशनल जैसे एपल कंपनियों का देश में अपने खुद के स्टोर्स खोलने से भारतीय कंपनियों को नुकसान उठाना पड़ सकता है। विदेशी निवेशक उदारीकरण कदमों के साथ ढांचागत सुधार भी देखना चाहते हैं। कुछ पिछली तिथि से कराधान को लेकर सुनिश्चित होना चाहेंगे। लेबर पॉलिसी भी एक बहुत बड़ा गतिरोधक है और इन सब आशंकाओं को दूर करना नौकरशाही का दायित्व है। नौकरशाही को ऐसा माहौल तैयार करना होगा जिससे निवेशकों में विश्वास ब़ढ़े। डिफेंस के क्षेत्र में दिक्कत यह है कि कोई भी विकसित देश अपनी कंपनियों की नवीनतम तकनीक के साथ भारत नहीं आना चाहेगी। विदेशी कंपनियां हमारी जरूरत से ज्यादा अपनी कारोबारी जरूरतों के हिसाब से उत्पादन करना चाहेंगी। बता दें कि भारत हथियारों का दुनिया में सबसे बड़े खरीददारों में से एक है। 5 सालों में एक लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा राशि के हथियार खरीदें हैं। 65 फीसदी रक्षा साजोसामान अभी भी विदेशों से खरीद रहा है। केंद्र के ताजा फैसले से विदेशी रक्षा कंपनियों के लिए भारत में निवेश के रास्ते खुलेंगे। वे अपने कारखाने यहां स्थापित कर भारत को रक्षा सामग्री की आपूर्ति कर सकेंगे। यह फैसला मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के लिए तो ठीक है। क्योंकि विदेशी कंपनियां देश में अपने हथियार बनाकर यहां बेचेंगी। कुछ लोगों को रोजगार भी मिलेगा पर रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता कैसे हासिल होगी। तमाम क्षेत्रों में एफडीआई बढ़ाने का फैसला सही तो है लेकिन भारत में विदेशी पूंजी को लेकर जिस तरह का माहौल है, उससे स्थिति जटिल हो जाती है। यह उस दौर का असर है जब नियंत्रित अर्थव्यवस्था थी और हर विदेशी चीज को शक से देखा जाता था। पार्टियां अब भी इसका इस्तेमाल राजनीतिक फायदे के लिए करती हैं। भाजपा विपक्ष में जब थी, तो वह एफडीआई के हर पस्ताव का विरोध करती थी और अब अन्य विपक्षी पार्टियां कर रही हैं। बहरहाल सरकार सचेत रहे तो शत-पतिशत एफडीआई को अपने हित में मोड़ा जा सकता है।

Thursday, 23 June 2016

सोशल मीडिया और आतंकी हमले

स्थानीय कट्टरपंथी संगठन लोगों में दहशत पैदा करने के लिए खूंखार आतंकी संगठन आईएस (इस्लामिक स्टेट) के नाम का इस्तेमाल करने के कई मामले सामने आए हैं। आईएस के नाम पर कई फर्जी धमकियां मिलने के बाद भारत की खुफिया एजेंसियां सतर्क हो गई हैं। सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक, आईएस का नाम लेकर स्थानीय आतंकी संगठन और कट्टरपंथी ताकतें अपनी जड़ें मजबूत करने की फिराक में हैं। हकीकत में इनका आईएस से कोई संबंध नहीं है। सूत्रों के मुताबिक धमकियों का मकसद डर फैलाना और सुरक्षा एजेंसियों को भ्रमित करना है ताकि वे सटीक रणनीति नहीं बना सकें। इसके मद्देनजर खुफिया एजेंसियों ने पत्र, फोन और सोशल मीडिया में हो रहे दुष्पचार के पति सुरक्षा बलों को सतर्क किया है। उन्हें ऐसे मामलों में स्थानीय आतंकी मॉड्यूल पर नजर रखने को कहा गया है। केरल, पश्चिम बंगाल, आंध्र पदेश, तेलंगाना, पश्चिमी उत्तर पदेश में आईएस से सहानुभूति रखने वाले तत्वों की ऐसी हरकत सामने आई है। अगर सोशल मीडिया पर आतंकियों से जुड़े समर्थकों और सहानुभूति रखने वालों की गतिविधियों पर सब नजर रखें तो न केवल ऐसे तत्वों का पता चल सकता है बल्कि कई आतंकी हमले रोके भी जा सकते हैं। यह बात अध्ययनकर्ताओं ने इस्लामिक स्टेट के हमलों से पूर्व उसके समर्थकों की ऑनलाइन गतिविधियों के व्यापक अध्ययन के बाद कही है। साइंस पत्रिका में पकाशित इस अध्ययन के मुताबिक एक रूसी सोशल साइट पर 2015 में आईएस समर्थकों की पोस्ट के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि किसी भी हमले से एक हफ्ते पहले आईएस के विभिन्न फोरम से जुड़े समर्थकों के बीच पोस्ट आदान-पदान बढ़ जाता है। यह बात छिपी नहीं है कि अंतर्राष्ट्रीय अधिकारियों और सोशल मीडिया मंच के पहरेदारों की कड़ी निगहबानी के बावजूद आईएस इंटरनेट के जरिए आतंकियों की भर्ती कर लेता है। इस आतंकी गुट के समर्थकों ने ट्विटर और टमब्लर पर सकिय अकांउट बना रखे हैं। इतना ही नहीं वे चैट, एप टेलीग्राम पर भी मौजूद हैं। रूसी सोशल नेटवर्किंग साइट `वीकोनतकते' पर मौजूद आईएस की 196 ऑनलाइन कम्युनिटी का आंकड़ा सामने आया है। आंकड़ों से उन्होंने निष्कर्ष निकाला है कि समर्थक तेजी के साथ विभिन्न रास्तों, तकनीकी जानकारी और ड्रोन हमलों से बचने इत्यादि विषयों पर चर्चा करते हैं। आईएस समर्थक आईएसएन, खलीफा जैसे हैशटेग को फॉलो करते हैं। किसी भी दिन 1,34000 लोग इस रूसी साइट पर आईएस के पक्ष में होने वाली चर्चा में शामिल रहते हैं। अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि दुनिया में कहीं भी हुए आतंकी हमलों से पहले यूजर नई ऑनलाइन कम्युनिटी बना लेते हैं। ये बड़ी तेजी के साथ आईएस से संबंधित साइटों से जुड़ जाते हैं।

-अनिल नरेंद्र

400 करोड़ के कथित टैंकर घोटाले में एफआईआर

टैंकर घोटाले की जांच भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) ने शुरू कर दी है। इस मामले में सियासी घमासान शुरू हो गया है। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और भाजपा एक-दूसरे पर सीधे आरोप लगा रहे हैं। वर्ष 2012 में हुए इस टैंकर घोटाले में चार सौ करोड़ रुपए के कथित घोटाले को उपराज्यपाल से मिलने के बाद एसीबी ने दिल्ली के वर्तमान मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक धारा में मुकदमा दर्ज कर लिया है। एसीबी के मुखिया विशेष आयुक्त मुकेश कुमार मीणा ने इसकी पुष्टि की है। उन्होंने कहा कि कानून के तहत एसीबी काम कर रही है। एफआईआर दर्ज करने के बाद जांच शुरू कर दी गई है। मीणा ने कहा कि पहले दिल्ली सरकार के जल मंत्री कपिल मिश्रा ने पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ टैंकर घोटाले में शिकायत दर्ज की थी। इसके बाद दिल्ली विधानसभा में नेता विपक्ष विजेन्द्र गुप्ता ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ कथित भ्रष्टाचार में संलिप्त होने की शिकायत की थी। बता दें कि 2012 में पानी के टैंकर खरीदने में 400 करोड़ रुपए का घपला किया गया है। उस समय मुख्यमंत्री शीला दीक्षित जल बोर्ड की अध्यक्ष थीं। आप सरकार बनने के बाद जल मंत्री कपिल मिश्रा ने मामले की जांच के लिए गत वर्ष 19 जुलाई को कमेटी गठित की थी। उन्होंने जांच समिति की रिपोर्ट का हवाला देते हुए अगस्त में केजरीवाल को पत्र लिखा कि दीक्षित तथा जल बोर्ड के अन्य सदस्यों ने टैंकरों के माध्यम से पानी वितरण करने में बार-बार कानून का उल्लंघन किया और कानून को नजरअंदाज किया। मुकेश मीणा ने कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को पूछताछ के लिए बुलाया जा सकता है। इस हाई वोल्टेज केस में जबरदस्त सियासी पतिकिया होना स्वाभाविक है। शीला दीक्षित ने जांच को राजनीति से पेरित बताते हुए कहा कि बोर्ड के फैसले सभी के साथ मिलकर लिए जाते हैं, उस समय बोर्ड में भाजपा के सदस्य भी शामिल थे। पदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन का कहना है कि ये जानबूझकर शीला दीक्षित को राजनीतिक साजिश के तहत फंसाने की कोशिश है। उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटे ढाई साल हो चुके हैं। अब जब ऐसी चर्चा है कि पार्टी उन्हें बड़ी जिम्मेदारी देने की तैयारी कर रही है तो उन्हें फंसाने की साजिश रच दी गई। पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज किए जाने का स्वागत करते हुए भाजपा अध्यक्ष सतीश उपाध्याय ने कहा कि मुख्यमंत्री की ये नैतिक जिम्मेदारी बन जाती है कि जांच पूरी होने तक वह इस्तीफा दें। जिससे जांच पभावित न हो। वहीं विधानसभा में नेता पतिपक्ष विजेन्द्र गुप्ता ने कहा कि यह हमारी नैतिक जीत है। मुख्यमंत्री निवास के बाहर बैठे पूर्वी दिल्ली के सांसद महेश गिरी और वहां मौजूद भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं ने केजरीवाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने पर खुशी का इजहार किया। वहीं पधानमंत्री को फिर चुनौती देते हुए अरविंद केजरीवाल ने मंगलवार को दावा किया कि वह नरेन्द्र मोदी के गलत कार्यों के खिलाफ चट्टान की तरह खड़े हुए हैं और आरोप लगाया कि कई करोड़ के जल टैंकर घोटाले में उनके खिलाफ पाथमिकी पधानमंत्री के इशारे पर ही हुई है। मीडिया के समक्ष संक्षिप्त किंतु आकामक बयान देते हुए केजरीवाल ने मोदी को चुनौती दी कि वह जितना चाहें मेरे खिलाफ पाथमिकी दर्ज कराएं और सीबीआई से छापेमारी कराएं, इस तरह के दमनात्मक उपायों से वह डरने वाले नहीं हैं या आम आदमी पार्टी चुप होने वाली नहीं। मैं एक बात मोदी जी को स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि मैं राहुल गांधी नहीं हूं। मैं सोनिया गांधी भी नहीं हूं जिसके साथ आप समझौता कर लेंगे। मैं मर जाऊंगा, लेकिन धोखाधड़ी बर्दाश्त नहीं करूंगा। देखें, जांच में आगे क्या होता है? यह तो हाई पोफाइल केस बनता जा रहा है।

Wednesday, 22 June 2016

ब्रिटिश महिला सांसद की निर्मम हत्या

ब्रिटेन में आजकल एक मुद्दा पमुखता से छाया हुआ है। यह है कि क्या ब्रिटेन को इयू (यूरोपीय संघ) में रहना है या नहीं? कुछ दिन पहले यूरोपीय संघ (ईयू) में ब्रिटेन के बने रहने की पबल समर्थक जो कॉक्स की गुरुवार को उनके संसदीय क्षेत्र बैटले एंड स्पेन के बर्स्टल में हत्या कर दी गई। पत्यक्ष दर्शियों के अनुसार 52 वर्षीय थामस मेयर ने पहले कॉक्स को गोली मारी और बाद में उन्हें छुरा घोंपा। कॉक्स की हत्या के आरोप में थॉमस मेयर को शनिवार को लंदन की एक अदालत में पेश किया गया। उस पर हत्या, गंभीर शारीरिक नुकसान पहुंचाने, बंदूक व अन्य खतरनाक हथियार रखने सहित कई आरोप लगाए गए हैं। जज ने जब उससे नाम पूछा तो उसने जवाब दिया, `गद्दारों की मौत, ब्रिटेन की आजादी'। फिर से नाम पूछे जाने पर उसने फिर भी यही जवाब दिया। इसके बाद वकीलों से पूछकर जज ने उसके नाम की पुष्टि की। पता और जन्मतिथि पूछे जाने पर उसने कोई जवाब नहीं दिया। करीब 15 मिनट की सुनवाई के बाद उसे फिर से पुलिस हिरासत में भेज दिया गया। लेबर पार्टी की 41 वर्षीय सांसद जो कॉक्स की हत्या से पूरा ब्रिटेन सदमे में है। हत्या के कारणों का अभी पता नहीं चल पाया है। मेयर के दक्षिण पंथी विचारों से पभावित होने के संकेत मिले हैं। पुलिस इसी को आधार बनाकर जांच कर रही है। गौरतलब है कि कॉक्स की हत्या ऐसे वक्त में की गई है जब ईयू से बाहर होने के मसले पर ब्रिटेन में 23 जून को जनमत संग्रह (रिफरेंडम) होना है। हत्या के बाद से दोनों खेमों ने अपना पचार स्थगित कर रखा है। माना जा रहा है कि हत्या से उपजी सहानुभूति का लाभ ईयू में बने रहने के लिए अभियान चला रहे लोगों को मिल सकता है जबकि इससे पहले आए तमाम सर्वेक्षणों में ब्रिटेन के बाहर जाने का अनुमान लगाया गया था। एक ताजा सर्वेक्षण के अनुसार 39 पतिशत लोग ईयू में रहने के पक्ष में हैं, जबकि 46 पतिशत ब्रिटिश लोग कह रहे हैं कि ब्रिटेन को ईयू से बाहर आ जाना चाहिए। 11 पतिशत जनता अभी तय नहीं कर पाई कि रहें या हटें। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा चाहते हैं कि ब्रिटेन यूरोपीय संघ में बना रहे। उन्होंने जो कॉक्स की हत्या की निंदा करते हुए कहा ब्रिटेन को ईयू में बने रहने में अधिक लाभ होगा। भारतीय पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि भारत के लिए जो रास्ता यूरोपीय संघ के लिए खुलता है वह ग्रेट ब्रिटेन से ही जाता है। चीन के राष्ट्रपति जीपिंग ने कहा कि हम एक समृद्ध यूरोप व यूनाइटेड ईयू को देखना चाहते हैं और चाहते हैं कि ब्रिटेन ईयू में रहकर और महत्वपूर्ण भूमिका निभाए। काक्स की निर्मम हत्या ने एक बार फिर पश्चिमी देशों में बढ़ती बंदूक संस्कृति पर पश्न चिन्ह लगा दिया है। सांसद को मारना छोटी घटना नहीं है।

-अनिल नरेंद्र

पंजाब की हकीकत दर्शाती उड़ता पंजाब

नशे की समस्या को लेकर बनी फिल्म उड़ता पंजाब शुकवार को जब पंजाब व देश के अन्य भागों में सिनेमा घरों में एक साथ रिलीज हुई तो इसे देखने के लिए लोगों में इतनी उत्सुकता थी कि अमृतसर से लेकर, चंडीगढ़ और दिल्ली में सारे सिनेमा घर हाउसफुल रहे। सभी जगह युवाओं की, बड़ों की भीड़ उमड़ी। मैंने भी इस बहुचर्चित फिल्म को देखा। इस फिल्म में कई तरह के विवाद हुए और अभी भी हो रहे हैं। इसका रिलीज होना भी एक बड़ी घटना और सफलता दोनों हैं। बहरहाल, इसके बावजूद यह तो कहना पड़ेगा कि निर्देशक अभिषेक चौबे ने एक ऐसी फिल्म बनाई है जिसका संबंध एक बहुत बड़ी सामाजिक समस्या से है-यानी नशा (ड्रग्स) की लत और इसका कारोबार। यह भी सच है कि पंजाब में नशे की बढ़ती लत को लेकर पिछले कई सालों से लगातार खबरें आती रही हैं, मैंने इसी कालम में कई बार पंजाब में फैलते ड्रग्स के मामले पर लिखा है और यह वहां का राजनीतिक मुद्दा भी बनता रहा है। हाल ही में पठानकोट एयर बेस हमले में भी ड्रग्स एक बड़ी वजह रहा। फिल्म देखने के बाद अगर हम राजनीतिक बहस को छोड़ भी दें तो भी ये स्वीकार करना पड़ेगा कि निर्देशक ने यह दिखाने में सफलता पाई है कि किस तरह नशे का पूरा धंधा समाज को, उसके संस्थानों को, कला को और पंजाब की युवा पीढ़ी को नष्ट कर रहा है। उड़ता पंजाब फिल्म एक-दो नहीं चार किरदारों की कहानी है जो किसी भी शहर में मिल सकती है। टॉमी सिंह उर्फ द गबरू (शाहिद कपूर) एक पॉप स्टार हैं और भयंकर नशेड़ी भी। उसके हजारों-लाखों फैन्स हैं, जो उसके गीतों को सिर्फ इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि उन गीतों के बोल में कहीं न कहीं ड्रग्स नशे का जिक होता है। टॉमी जैसे लोगों तक पहुंचती है इंस्पेक्टर सरताज (दलजीत दोशांज) व उनके साथी पुलिस कर्मियों की बदौलत, जो रिश्वत लेकर नशे के कारोबारियों को एक इलाके से दूसरे इलाके में बेहिचक आने जाने देता है। लेकिन एक दिन जब सरताज का अपना छोटा भाई बल्ली नशे की लत के कारण अस्पताल पहुंचता है तो उसे एहसास होता है कि ये लत किस तरह पंजाब को तबाह कर रही है। बल्ली का इलाज कर रही डॉ. पीत साहनी (करीना कपूर) सरताज को बताती है कि किस तरह से पंजाब के हर युवा की रग-रग में ड्रग्स खून बनकर दौड़ रहा है। दोनों ड्रग्स के रैकेट का पर्दाफाश करने में जुट जाते हैं। उधर कहीं दूर बिहार से हॉकी प्लेयर बनने आई पिंकी (आलिया भट्ट) नामक युवती लालच में आकर नशे के सौदागरों के हत्थे चढ़ जाती है। दिलचस्प और रौंगटे खड़े कर देने वाले घटनाकम इन चारों किरदारों को आपस में एक कड़ी की तरह जोड़ देते हैं और तब उजागर होती है नशे के कारोबार की हकीकत। फिल्म यह भी दर्शाती है कि जब किसी इलाके में कोई इस तरह का अवैध कारोबार फैलता है तो उसकी जद में सिर्फ वहां के मूल बाशिंदे ही नहीं बाहर से वहां आकर रहने वाले भी फंस जाते हैं। यानी नशा सिर्प पंजाब को या पंजाबी नौजवानों को ही बर्बाद नहीं कर रहा है बल्कि एक राष्ट्रीय समस्या बन गया है। फिल्म का विरोध करने वालों, या इसे पंजाब विरोधी बताने वालों को यह समझना चाहिए कि निर्देशक ने पंजाब की सामाजिक जिंदगी की उस पहलू को दिखाया है जिससे निपटना राज्य की और देश की भी पाथमिकता होनी चाहिए। उनको पंजाब की छवि से ज्यादा पंजाब के भविष्य की चिंता करनी चाहिए। उड़ता पंजाब में सिर्फ नशे से गिरफ्त लोग ही नहीं हैं बल्कि उससे बचाने की तरकीब में लगे लोग भी हैं। जैसे सरताज और डॉ. पीत साहनी। फिल्म शानदार में शाहिद-आलिया की जोड़ी इतनी पकाऊ थी, उससे कहीं ज्यादा शानदार इस फिल्म में है। इनके बीच लव एंगल नहीं है, लेकिन जो भी एंगल है वो है बड़ा प्यारा। हाईवे और 2 स्टेट्स के बाद यह आलिया का अब तक का सबसे बढ़िया परफॉरमेंस है। शाहिद ग्लैमरस दिखने से कहीं ज्यादा मुश्किल होता होगा डी ग्लैमर fिदखना। फिल्म में उनका लुक ऐसा है जो कि इंसान आइने में खुद को देखकर डर जाए। फिल्म में दलजीत दोशांज का सहज अंदाज देखकर पता लगता है कि ये बंदा महज पांच सालों में पंजाबी फिल्मों का सुपर स्टार कैसे बना होगा। इसके अलावा करीना कपूर का किरदार अहम है। इसे लिखा भी अच्छे ढंग से गया है। यहां तारीफ करनी होगी अभिषेक चौबे और सुदीप शर्मा की जिन्होंने फिल्म की दो महिला किरदारों को काफी मजबूती दी है। फिल्म अमित त्रिवेदी के संगीत और लुभावने गानों के कारण भी आकर्षिक करती है। बॉक्स आफिस के नजरिए से फिल्म हिट है और लगभग 35 करोड़ रुपए के बजट ने अब तक पहले दिन 11 करोड़ और शनिवार को 13 करोड़ के लगभग बिजनेस कर लिया है। अंत में अगर आप उड़ता पंजाब को केवल इसके विवाद की वजह से देखना चाहते है तो घर बैठ सकते हैं क्योंकि इस फिल्म को देखने की और तमाम वजहें हैं। विवाद तो एक बहाना है। सच ये है कि गालियों और सच्चे डायलॉग से पटी पड़ी उड़ता पंजाब आपकी तालियों की नहीं आपकी तवज्जो मांगती है, वह भी देश के सामने एक अत्यंत गंभीर बढ़ती समस्या पर।

Tuesday, 21 June 2016

China too admits India is close to enter NSG

India is all set to enter the Nuclear Suppliers’ Group (NSG). China, so far creating obstacles, too has admitted that India is near the membership of the NSG. China believes that the Prime Minister Narendra Modi has got support from the US, Switzerland, Mexico and Great Britain but the Indian entry into this group will shake the strategic balance within South Asia. Besides it will endanger peace in the entire Asia Pacific area. It also said its all time associate Pakistan will be left behind. The nuclear balance between India and Pakistan will break. China has admitted that the US is the main reason for the growing  support to India for becoming a NSG member. It says that the India got support of some nations due to US treat as its associate nation. China has the real problem with the fact that if India becomes the member of the NSG, it will increase its dominance in South Asia. China, treating India weaker, lower than itself doesn’t want to treat it as an equal. Indian membership may also enhance the US intervention in the neighbourhood, fears China. Although it’s not a case of a veto here but the sole condition of NSG is “mutual consent”. So its consent is a must. China is now provoking small nations like Pakistan along with resorting to  direct pressure. Amongst these New Zealand has come out  in favour of India changing its side. Probably Turkey and Africa may also stand with us. Behind the US support is also  its diplomacy and economic policy. It wants to place India equal to China.  Besides it wants to install three nuclear reactors in India. Being a member of the NSG India will get nuclear technology, nuclear material required and uranium without any special agreement. It will also get assistance from the member nations in disposal of wastes generated by nuclear plants. India will be equal to China in South Asia. India will have the biggest advantage that if India gets the NSG membership, it will enhance its status. This Nuclear Suppliers’ Group was formed in the year 1975 after the atomic test by India in 1974, i.e. if India becomes the member of the club started for opposing India, it’ll be a big achievement for it. India will get the status of a nuclear powered nation. If India becomes the member of this exclusive club it’ll be an achievement of the Prime Minister Narendra Modi.

-        Anil Narendra

आस्ट्रेलिया ने बेशक स्वर्ण जीता पर दिल तो इंडिया ने जीते

शुक्रवार को लंदन में खेली गई एफआईए चैंपियंस हॉकी टूर्नामेंट के फाइनल में पहुंचने वाली भारतीय पुरुष टीम ने बेशक स्वर्ण पदक न हासिल किया हो पर टीम इंडिया ने जनता के दिल जीत लिए। पुरुष टीम को विवादित शूटआउट में विश्व चैंपियन आस्ट्रेलिया के हाथों 3-1 से पराजय झेलनी पड़ी और उसे रजत पदक से ही संतोष करना पड़ा। वैसे भारत ने फाइनल में उम्मीद से कहीं बेहतर प्रदर्शन किया। मैच निर्धारित समय में 0-0 से बराबर रहा। भारत ने दूसरे हाफ में गजब का प्रदर्शन किया और तीसरे चौथे क्वार्टर में विश्व चैंपियन आस्ट्रेलिया के पसीने छुड़ा दिए। लेकिन इतने दबाव बनाने के बावजूद भारत आस्ट्रेलिया गोल में बॉल नहीं डाल सका। भारतीय टीम का फाइनल इसलिए भी सराहनीय था क्योंकि इसी टूर्नामेंट में लीग स्टेज पर आस्ट्रेलियाई ने भारत को आसानी से हरा दिया था। कप्तान व भारत के गोलकीपर पीआर श्रीजेश ने कई पेनल्टी कॉर्नर बचाए। बता दें कि यह रजत पदक 1980 में मास्को ओलंपिक यानि 36 बरस के बाद भारत एचआईएम के किसी बड़े टूर्नामेंट के खिताबी मुकाबले में पहुंचा और पदक हासिल किया। इससे पहले भारत ने 1982 में कांस्य पदक जीता था। जब निर्धारित समय में दोनों टीमें बराबरी (0-0) पर रहीं तो मैच के फैसले के लिए पेनल्टी शूटआउट का सहारा लिया गया। यहां आस्ट्रेलिया के दूसरे प्रयास पर विवाद भी हुआ। दरअसल भारतीय गोलकीपर पीआर श्रीजेश ने आस्ट्रेलिया के दूसरे प्रयास को रोक लिया था और गेंद उसके पैरों के बीच फंस गई थी। आस्ट्रेलियाई खिलाड़ी ने उस पर विरोध जताते हुए रेफरल मांगा और वीडियो एम्पायर ने रिप्ले देखने के बाद दूसरा प्रयास फिर से लेने का निर्णय लिया जिस पर आस्ट्रेलिया ने गोल कर शूटआउट में 2-0 की बढ़त बना ली। भारतीय कोच रोलेट ओल्टमैस इस फैसले पर बेहद नाराज नजर आए और भारतीय टीम ने फिर इस पर अपना विरोध दर्ज कराया। इस विरोध के कारण ही आधिकारिक परिणाम की घोषणा करने में करीब डेढ़ घंटा लगा। ली वैली हॉकी एंड टेनिस सेंटर में खेले गए इस सांस रोकने वाले मुकाबले में आस्ट्रेलियाई गोलकीपर टाइलट लोवेल हीरो साबित हुए, जिन्होंने विपक्षी भारतीय टीम को शूटआउट में केवल एक गोल ही करने का मौका दिया। देश में हॉकी की सर्वोच्च संस्था हॉकी इंडिया ने भारतीय पुरुष टीम के खिलाड़ियों और कोच रोलेट ओल्टमैस को नकद पुरस्कार देने की घोषणा की। टीम के खिलाड़ियों और मुख्य कोच को दो-दो लाख रुपए का नकद पुरस्कार देने की घोषणा की। इसके अलावा टीम के अन्य कोचों तथा सपोर्ट स्टाफ को एक-एक लाख रुपए का नकद पुरस्कार दिया जाएगा। हम भारतीय हॉकी टीम को इस शानदार प्रदर्शन के लिए बधाई देते हैं और रियो ओलंपिक के लिए बैस्ट ऑफ लक।

-अनिल नरेन्द्र

चीन ने भी माना भारत एनएसजी सदस्य बनने के करीब

भारत परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में प्रवेश के बहुत करीब पहुंच गया है। अब तक अड़ंगेबाजी करने वाले चीन ने भी माना है कि भारत एनएसजी की सदस्यता हासिल करने के बेहद करीब है। चीन का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अमेरिका, स्विट्जरलैंड, मैक्सिको व ग्रेट ब्रिटेन से समर्थन मिल चुका है लेकिन इस समूह में भारत के प्रवेश से दक्षिण एशिया में रणनीतिक संतुलन को धक्का लगेगा। साथ ही पूरे एशिया प्रशांत क्षेत्र में भी शांति को खतरा पैदा होगा। इसके साथ ही उसने यह भी कहा कि उसका सर्वकालिक सहयोगी पाकिस्तान पीछे छूट जाएगा। भारत-पाक के बीच परमाणु संतुलन टूट जाएगा। चीन का कहना है कि एनएसजी की सदस्यता के लिए भारत को इतना ज्यादा समर्थन मिलने के पीछे अहम कारण है अमेरिका। अमेरिका की वजह से भारत को एनएसजी की सदस्यता के लिए समर्थन मिल रहा है। उसका कहना है कि अमेरिका की ओर से भारत को अपने सहयोगी की तरह व्यवहार करने के चलते कुछ देशों का समर्थन मिला है। चीन को असल दिक्कत इस बात से है कि अगर भारत एनएसजी का सदस्य बन गया तो दक्षिण एशिया में भारत का प्रभुत्व बढ़ेगा। भारत को हमेशा अपने से कमजोर, कमतर समझने वाला चीन उसे अपने समकक्ष नहीं चाहता। भारत की सदस्यता से पड़ोस में अमेरिकी दखल भी बढ़ जाएगा। बता दें कि यहां वीटो वाला मामला तो नहीं है लेकिन एनएसजी की एकमात्र शर्त हैöआम सहमति। इसलिए उसका मानना जरूरी है। सीधे दबाव बनाने के साथ-साथ चीन अब पाकिस्तान जैसे छोटे देशों को भी उकसा रहा है। इनमें से न्यूजीलैंड पैंतरा बदलकर भारत के पक्ष में आ गया है। संभावना है कि तुर्की और अफ्रीका भी साथ आ सकते हैं। अमेरिका के समर्थन के पीछे उसकी कूटनीति और आर्थिक नीति है। वो भारत को चीन के समकक्ष खड़ा करना चाहता है। वहीं वो भारत में तीन रिएक्टर भी लगाना चाहता है। इसके लिए जरूरी परमाणु सामग्री भारत को आसानी से मिल सकेगी। एनएसजी का सदस्य बनने से भारत को परमाणु तकनीक और यूरेनियम बिना किसी विशेष समझौते से हासिल हो सकेगा। परमाणु संयंत्र से निकलने वाले कचरे का निस्तांतरण करने में भी सदस्य राष्ट्रों से मदद मिलेगी। दक्षिण एशिया में भारत चीन के समकक्ष खड़ा हो जाएगा। भारत को सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि अगर भारत को एनएसजी की सदस्यता मिल जाती है तो इससे उसका रुतबा बढ़ जाएगा। ये न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप वर्ष 1974 में भारत के परमाणु परीक्षण के बाद ही साल 1975 में बना था, यानि जिस क्लब की शुरुआत भारत का विरोध करने के लिए हुई थी अगर भारत उसका मैम्बर बन जाता है तो ये उसके लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी। भारत की छवि परमाणु सम्पन्न देश की बनेगी। अगर भारत इस एक्सक्लूसिव क्लब का सदस्य बनता है तो यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बड़ी उपलब्धि होगी।

Sunday, 19 June 2016

सवाल आप में असहिष्णुता का

स्वराज और लोकपाल जैसे मुद्दों पर आम आदमी पार्टी जनता के बीच वैकल्पिक राजनीति के दावे के साथ आई थी। दुख की बात है कि अलग छवि बनाने वाली पार्टी अपने अंदर ही लोकतंत्र की हत्या कर रही है। हर बात पर जनता से रायशुमारी करवाने वाली और मोहल्ला सभा की बात करने वाली पार्टी नहीं चाहती कि उसके नेता जनता के बीच वह राय रखें जिसे वे सही मानते हैं। गोपाल राय के परिवहन मंत्रालय छोड़ने पर आप की तेज-तर्रार नेता अलका लाम्बा को पार्टी के प्रवक्ता के पद से हटा दिए जाने पर सवाल उठने स्वाभाविक ही हैं। गौरतलब है कि एप आधारित बस सेवा योजना में `आप' के नेता और मंत्री गोपाल राय पर एक निजी कंपनी को फायदा पहुंचाने के आरोप  लगे थे। विवाद में आने के बाद इस मामले की जांच चल रही है। इस बीच काम का बोझ ज्यादा होने और स्वास्थ्य ठीक न होने का कारण बताकर गोपाल राय ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। इसी सन्दर्भ में अलका लाम्बा ने कह दिया कि प्रीमियम बस घोटाले का आरोप लगने पर गोपाल राय ने इस्तीफा दिया है ताकि जांच में कोई बाधा न हो। घोषित तौर पर यह आम आदमी पार्टी की लाइन नहीं थी। इस मसले पर मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का स्टैंड था कि गोपाल राय ने खराब सेहत के कारण परिवहन विभाग छोड़ा है। जाहिर है कि अलका लाम्बा के बयान से विपक्षी दलों को यह कहने का मौका मिल गया कि घोटाले के आरोप के चलते ही गोपाल राय को पद छोड़ना पड़ा। भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम की पहचान वाली पार्टी के लिए यह इसलिए भी एक असहज स्थिति है कि फिलहाल संसदीय सचिव विधेयक को राष्ट्रपति द्वारा लौटा देने के बाद आप के 21 विधायकों की सदस्यता पर तलवार लटकी है। जिस तेजी से अलका लाम्बा को प्रवक्ता पद से हटाने का फैसला किया गया, उससे स्वाभाविक ही है यह सवाल उठे कि क्या आप के भीतर असहमति के स्वर की जगह नहीं बची है। केजरीवाल आए दिन नरेंद्र मोदी पर असहिष्णुता का आरोप लगाते थकते नहीं। उनके घर में क्या हो रहा है इस पर कोई बात नहीं करते। अलका लाम्बा का केस पहला नहीं है। इससे पहले भी असहमत आवाजों को दरकिनार कर दिया जाता रहा है और फिर पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण के मामले में पार्टी में बड़ा टकराव सामने आया था। अलका लाम्बा चांदनी चौक जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र की आम आदमी पार्टी की विधायक हैं। कांग्रेस से आईं अलका लाम्बा तेज-तर्रार छवि की नेता हैं। वह दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ की प्रेजिडेंट भी रह चुकी हैं। अब सवाल यह उठता है कि क्या अलका लाम्बा को सच बोलने की सजा दी गई या फिर वजह और ही है।

-अनिल नरेन्द्र

जेएनयू में राष्ट्र विरोधी नारों का वीडियो सही पाया गया

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में एक कार्यक्रम के दौरान नौ फरवरी को कुछ छात्रों द्वारा राष्ट्र विरोधी नारे लगाने वाले आरोपियों पर शिकंजा और कस सकता है। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने आरोपियों के खिलाफ जांच तेज कर दी है। बृहस्पतिवार को भी सेल के छह अधिकारियों ने जेएनयू पहुंचकर एडमिन ब्लॉक में मास्टर माइंड उमर खालिद व अनिर्वान भट्टाचार्य समेत दो छात्रों से करीब तीन घंटे पूछताछ की। उधर बुधवार को दिल्ली पुलिस मुख्यालय के सामने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने प्रदर्शन कर पुलिस पर जेएनयू के नौ फरवरी के मामले में चुप्पी साधने का आरोप लगाते हुए कहा कि आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करने से पुलिस बच रही है जबकि उस विवादित कार्यक्रम का वीडियो सही पाया गया है। उल्लेखनीय है कि नौ फरवरी के कार्यक्रम का एक निजी चैनल का वीडियो जांच में सही पाया गया है। वीडियो में कोई छेड़छाड़ नहीं हुई है। याद रहे कि देश के तथाकथित धर्मनिरपेक्ष शब्दावलियों ने इसकी सत्यता पर कई सवाल उठाए थे। वीडियो को सीएसएलएफ भेजा गया। इसी वीडियो पर ही जेएनयू में देश विरोधी नारे लगाने वाले आरोपियों के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज हुआ था। दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि चैनल के वीडियो को लोधी कॉलोनी स्थित सीबीआई की सीएसएलएफ में भेजा गया था। सीएसएलएफ ने आठ जून को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को रिपोर्ट सौंप दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वीडियो के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं हुई है। पुलिस ने जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया, अनिर्वान भट्टाचार्य और उमर खालिद को गिरफ्तार किया था। सभी अब जमानत पर बाहर हैं। इससे पहले दिल्ली पुलिस ने इस विवादित कार्यक्रम के जो पांच वीडियो गुजरात लैब में भेजे थे वो भी सच पाए गए हैं। इन वीडियो के साथ भी कोई छेड़छाड़ सामने नहीं आई। इन्हें उस समय कार्यक्रम को देख रहे लोगों ने अपने मोबाइल से बनाया था। अब स्पेशल सेल को कन्हैया कुमार की आवाज के नमूनों की रिपोर्ट का इंतजार है। तब इन तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ताकतों ने तर्प दिया था कि वीडियो फुटेज के साथ छेड़छाड़ की गई है और छात्र नेताओं को बिना वजह परेशान करने के मकसद से पुलिस ने यह केस दर्ज किया है। केंद्र सरकार पर भी जेएनयू को बदनाम करने का आरोप लगाया गया था। तब इन छात्रों की गिरफ्तारी को लेकर देशभर में विरोधी स्वर उठे थे। अब चूंकि वीडियो की सत्यता पर सारे आरोप हट गए हैं और दूध का दूध पानी का पानी हो गया है। उम्मीद की जाती है कि दिल्ली पुलिस इस मामले में बाकी बची जांच तेज करेगी। बता दें कि कन्हैया ने तो जमानत के बाद भी देश विरोधी भाषण दिए हैं। देखें, अदालतें उसकी सशर्त जमानत पर क्या कार्रवाई करती हैं?

Saturday, 18 June 2016

Baghdadi's ideology is much important rather than his death

Once again it has been reported that the world’s most dreaded and wanted terrorist kingpin Abu Bakar al-Baghdadi has been killed in an aerial attack in Raqqa in Syria. Though it’s not the first time Baghdadi’s death news has been flashed. A similar claim of Baghdadi’s arrest on 2nd December 2012 was found to be a fake one. In October 2014 again it was reported that he has been injured in Al Raqqa. His death in Mosul aerial attack in November was reported in the same year. He was reported to have been injured in an attack in Al Cam area on 20th January 2015. He escaped from Raqqa to Mosul after the bombing by Jordan on 8th February 2015. It was once again reported in an Iranian attack on 9th June 2015. However this time Iran and Turkish news agency have claimed it on Tuesday through the IS affiliated news agency Al Amak.  Baghdadi is the chief of dreaded terrorist organization Islamic State (IS). As per Iran and Turkey Baghdadi was injured in an aerial attack by the US led forces on Thursday. He succumbed on Sunday. Baghdadi was targeted when he reached Raqqa in a fleet of cars from Syria with other terrorists of the IS. Though the US alliance army has not yet confirmed the death of Baghdadi. If the news of Baghdadi’s death comes to be true, it’ll be a big blow for the IS. Due to the attacks from Syria and Iraq many territories have already slipped out of the grip of the IS. Its supply of rations and weapons has also been stopped. Illegal sale of oil from the areas occupied by it has been stopped too much extent. Baghdadi had taken the command of Islamic State of Iraq in 2010. He is responsible for more than half million deaths. He had declared a Khilafat Empire in the world on 29th June 2014. Abu Bakar al-Baghdadi built up  such a dreaded terrorist organization just within a decade. After the collapse of Saddam Hussain Empire in Iraq war in the year 2003, he took the path of Jihad and became a threat for the entire world in just one decade. As per his autobiography in the year 2013 Abu Bakar al-Baghdadi, pursuing a Ph.D. from the Baghdad University was not a Jihadi from the beginning. He was a Maulvi earlier and was extremely popular among the youth. But after the ending of the Saddam era, within some years he established the fear of the Islamic State over the major portions of Syria and Iraq taking advantage of the racial clash. After the Sunni rule of Saddam in Iraq,Shia majority Iraq was over, he helped Jamaat Jaesh Ahal al-Sunna in establishing the Jamaat organization, where he was the chief of the Sharia Committee. In the year 2006 Baghdadi joined Mujahidin Shura Council along with his companions. He named the Shura Council organization as Islamic State of Iraq later in 2010. He became a big threat after the death of al-Qaeda chief Osama Bin Laden in 2011. IS started consolidating his hold over other Jihadi organizations opposing Syrian President Basher Al-Assad. It is said that many anti-Assad governments including Saudi Arabia, Qatar provided the IS with weapons and other assistance in the initial round, but it became a threat for the entire world just within five years. Baghdadi enforced Islamic laws in the territory occupied by it. He spread terror by chopping off  the heads of foreign hostages and releasing its videos. Making women of Yazdi and other minority group sex slaves exposed to the cruellest face of its organization before the world. If Al-Baghdadi is really killed, it is the strategic win of not only of the US but also of the peace loving people of the entire world. But it’s also the bitter truth that this win can’t guarantee peace. The real question is not of Baghdadi being killed, since if the fake claim of the Islamic Empire goes on attracting the people and they have hatred within them against the Islamic and non Islamic countries including the western nations disagreeing with them, not a single but thousands of Baghdadis will be born and there will be a new Abu Bakar among them, so Baghdadi is not such a threat instead it is the ideology which nits a dream contrary to other western nations including the US and invites the people to trap in the net and to die and kill. Generally it is said that the people lean towards the terrorism that are educated less and don’t have proper knowledge about the religion. But if there was a person named Baghdadi and has been killed, it was he, who is reported to be a Ph.D. in Islamic Studies from the Baghdad University i.e. having the sound knowledge in the Islam. For it he should also have the knowledge of other religions and respect towards them just like Dara Shikoh. The generosity will be stable only if it has the support of such a democratic political system which is committed to maintain democracy in the entire world, mutual harmony and also supporting a global democratic structure. Anyway if the news of Baghdadi being killed is correct, the IS will surely respond to it. Hope and pray that  the Football Cup in Europe is not targeted next?

Anil Narendra

चौतरफा महंगाई ने जनता की कमर तोड़ दी है


मई के महीने में थोक मूल्य आधारित मुद्रास्फीति बढ़कर 0.79 फीसद तक पहुंच गई। सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार खाद्य महंगाई दर भी करीब दोगुना बढ़कर 7.88 फीसद के स्तर पर पहुंच गई। अप्रैल में यह 4.23 फीसद थी। दालों और सब्जियों की लगातार बढ़ती कीमतों ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है। दालों के दाम पहले ही आसमान छू रहे थे, अब कुछ दिनों में टमाटर समेत कई अन्य सब्जियों में भी तेजी आ गई है। महंगाई तेजी से बढ़ रही है। देश के कुछ हिस्सों में तो टमाटर की कीमत 100 रुपए प्रतिकिलो तक पहुंच गई है। मंगलवार को जारी थोक महंगाई दर के आंकड़ों के मुताबिक सब्जियों के दामों में 12.94 फीसद की भारी वृद्धि दर्ज हुई है। महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में बारिश की कमी के चलते टमाटर की फसल प्रभावित हुई है। इसी वजह से दाम बढ़े हैं। टमाटर की कीमतों की चर्चा करते हुए खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने कहा कि इसकी कीमत बढ़ने का कारण मौसमी और स्थानीय है। अभी टमाटर का मौसम नहीं है और इस समय सीमित इलाकों में इसकी खेती होती है। दिल्ली की आजादपुर मंडी में सब्जियों के दामों में पिछले 10 दिनों में 15 से 50 फीसद तक की बढ़ोत्तरी हुई है। टमाटर के दाम सबसे तेजी से बढ़े हैं। दालों की कीमत 170 रुपए और कई जगह 200 रुपए प्रतिकिलो पहुंचने पर बुधवार को केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली के आवास पर एक उच्च स्तरीय बैठक हुई। इसमें महंगाई को काबू करने के उपाय तलाशने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्तमंत्री अरुण जेटली, कृषि मंत्री राधामोहन सिंह, खाद्य मंत्री रामविलास पासवान, नितिन गडकरी, निर्मला सीतारमण तथा वेंकैया नायडू ने भाग लिया। बैठक में दाल-सब्जियों की कीमतों में तेजी के कारण और उनको काबू में रखने के संभावित विकल्पों पर चर्चा की गई। दूसरी ओर कर्ज सस्ता होने की उम्मीद धूमिल हुई है। वह भी उस सूरत में जब अप्रैल माह में औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर में गिरावट दर्ज की गई। टमाटर और दालों की कीमतों ने तो सभी की पेशानी पर चिन्ता की लकीरें खींच डाली हैं। चूंकि थोक महंगाई का वैश्विक जिन्सों पर असर भी पड़ता है, इसलिए तमाम अंदेशे हैं। अगर कच्चे तेल का मूल्य मौजूदा स्तर पर कायम रहता है तो औसत थोक मूल्यों पर आधारित सूचकांक तीन फीसद का स्तर पार कर सकता है। कुछ आर्थिक विशेषज्ञ कह रहे हैं कि खाद्य उत्पादों के दामों में निरंतर बढ़ोत्तरी के रुख के मद्देनजर आपूर्ति पक्ष को मजबूत किया जाना चाहिए। अब तो सबकी नजरें आसमान पर टिकी हुई हैं, मानसून पर। अगर अच्छा मानसून आता है तो आने वाले दिनों में फौरी तौर पर थोक मूल्य मुद्रास्फीति में गिरावट आ सकती है।
-अनिल नरेन्द्र


21 विधायकों की सदस्यता चुनाव आयोग पर टिकी है

संसदीय सचिवों के मामले में राष्ट्रपति द्वारा विधायकों को सुरक्षित करने से संबंधित बिल को नामंजूर किए जाने के बाद इन विधायकों की सदस्यता खतरे में आ गई है। गेंद अब चुनाव आयोग के पाले में है। अगर विधायकों की सदस्यता जाती है और इन 21 सीटों पर उपचुनाव होते हैं तो यह एक तरह से आप सरकार के लिए जनमत संग्रह की तरह हो सकता है। दिल्ली के 21 विधायकों की सदस्यता का भविष्य अब चुनाव आयोग के हाथ में है। लेकिन इस बीच दिल्ली के चुनाव आयुक्त ने चुनाव आयोग को भेजे एक जवाब में कहा है कि दिल्ली में किसी मंत्री के साथ संसदीय सचिव के पद का कानून में कोई प्रावधान नहीं है। इतना ही नहीं, इन 21 विधायकों में से कुछ के चुनाव आयोग को दिए जवाब सामने आए हैं, उनमें कुछ ने खुद को संसदीय सचिव की जगह एक मंत्री का इंटर्न तक बना दिया है। हालांकि इस मुद्दे पर जब आप से सवाल पूछा गया तो सीधे तौर पर उनके पास कोई जवाब नहीं था पर उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि इसका शब्दार्थ न निकालें, भावार्थ समझने की कोशिश करें। ये तथ्य सामने आए हैं एक आरटीआई के जवाब में, आरटीआई में सवाल पूछा गया था कि 21 संसदीय सचिवों के मामले में अब तक चुनाव आयोग में क्या-क्या तथ्य सामने आ चुके हैं। विधायकों ने चुनाव आयोग को अपने जवाब में दो बातें कही हैं, पहली कि उनका पद लाभ के दायरे में नहीं आता क्योंकि उनको सरकार से कोई सुविधा नहीं मिल रही। इसी हलफनामे के एक हिस्से में विधायक ने खुद को एक इंटर्न या असिस्टेंट के बराबर बता दिया। आम आदमी पार्टी का कहना है कि दूसरे राज्यों में विधायक बहुत सारी सुविधाएं लेकर संसदीय सचिव बन जाते हैं तो फिर दिल्ली में क्यों नहीं? देश के अन्य राज्यों में कई विधायक संसदीय सचिव के तौर पर काम कर रहे हैं। पंजाब में 19, नागालैंड में 24, हिमाचल प्रदेश में छह, गुजरात-राजस्थान में पांच-पांच संसदीय सचिव हैं। इन्हें सरकार की तरफ से अच्छी-खासी सुविधाएं मिल रही हैं। बता दें कि विभिन्न राज्यों में हाई कोर्टों में संसदीय सचिवों की नियुक्तियां खारिज होने के विवरण भी सामने आए हैं। सरकारी अधिकारियों के मुताबिक कोलकाता हाई कोर्ट ने जून 2015 में 13 संसदीय सचिवों की नियुक्ति के विधेयक को खारिज कर दिया था। इसी तरह बॉम्बे हाई कोर्ट की गोवा पीठ ने 2009 में संसदीय सचिवों की नियुक्ति के लिए राज्य विधानसभा से पारित विधेयक को नामंजूर कर दिया था। पंजाब में 19 संसदीय सचिवों की नियुक्ति को पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। इस पर सुनवाई चल रही है। हरियाणा में भी चार संसदीय सचिवों की नियुक्ति को चुनौती दी गई है। संविधान के मुताबिक दिल्ली को छोड़कर सभी राज्यों में मंत्री और संसदीय सचिव की संख्या विधानसभा की कुल सीटों के 15 फीसद से अधिक नहीं होनी चाहिए। दिल्ली में यह सीमा 10 फीसद है। शीला दीक्षित सरकार के बनाए कानून के मुताबिक मुख्यमंत्री केवल एक ही संसदीय सचिव की नियुक्ति कर सकता है। अगर चुनाव आयोग इन विधायकों की सदस्यता को रद्द करने का फैसला करता है तो खाली सीटों पर छह महीने के भीतर उपचुनाव कराए जाएंगे। पिछले चुनावों में आप के इन विधायकों की जीत का अंतर देखने पर पता चलता है कि इनमें से कुछ अरविन्द केजरीवाल के सबसे मजबूत चेहरों में से एक हैं। भाजपा प्रवक्ता और दिल्ली की सांसद मीनाक्षी लेखी ने आरटीआई के हवाले से दावा किया है कि सभी 21 विधायक सरकारी सुविधाएं ले रहे हैं। खुद विधानसभा अध्यक्ष ने संसदीय सचिव बनाए गए इन विधायकों को विधानसभा परिसर में कमरा आबंटित किए हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि आप सरकार पहले तो गैर कानूनी काम करती है और फिर उसे ढंकने के लिए आरोप लगाती है।

Friday, 17 June 2016

Baghdadi’s ideology is much important rather than his death

Once again it has been reported that the world’s most dreaded and wanted terrorist kingpin Abu Bakar al-Baghdadi has been killed in an aerial attack in Raqqa in Syria. Though it’s not the first time Baghdadi’s death news has been flashed. A similar claim of Baghdadi’s arrest on 2nd December 2012 was found to be a fake one. In October 2014 again it was reported that he has been injured in Al Raqqa. His death in Mosul aerial attack in November was reported in the same year. He was reported to have been injured in an attack in Al Cam area on 20th January 2015. He escaped from Raqqa to Mosul after the bombing by Jordan on 8th February 2015. It was once again reported in an Iranian attack on 9th June 2015. However this time Iran and Turkish news agency have claimed it on Tuesday through the IS affiliated news agency Al Amak.  Baghdadi is the chief of dreaded terrorist organization Islamic State (IS). As per Iran and Turkey Baghdadi was injured in an aerial attack by the US led forces on Thursday. He succumbed on Sunday. Baghdadi was targeted when he reached Raqqa in a fleet of cars from Syria with other terrorists of the IS. Though the US alliance army has not yet confirmed the death of Baghdadi. If the news of Baghdadi’s death comes to be true, it’ll be a big blow for the IS. Due to the attacks from Syria and Iraq many territories have already slipped out of the grip of the IS. Its supply of rations and weapons has also been stopped. Illegal sale of oil from the areas occupied by it has been stopped too much extent. Baghdadi had taken the command of Islamic State of Iraq in 2010. He is responsible for more than half million deaths. He had declared a Khilafat Empire in the world on 29th June 2014. Abu Bakar al-Baghdadi built up  such a dreaded terrorist organization just within a decade. After the collapse of Saddam Hussain Empire in Iraq war in the year 2003, he took the path of Jihad and became a threat for the entire world in just one decade. As per his autobiography in the year 2013 Abu Bakar al-Baghdadi, pursuing a Ph.D. from the Baghdad University was not a Jihadi from the beginning. He was a Maulvi earlier and was extremely popular among the youth. But after the ending of the Saddam era, within some years he established the fear of the Islamic State over the major portions of Syria and Iraq taking advantage of the racial clash. After the Sunni rule of Saddam in Iraq,Shia majority Iraq was over, he helped JamaatJaeshAhal al-Sunna in establishing the Jamaat organization, where he was the chief of the Sharia Committee. In the year 2006 Baghdadi joined Mujahidin Shura Council alongwith his companions. He named the Shura Council organization as Islamic State of Iraq later in 2010. He became a big threat after the death of al-Qaeda chief Osama Bin Laden in 2011. IS started consolidating his hold over other Jihadi organizations opposing Syrian President Basher Al-Assad. It is said that many anti-Assad governments including Saudi Arabia, Qatar provided the IS with weapons and other assistance in the initial round, but it became a threat for the entire world just within five years. Baghdadi enforced Islamic laws in the territory occupied by it. He spread terror by choppingoff  the heads of foreign hostages and releasing its videos. Making women of Yazdi and other minority group sex slaves exposed to the cruellest face of its organization before the world. If Al-Baghdadi is really killed, it is the strategic win of not only of the US but also of the peace loving people of the entire world. But it’s also the bitter truth that this win can’t guarantee peace. The real question is not of Baghdadi being killed, since if the fake claim of the Islamic Empire goes on attracting the people and they have hatred within them against the Islamic and non Islamic countries including the western nations disagreeing with them, not a single but thousands of Baghdadis will be born and there will be a new Abu Bakar among them, so Baghdadi is not such a threat instead it is the ideology which nits a dream contrary to other western nations including the US and invites the people to trap in the net and to die and kill. Generally it is said that the people lean towards the terrorism that are educated less and don’t have proper knowledge about the religion. But if there was a person named Baghdadi and has been killed, it was he, who is reported to be a Ph.D. in Islamic Studies from the Baghdad University i.e. having the sound knowledge in the Islam. For it he should also have the knowledge of other religions and respect towards them just like Dara Shikoh. The generosity will be stable only if it has the support of such a democratic political system which is committed to maintain democracy in the entire world, mutual harmony and also supporting a global democratic structure. Anyway if the news of Baghdadi being killed is correct, the IS will surely respond to it. Hope and pray that  the Football Cup in Europe is not targeted next?

-          Anil Narendra

दिल्ली के 5 निजी अस्पतालों पर सरकारी डंडा

दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने कुछ बड़े अस्पतालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का जो फैसला किया है वह सराहनीय है। सरकार ने फोर्टिस एस्कॉर्ट हार्ट इंस्टीट्यूट, धर्मशिला कैंसर इंस्टीट्यूट, साकेत स्थित मैक्स, पुष्पावती सिंघानिया और शांति मुपुंद अस्पताल पर 600 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है। इन अस्पतालों पर आर्थिक रूप से पिछड़े मरीजों और जरूरतमंदों का इलाज नहीं करने का आरोप है। अस्पताल बनने से लेकर वर्ष 2007 तक कम आय वर्ग के मरीजों को निशुल्क इलाज न देने पर यह जुर्माना लगाया है। इन पांच निजी अस्पतालों को 9 जुलाई तक 600 करोड़ रुपए जमा करने का आदेश दिया गया है। दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग के अतिरिक्त निदेशक (ईडब्ल्यूएस) डॉ. हेम प्रकाश ने कहा कि सभी प्रमुख पांच अस्पतालों को वर्ष 1990 के दशक में इस शर्त पर रियायती जमीन दी गई थी कि ये गरीब वर्ग के मरीजों का मुफ्त इलाज करेंगे। सभी अस्पतालों ने इस आदेश का उल्लंघन किया है। इससे पहले वर्ष 2015 के दिसम्बर महीने में भी इस बाबत अस्पतालों को नोटिस भेजा जा चुका था, जिसका पालन नहीं किया गया। इन्हें लगातार नोटिस दिए जाने पर भी संतोषजनक जवाब नहीं मिला। उनका कहना है कि सरकार गरीबों के इलाज को लेकर बेहद गंभीर है और निजी अस्पतालों ने तय शर्तों का उल्लंघन किया है। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन ने यह भी कहा कि अगर ये अस्पताल एक महीने के अंदर जुर्माने की रकम नहीं भरते हैं तो उन पर आगे की कार्रवाई होगी। सरकार ने अब तक कुल 43 निजी अस्पतालों को कम कीमत पर जमीन इस शर्त पर मुहैया कराई है कि वो अस्पतालों में 10 फीसदी बैड गरीबों के लिए आरक्षित रखेंगे। इन बड़े निजी अस्पतालों में गरीब मरीजों के हक में लड़ाई लड़ रहे दिल्ली हाई कोर्ट के वकील अशोक अग्रवाल का कहना है कि उन्होंने कोर्ट में सैकड़ों ऐसे गरीब मरीजों के कागजात जमा कराए हैं, जिनका इलाज करने से अस्पतालों ने मना कर दिया था। ये सबूत अपने आपमें पूरा मामला बताने के लिए काफी हैं। बता दें, अग्रवाल इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट की ओर से गठित एक देखरेख समिति के सदस्य भी हैं। उधर मैक्स और धर्मशिला कैंसर अस्पताल के आधिकारिक बयान में कहा गया है कि गरीब मरीजों के लिए बनाए गए चैरिटेबल फाउंडेशन के तहत सभी को इलाज दिया जाता है। अस्पताल प्रशासन ने सरकार के आदेश के खिलाफ कोर्ट में जाने की बात कही है। वहीं सरकार में बैठे सूत्र ये बता रहे हैं कि अभी तो सिर्प पांच अस्पतालों के खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई है। ये फेहरिस्त लंबी है और बाकी निजी अस्पतालों के खिलाफ भी जल्दी ही सरकार डंडा चला सकती है।

-अनिल नरेन्द्र

बगदादी के मरने से ज्यादा महत्वपूर्ण उसकी विचारधारा है

एक बार फिर खबर आई है कि दुनिया का सबसे खतरनाक और वांछित आतंकवादी सरगना अबु बक्र अल बगदादी सीरिया के रक्का शहर में एक हवाई हमले में मारा गया है। वैसे यह पहली बार नहीं जब बगदादी के मरने की खबर उड़ी है। 2 दिसम्बर 2012 को बगदादी की गिरफ्तारी का दावा झूठा निकला था। फिर अक्तूबर 2014 में खबर आई कि वह अल रक्का में घायल हो गया है। उसी साल नवम्बर में मोसुल हवाई  हमले में उसके मारे जाने की खबर आई। 20 जनवरी 2015 में अल कैम क्षेत्र के हमले में घायल होने की खबर आई। 8 फरवरी 2015 को जार्डन की बमबारी के बाद रक्का से मोसुल भागा। 9 जून 2015 को इराकी हमले में एक बार फिर खबर आई। इस बार ईरान और तुर्की मीडिया ने आईएस से जुड़ी न्यूज एजेंसी अल-अमाक के हवाले से मंगलवार को यह दावा किया। बगदादी खूंखार आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) का मुखिया है। ईरान और तुर्की के मुताबिक अमेरिका की अगुवाई वाली फौजों के गुरुवार को किए गए हवाई हमले में बगदादी घायल हो गया था। उसने रविवार को दम तोड़ दिया। बगदादी को तब निशाना बनाया गया जब वह आईएस के अन्य आतंकियों के साथ सीरिया से कारों के काफिले में रक्का पहुंचा था। हालांकि अमेरिकी गठबंधन सेना ने बगदादी की मौत पर अभी तक पुष्टि नहीं की है। अगर बगदादी की मौत की खबर सच निकलती है तो यह आईएस के लिए बड़ा धक्का होगा। सीरिया और इराक की ओर से हमलों की वजह से पहले ही कई इलाके आईएस की पकड़ से निकल चुके हैं। उसकी रसद और हथियारों की आपूर्ति भी ठप हो चुकी है। उसके कब्जे वाले इलाकों से तेल की गैर कानूनी बिक्री भी काफी हद तक बंद हो चुकी है। बगदादी ने 2010 में इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक की कमान संभाली थी। वह डेढ़ लाख से ज्यादा मौतों के लिए जिम्मेदार है। उसने 29 जून 2014 को विश्व में खिलाफत साम्राज्य स्थापित करने का ऐलान किया था। अबु बक्र अल बगदादी ने एक दशक में ही इतना खूंखार आतंकी संगठन खड़ा कर दिया। वर्ष 2003 में इराक युद्ध में सद्दाम हुसैन का साम्राज्य ढहने के बाद उसने जेहाद की राह पकड़ी और एक दशक में ही पूरी दुनिया के लिए खतरा बन गया। वर्ष 2013 में उसकी एक आत्मकथा के मुताबिक बगदाद यूनिवर्सिटी से पीएचडी करने वाला अबु बक्र अल बगदादी शुरू से जेहादी नहीं था। वह पहले मौलवी था और युवाओं में बेहद लोकप्रिय था। लेकिन सद्दाम युग खत्म होने के बाद कुछ सालों में ही उसने जातीय संघर्ष का फायदा उठाते हुए सीरिया और इराक के बड़े हिस्से पर इस्लामिक स्टेट का खौफ कायम कर दिया। ज्यादा मेलजोल न रखने वाला बगदादी अदृश्य शेख के नाम से मशहूर था। शिया बहुल इराक में सुन्नी शासक सद्दाम के खात्मे के बाद उसने जमात जाएश अहल अल सुन्ना का जमात संगठन की स्थापना में मदद की, जिसमें वह शरिया कमेटी का प्रमुख था। वर्ष 2006 में बगदादी अपने साथियों के साथ मुजाहिद्दीन शूरा काउंसिल में शामिल हो गया। बाद में उसने शूरा काउंसिल संगठन का नाम 2010 में इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक रख दिया। 2011 में अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद वह बड़ा खतरा बन गया। सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद विरोधी अन्य जेहादी संगठनों पर आईएस भारी पड़ने लगा। कहा जाता है कि सउदी अरब, कतर समेत असद विरोधी कई सरकारों ने शुरुआती दौर में आईएस को हथियार और अन्य मदद मुहैया कराई, लेकिन पांच सालों में ही वह पूरी दुनिया के लिए खतरा बन गया। बगदादी ने अपने कब्जे वाले क्षेत्र में इस्लामिक कानून लागू कर दिए। विदेशी बंधकों का सिर कलम कर उनके वीडियो जारी कर उसने दहशत कायम की। यजीदी और अन्य अल्पसंख्यक समूहों की महिलाओं को यौन गुलाम बनाने के कारनामे से उसके संगठन का अत्यंत कूर चेहरा दुनिया के सामने आया। अल बगदादी यदि वाकई मारा गया है तो यह अमेरिका ही नहीं पूरी दुनिया की अमन पसंद जनता की रणनीतिक जीत है। लेकिन कटु सत्य यह भी है कि इतनी जीत से अमन की गारंटी नहीं दी जा सकती। असल सवाल अल बगदादी के मारे जाने का नहीं है, क्योंकि अगर इस्लामी साम्राज्य का फर्जी दावा लोगों को आकर्षित करता रहेगा और उनके भीतर पश्चिमी देश समेत अपने से असहमत इस्लामी और गैर इस्लामी देशों के प्रति नफरत भरी रहेगी तो एक नहीं हजारों बगदादी पैदा होते रहेंगे और उसके भीतर से कोई नया अबु बक्र बन जाएगा, इसलिए खतरा बगदादी इतना नहीं बल्कि वह विचारधारा है, जो अमेरिका समेत अन्य पश्चिमी देशों के बरअक्स एक प्रकार का सपना बुनती है और लोगों को उस जाल में फंसने तथा जान देने और लेने को आमंत्रित करती है। आमतौर पर कहा जाता है कि आतंकवाद की ओर वह झुकते हैं जो कम पढ़े-लिखे होते हैं और धर्म के बारे में विधिवत ज्ञान नहीं रखते। लेकिन अगर बगदादी नाम का कोई व्यक्ति था और जो मारा गया है वह वही है, जिसे बगदाद विश्वविद्यालय से इस्लामी अध्ययन में पीएचडी बताया जाता है यानि इस्लाम में गहरी जानकारी रखने वाला। उसके लिए अन्य धर्मों की भी जानकारी और उनके प्रति उसी तरह का आदर होना चाहिए जैसे दारा शिकोह में था। वह उदारता तभी स्थायी होगी जब उसे ऐसी लोकतांत्रिक राजनीतिक प्रणाली का समर्थन हासिल हो जो पूरी दुनिया में लोकतंत्र कायम करने, आपसी भाईचारे के लिए संकल्पबद्ध हो और एक वैश्विक लोकतांत्रिक ढांचे का भी हिमायती हो। वैसे अगर बगदादी के मारे जाने की खबर सही है तो आईएस इसका जवाब जरूर देगा। कहीं यूरोप में फुटबाल कप अगला निशाना न हो जाए?