संसदीय सचिवों के मामले में राष्ट्रपति द्वारा
विधायकों को सुरक्षित करने से संबंधित बिल को नामंजूर किए जाने के बाद इन विधायकों
की सदस्यता खतरे में आ गई है। गेंद अब चुनाव आयोग के पाले में है। अगर विधायकों की
सदस्यता जाती है और इन 21 सीटों पर उपचुनाव होते हैं तो यह
एक तरह से आप सरकार के लिए जनमत संग्रह की तरह हो सकता है। दिल्ली के 21 विधायकों की सदस्यता का भविष्य अब चुनाव आयोग के हाथ में है। लेकिन इस बीच
दिल्ली के चुनाव आयुक्त ने चुनाव आयोग को भेजे एक जवाब में कहा है कि दिल्ली में किसी
मंत्री के साथ संसदीय सचिव के पद का कानून में कोई प्रावधान नहीं है। इतना ही नहीं,
इन 21 विधायकों में से कुछ के चुनाव आयोग
को दिए जवाब सामने आए हैं, उनमें कुछ ने खुद को संसदीय सचिव
की जगह एक मंत्री का इंटर्न तक बना दिया है। हालांकि इस मुद्दे पर जब आप से सवाल पूछा
गया तो सीधे तौर पर उनके पास कोई जवाब नहीं था पर उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि इसका
शब्दार्थ न निकालें, भावार्थ समझने की कोशिश करें। ये तथ्य
सामने आए हैं एक आरटीआई के जवाब में, आरटीआई में सवाल पूछा
गया था कि 21 संसदीय सचिवों के मामले में अब तक चुनाव आयोग
में क्या-क्या तथ्य सामने आ चुके हैं। विधायकों ने चुनाव आयोग
को अपने जवाब में दो बातें कही हैं, पहली कि उनका पद लाभ के
दायरे में नहीं आता क्योंकि उनको सरकार से कोई सुविधा नहीं मिल रही। इसी हलफनामे के
एक हिस्से में विधायक ने खुद को एक इंटर्न या असिस्टेंट के बराबर बता दिया। आम आदमी
पार्टी का कहना है कि दूसरे राज्यों में विधायक बहुत सारी सुविधाएं लेकर संसदीय सचिव
बन जाते हैं तो फिर दिल्ली में क्यों नहीं? देश के अन्य राज्यों
में कई विधायक संसदीय सचिव के तौर पर काम कर रहे हैं। पंजाब में 19, नागालैंड में 24, हिमाचल प्रदेश में छह,
गुजरात-राजस्थान में पांच-पांच संसदीय सचिव हैं। इन्हें सरकार की तरफ से अच्छी-खासी सुविधाएं मिल रही हैं। बता दें कि विभिन्न राज्यों में हाई कोर्टों
में संसदीय सचिवों की नियुक्तियां खारिज होने के विवरण भी सामने आए हैं। सरकारी अधिकारियों
के मुताबिक कोलकाता हाई कोर्ट ने जून 2015 में 13 संसदीय सचिवों की नियुक्ति के विधेयक को खारिज कर दिया था। इसी तरह बॉम्बे
हाई कोर्ट की गोवा पीठ ने 2009 में संसदीय सचिवों की नियुक्ति
के लिए राज्य विधानसभा से पारित विधेयक को नामंजूर कर दिया था। पंजाब में
19 संसदीय सचिवों की नियुक्ति को पंजाब-हरियाणा
हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। इस पर सुनवाई चल रही है। हरियाणा में भी चार संसदीय सचिवों
की नियुक्ति को चुनौती दी गई है। संविधान के मुताबिक दिल्ली को छोड़कर सभी राज्यों
में मंत्री और संसदीय सचिव की संख्या विधानसभा की कुल सीटों के 15 फीसद से अधिक नहीं होनी चाहिए। दिल्ली में यह सीमा 10 फीसद है। शीला दीक्षित सरकार के बनाए कानून के मुताबिक मुख्यमंत्री केवल
एक ही संसदीय सचिव की नियुक्ति कर सकता है। अगर चुनाव आयोग इन विधायकों की सदस्यता
को रद्द करने का फैसला करता है तो खाली सीटों पर छह महीने के भीतर उपचुनाव कराए जाएंगे।
पिछले चुनावों में आप के इन विधायकों की जीत का अंतर देखने पर पता चलता है कि इनमें
से कुछ अरविन्द केजरीवाल के सबसे मजबूत चेहरों में से एक हैं। भाजपा प्रवक्ता और दिल्ली
की सांसद मीनाक्षी लेखी ने आरटीआई के हवाले से दावा किया है कि सभी 21 विधायक सरकारी सुविधाएं ले रहे हैं। खुद विधानसभा अध्यक्ष ने संसदीय सचिव
बनाए गए इन विधायकों को विधानसभा परिसर में कमरा आबंटित किए हैं। उन्होंने आरोप लगाया
कि आप सरकार पहले तो गैर कानूनी काम करती है और फिर उसे ढंकने के लिए आरोप लगाती है।
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