भारत
के चुनाव इतिहास में पहली बार निर्वाचन आयोग ने एक ऐसा कदम उठाया है जिसकी सराहना होनी
चाहिए। आयोग ने मददाताओं को पभावित करने के लिए धनराशि इस्तेमाल किए जाने के सबूत के
बाद शनिवार को तमिलनाडु के राज्यपाल के.
रोसैया के पदेश की दो विधानसभा सीटों के चुनाव को रद्द करने की सिफारिश
की है। आयोग ने राज्यपाल से अधिसूचना संशोधित कर तमिलनाडु विधानसभा की दो सीटों के
लिए उचित समय में ताजा चुनाव कराने को कहा है। इससे पहले चुनाव आयोग ने दो मौकों पर
अरावकुरिची और तंजावुर विधानसभा सीटों के लिए चुनाव उम्मीदवारों और राजनीतिक पार्टियों
द्वारा मतदाताओं को बड़े पैमाने पर धनराशि व उपहार वितरित करने की सूचना पर स्थगित
किया था। शुरू में मतदान 16 से 23 मई के
लिए स्थगित किया गया था। 21 मई को चुनाव आयोग ने मतदान एक बार
फिर 13 जून के लिए स्थगित करने का निर्णय लिया। इन दोनों विधानसभा
सीटों पर 8 करोड़ रुपए से अधिक नकद धनराशि जब्त की गई थी। इसके
अतिरिक्त तलाशी के दौरान 2500 लीटर शराब, चांदी के उपहार, धोती और साड़ी इत्यादि बरामद किए गए
थे। एक अधिकारी ने आयोग के आदेशानुसार कहा कि आयोग इससे संतुष्ट है कि दो विधानसभा
क्षेत्रों में चुनाव पकिया उम्मीदवारों एवं राजनैतिक दलों द्वारा मतदाताओं को पभावित
करने के लिए धनराशि एवं अन्य उपहार पेशकश किए जाने के चलते दूषित हो गई है। इस पकिया
को आगे बढ़ाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। इसे रद्द होना चहिए। चुनाव पकिया रद्द करने
का निर्वाचन आयोग का फैसला पैसे के बल पर चुनाव जीतने की कोशिश करने वालों के लिए एक
बड़ा झटका है। इस झटके की सख्त जरूरत भी थी। सवाल यह भी है कि इसकी क्या गारंटी है
आगे माहौल अनुकूल ही हो जाएगा? ऐसा पहली बार नहीं हुआ कि नकद
धनराशि जब्त की गई हो लेकिन गुपचुप तौर पर धन बांटने का सिलसिला रुकने का नाम ही नहीं
लेता। मतदाताओं को पैसे का पलोभन देकर चुनाव जीतने की समस्या ने एक गंभीर रूप धारण
कर लिया है। पैसे का खेल टिकट बांटने से ही शुरू हो जाते हैं और परिणाम आने तक चलता
है। इस बात के आसार भी कम हैं कि हमारे सियासी दल सुधरेंगे। यह सिलसिला चलता रहेगा।
जहां चुनाव आयोग द्वारा इन दो विधानसभाओं में पुन चुनाव कराने का फैसला सराहनीय है
वहीं हम समझते हैं कि चुनाव आयोग भ्रष्ट तौर-तरीके अपनाने वाले
पत्याशियों व राजनीतिक दलों को चुनाव लड़ने के अयोग्य करार देने का अधिकार मिलना चाहिए।
यदि निर्वाचन आयोग सुधार संबधी और अधिक अधिकारों से लैस नहीं होता तो इसमें संदेह है
कि यह आलोकतांत्रिक पथा रुकने वाली है। खैर फिर भी इस दिशा में आयोग का यह पहला कदम
है।
-अनिल नरेन्द्र
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