Tuesday 14 June 2016

मथुरा के कंस रामवृक्ष यादव का अंत कैसे हुआ?

मथुरा में कंस लीला का सूत्रधार रामवृक्ष यादव मरने के बाद भी विवादों में बना हुआ है। क्या रामवृक्ष जिन्दा है? क्या पुलिस ने उसे जवाहर बाग कांड में उसे और उसके परिवार को जिन्दा पकड़ लिया था और बाद में मार डाला? अगर एटा के जिला अस्पताल में भर्ती एक महिला की बात मानें तो वह दावा कर रही है कि रामवृक्ष जिन्दा है। पहली बार गोली चलने के बाद जैसे ही मामला शांत हुआ वह अपने परिवार को लेकर कहीं चला गया। जिला महिला अस्पताल में भर्ती धर्मवती का दावा है कि रामवृक्ष मरा नहीं है। धर्मवती को उम्मीद है कि वह अभी भी उसको बचाने आएगा। दूसरी ओर एक सिपाही की बात पर यदि यकीन करें तो वह दो जांबाजों की शहादत के बाद भी अपने ही विभाग को कठघरे में खड़ा कर रहा है। वह खुद सीबीआई जांच को जरूरी बताकर पुलिस के किए पर गंभीर सवाल उठा रहा है। इतना ही नहीं, उसका दावा यह भी है कि पुलिस ने रामवृक्ष यादव को परिवार समेत जिन्दा पकड़ लिया था। बाद में उसे मारा गया। सिपाही, जिसकी बातचीत रिकार्ड पर है, की बातों में कितनी सच्चाई है यह दीगर बात है। उसका कहना है कि पुलिस अफसरों ने इस कार्रवाई को छिपाया। कार्रवाई सुबह करनी चाहिए थी, भीड़ की तादाद का अंदाजा आसानी से लग जाता। उसने दावा किया कि अफसरों की मौत के बाद पुलिस ने रामवृक्ष यादव समेत 27 लोगों को पकड़ लिया। सिपाही का दावा है कि सभी को पुलिस लाइन के सभागार में लाया गया। लखनऊ के एक अफसर को यह सब बताया भी गया। बकौल सिपाही उसके बाद सभी को मारकर आग में फेंका गया। रामवृक्ष को मारने के बाद भी शिनाख्त नहीं की। उसको साजिश के तहत दो दिन लापता दिखाया। पांच हजार का इनाम घोषित करने के बाद मरा हुआ दिखा दिया। सिपाही का कहना है कि जवाहर बाग में काफी लोगों की जान ली गई। कुछ को तो शवदाहगृह में ही जला दिया गया। जवाहर बाग के नजदीक मवई कॉलोनी के एक दुकानदार का कहना है कि पुलिस ने कार्रवाई के दौरान अंदर किसी को नहीं जाने दिया। उधर जवाहर बाग में हुई घटना की सीबीआई जांच के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। अश्विनी उपाध्याय की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार व जिला प्रशासन की लापरवाही के कारण जवाहर बाग की घटना हुई, जिसमें दो दर्जन से ज्यादा लोगों की जान चली गई। एक आईपीएस अफसर व एक दरोगा की भी मौत हो गई। केंद्र ने इस घटना की सीबीआई जांच के लिए सहयोग की बात कही, लेकिन राज्य सरकार ने इसकी सिफारिश नहीं की। कहा गया कि घटना में सत्ताधारी बल के कई बड़े नेताओं की संलिप्तता है। ऐसे में राजनीतिक दबाव के चलते स्थानीय पुलिस से घटना की निष्पक्ष जांच की उम्मीद नहीं। इसलिए घटना की जांच सीबीआई से कराया जाना आवश्यक है।

-अनिल नरेन्द्र

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