Saturday, 30 June 2018

अभाव का प्रभाव ः फुटबॉल विश्व कप की तीन कहानियां

फीफा फुटबॉल विश्व कप धीरे-धीरे अपने क्लाइमैक्स पर पहुंचता जा रहा है। पूरी दुनिया में करोड़ों-अरबों लोग इन मैचों को टीवी पर देखकर आनंद ले रहे हैं। मैं भी इन मैचों को बड़ी दिलचस्पी से देख रहा हूं। रूस में अबकी बार इस विश्व कप का आयोजन हुआ है और मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि यह आयोजन परफैक्ट चल रहा है। इस दौरान कई खिलाड़ियों ने दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। खासकर तीन खिलाड़ियों ने। इन तीनों की कहानी बेहद दिलचस्प और प्रेरक है। सबमें एक बात समान हैöअभाव का प्रभाव। यानि सभी ने संसाधनों की कमी को ही अपनी जीत का हथियार बनाया। ब्राजील के गैब्रियल जीसस फीफा वर्ल्ड कप 2018 में ब्राजील के लिए टॉप फॉरवर्ड में से एक साबित हो रहे हैं। 21 साल के जीसस छह साल पहले तक ब्राजील की गलियों में घूम-घूम कर दीवार, सड़क और डिवाइडर पर पुताई करते थे। एक दिन के डेढ़ सौ से दो सौ रुपए कमा लेते थे। कम उम्र में ही थे, जब पिता का निधन हो गया। मां और भाई के साथ इंग्लैंड छोड़कर ब्राजील आना पड़ा। फुटबॉल का शौक छह साल की उम्र से था। पुताई के बाद जो वक्त बचता था वह मैदान पर बीतता। 2013 में गैब्रियल के कोच ने उन्हें क्लब ज्वाइन कराया। उन्होंने 47 मैच में 16 गोल किए। 2015 में उन्हें ब्राजील अंडर-23 और 2016 में नेशनल टीम में चुन लिया गया। 2017 में मैनचेस्टर यूनाइटेड ने उन्हें 240 करोड़ रुपए का कांट्रैक्ट किया। अभी उनकी ब्रांड वैल्यू 350 करोड़ रुपए से ज्यादा है। बेल्जियम के रोमेलु लकाकु ने दो मैच में चार गोल कर रोनाल्डो की बराबरी कर ली है। इंग्लैंड के हेरीकेन पांच गोल के साथ नम्बर वन हैं। ब्रांड वैल्यू 900 करोड़ रुपए से ज्यादा है। पर यह सफर आसान न था। वह बताते हैंöमैं जब स्कूल में था तो तीन-चार साल तक घर में खाने के लिए सिर्प दूध-ब्रैड मिलता था। मां से पूछा कि क्या हम गरीब हैं? तो मां ने कहा कि यह हमारा फूड कल्चर है। मैंने भी मान लिया। एक दिन मां को दूध में पानी मिलाते देख सब समझ गया। अब तक फुटबॉल मेरा शौक था, उस दिन से मेरा पेशा बन गया। जब मैं नेशनल टीम में सैलेक्ट हुआ तो मेरे नाना ने मुझे फोन किया। कहा कि वादा करो कि अब तुम मेरी बेटी का ख्याल रखोगे। मैंने कहा कि आपकी बेटी मेरी मां है, बेफिक्र रहिए। तब से मैं उनसे किया वादा निभा रहा हूं। आइसलैंड के गोलकीपर हानेस हालडोरसन ने अर्जेंटीना के खिलाफ मैच में लियोनल मेस्सी का गोल रोक कर और अर्जेंटीना को ड्रॉ खेलने पर मजबूर कर दिया। हानेस हालडोरसन अपनी टीम का संघर्ष बताते हैंöहमारे देश की आबादी साढ़े तीन लाख है। कोई हमें गंभीरता से लेने को तैयार नहीं था। हमारे पास मैदान तक नहीं थे। एक मैदान मिला, जहां दिन में हम प्रैक्टिस करते थे और रात में घोड़े बांधे जाते थे। मैं गोलकीपर था और जब डाइव मारता तो मैदान में बिखरी घोड़े की नाल वगैरह हाथ-पैर में लग जाते थे। ऐसे हालातों में हमारे खिलाड़ी निराश हो रहे थे। फिर हमने फैसला किया कि हम कुछ साबित करने के लिए नहीं, बल्कि खुद के लिए खेलेंगे। इस बार के प्रदर्शन से खुश हूं, संतुष्ट नहीं। 2018 में तो आए हैं, 2022 में दम दिखाएंगे। ऐसी कई और कहानियां भी होंगी पर हमें अभी इन तीनों की कहानी पता चली है। अगर कुछ करने की दृढ़ इच्छा हो तो विपरीत से विपरीत परिस्थितियां भी अपनी मंजिल तक पहुंचने से नहीं रोक सकतीं।

-अनिल नरेन्द्र

भाजपा को किसी भी चुनाव में 50… से ज्यादा वोट नहीं मिले

भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने 2019 के लोकसभा चुनाव में 50 प्रतिशत वोट हासिल करने का लक्ष्य रखा है। हालांकि आज तक के इतिहास में भाजपा इस आंकड़े को कभी छू नहीं पाई है। यहां तक कि विधानसभा चुनावों में भी नहीं। दिलचस्प बात यह है कि विधानसभा चुनावों में गुजरात की जनता ने चार बार किसी पार्टी को आधे से ज्यादा वोट दिए। मगर हर बार यह पार्टी कांग्रेस रही। दरअसल कम वोट प्रतिशत से भी ज्यादा सीटें ले आती है भाजपा। भाजपा को लोकसभा चुनाव में 2014 में अपना सर्वाधिक वोट मिले थे और यह थे कुल 30 प्रतिशत। जबकि 1984 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 49 प्रतिशत वोट मिले थे। 2014 के बाद 14 राज्यों में भाजपा का वोट शेयर घटता चला गया। 1996 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 28.80 प्रतिशत वोट मिले और उसके खाते में 140 सीटें आई थीं। जबकि भाजपा को 20.29 प्रतिशत वोट और 161 सीटें मिली थीं। 1999 चुनाव में कांग्रेस को 28.30 प्रतिशत वोट, 114 सीटें मिलीं। भाजपा को 23.75 प्रतिशत वोट और 182 सीटें मिलीं। 2014 के बाद 14 राज्यों में भाजपा का वोट शेयर घटा है, 19 राज्यों में बढ़ा जबकि कांग्रेस का वोट शेयर 10 राज्यों में बढ़ा है और 13 राज्यों में घटा है। ज्यादा वोट शेयर का मतलब ज्यादा सीटें नहीं। 4.1 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 2014 लोकसभा चुनाव में बसपा तीसरी पार्टी रही, मगर उसे एक भी सीट नहीं मिली। उसके 34 उम्मीदवार दूसरे नम्बर पर रहे थे। जबकि 3.8 प्रतिशत वोट से टीएमसी ने 34, 3.3 प्रतिशत वोट के साथ अन्नाद्रमुक ने 37, 1.7 प्रतिशत वोट से और बीजद ने 20 सीटें जीती थीं। हाल ही में कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 26 सीटें कम मिलीं। मगर उसे वोट छह लाख ज्यादा मिले। 2015 में बिहार में राजद 80 सीटों पर जीत कर पहले नम्बर पर थी, मगर वोट शेयर 18.4 प्रतिशत ही था। सबसे ज्यादा वोट शेयर 24.4 प्रतिशत भाजपा का रहा था। जबकि भाजपा को 53 सीटें ही मिली थीं। सीटों के मामले में भाजपा तीसरे नम्बर पर रही। विधानसभा में 41 बार पार्टियों को 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले थे। 30 बार कांग्रेस को मिले। सिक्किम डेमोकेटिक फ्रंट, सिक्किम संग्राम परिषद, आम आदमी पार्टी, जनता दल, नेशनल कांफ्रेंस, जनता पार्टी, तेलुगूदेशम को 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले हैं। बता दें कि राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता तब मिलती है जब लोकसभा या विधानसभा के आम चुनावों में पार्टी को चार अथवा अधिक राज्यों में छह प्रतिशत मत प्राप्त हों। राज्य स्तरीय दल के रूप में मान्यता तब मिलती है जब पार्टी विधानसभा के आम चुनावों में छह प्रतिशत वोट प्राप्त करती है। मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि 2019 लोकसभा चुनाव में अगर विपक्ष भाजपा को वन टू वन फाइट दे सकती है तो वह जीत सकती है। जहां एक से ज्यादा विपक्षी उम्मीदवार खड़े हुए तो वोटें बंटेंगी और उस सूरत में भाजपा जीतेगी।

Friday, 29 June 2018

जीएसटी के कारण अस्तित्व की लड़ाई लड़ने पर अखबार मजबूर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को ईमानदारी की जीत एवं सहकारी संघवाद को बेहतरीन उदाहरण बताया और कहा कि हमारी नई कर व्यवस्था का एक साल के भीतर ही स्थिरता हासिल करना देश के लिए बहुत बड़ी सफलता है। जीएसटी का एक साल पूरा होने के बाद सरकार दूसरे साल में विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं पर कम टैक्स की दरें तर्पसंगत बनाने पर फोकस रखेगी। माना जा रहा है कि इसी दिशा में कदम उठाते हुए जीएसटी काउंसिल की 19 जुलाई को होने वाली आगामी बैठक में जीएसटी में शामिल कुछ वस्तुओं और सेवाओं पर टैक्स की समीक्षा हो सकती है। ऐसा होने पर इस टैक्स में शामिल कुछ उत्पादों की संख्या और कम हो सकती है। हम उम्मीद करते हैं कि अखबारों में न्यूजप्रिन्ट पर लगने वाले जीएसटी को समाप्त किया जाएगा। सभी को यह मालूम है कि देश की आजादी में अखबार बड़ा हथियार बने थे। प्रेस आज जितना स्वतंत्र और मुखर दिखता है, आजादी की जंग में यह उतनी बंदिशों और पाबंदियों से बंधा हुआ था। न तो उसमें मनोरंजन का पुट था और न ही यह किसी की कमाई का जरिया थे। ये अखबार और पत्र-पत्रिकाएं आजादी के जांबाजों का एक हथियार और माध्यम थे जो उन्हें लोगों और घटनाओं से जोड़े रखते थे और आज भी रखते हैं। यह वह दौर था जब लोगों के पास संवाद का कोई साधन नहीं था। उस पर भी अंग्रेजों के अत्याचारों के शिकार असहाय लोग चुपचाप सारे अत्याचार सहते थे। न तो कोई उनकी सुनने वाला था और न ही उनके दुखों को हरने वाला। वे कहते भी तो किससे और कैसे? ऐसे में पत्र-पत्रिकाओं की शुरुआत ने लोगों को हिम्मत दी, उन्हें ढाढ्स बंधाया। यही कारण था कि क्रांतिकारियों के एक-एक लेख जनता में नई स्फूर्ति और देशभक्ति का संचार करते थे। सन 1947 में जब से देश आजाद हुआ है तब से अखबारों में होने वाले न्यूजप्रिन्ट (कागज) पर कोई टैक्स नहीं था परन्तु वर्तमान की मोदी सरकार ने जीएसटी के माध्यम से न्यूजप्रिन्ट पर पांच प्रतिशत जीएसटी लगा दिया है। जिसके कारण न्यूजप्रिन्ट की कीमत पांच प्रतिशत बढ़ गई है। जबकि अखबार की सेल उसकी लागत मूल्य से बहुत कम मूल्य पर होती है। अखबार राष्ट्र निर्माण ही नहीं करते बल्कि देश की जनता को शिक्षित व जागरूक भी करते हैं। सरकार की नीतियों और कामकाज की जानकारी भी समाचार पत्रों के माध्यम से दी जाती है। अखबारी कागज पर जीएसटी लगाना न्यायसंगत नहीं है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रचार और संवैधानिक मूल्यों को कायम रखने के लिए छह दशकों से भी अधिक समय से समाचार पत्रों पर शून्य या बहुत मामूली अप्रत्यक्ष कर के सिद्धांत का प्रावधान रहा है। इस संबंध में संवैधानिक संरक्षण की सर्वोच्च अदालत का भी मानना है कि समाचार पत्रों पर कोई भी कर समाचार के प्रसार, साक्षरता की गति और ज्ञान पर हमला है। अखबार राष्ट्र का निर्माण ही नहीं करते बल्कि देश की जनता को शिक्षित व सरकार की नीतियों, जनता की शिकायतों को सरकार तक पहुंचाने की भी भूमिका निभाते हैं। अखबारी कागज पर जीएसटी लगाना किसी भी दृष्टि से न्यायसंगत नहीं माना जा सकता। यह एक तरह से ज्ञान के प्रचार-प्रसार पर अंकुश लगाने जैसा है। अखबारों को चौतरफा मार पड़ रही है। सरकार द्वारा समाचार पत्रों में विज्ञापन भी कम कर दिए गए हैं, इस तरह से उनकी आमदनी का सबसे बड़ा जरिया बंद होता जा रहा है। समाचार पत्र के न्यूजप्रिन्ट पर जीएसटी लगने से और विज्ञापन कम होने के कारण समाचार पत्र पर अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। यही वजह है कि कई समाचार पत्र (जिनकी संख्या हजारों में है) बंद हो गए हैं। न्यूजप्रिन्ट पर जीएसटी लगने से अखबारों पर बहुत भारी बोझ पड़ रहा है। अखबार की प्रति कॉपी की लागत बढ़ गई है। एक अखबार की कॉपी 15-20 रुपए की पड़ती है जबकि उसकी बिक्री मूल्य दो से पांच रुपए प्रति कॉपी है। अत इनके राष्ट्रहित में बचाने के लिए वर्तमान जीएसटी को न्यूजप्रिन्ट (अखबारी कागज) से समाप्त कर देना चाहिए व इनको जीएसटी के दायरे से बाहर करना चाहिए। समाचार पत्र किसी भी उद्योग की श्रेणी में नहीं आते हैं। समाचार पत्र एक उद्योग नहीं है और ये जनहित भावना से कार्य कर रहे हैं। इस वजह से भी जीएसटी को अखबारी कागज से तुरन्त हटाने की सख्त जरूरत है। अखबारी कागज को जीएसटी टैक्स की श्रेणी से मुक्त रखा जाए। जब 2014 में मोदी सरकार आई थी तो हमें इस सरकार से बहुत उम्मीदें थीं पर दुख से कहना पड़ता है कि इस सरकार ने आते ही भारत सरकार में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन काम करने वाली संस्था डीएवीपी ने 2016 में एक पॉलिसी बनाई जिसमें अधिकांश छोटे व मझौले अखबार विज्ञापन पाने वाले समाचार पत्रों की सूची से बाहर हो गए और हजारों की संख्या में अखबार बंद करने पर मजबूर हो गए। दूसरी तरफ आरएनआई में भी ऐसे सख्त नियम बना दिए गए जिसमें कई अखबारों को डीएवीपी एमपेनलमेंट से बाहर कर दिया गया। उधर प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) किसी भी शिकायत पर अखबार पर प्रतिबंध लगाने से पीछे नहीं हटती। अभी पिछले साल ही पीसीआई ने कई अखबारों पर फेक न्यूज के बहाने से प्रतिबंध लगाया था जिसमें कई अखबारों को सस्पेंड भी किया गया। अखबार कोई उद्योग नहीं है जो कि देश को लूट रहे हों। आए दिन नई-नई एडवाइजरी जारी की जा रही है और इनको फॉलो न करने पर आपको डी-पैनल करने की धमकी दी जाती है। पूरे भारत में अखबार आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। लंबे समय तक लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रचार व प्रसार करने वाले समाचार पत्र आज खुद ही घेराबंदी की स्थिति में हैं। अधिकतर बड़े अखबारों ने या तो अपने कई संस्करण बंद कर दिए हैं या स्टॉफ की संख्या में कटौती करने पर मजबूर हो गए हैं। छोटे और मझौले अखबारों ने पहले से ही ऐसा करना शुरू कर दिया था। अखबारों में छंटाई के कारण उनके कर्मियों को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही हैं और इससे बेरोजगारी भी बढ़ रही है। पिछली यूपीए-2 सरकार की मजीठिया बने वेज बोर्ड की सिफारिशों के क्रियान्वयन से अखबारों पर अतिरिक्त भार पड़ा और जब पिछली सरकार ने बोर्ड की रिपोर्ट स्वीकार कर समाचार पत्रों को 45 से 50 प्रतिशत तक वेतन बढ़ाने के लिए मजबूर कर दिया था तो इससे कुछ पैमाने पर चतुर्थ श्रेणी के अंतर्गत काम करने वाले कर्मियों के वेतन भी अन्य उद्योग से कमाई जाने वाले वेतन से दोगुना-तिगुना से अधिक तक बढ़ गया था। मुझे समाचार पत्रों को किन परिस्थितियों में सर्वाइव करना पड़ रहा है। इसको विस्तार से इसलिए बताया है ताकि मोदी सरकार हमारी मदद करे और हमें डूबने से बचाए। मोदी सरकार को बनाने में समाचार पत्रों ने बड़ी भूमिका निभाई थी और अब जब हम अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं तो सरकार का भी दायित्व बनता है कि हमारे समक्ष जो ज्वलंत समस्याएं हैं उन पर विचार करे और समाधान करे।
-अनिल नरेन्द्र


Thursday, 28 June 2018

महिलाओं को ड्राइविंग हक देने वाला दुनिया का आखिरी मुल्क

सउदी अरब में शनिवार-रविवार की मध्यरात्रि का नजारा बिलकुल अलग था। बड़ी संख्या पर महिलाएं सड़कें पर जश्न मना रही थीं। रात बारह बजते ही महिलाएं अपनी-अपनी गाड़ियां लेकर सड़कों पर निकल पड़ीं, रास्ते में लोग उन्हें शुभकामनाएं दे रहे थे। चैक प्वाइंट पर पुलिस वालों ने इन्हें गुलाब के फूल देकर इनका स्वागत किया। यह वही पुलिस वाले थे जो इससे पहले उन्हें गाड़ी चलाने पर जेल भेज देते थे। उन पर आतंक से जुड़ी धाराएं लगाते थे। इसी के साथ सउदी में 24 जून, 2018 का दिन इतिहास में दर्ज हो गया। इस दिन सउदी अरब में महिलाओं को गाड़ी चलाने की अनुमति मिल गई। पूरी दुनिया में सिर्प सउदी अरब में महिलाओं पर इस तरह की पाबंदी थी। इस आजादी को पाने के लिए इन्हें 28 साल का संघर्ष करना पड़ा। सउदी अरब में पहली बार किसी महिला को ड्राइविंग लाइसेंस जारी किया गया है। यहां के 32 वर्षीय काउन पिंस मोहम्मद बिन सलमान देश को आधुनिक बनाने के लिए विजन 2030 के तहत महिलाओं को हर मोर्चे पर आगे लाने की पहल कर रहे हैं। महिलाओं को ड्राइविंग लाइसेंस जारी करना इसी कड़ी का हिस्सा है। इस तरह के दोयम दर्जे की जिंदगी जी रही वहां की महिलाओं के लिए यह पाबंदी हटना अहम माना जा रहा है। हालांकि अभी भी कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां महिलाओं को आजादी मिलना बाकी है। काउन पिंस मोहम्मद बिन सलमान देश में कई बदलाव ला रहे हैं। पिछले साल वहां मनोरंजन के लिए कंसर्ट कार्मिक कॉन का आयोजन किया गया। 35 साल बाद अपैल में सउदी अरब में फिल्म थिएटर खुला। जल्द ही वीजा जारी करने की योजना है। दरअसल ड्राइविंग करने पर पाबंदी के कारण महिलाएं अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने से लेकर बाजार और दोस्तों से मिलने जाने तक के लिए अपने पति, भाई या ड्राइवर पर निर्भर थीं। ड्राइवर रखना सउदी में आसान वैसे भी नहीं है। रविवार से सउदी की महिलाएं भी दुनिया भर की महिलाओं की तरह स्टियरिंग व्हील के पीछे बैठकर कही भी आने-जाने के लिए आजाद हो गईं। पिंस सलमान के विजन 2030 के मद्देनजर देश में महिलाओं को कई और क्षेत्रों में भी अधिकार दिए जा रहे हैं। ड्राइविंग का अधिकार भी उसी का हिस्सा है। हाल में यहां महिलाओं को कारोबार शुरू करने का अधिकार देने के साथ ही स्टेडियम में जाने पर भी पतिबंध भी हटा लिया गया है। वहीं कट्टरपंथी संगठनों का कहना था कि महिलाओं को ड्राइविंग की छूट देने में पाप को बढ़ावा मिलेगा। उनका कहना था कि इससे महिला उत्पीड़न के मामले भी बढ़ेंगे। इसको ध्यान में रखते हुए सउदी शासन ने यौन उत्पीड़न के मामलों में पांच साल की कैद का कानून भी पास कर दिया है। बेशक सउदी में महिलाओं को कार चलाने की आजादी तो मिल गई है, लेकिन अब भी उनका संघर्ष खत्म नहीं हुआ है। आज भी कई ऐसी मुश्किलें हैं, जिनसे पार पाने के लिए उन्हें नए सिरे से मैदान में उतरना होगा।

-अनिल नरेन्द्र

अमरनाथ यात्रा के दौरान आतंकी हमले की चेतावनी

अमरनाथ यात्रा मार्ग पर आतंकी हमले की आशंका को ले सोमवार को खुफिया एजेंसियों ने नया अलर्ट जारी किया है। इसके मद्देनजर रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण, सेना पमुख विपिन रावत और जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल एनएन वोहरा ने बालटाल आधार शिविर पहुंचकर सुरक्षा इंतजामों का जायजा लिया। 28 जून से शुरू हो रही अमरनाथ यात्रा के लिए जम्मू से बालटाल और दक्षिण कश्मीर के पहलगांव के बीच दो आधार शिवरों के करीब 400 किलोमीटर यात्रा मार्ग को सुरक्षित रखने के लिए सेना व अर्द्धसैनिक बलों की 213 अतिरिक्त कंपनियां तैनात की गई हैं। हेलीकाप्टर व ड्रोन से भी निगरानी की जा रही है। यात्रा मार्ग में एनएसजी के कमांडो व स्नाइपर भी तैनात किए गए हैं। सोमवार को खुफिया एजेंसियों ने गृह व रक्षा मंत्रालय को अलर्ट जारी किया कि लश्कर--तैयबा के करीब 20 आतंकियों का समूह अमरनाथ यात्रा के दौरान यात्रियों को अपना निशाना बना सकता है। आतंकियों का यह गुट दो हिस्सों में बंटकर घुसपैठ कर चुका है। पहले समूह में करीब 11 से 13 आतंकी और दूसरे समूह में छह से सात आतंकी शामिल हैं। ये सभी बालटाल रूट पर `कंगन' नामक जगह पर हमले की योजना बना रहे हैं। तीर्थ यात्रियों का पहला जत्था 27 जून को भगवती नगर आधार शिविर से रवाना हो गया है। इस बार यात्रा से जुड़ी गाड़ियों में पुख्ता इंतजाम करने हेतु टैकिंग चिप लगाई गई हैं। हिमालय पर 3880 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पवित्र अमरनाथ गुफा के लिए 60 दिवसीय यात्रा 28 जून से शुरू हो रही है। पहली बार आधार कैंप जम्मू में भक्तों के लिए एसी वाले हाल बनवाए गए हैं, जबकि पीने के पानी के रूट पर आरओ वाटर का इतजांम किया गया है। बाबा के दर्शन के लिए अब देशभर में अलग-अलग बैंकों की 440 ब्रांचों से करीब दो लाख से अधिक भक्त पंजीकरण करवा चुके हैं। यह पहली बार है कि जब अमरनाथ यात्रा की पहरेदारी की जिम्मेदारी एनएसजी को मिली है। श्राइन बोर्ड के अधिकारियों ने बताया कि दोनों रूटों पर 15 हजार यात्रियों को छोड़ा जाएगा। इसके अलावा मार्ग से जाने वाले यात्रियों की गिनती अलग है। तीन पाइवेट कंपनियों के हेलीकाप्टर से भक्तों को गुफा तक लेकर जाया जाएगा। दोनों रूट पर इस बार 120 लंगर होंगे। ये देशभर से आए लंगर कमेटी के लोगों की तरफ से लगाए गए हैं। इनके खाने-पीने के सामान की हर रोज जांच की जाएगी। उसके बाद ही भक्तों को लंगर में भोजन करने दिया जाएगा। यात्रा के मुख्य आधार शिविर भगवती नगर में सीआरपीएफ की एक महिला कंपनी तैनात होगी। ऐसा पहली बार हो रहा है। हम पूरी उम्मीद करते हैं कि बाबा अमरनाथ की इस पवित्र यात्रा में कोई हमला न हो। ओम नम शिवाय।

Wednesday, 27 June 2018

अमित शाह का 400 सीटें जीतने का लक्ष्य

मोदी सरकार के केंद्र की सत्ता में चार साल पूरे करने के साथ ही भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह से चुनावी मोड में आ गई है। 2019 में दिल्ली की सत्ता पर एक बार फिर अपनी दावेदारी ठोकने के लिए भाजपा ने नया नारा गढ़ा हैöसाफ नीयत सही विकास, 2019 में एक बार फिर मोदी सरकार। 2019 में पार्टी की निगाहें लोकसभा की 80 ऐसी सीटों पर रहेंगी जहां वह 2014 में जीत दर्ज करने में सफल नहीं हो सकी थी। भाजपा ने लोकसभा चुनाव में 400 सीट जीतने का लक्ष्य तय किया है। मिशन 2019 के लिए पार्टी का खास फोकस पूर्वोत्तर राज्यों पर रहने की उम्मीद है। अमित शाह ने संगठन मंत्रियों के साथ मंथन शिविर में करीब आठ घंटे तक उन्हें 2019 लोकसभा चुनाव की जीत का मंत्र दिया। शाह ने वर्तमान सांसदों की रिपोर्ट कार्ड तैयार करने का फॉर्मेट भी दिया। उन्होंने कहा कि इसी फॉर्मेट के आधार पर जनता से सांसदों का फीडबैक लेकर रिपोर्ट कार्ड तैयार करें। मोदी सरकार और भाजपा के लिए 2019 के लक्ष्य को हासिल करने के रास्ते में अभी कई अड़चनें हैं। जैसा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदम्बरम ने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था की हालत ठीक नहीं कही जा सकती। अर्थव्यवस्था के चार टायरों में से तीन टायर निर्यात, निजी निवेश और निजी उपभोग पंक्चर हैं। पी. चिदम्बरम ने कहा कि जिन चार टायरों के आधार पर अर्थव्यवस्था चलती है उनमें से तीन टायर पंक्चर हो चुके हैं। यह भी आरोप लगाया कि यह स्थिति सरकार की नीतिगत गलतियों और गलत कदमों के कारण पैदा हुई हैं। कृषि, जीडीपी, रोजगार सृजन, व्यापार और अर्थव्यवस्था के कुछ दूसरे मानकों के आधार पर मोदी सरकार पिछले चार सालों में खरी नहीं उतरी। जीएसटी को गलत ढंग से लागू करने की वजह आज भी कारोबार को प्रभावित कर रही है। एक सर्वे के अनुसार जीएसटी और नोटबंदी के कारण लगभग 15 लाख लोग बेरोजगार हो गए हैं। किसान अलग परेशान हैं। किसान समर्थन मूल्य के मुताबिक उपज के दाम न मिलने पर आंदोलन कर रहे हैं। रिजर्व बैंक के सर्वेक्षण के मुताबिक 48 प्रतिशत लोगों ने माना है कि अर्थव्यवस्था की हालत खराब हुई है। पेट्रोल-डीजल की बेतहाशा वृद्धि के कारण आज महंगाई आसमान छू रही है। याद रहे कि अच्छे दिन के वादे के तहत दो करोड़ नौकरियों का वादा किया गया था, लेकिन कुछ हजार नौकरियां ही पैदा हो सकीं। 2015-16 में विकास दर 8.2 प्रतिशत से घटकर 2017-18 में 6.7 प्रतिशत रह गई। पिछले चार वर्षों में एनपीए 2,63,000 करोड़ रुपए से बढ़कर 10,30,000 करोड़ रुपए हो गया और आगे और बढ़ेगा। सार्वजनिक बैंकों की हालत बद से बदतर होती जा रही है। एनडीए के सहयोगियों और भाजपा के कथाकथित असंतुष्टों की अलग समस्या पैदा हो गई है। शिवसेना ने हमेशा की तरह भाजपा को निशाना बनाने के लिए अपने मुखपत्र `सामना' का इस्तेमाल किया है। उसने सामना के संपादकीय में भाजपा पर तेज हमला करते हुए आरोप लगाया कि अराजकता फैलाने के बाद भगवा दल जम्मू-कश्मीर में सत्ता से बाहर हो गया और उसने जो लालच दिखाया है उसके लिए इतिहास उसे कभी माफ नहीं करेगा। शिवसेना ने भाजपा के कदम की तुलना अंग्रेजों के भारत छोड़कर जाने से की। उसने कहा कि जब भाजपा इस उत्तरी राज्य में आतंक और हिंसा पर लगाम नहीं लगा पाई तो अपना ठीकरा पीडीपी पर फोड़ दिया। देश चलाना बच्चों का खेल नहीं है। भाजपा ने जम्मू-कश्मीर के हालात को इस बेमेल गठजोड़ की सरकार के कारण इसकी हालत वर्ष 1990 की स्थिति तक पहुंचा दिया है। मगर 1990 में जम्मू के हालात इतने खराब नहीं थे। जम्मू-कश्मीरी पंडित जो अपने ही देश में शरणार्थी बन गए थे उनकी शरणस्थली था। मगर आज जम्मू के लोग घरों से बेघर हो रहे हैं। बच्चों को स्कूलों से निकालना पड़ रहा है और रियासतें जम्मू-कश्मीर की सरकार सरहद पर रहने वाले जम्मू निवासियों की तरफ से इतनी संगदिल हो गई है कि पाकिस्तान के हमलों में मारे गए लोगों को एम्बुलैंस तक नहीं मुहैया करवाई। सीमावर्ती लोगों को अपने प्रियजनों की लाशों को ट्रैक्टरों में उठाकर लाना पड़ा। जम्मू के लोगों ने भाजपा को दिल खोलकर बहुमत दिया था मगर भाजपा ने उन्हें बहुत निराश किया और जम्मू के हिन्दुओं की अपेक्षा का असर शेष भारत के हिन्दुओं पर भी पड़ा है। उत्तर प्रदेश में और केंद्र में दोनों जगह भाजपा की सरकार है पर पिछले चार वर्षों में अयोध्या में राम मंदिर बनाने के वादे का कुछ नहीं हुआ। जिन मुद्दों को लेकर भाजपा सत्ता में आई थी वह सब आज भी अधर में हैं। लोकसभा में पीडीपी का सिर्प एक सांसद होने के कारण भाजपा-पीडीपी गठबंधन टूटने से राजग पर खास फर्प नहीं पड़ेगा। हालांकि राजग के सहयोगी दलों की संख्या जरूर घट जाएगी। साथ ही अब 19 राज्यों में ही राजग सरकारें बची हैं। वहीं पीडीपी के अलग होने के बाद भाजपा के सहयोगियों को शिकायत का एक और मौका मिल गया है कि वह राजग के घटक दलों से अच्छा सुलूक नहीं करती है। एनडीए में 47 सदस्य दल हैं। पर तेदेपा व पीडीपी के राजग से अलग होने के बाद लोकसभा में प्रतिनिधित्व करने वाले केवल 11 दल ही बचे हैं। राजग में शामिल दक्षिण और पूर्वोत्तर के चार दलों के पास केवल एक सांसद है। मैंने इस लेख में वह सब चुनौतियों का जिक्र किया है जो भाजपा को 2019 के चुनाव में निपटना पड़ सकती है। अमित शाह को चाणक्य कहा जाता है। उम्मीद की जाती है कि वह इन चुनौतियों पर भारी पड़ेंगे और मोदी को 2019 में फिर से सत्ता में लाने में सफल रहेंगे।

-अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 26 June 2018

अब बैंक ऑफ महाराष्ट्र में 3000 करोड़ का घोटाला

सरकारी बैंकों में जिस तरह गड़बड़ियां और घोटालों की खबरें आ रही हैं वह सभी के लिए भारी चिन्ता का विषय है। यह सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा। पीएनबी में हुए घोटाले के बाद आने वाले दिनों में बैंक घोटाले होंगे या नहीं, यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन जिस तरह से पुराने बैंकिंग घोटाले सामने आ रहे हैं उससे तो यही लगता है कि अभी कई और घोटाले सामने आएंगे। 83 वर्ष पुराने बैंक ऑफ महाराष्ट्र के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक (सीएमडी) रवीन्द्र मराठे, कार्यकारी निदेशक राजेन्द्र गुप्ता और पूर्व सीएमडी निदेशक सुशील सहित अनेक लोगों को पुणे की डीएसके समूह को फर्जी तरीके से कर्ज देने और निवेशकों के साथ धोखाधड़ी के आरोप में गिरफ्तारी बैंकिंग व्यवस्था के संस्थागत क्षरण को ही बताती है। इस मामले में डेवलपर डीएस कुलकर्णी और उसकी पत्नी को पहले ही गिरफ्तार किया गया, लेकिन यह तो पुलिस और आर्थिक अपराध शाखा का काम है, जिसने गड़बड़ी सामने आने और शिकायत दर्ज होने के बाद कार्रवाई की। असल महत्वपूर्ण प्रश्न तो यह है कि जो बैंक छोटे-छोटे निवेशकों को आवास, वाहन कर्ज या छात्र लोन वगैरह के लिए दर्जनों चक्कर लगवाते हैं, तरह-तरह की औपचारिकताएं पूरी करवाते हैं। वे एक बिल्डर को कैसे कई हजार करोड़ रुपए का कर्ज न केवल देते हैं, वह भी बिना चुकाए साफ बच निकलने का तरीका भी बताते हैं। चिन्ता का विषय यह है कि आखिर रिजर्व बैंक, सरकारी बैंकों का नियामक तंत्र इन गड़बड़ियों और धोखाधड़ी को रोकने में नाकाम कैसे हो रहा है? डूबते कर्ज के कारण बैंकों की हालत खस्ताहाल होती जा रही है और इसके चलते 21 सार्वजनिक बैंकों में से 11 को रिजर्व बैंक ने त्वरित सुधार कार्रवाई प्रणाली के अंतर्गत रखा है। इसके अलावा बैंक की ओर से बढ़ाई गई प्रोविजनिंग भी इसका ही कारण है। इसका मतलब है कि बैंक अप्रैल-मई-जून में भी डूबे कर्ज बढ़ने की आशंका जता रहा है। सार्वजनिक बैंकों का सामूहिक शुद्ध घाटा वित्त वर्ष 2017-18 में बढ़कर 85,370 करोड़ रुपए हो गया है। घोटाले की सबसे ज्यादा मार पंजाब नेशनल बैंक झेल रहा है जबकि आईडीबीआई बैंक इस मामले में दूसरे पायदान पर है। उपभोक्ता अपने पैसों को बैंक में सुरक्षित मानता है। लेकिन इस घाटे से बैंकों की विश्वसनीयता लगातार घट रही है। इससे दोहरा नुकसान हो रहा है, पहला कि लोग अपना पैसा अब बैंकों की बजाय घर में रखना ज्यादा बेहतर मानते हैं और दूसरा पैसों की कमी की वजह से यह पैसा व्यवस्था में नहीं आता और आर्थिक प्रगति प्रभावित हो रही है। लोगों का भरोसा कम होने से बैंक जमा पूंजी के प्रवाह में कमी आ रही है। एनपीए से डरे बैंक लोन देने में भी अब हिचकिचाते हैं। इससे महंगाई बढ़ने का भी खतरा है।

-अनिल नरेन्द्र

किसने दी है इन हजारों पेड़ों को काटने की मंजूरी?

हरे-भरे पेड़ों की कटाई के विरोध में दिल्ली में भी चिपको आंदोलन शुरू हो गया है। दरअसल दक्षिण दिल्ली में सरकारी आवासीय कॉलोनियों के पुनर्वास व पुनर्विकास के लिए 16,500 पेड़ काटे जाने हैं। स्थानीय लोग, पर्यावरणविद और कलाकारों के अलावा `आप' भी लोगों के साथ आंदोलन में उतर आई है। सरोजिनी नगर में शनिवार को पेड़ काटने के विरोध में कुछ स्थानीय लोगों व युवाओं ने पेड़ से चिपक कर उसे बचाने की अपील की। दिल्ली में 16,500 पेड़ काटने की मंजूरी किसने दी है, इस पर संशय बरकरार है। हाल ही में सूचना के अधिकार से मांगे गए जवाब में वन विभाग, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति, दिल्ली जल बोर्ड, दिल्ली विकास प्राधिकरण, केंद्रीय भूजल प्राधिकरण, केंद्रीय लोक निर्माण विभाग सभी ने एक-दूसरे पर इस सवाल को टाल दिया है। इसलिए एनजीटी में भी दाखिल की गई गैर-सरकारी संस्था चेतना की ओर से याचिका में यह मांग की गई है कि संबंधित विभाग बताएं कि किसकी ओर से पेड़ों के काटने की मंजूरी दी गई। दरअसल केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने दक्षिणी दिल्ली में स्थित सात सरकारी आवासीय कॉलोनियों के पुनर्विकास का प्रस्ताव बनाया था। केंद्र सरकार की कैबिनेट इस पुनर्विकास प्लान को वर्ष 2016 में ही मंजूरी दे चुकी है। उसके तहत ही दक्षिणी दिल्ली में स्थित किदवाई नगर में 1123, नेताजी नगर में 2294, नैरोजी नगर में 1454, मोहम्मदपुर में 363 और सरोजिनी नगर में 11 हजार से ज्यादा पेड़ काटे जाने हैं। नैरोजी नगर में पेड़ों की कटाई शुरू भी हो चुकी है। अब पेड़ों की कटाई का विरोध भी शुरू हो चुका है। हालांकि केंद्र का कहना है कि जितने पेड़ काटे जाएंगे उससे दोगुना पौधे लगाए जाएंगे। दुख से कहना पड़ता है कि पेड़ न केवल हरियाली बढ़ाते हैं बल्कि प्रदूषण पर नियंत्रण भी रखते हैं। दिल्ली में प्रदूषण चरम सीमा पर है। ऐसे में पेड़ों को बचाने और पौधे लगाने की मुहिम चलानी चाहिए या हजारों की संख्या में पेड़ काटकर और दिल्लीवासियों की परेशानी बढ़ाई जानी चाहिए? बड़ी परियोजनाओं के लिए पेड़ों को काटने की बजाय वैकल्पिक योजनाएं बननी चाहिए। दो वर्ष पहले केंद्रीय सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने यह नीति बनाई थी कि परियोजनाओं के दौरान पुराने पेड़ों को काटने के बजाय एक जगह से दूसरी जगह स्थानांतरित करने पर विचार किया जाए। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने भी 2014 में अपने आदेश में कहा था कि पेड़ों की कटाई से पहले उनकी जगह बदली (ट्रांसलोकेशन) पर विचार किया जाना चाहिए। पेड़ों को जड़ समेत उखाड़ने और शिफ्ट करने के लिए विशेष मशीनों की जरूरत होती है, लेकिन दिल्ली में यह मशीन मौजूद नहीं है। पेड़ों की कटाई वैसे भी गैर-कानूनी है। यह हमारे पर्यावरण के लिए घातक है। सरकारी एजेंसियों को अविलंब इनकी कटाई रोकनी चाहिए।

Sunday, 24 June 2018

सही मायनों में योद्धा हैं इरफान खान

फिल्म अभिनेता इरफान खान इन दिनों लंदन में एक दुर्लभ किस्म के कैंसर न्यूरोएंड्रोक्राइन से जंग लड़ रहे हैं। इरफान एक योद्धा की तरह इस बीमारी से लड़ रहे हैं। इरफान ने पहली बार अपनी बीमारी के दर्द का जिक्र चिट्ठी के माध्यम से किया है। ट्विटर पर साझा पत्र में इरफान ने कहाöउन्होंने नतीजे की चिन्ता किए बगैर ब्रह्मांडीय शक्ति में भरोसा करते हुए दर्द, भय और अनिश्चितता के जरिये अपनी लड़ाई लड़ी। इरफान ने कहाöउन्हें इस बात की जानकारी मिली थी कि बीमारी दुर्लभ प्रकार की है। उपचार से संबंधित अनिश्चितता और कुछ मामलों के अध्ययन के बाद वह इलाज का सामना करने के लिए तैयार थे। उन्होंने कहाöउस दौर में ऐसा महसूस हुआ कि वह तेज रफ्तार ट्रेन से यात्रा कर रहे हों और अचानक किसी ने यह संकेत देते हुए ट्रेन से उतरने को कहा कि वह गंतव्य तक पहुंच चुके थे। एक योद्धा की तरह इरफान अपनी जिन्दगी के अलग-अलग पड़ावों पर अलग-अलग हालातों से लड़ने के आदी रहे हैं। वह संघर्ष चाहे अपने भीतर के अभिनेता को दुनिया तक पहुंचाने का रहा हो या चिकने-चुपड़े हीरो पर मर-मिटने वाली इंडस्ट्री में हीरोइज्म की नई परिभाषा गढ़ने का रहा है। इरफान हर बार लड़े और जीते भी। इरफान के जिस अभिनय की आज दुनिया दीवानी है, उसे लोगों तक पहुंचाने के लिए भी उन्होंने लंबी लड़ाई लड़ी थी। तब छोटे पर्दे से बड़े पर्दे तक की खाई को मिटा पाना उनके लिए बड़ी जद्दोजहद बन चुकी थी। मीरा नायर की ऑस्कर तक पहुंची फिल्म सलाम बॉम्बे में उन्हें वह मौका मिला भी, लेकिन हुनर लोगों तक तब भी नहीं पहुंचा पाए। फिल्म में उनके छोटे से रोल पर एडिटिंग के दौरान कैंची चल गई और इरफान का इंतजार कुछ लंबा हो गया। फिर हासिल, मकबूल जैसी फिल्मों में उन्हें शौहरत मिली। फिर तो क्या था इरफान ने बॉलीवुड में हीरो की परिभाषा ही बदल दी। वह चिकने-चुपड़े, चॉकलेट या मायो हीरो जिस पर लड़कियां लट्टू हो जाएं इस इमेज को इरफान ने अपने शानदार परफार्मेंस से एक तरह से बदल दिया। आज वे बॉलीवुड की सबसे रोमांटिक फिल्म लंच बॉक्स के नायक हैं। इस श्रेणी में लाइफ इन मेट्रो, पीक, करीब-करीब सिंगल, हिन्दी मीडियम जैसी फिल्मों का नाम लिया जा सकता है। वहीं उनका हीरोइज्म देखना हो तो पान सिंह तोमर में देख लीजिए। इरफान के पत्र में हमें उम्मीद दिखाई दे रही है। आज बॉलीवुड से लेकर इरफान के लाखों फैन उनके ठीक होने की प्रार्थना कर रहे हैं। हम भी उनकी सलामती की दुआ करते हैं। वह जल्द इस मनहूस बीमारी पर फतेह पाएं और घर लौटें।

-अनिल नरेन्द्र

निजाम बदलते ही भूल गए पत्थरबाजी, आतंकियों की अब खैर नहीं

निजाम बदलते ही कश्मीर घाटी में बदलाव भी दिखने लगा। गवर्नर राज में अलगाववादियों की ओर से बंद के पहले आह्वान पर बृहस्पतिवार को पूरी घाटी में कहीं भी पत्थरबाजी की घटना सामने नहीं आई। इतना ही नहीं, अलगाववादियों के गढ़ डाउन टाउन में पाबंदियां भी नहीं रहीं। अमूमन बंद के दौरान सुरक्षाबलों पर पथराव की घटनाएं होती रही हैं। बम-बम भोले के जयघोष के साथ 28 जून से शुरू हो रही अमरनाथ यात्रा के लिए भी काउंट डाउन शुरू हो गया है। जम्मू-कश्मीर के प्रवेश द्वार लखनपुर से पवित्र गुफा तक यात्रा की तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। बेस कैंपों सहित अन्य यात्रा ट्रेक पर सुरक्षाबलों ने डेरा डाल लिया है। आधिकारिक तौर पर पारंपरिक पहलगाम और बालटाल ट्रेक से यात्रा 28 जून से शुरू होकर दो माह की होगी। अब तक दो लाख से अधिक यात्रियों ने पंजीकरण करवा लिया है। जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लागू होने के बाद से देश के कुछ सबसे चर्चित अधिकारियों को राज्य में बहाल किया गया है। छत्तीसगढ़ के अडिशनल चीफ सैकेटरी बीबी सुब्रह्मण्यम को राज्यपाल ने मुख्य सचिव और पूर्व आईपीएस अधिकारी विजय कुमार को राज्यपाल का सलाहकार नियुक्त किया गया है। सुब्रह्मण्यम की गिनती देश के काबिल अधिकारियों में होती है और उन्हें नक्सल प्रभावित इलाकों में शांति बहाल करने के लिए खासतौर पर जाना जाता है। कुख्यात चन्दन तस्कर वीरप्पन को अक्तूबर 2004 में एक मुठभेड़ में मारने वाली टीम का नेतृत्व उन्हीं ने किया था। मनमोहन सिंह के खास अधिकारियों में भी सुब्रह्मण्यम का नाम था और उन्हें यूपीए-1 में मनमोहन सिंह ने अपना निजी सचिव नियुक्त किया था। वहीं राज्यपाल एनएन वोहरा के सलाहकार नियुक्त किए गए पूर्व आईपीएस अधिकारी विजय कुमार जंगल में उग्रवाद निरोधक अभियान चलाने में माहिर माने जाते हैं। जम्मू-कश्मीर में आतंकियों का खात्मा करने की जिम्मेदारी अब ब्लैक कैट के नाम से मशहूर नेशनल सिक्यूरिटी गार्ड्स (एनएसजी) के कमांडों को सौंपी जाएगी। 57 एनएसजी के करीब 24 कमांडों का दस्ता दो हफ्ते पहले श्रीनगर के पास हुमहमा बीएसएफ कैंप पहुंच चुका है। स्थानीय माहौल में ढलने के लिए कमांडों यहां कड़ा प्रशिक्षण ले रहे हैं। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार माहौल के अनुकूल होते ही कमांडों आतंकियों के खिलाफ आपरेशंस में उतर जाएंगे। जल्द ही यहां 100 कमांडों पहुंच जाएंगे। उधर हड़ताल के आह्वान के बीच प्रदर्शन नाकाम करने के लिए गुरुवार को बड़े स्तर पर अलगाववादियों की धरपकड़ हुई। विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करने जा रहे जेकेएलएफ के अध्यक्ष यासिन मलिक को गिरफ्तार कर लिया गया। हुर्रियत कांफ्रेंस के कट्टरपंथी धड़े के चेयरमैन सैयद अली शाह गिलानी, अलगाववादी नेता मीरवाइज उमर फारुक और मोहम्मद अशरफ सहराई को घरों में नजरबंद कर दिया गया। श्रीनगर की ऐतिहासिक जामा मस्जिद बंद कर दी गई है। मीरवाइज उमर फारुक की गढ़ इस मस्जिद में कोई नमाज के लिए भी नहीं जा सका। पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या और सुरक्षाबलों के साथ झड़पों में लोगों की मौत के विरोध में अलगाववादियों ने गुरुवार को हड़ताल का आह्वान किया था। जम्मू-कश्मीर में अमन-शांति व खुशहाली का रास्ता लंबा है। पाकिस्तान और उनके पिट्ठू इतनी आसानी से मानने वाले नहीं। लातों के भूत बातों से नहीं मानते। राष्ट्रपति शासन के पहले ही दिन दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले में श्रीनगर-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग पर बुधवार शाम को आतंकियों ने पुलिस की एक गाड़ी पर फायरिंग की। इसमें एक जवान शहीद हो गया जबकि दो घायल हो गए। मैं समझता हूं कि घरों में छिपकर, फायरिंग करके जंगलों में भागने वाले आतंकियों से सही ढंग से निपटने में ब्लैक कैट कमांडों ज्यादा कारगर साबित हो सकते हैं। आतंकी अकसर घनी आबादी वाले इलाकों के घरों में छिपते हैं। ऐसे में सुरक्षाबलों के समक्ष चुनौती रहती है कि आम लोगों को कम से कम नुकसान हो। ऐसे में शहादतों की संख्या भी बढ़ रही है। घाटी पहुंचे कमांडों हिट एंड रन यानि हाउस इंटरवेंशन टीम का हिस्सा है। घाटी के बदले राजनीतिक हालात के बीच अमरनाथ यात्रा पर भी किसी बड़े हमले का इनपुट है। किसी भी स्थिति से निपटने के लिए कमांडों स्टैंड-बाई मोड में हैं।

Saturday, 23 June 2018

महंगाई ः दवाएं 1500 फीसदी महंगी बिक रही हैं

मई में थोक महंगाई का चार फीसदी से ऊपर यानि 4.3 प्रतिशत पर पहुंचने से आम आदमी की मुश्किलें और बढ़ गई हैं। खुदरा महंगाई इससे अधिक ही होगी और उपभोक्ताओं का वास्ता खुदरा कीमतों से ही पड़ता है। गत गुरुवार को जारी हुए थोक मुद्रास्फीति के आंकड़े बता रहे हैं कि थोक महंगाई की यह दर पिछले 14 महीनों में सबसे ज्यादा है। पिछले साल मई में थोक महंगाई की यह दर 2.26 प्रतिशत रही थी। चीनी की 14 महीनों में थोक महंगाई दोगुनी हो गई। इस साल अप्रैल से मई के बीच महंगाई का ग्राफ तेजी से बढ़ा है। अप्रैल में खाद्य वस्तुओं की महंगाई दर 0.87 प्रतिशत थी, जो अगले महीने यानि मई में 1.60 प्रतिशत पर पहुंच गई। इसी तरह ईंधन, बिजली क्षेत्र में महंगाई दर मई में 11.22 प्रतिशत दर्ज रही थी। मई महीने में ही फलों और सब्जियों के दामों ने भी लोगों का बजट बिगाड़ा। आलू की महंगाई दर 18.93 प्रतिशत रही। फलों की महंगाई दर भी 15.40 प्रतिशत दर्ज हुई। एक क्षेत्र जहां इस महंगाई की मार ने उपभोक्ताओं की कमर तोड़ दी है वह है दवाओं की बेतहाशा कीमतें बढ़ना। देश में इस समय दवाएं 1500 प्रतिशत तक ज्यादा दामों में बेची जा रही हैं। यह खुलासा देश की सबसे बड़ी निजी दवा निर्माता कंपनी की रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक यूरिन संबंधी बीमारी की नौ रुपए की दवा सिडनेफिल 149 रुपए में बेची जा रही है। वहीं हड्डियों को मजबूत करने वाली सात रुपए की दवा कैल्शियम कार्बोनोट 120 में, डायबिटीज की सात रुपए की दवा ग्लियप्राइड 97 रुपए में, हृदय रोग में इस्तेमाल होने वाली 11 रुपए की एटोरवस्टेटिन दवा 131 रुपए में बेची जा रही है। दवाओं की यह सूची लंबी है। रिपोर्ट तैयार करने वाली निजी कंपनी देश में कुल खपत का 15 प्रतिशत दवा बनाती है। देश में सिर्प 850 तरह की दवाइयां ऐसी हैं, जिन्हें सरकार ने जरूरी दवा की श्रेणी में रखा है और इन्हीं दवाइयों की कीमतों पर सरकारी नियंत्रण होता है। दवा निर्माता कंपनी ने बताया कि 12 प्रतिशत जीएसटी और 20 प्रतिशत लाभ के बाद जिस दवा की कीमत नौ रुपए होती है उसी दवा को बाजार में दवा की मार्केटिंग करने वाली कंपनियां 150 रुपए तक में बेचती हैं। देश में ढाई लाख करोड़ रुपए का दवा कारोबार है और दवाइयों की बिक्री के मामले में भारत विश्व में तीसरे स्थान पर है। चौतरफा महंगाई की मार से आम आदमी की कमर टूट गई है। न वो ढंग से जी सकता है और न ही बीमारी में ढंग से सही इलाज करवा सकता है। उम्मीद है कि भारत सरकार और संबंधित राज्य सरकारें आम आदमी की इस मुश्किलों को दूर करने का अविलंब प्रयास करेंगे।

-अनिल नरेन्द्र

नौ दिन में चले अढ़ाई कोस

नौ दिन में चले अढ़ाई कोस। जी हां, बिल्कुल यही कहावत दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और उनके मंत्रियों पर सटीक बैठती है। दिल्ली के सियासी गलियारों में नौ दिनों तक चला हठ योग तो समाप्त हो गया। लेकिन इसने इस कहावत को पूरी तरह चरितार्थ कर दिया कि वाकई दिल्ली सरकार नौ दिन में चली अढ़ाई कोस। इस सियासी ड्रामे में हर कोई अपनी जीत के दावे कर रहा है लेकिन सवाल वही है कि इन नौ दिन के धरने से आखिर हासिल क्या हुआ? जो अपील इन नौ दिनों के धरने के बाद अधिकारियों से की गई वो चार महीने पहले क्या नहीं हो सकती थी? यह सब पहले भी हो सकता था बस फिर दिल्ली सरकार को एलजी के सोफे पर पसरने का मौका भला कैसा मिलता? अधिकारी भी तो अपना महत्व समझाते तो भला कैसे? चलो देर आए दुरुस्त आए। न तो यह इन सियासी गलियारों का पहला स्ट्रीट प्ले था और न ही आखिरी। दिल्ली में इस समय इस बात की बहस भी हो रही है कि काम कौन कर रहा है? सरकार काम नहीं कर रही और इसकी वजह से अधिकारी काम नहीं कर रहे। दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट के अनुसार कि विभिन्न विभागों में 181 फाइलें मंत्रियों के पास स्वीकृति के लिए पेन्डिंग पड़ी थीं। जो उनके टेबल में धूल चाट रही थीं। इनमें परिवहन विभाग की 81 अतिमहत्वपूर्ण फाइलें शामिल हैं। इस विभाग के मंत्री कैलाश गहलोत हैं। जब ये मंत्री बने थे तो दावा कर रहे थे कि परिवहन के क्षेत्र में क्रांति लाएंगे। मगर इनकी स्थिति सबसे खराब है। गौरतलब है कि दिल्ली सरकार के मंत्री बार-बार आरोप लगा रहे हैं कि अधिकारी उनके साथ सहयोग नहीं कर रहे हैं, जबकि कई महत्वपूर्ण योजनाओं की फाइलें उन्हीं के पास पड़ी हैं। अब फाइलें क्लीयर होनी शुरू हुई हैं। पर पेन्डिंग फाइलों के निपटारे में भी तो समय लगेगा। अब बात करते हैं खुद मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की। धरने के दौरान कथित तौर पर खानपान में गड़बड़ी से उनका शर्परा बढ़ गया है। लिहाजा इलाज के लिए बेंगलुरु जा रहे हैं। मुख्यमंत्री मधुमेह के मरीज हैं और पहले भी इनका इलाज बेंगलुरु स्थित प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र, जिन्दल फार्म में होता रहा है। पार्टी के बागी विधायक कपिल मिश्रा ने भी ट्वीट कर मुख्यमंत्री के इलाज के लिए 10 दिनों के लिए शहर से बाहर जाने की बात लिखी है। उन्होंने मुख्यमंत्री पर दिल्ली के लोगों को ठगने का आरोप लगाया। दूसरी ओर विधानसभा में विपक्ष के नेता विजेन्द्र गुप्ता ने भी तंज कसा कि मुख्यमंत्री ने दिल्ली की जनता के साथ विश्वासघात किया है। उन्होंने कहा कि यह बड़ा दिलचस्प है कि उधर धरना खत्म हुआ और इधर छुट्टी शुरू हो गई। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले साढ़े चार महीने में मुख्यमंत्री महज 15 दिन के लिए अपने कार्यालय आए। दूसरी ओर आप सरकार को लेकर नौकरशाही की नाराजगी अब भी बरकरार है, अधिकारियों का कहना है कि वह डिप्टी सीएम के साथ मीटिंग नहीं करेंगे।

Friday, 22 June 2018

मिशन-2019 के लिए कुर्बान हुई जम्मू-कश्मीर सरकार

यह तो होना ही था। भाजपा ने पीडीपी से गठबंधन तोड़ लिया, महबूबा मुफ्ती ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया है। शुरू से ही यह एक अस्वाभाविक या असामान्य गठबंधन था और पहले दिन से ही कहा जा रहा था कि यह गठबंधन टिकाऊ नहीं है और ज्यादा दिन नहीं चलेगा। मंगलवार की दोपहर उसके समापन की औपचारिक घोषणा हो गई। जम्मू-कश्मीर में करीब तीन साल तक नोकझोंक और आपसी तनातनी के साथ सरकार चलाने के बाद भाजपा और पीडीपी का बेमेल गठबंधन टूटना ही था। विधानसभा के त्रिशंकु नतीजे के बाद जब कोई सरकार नहीं बन रही थी तो भाजपा ने पीडीपी के साथ सरकार बनाने का जो जोखिम उठाया वह पीडीपी से ज्यादा भारी भाजपा को पड़ने लगा। भाजपा को लगने लगा था कि इस सरकार से भाजपा का हिन्दू वोट बैंक प्रभावित हो रहा है।  जम्मू क्षेत्र जिसके बलबूते पर भाजपा ने सरकार बनाई थी उसी की उपेक्षा हो रही थी। महबूबा का सारा जोर घाटी पर था। जम्मू क्षेत्र में न तो कोई विकास हो रहा था और न ही भाजपा समर्थकों में पार्टी की छवि ही बन रही थी। पाकिस्तान ने रणनीतिक तौर पर जम्मू के सीमावर्ती गांवों को निशाना बनाकर वहां से पलायन आरंभ करा दिया था। महबूबा सरकार ने जम्मू के लोगों की कोई मदद नहीं की। यहां तक कि सीमावर्ती गांवों में पाक गोलीबारी के शिकार लोगों को अपने परिजनों के शव तक अपने ट्रैक्टरों में लाने पड़ रहे थे। अब तो नौबत यहां तक आ चुकी थी कि जम्मू शहर से हिन्दू पलायन करने पर मजबूर हो गए थे। भाजपा आला कमान को यह डर सताने लगा कि कहीं देश के शेष भागों में जम्मू की वजह से उनका हिन्दू वोट बैंक प्रभावित न हो जाए। इसलिए उन्होंने बेहतर समझा कि इस सरकार से छुटकारा पाएं। बेशक कई कारण गिनाए जा रहे हैं उनमें से कुछ में दम भी है। महबूबा की जिद्द पर न चाहते हुए भी भाजपा को रमजान के महीने में एकतरफा युद्धविराम करना पड़ा। इस एकतरफा कार्रवाई पर रोक से आतंकियों के खिलाफ सेना की मुहिम को जबरदस्त झटका लगा। जबकि आतंकी बराबर हमला करते रहे और आतंकी हिंसा में खास कमी नहीं आई। इस प्रकार सेना द्वारा अभियान न चलाने से इस एक महीने में 52 आतंकी बच गए। एकतरफा कार्रवाई पर रोक के दौरान कुल 46 आतंकी हमले हुए, जबकि इसके पहले महीने के दौरान 55 घटनाएं हुईं। महबूबा तो रमजान के बाद भी सीजफायर बढ़ाने पर जोर दे रही थीं पर भाजपा ने कहा बहुत हो चुका अब आगे नहीं। पिछले तीन सालों में सुरक्षाबलों के हाथ बांधने और अलगाववादियों के प्रति नरमी बरतने के कारण हालात बेकाबू हो गए और जम्मू-कश्मीर की आंतरिक स्थिति लगभग 90 के दशक तक पहुंच गई। दरअसल राज्य में सरकार तो गठबंधन की थी लेकिन सारे निर्णय मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती लेती थीं। महबूबा का हमेशा से रूझान अलगाववादियों की तरफ था जबकि मुफ्ती मोहम्मद सईद के कार्यकाल में अलगाववादी नियंत्रण में थे। पत्थरबाजी और आतंकवादी घटनाएं बढ़ती रहीं। पत्थरबाजों के खिलाफ सख्त कदम उठाने से महबूबा सेना को रोकती रहीं। सैनिक पिटते गए और इससे सेना में भारी असंतोष होने लगा। महबूबा ने उल्टे पत्थरबाजों का साथ दिया और 11 हजार एफआईआर वापस ले ली गईं। बाद में महबूबा भी लाचार हो गईं और स्थिति बिगड़ती ही चली गई। इस दौरान सशस्त्र बल विशेष प्रावधान अधिनियम (आफ्सपा) को कमजोर करने और अर्द्धसैनिक बलों का हौंसला तोड़ा गया। पत्थरबाजों के चक्कर में पूरी दुनिया का ध्यान घाटी पर टिक गया जबकि जम्मू और लद्दाख के लोग अपने आपको उपेक्षित महसूस करने लगे। विधानसभा चुनाव में भाजपा को कश्मीर घाटी से कुछ नहीं मिला। उसका जनाधार जम्मू तक सीमित था। यहां कि 37 में से 25 सीटें भाजपा को मिली थीं। जबकि लद्दाख में कांग्रेस को बढ़त मिली थी। आरएसएस और भाजपा कैडर ने केंद्रीय नेतृत्व को साफ तौर पर संदेश दिया था कि पीडीपी को समर्थन देते रहे तो जम्मू हाथ से निकल जाएगा। बीते शनिवार की रात को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और आरएसएस की कोर कमेटी की बैठक देर रात हुई जिसमें पीडीपी से समर्थन वापस लेने का फैसला लिया गया। भाजपा ने दरअसल मिशन-2019 की राह के कांटे दूर करने के लिए ही पीडीपी से नाता तोड़ने का फैसला लिया है। भाजपा को उम्मीद है कि इस फैसले का सकारात्मक संदेश जाएगा। दरअसल संघ तो दो वर्ष पहले ही नाता तोड़ने के पक्ष में था। हालांकि तब सरकार और पार्टी को हालात अपने पक्ष में कर लेने की उम्मीद थी। संघर्षविराम की घोषणा के बाद जवान औरंगजेब व पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या और सेना के अफसरों पर एफआईआर जैसे मामलों के कारण भाजपा-पीडीपी के रिश्ते खराब हुए। नतीजतन केंद्र ने महबूबा की ईद के बाद भी संघर्षविराम जारी रखने की सलाह ठुकरा दी। बीते हफ्ते सूरजपुंड में हुई संघ की अनुषांगिक संगठनों और भाजपा संगठन मंत्रियों की बैठक में इस पर गहन चर्चा हुई। जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया है। फिलहाल तो यहां राज्यपाल का शासन चलेगा। राज्यपाल एनएन वोहरा जे एंड के में राज्यपाल के रूप में करीब 10 वर्षों से कार्य कर रहे हैं। उनकी सभी पक्षों में स्वीकार्यता इसकी बड़ी वजह है। यही कारण है कि भाजपा-पीडीपी सरकार के पतन के बाद केंद्र सरकार ने उनका कार्यकाल बढ़ाने का फैसला किया है।

-अनिल नरेन्द्र

Thursday, 21 June 2018

...और अब केजरीवाल के बहाने विपक्षी एकजुटता का पदर्शन

हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के धरने ने एक बार फिर विपक्षी दलों को एक मंच पर आने का  मौका दे दिया। विपक्षी एकता के पैरवीकार चंद्र बाबू नायडू, ममता बनर्जी और माकपा का साथ आना इसका संकेत था। इसलिए चार दलों के मुख्यमंत्रियों की मुहिम को भावी विपक्षी एकता के रूप में देखा जा सकता है। सामने जो भी रहा हो, लेकिन परदे के पीछे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री तृणमूल कांग्रेस की पमुख ममता बनर्जी ही इन पयासों को आगे बढ़ा रही हैं। विपक्षी एकता को लेकर वह काफी दिनों से सकिय हैं। उनके पयास सिर्प केजरीवाल को समर्थन देने तक सीमित नहीं हैं। वह बीजद पमुख नवीन पटनायक, एनसीपी पमुख शरद पवार एवं कांगेस के वरिष्ठ नेताआंs से भी संपर्प  में हैं। दरअसल एनडीए सरकार की घेराबंदी के लिए विपक्ष दोहरी रणनीति अपना रहा है। पहली रणनीति यह है कि लोकसभा और उससे पहले होने वाले विधानसभा चुनाव पदेशों में क्षेत्रीय दल मिलकर लड़ें जिससे भाजपा विरोधी वोटों का बंटवारा न हो। रणनीति तो यह है कि चाहे वह विधानसभा चुनाव हो चाहे, लोकसभा जहां तक संभव हो सके वन टू वन फाइट हो। अगर विधानसभाओं में उन्हें सफलता मिलती है तो क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय स्तर पर तीसरा मोर्चा या अन्य किसी वैकल्पिक गठबंधन का खाका तैयार करेंगे। इधर नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल की दो दिवसीय बैठक में शामिल होने आए बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) अध्यक्ष नीतिश कुमार ने नीति आयोग की बैठक में पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जोरदार झटका देते हुए न केवल आंध्र पदेश के मुख्यमंत्री चंद्र बाबू नायडू का समर्थन किया बल्कि बिहार के लिए भी विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग कर डाली। इस बैठक में चंद्र बाबू नायडू ने राज्य विभाजन, राज्य को विशेष श्रेणी का दर्जा देने और पोलावरम परियोजना से संबंधित मुद्दों को उठाया। उन्होंने नोटबंदी और जीएसटी का मुद्दा भी नीति आयोग के सामने उठाया। नायडू के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने भी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग उठाई। उन्होंने आंध्र पदेश के मुख्यमंत्री चंद्र बाबू नायडू की मांग का समर्थन किया। ममता बनर्जी ने भी नायडू की मांग का समर्थन किया। उधर कांग्रेस ने कहा कि अगर बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार भाजपा का साथ छोड़ने का फैसला करते हैं तो महागठबंधन में वापस लेने के लिए वह सहयोगी दलों के साथ विचार करेगी। कांग्रेस का यह बयान उस वक्त आया है जब हाल के दिनों में अगले लोकसभा चुनाव में सीटों के तालमेल के संदर्भ में जदयू और भाजपा के बीच कुछ मनमुटाव चल रहा है जिस वजह से यह कयास लगाए जा रहे हैं कि दोनों दलों के बीच सब कुछ ठीक नहीं है। विपक्ष मोदी सरकार के खिलाफ एकजुटता का पदर्शन करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहा है।

-अनिल नरेन्द्र

दिल्ली में खून सस्ता पानी महंगा

दिल्ली में खून सस्ता और पानी महंगा हो गया है। पिछले दो महीने में पानी को लेकर तीन लोगों की हत्या कर दी गई। दिल्ली के इतिहास में इस तरह की स्थिति पहली बार हुई है जब लोग पानी के लिए एक-दूसरे की जान ले रहे हैं और पानी का मंत्री भूख हड़ताल पर है या उपराज्यपाल के एसी कमरे में धरने पर है। दिल्ली के नेता पतिपक्ष ने कहा कि गर्मी के दिनों में दिल्ली में 1200 एमजीडी (बिलियन गैलन पतिदिन) पानी की आवश्यकता होती है, लेकिन आपूर्ति 870 एमजीडी से भी कम की हो रही है, आम आदमी पार्टी से निकाले गए कपिल मिश्रा ने कहा कि दिल्ली जल बोर्ड की कोई भी फाइल उपराज्यपाल व केंद्र सरकार के पास नहीं जाती है। जल बोर्ड का पूरा बजट एक बार में पास होता है। इसे कोई नहीं रोक सकता है, लेकिन जल बोर्ड के चेयरमैन अरविंद केजरीवाल अपना काम छोड़कर धरने पर एसी कमरे में बैठे हुए हैं। केंद्रीय मंत्री विजय गोयल ने भी माना है कि दिल्ली के संगम विहार में ज्यादातर लड़ाई-झगड़े का कारण पानी की किल्लत रही है। वह संगम विहार में बृहस्पतिवार रात पानी के कनेक्शन के विवाद में जान गंवाने वाले किशन भड़ाना के परिजनों से मिलने उनके घर शनिवार को पहुंचे थे। उन्हें किशन भड़ाना के परिजनों ने बताया कि कुछ दबंग लोग क्षेत्र में दिल्ली सरकार की मिलीभगत से पानी की कालाबाजारी करते हैं। सरकारी पाइप लाइन से कनेक्शन जोड़ने नहीं देते। इस बात पर संगम विहार में अक्सर लड़ाई होती है। चिंता की बात यह है कि संगम विहार में जहां एक तरफ पानी के लिए लोग एक-दूसरे का खून बहा रहे हैं, वहीं माफिया सरकारी टैंकरों का पानी ब्लैक में बेचकर चांदी काट रहा है। पानी माफिया दिल्ली जल बोर्ड के टैंकरों का पानी पहले अपने अंडरग्राउंड टैंक में स्टोर करते हैं, फिर अपने निजी टैंकरों में भरकर लोगों को ब्लैक करते हैं। दिल्ली सरकार भले ही लोगों को निशुल्क पानी उपलब्ध कराने का दावा कर रही हो, लेकिन कम से कम संगम विहार में तो लोगों से इसकी बूंद-बूंद की कीमत वसूली जा रही है। लोगों का ऐसा भी कहना है कि स्थानीय जनता के पतिनिधि और दिल्ली जल बोर्ड के अधिकारियों के साथ मिलीभगत से पानी माफिया सरकारी पानी बेच रहा है। इससे भी बड़ी चिंता की बात दिल्लीवासियों के लिए यह है कि अगले महीने दिल्ली में पेयजल किल्लत और बढ़ सकती है क्योंकि हरियाणा ने 30 जून तक ही अतिरिक्त पानी आपूर्ति की बात कही है। ऐसा हुआ तो कई इलाकों में लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरस जाएंगे। इस हालत को देखते हुए जल बोर्ड ने उत्तर पदेश से गुहार लगाई है लेकिन अभी वहां से अतिरिक्त पानी मिलने की उम्मीद बहुत कम है। आशा करते हैं कि पानी की समस्या का जल्द समाधान होगा।

Wednesday, 20 June 2018

उच्च पदों पर सीधी नियुक्ति की सरकार की पहल

केंद्र सरकार ने प्रशासनिक सुधार की सिफारिशों को कुछ संशोधनों के साथ लागू कर दिया है। संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की सिविल परीक्षा में बैठे बिना ही अब केंद्र सरकार में वरिष्ठ अधिकारी बना जा सकता है। इसके लिए केंद्र ने गत दिनों लेटेरल एंट्री व्यवस्था लागू करने की अधिसूचना जारी की है। इसके तहत 10 अहम विभागों में विशेषज्ञ संयुक्त सचिव के लिए 30 जुलाई तक आवेदन मांगे गए हैं। आवेदन के लिए क्षेत्र विशेष में व्यापक अनुभव व विशेषज्ञता अहम पैमाना होगी। इसके जरिये अब निजी कंपनियों के सीनियर नौकरशाह आ सकेंगे। इसे नौकरशाही में पैराशूट अधिकारियों की एंट्री के लिए बड़ा बदलाव माना जा रहा है। प्रमुख अखबारों में प्रकाशित विज्ञापन में कहा गया है कि भारत निर्माण में भागीदारी के इच्छुक योग्य उम्मीदवार आवेदन कर सकते हैं। इसमें आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। सरकार ने जिन 10 मंत्रालयों के ज्वाइंट सैकेटरी के लिए आवेदन मंगाए हैं, वे हैंöवित्त सेवा, इकोनॉमिक अफेयर्स, कृषि, सड़क परिवहन, जहाजरानी, पर्यावरण, नवीकरणीय ऊर्जा, नागरिक उड्डयन और वाणिज्य। उल्लेखनीय है कि वित्त, गृह और विदेश मंत्रालय जैसे विभागों के लिए लेटेरल एंट्री नहीं होगी। ऐसा पहली बार हुआ है जब केंद्र सरकार के अंदर संयुक्त सचिव स्तर के वरिष्ठ अधिकारियों के पद पर केंद्रीय सिविल सेवा से बाहर के लोग बैठेंगे। संयुक्त सचिव सरकार के वरिष्ठ प्रबंधन का महत्वपूर्ण पद है। ये नीति निर्माण और विभिन्न कार्यक्रमों एवं योजनाओं को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एक अरसे से यह महसूस किया जा रहा था कि नौकरशाही में ऐसे प्रतिभाशाली पेशेवर लोगों का प्रवेश होना चाहिए जो अपने-अपने क्षेत्र में विशेष योग्यता के साथ अनुभव से भी लैस हों, लेकिन किसी कारण इस बारे में कोई फैसला नहीं लिया जा सका। अभी तक आईपीएस, आईएएस और अन्य संबद्ध सेवाओं से संयुक्त सचिव की नियुक्ति की जाती रही है। जाहिर है कि केंद्रीय नौकरशाही में चरित्र में परिवर्तन की यह एक महत्वपूर्ण शुरुआत होगी। हालांकि सरकार के इस फैसले का विरोध भी हो रहा है। पूर्व आईएएस पीएल पूनिया ने कहाöकेंद्र की ओर से 10 संयुक्त सचिव को नियुक्त करने के लिए जारी विज्ञापन गलत है। बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने ट्वीट कर कहा कि यह संविधान और आरक्षण का घोर उल्लंघन है। माकपा सचिव सीताराम येचुरी ने कहाöयूपीएससी और एसएससी को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है। नौकरशाह इस कदम को उनके खिलाफ निजी खुन्नस मान रहे हैं। युवा आईएएस तो इतने नाराज हैं कि वे कोर्ट जाने का विकल्प तलाशने लगे हैं। मोदी सरकार ने गलत समय पर निर्णय ले लिया, क्योंकि नए लोगों की नियुक्ति प्रक्रिया में छह महीने लग जाएंगे, उसके बाद तो आम चुनाव होने हैं। आईएएस अधिकारी भी इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं कि आखिर सरकार के चौथे साल में ऐसा निर्णय क्यों लिया गया। दरअसल चौथा वर्ष चुनावी वर्ष होता है और सरकार अपनी पूरी मशीनरी को चुनावों की तैयारियों में झोंक देती है। यदि यह मशीनरी नाराज हो गई तो सत्ताधारी राजनीतिक दल के सामने कठिनाइयां पैदा हो सकती हैं। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि सरकार बैक डोर से संघ और भाजपा समर्थकों को बैक डोर एंट्री देना चाहती है। उद्योगपतियों के नुमाइंदे भी इस बहाने सरकार में आकर नीतियों को प्रभावित कर सकते हैं। हमारी राय में बेशक यह एक अच्छा कदम हो सकता है पर इसको करने का समय गलत जरूर है।

-अनिल नरेन्द्र

भारतीय भगोड़ों का पसंदीदा देश ब्रिटेन बन गया है

हमारी गुप्तचर एजेंसियां इतनी सतर्प हैं कि विदेश मंत्रालय द्वारा नीरव मोदी का 24 फरवरी को पासपोर्ट रद्द किए जाने के बावजूद मोदी 15, 30 और 31 मार्च में अमेरिका, ब्रिटेन और हांगकांग की चार विदेश यात्राएं उसी पासपोर्ट से करता रहा और हमारी एजेंसियों को खबर भी नहीं लगी। यह तब चौंके जब इंटरपोल ने इन्हें खबर दी। दरअसल एक तरह से देखा जाए तो शायद हमारी एजेंसियों की भी गलती नहीं। क्योंकि अब पता चल रहा है कि नीरव मोदी के पास कम से कम आधा दर्जन भारतीय पासपोर्ट हैं। एजेंसी के अधिकारियों ने पाया कि नीरव के पासपोर्ट रद्द किए जाने के बाद भी वह लगातार यात्राएं कर रहा है। इस दौरान उसके पास छह पासपोर्ट होने का खुलासा हुआ। इनमें से दो पिछले कुछ समय से सक्रिय हैं। सूत्रों ने बताया कि चार अन्य पासपोर्ट सक्रिय नहीं पाए गए हैं। जो दो सक्रिय हैं उनमें से एक में नीरव का पूरा नाम लिखा हुआ है जबकि दूसरे में केवल उसका पहला नाम दर्ज है और इस पासपोर्ट पर उसे ब्रिटेन का 40 महीने का वीजा हासिल है। संभवत इस तरह वह भारत द्वारा ज्ञात पहले पासपोर्ट को रद्द किए जाने के बावजूद लगातार यात्राएं कर रहा है। कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी सरकार पर नीरव मोदी के गुपचुप ढंग से सहयोग करने का आरोप लगाया और सवाल किया कि अगर नीरव मोदी का पासपोर्ट निरस्त कर दिया गया था तो फिर उसने कुछ महीने पहले तीन देशों की यात्रा कैसे की? इस मामले पर कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट कर आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने नीरव का पासपोर्ट निरस्त किए जाने के बारे में दूसरे देशों की सरकारों को जानबूझ कर सूचित नहीं किया। पिछले दिनों खबर आई थी कि पिछले छह महीने से विदेश में छिप रहा नीरव मोदी ब्रिटेन में है। वह वहां इस बहाने राजनीतिक शरण की कोशिश में है कि भारत वापस जाने पर उसका राजनीतिक उत्पीड़न होगा। ब्रिटेन भारतीय भगोड़ों के लिए पसंदीदा स्थान बनता जा रहा है। 13,500 करोड़ रुपए का चूना लगाने वाले नीरव मोदी भी ब्रिटेन पहुंच गए हैं। नीरव से पहले ब्रिटेन में भारत के कई भगोड़े पनाह ले चुके हैं। इनमें ललित मोदी, विजय माल्या, म्यूजिक डायरेक्टर नदीम सैफी, टाइगर हनीफ, संजीव चावला, रवि शंकरन, लार्ड सुधीर चौधरी, राजकुमार पटेल, राजेश कपूर, अब्दुल शाकुर जैसे नाम शामिल हैं। 2013 से अब तक भारत से गए 5500 से ज्यादा लोगों ने ब्रिटेन में राजनीतिक शरण के लिए अर्जी दी। हालांकि ये सभी अपराधी नहीं हैं। भारतीय भगोड़ों का सबसे पसंदीदा देश ब्रिटेन, अमेरिका, यूएई, कनाडा हैं। 70 प्रतिशत यानि 83 भगोड़े इन्हीं चार देशों में रह रहे हैं। यह जानकारी विदेश मंत्रालय ने एक आरटीआई के जवाब में दी है।

Tuesday, 19 June 2018

गौरी लंकेश की हत्या की गुत्थी सुलझी

पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता गौरी लंकेश की निर्मम हत्या ने न केवल पत्रकार बिरादरी को ही हिला दिया था बल्कि सामाजिक कार्यकर्ताओं व महिला बिरादरी को भी चौंका दिया था। शुक्रवार को मामले की जांच कर रहे विशेष जांच दल (एसआईटी) ने कहा कि परशुराम वाघमोरे ने गौरी की हत्या को अंजाम दिया था। परशुराम वाघमोरे गौरी लंकेश की हत्या के संबंध में गिरफ्तार किए गएठ छह संदिग्धों में से एक है। एसआईटी ने बताया कि वाघमोरे ने गौरी को गोली मारी और फोरेंसिक जांच से पुष्टि होती है कि (तर्पवादी) गोविंद पानसरे, एमएम कलबुर्गी और गौरी की हत्या एक ही हथियार से की गई। उन्होंने कहा कि हथियार का अभी पता नहीं लगाया जा सका है। फोरेंसिक जांच से इस नतीजे पर तब पहुंचा जाता है जब बंदूक के ट्रिगर से गोली के पिछले हिस्से पर एक ही तरह का निशान बना हुआ मिलता है फिर चाहे बंदूक की बरामदगी हो या न हो। एसआईटी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वाघमोरे दक्षिणपंथी गुटों के लोगों को शामिल कर बनाए एक गिरोह से जुड़ा है। बिना नाम के इस गिरोह में 60 सदस्य हैं, जो कम से कम पांच राज्यों में फैले हैं। अधिकारी ने कहाöमध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक में इसका नेटवर्प है। अधिकारी ने कहा कि इस गिरोह ने महाराष्ट्र की हिन्दू जागृति समिति और सनातन संस्था जैसे कट्टरपंथी हिन्दुत्ववादी संगठनों से लोग भर्ती किए थे। जरूरी नहीं कि यह संस्थाएं सीधे तौर पर हत्या में शामिल हों। 26 वर्षीय परशुराम वाघमोरे ने दावा किया है कि वह गोलियां चलाते समय यह नहीं जानते थे कि वह किसकी हत्या कर रहे हैं। उसने गौरी को उनके घर आरआर नगर, बेंगलुरु में पांच सितम्बर 2017 को चार गोलियां मारी थीं। मुझे मई 2017 में कहा गया था कि तुम्हें अपना धर्म बचाने के लिए किसी की हत्या करनी है। मैं मान गया। अब मुझे लगता है कि मुझे उस महिला को नहीं मारना चाहिए था, ऐसा दावा एसआईटी कर रही है। आगे परशुराम ने बताया कि उन्हें तीन सितम्बर को बेंगलुरु लाया गया था। उन्हें बेलागावी में बंदूक चलाने की ट्रेनिंग दी गई थी। मुझे गौरी का घर दिखाया गया और एक बाइकर अगले दिन फिर गौरी के घर लेकर गया और कहा कि अब तुम गौरी का काम तमाम कर दो। यह संतोष की बात है कि पत्रकार और समाज सेविका गौरी लंकेश का हत्यारा आखिर पकड़ा गया। अब कोर्ट में जब केस चलेगा तो और जानकारियां मिलेंगी। यह भी पता चलेगा कि (तर्पवादी) गोविंद पानसरे, एमएम कलबुर्गी और गौरी की हत्या एक ही हथियार से की गई?

-अनिल नरेन्द्र

... और अब दाती महाराज पर लगा दुष्कर्म का आरोप

छतरपुर दिल्ली स्थित शनिधाम मंदिर के संस्थापक दाती महाराज उर्प मदन लाल के खिलाफ एक महिला ने दुष्कर्म का आरोप लगाकर उनके भक्तों को चौंका दिया है। दाती महाराज पर दर्ज दुष्कर्म के मामले में पीड़ित युवती को दिल्ली पुलिस के डीसीपी राजेश देव की अगुवाई में टीम ने युवती को साथ लेकर शनिधाम मंदिर पहुंची। लड़की ने उस रूम की पहचान की जिसमें दाती महाराज ने रेप की वारदात को अंजाम दिया था। पुलिस टीम ने कमरे के चप्पे-चप्पे की तलाशी ली पर सबूत के नाम पर कुछ हाथ नहीं लगा। इसके बाद पीड़िता पुलिस टीम को स्टेज के पीछे बने एक बड़े हॉल में लेकर गई। लड़की ने बताया कि उसके साथ दो-तीन दूसरे लोगों ने भी रेप किया था। पुलिस अधिकारियों ने बताया कि लड़की ने जिस आत्मविश्वास के साथ एक-एक करके शनिधाम के अंदर की जगहों को पहचाना जहां पर उसके साथ दुष्कर्म हुआ, इससे साफ जाहिर होता है कि उसकी बातों में सच्चाई है। इसके बाद रेप केस में मुख्य आरोपी दाती महाराज को जांच में शामिल होने के लिए नोटिस जारी किया गया है। दाती महाराज पर दर्ज दुष्कर्म मामले में पीड़ित युवती ने आरोप लगाया है कि उसके साथ दाती महाराज समेत चार लोगों ने दुष्कर्म किया। इस दौरान उसे पेशाब भी पिलाया गया। पीड़िता ने मंगलवार को साकेत कोर्ट में ज्यूरी एमएम के सामने 164 के तहत बयान में यह खुलासा किया है। वहीं मेडिकल करने वाले डाक्टरों ने पुलिस को लिखकर दिया है कि युवती डिप्रैशन का शिकार हो गई है। अपराध शाखा के अधिकारियों के अनुसार स्नेहा (बदला हुआ नाम) ने बयान में कहा है कि नौ जनवरी 2016 को संस्थान की नीतू उसे चरण सेवा के लिए दाती महाराज के पास ले गई। जहां महाराज, अशोक, अर्जुन व नीमा जोशी ने उसके साथ अलग-अलग दुष्कर्म किया। 26-28 मार्च को उसे पाली स्थित आश्रम में ले जाया गया। जहां दाती महाराज ने उसके साथ दुष्कर्म किया। दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने जैसे ही कार्रवाई तेज की दाती महाराज उर्प मदन लाल गायब हो गए। राजस्थान के पाली स्थित आश्रम के सूत्रों ने बताया कि शुक्रवार सुबह से ही महाराज गायब हैं। किसी को नहीं पता कि आखिर वह कहां गए। महाराज का मोबाइल भी बंद है। आरोपी दाती महाराज की जल्द ही गिरफ्तारी हो सकती है। उधर आरोपों से घिरे दाती महाराज का कहना है कि वह कहीं नहीं भागेगा, पुलिस के सामने पेश होने के लिए उसे कुछ समय चाहिए, क्योंकि उसके आश्रम में रहने वाले बच्चों के लिए भोजन आदि का सालभर की व्यवस्था करनी है। पाली स्थित आश्रम में दाती महाराज शुक्रवार को फिर नजर आया। उन्होंने कहाöमुझे भागना होता तो मैं पहले ही भाग जाता, लेकिन मामला सामने आने के बाद से मैं लगातार यहीं हूं। मैं जल्द ही पुलिस के सामने पेश होऊंगा। मैं जैन की साजिश का शिकार हुआ हूं और उस व्यक्ति ने मुझे बर्बाद करने की धमकी दी थी।

Sunday, 17 June 2018

सिनौली में मिले 4000 साल पुरानी सभ्यता के अवशेष

उत्तर प्रदेश के बागपत के सिनौली क्षेत्र में खुदाई कराने पर उत्तर वैदिक काल व हड़प्पा सभ्यता के बीच संबंधों का पता चलता है। सिनौली में जिस स्थान पर खुदाई हुई है, उससे 120 मीटर दूरी पर 2004-05 में खुदाई हुई थी। वहां भी नरकंकाल मिले थे। यह कुछ ऐसे प्रमाण हैं जो अंग्रेजों के लिखे इतिहास को बदल सकते हैं। सिनौली में खुदाई के दौरान राज परिवार के ताबूत के साथ आठ नरकंकाल मिले हैं। इनके अलावा खुदाई में पहली बार मिले तीन रथ के अवशेष पुरातत्वविदों के लिए अध्ययन का विषय बन गए हैं। यह तमाम अवशेष 3800 से 4000 वर्ष पुराने हो सकते हैं। काल निर्धारण की दृष्टि से यह अवधि उत्तर वैदिक कालीन है। सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल राखीगढ़ी, काली बंगा और लोथल में खुदाई में कंकाल तो मिल चुके हैं, लेकिन रथ पहली बार मिला है। खुदाई में राज परिवार के मिले ताबूत की लकड़ी खराब हो चुकी है। इस पर सिर्प तांबे की नक्काशी बची है। नक्काशी में फूल-पत्तियां आदि बनी हैं। सेंटर फॉर आर्म्ड फोर्सेज हिस्टोरिकल रिसर्च, नई दिल्ली के फेलो डॉ. अमित पाठक का कहना है कि अंग्रेजों ने अभी तक यह साबित किया था कि आर्यों ने 1500-2000 वर्ष ईसा पूर्व भारत पर हमला किया था। वे रथ से आए और यहां की सभ्यता को रौंदते हुए नई सभ्यता की नींव रखी। उनका दावा था कि आर्यों के आने से पहले यहां बैलगाड़ी थी, घोड़ागाड़ी नहीं जबकि इस खुदाई से मिले रथ ने यह साबित कर दिया है कि रथ यहां लगभग पांच हजार वर्ष या इससे भी पहले से है। सिनौली की खुदाई में मिला रथ ही पुरातत्वविदों और इतिहासविदों को ऊर्जीवित कर रहा है। एएसआई के सुपरिंटेंडेंट आर्पियोलॉजिस्ट रहे कमल किशोर शर्मा कहते हैं कि यह एक बड़ी डिस्कवरी है। पुरातत्वविदों बी. लाल के साथ काम करने वाले केके शर्मा के अनुसार पूर्व में आर्पियो-जेनेटिक्स भी स्पष्ट कर चुकी है कि हमारे डीएनए, क्रोमोजोम में पिछले 12 हजार वर्ष में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। ऊपर से अब मिला यह आर्पियोलॉजिकल प्रमाण नए इतिहास को सृजित कर रहा है। इतिहासविदों और पुरातत्वविदों का कहना है कि अब तक सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ी सामग्री मसलन उस समय के चिन्ह, मिट्टी के बर्तन, कंकाल, आभूषण और कॉपर होर्ड सभ्यता से जुड़ी सामग्रियां अलग-अलग जगहों पर तो मिली थीं। लेकिन अब तक कोई ऐसा मौका पहले नहीं आया था जहां दोनों के चिन्ह एक साथ मिले हों। सिनौली की खुदाई में तीन कंकाल, उनके ताबूत, आसपास रखी पोटरी पर जहां सिंधु घाटी सभ्यता के चिन्ह मिले हैं, वहीं लकड़ी के रथ में बड़े पैमाने पर तांबे का इस्तेमाल, मुट्ठी वाली लंबी तलवार इत्यादि प्रमाणित करते हैं कि बरामद सामान का केंद्र किसी राजशाही परिवार का रहा होगा और वह लगभग 5000 साल पूर्व तांबे का प्रयोग करते थे। इस नई खोज पर बधाई।

-अनिल नरेन्द्र

निर्भीक-जांबाज संपादक पर कायराना हमला

आतंकियों का न तो कोई मजहब होता है और न ही वह मजहब को मानने वाले लोगों को ही बख्शते हैं। इस्लाम धर्म में रमजान एक पवित्र महीना होता है जिसमें अल्लाह को मानने वाले लोग रोजा रखते हैं। ईद पर घर जा रहे जवान को और इफ्तार पार्टी के लिए ऑफिस से निकले संपादक को गोलियों से भून दिया इन आतंकियों ने। इस्लाम के नाम पर जेहाद छेड़ने वाले इन हत्यारों को इस्लाम से कितना प्यार है इन हरकतों से साबित हो जाता है। न तो इन आतंकियों के लिए और न ही पाकिस्तान में बैठे इनके आकाओं के लिए ईद का कोई महत्व है। वरिष्ठ पत्रकार व राइजिंग कश्मीर के संपादक शुजात बुखारी को उनके ऑफिस के सामने (सुरक्षित माने जाने वाला प्रेस एरिया) तीन मोटर साइकिल सवार हत्यारों ने गोलियों से छलनी कर दिया। शाम करीब सवा सात बजे वह इफ्तार पार्टी में जाने के लिए ऑफिस से निकले ही थे। उनके साथ उनके दो अंगरक्षकों की भी मौत हो गई। शुजात भारत-पाक के बीच संबंध सामान्य बनाने के लिए जारी ट्रेक-टू की प्रक्रिया में भी शामिल थे। वे अंग्रेजी दैनिक राइजिंग कश्मीर के अलावा कश्मीरी भाषा के अखबार संगलमाल व उर्दू दैनिक बुलंद कश्मीर के संपादक थे। उनके बड़े भाई सईद बशारत बुखारी पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार में बागवानी मंत्री थे। पत्रकार बिरादरी और एडिर्ट्स गिल्ड ने शुजात बुखारी और उनके अंगरक्षकों पर कायराना हमले की कड़ी निन्दा की है। पत्रकार बिरादरी सदमे में है। कश्मीर में करीब तीन दशक की हिंसा में बुखारी चौथे पत्रकार हैं, जिनकी आतंकियों ने हत्या की है। इससे पहले वर्ष 1991 में अलसफा के संपादक मोहम्मद शबन वकील को हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकियों ने मौत के घाट उतार दिया था। वर्ष 1995 में बीबीसी के पूर्व संवाददाता यूसुफ जमील अपने कार्यालय में बम धमाके में घायल हो गए थे, लेकिन उस घटना में एएनआई के कैमरामैन मुश्ताक अली की मौत हो गई थी। वर्ष 2003 में `नाफा' के संपादक परवेज मोहम्मद सुल्तान को प्रेस एन्क्लेव स्थित उनके कार्यालय में हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकियों ने गोली मार दी थी। शुजात बुखारी को भी आतंकियों ने 1996 और 2006 में अगवा कर लिया था। 1996 में 19 पत्रकारों के साथ अगवा शुजात बुखारी को सात घंटे बाद रिहा कर दिया गया था। 2006 में उन्हें बंधक बनाकर मारने की कोशिश की गई थी, लेकिन बंदूक जाम होने की वजह से उनकी जान बच गई थी। इसके बाद उन्हें सुरक्षा भी दी गई थी। शुजात बुखारी के परिवार में पत्नी और दो बच्चे हैं। शुजात कई वर्षों तक जम्मू-कश्मीर में द हिन्दू अखबार के ब्यूरो चीफ भी रहे। शुजात बुखारी स्वतंत्र रूप से सोचते थे और निर्भीकता से लिखते-बोलते थे। यह हमला अभिव्यक्ति की आजादी और लोकतंत्र पर हमला है। बुखारी पर हमला ऐसे वक्त हुआ है जब रमजान के मद्देनजर केंद्र ने सैन्य अभियान रोक रखा था। शुजात बुखारी ने जम्मू-कश्मीर में शांति बहाली के लिए कई प्रयास किए। जिस दिन उनकी हत्या हुई उसी दिन सुबह हिजबुल कमांडर समीर टाइगर को मार गिराने की कार्रवाई में शामिल रहे 44 राष्ट्रीय राइफल्स के एक जांबाज जवान को आतंकियों ने अगवा कर लिया और शाम होते-होते हत्या कर दी। इससे एक रोज पहले सीमापार से हुई गोलीबारी में हमारे चार जवान शहीद हो गए यानि एक तरफ जम्मू-कश्मीर में आतंकी कहर और दूसरी तरफ सीमा पर संघर्षविराम का उल्लंघन। यह दोनों चीजें अलग-अलग नहीं हो सकतीं क्योंकि इन दोनों के पीछे पाकिस्तान का हाथ है। पाकिस्तान जाहिर है कि जम्मू-कश्मीर में अमन-शांति नहीं चाहता। कश्मीर के जो लोग आतंकवादियों के प्रति हमदर्दी रखते हैं उन्हें भी समझना चाहिए कि इन आतंकियों के लिए इंसानियत कोई मायने नहीं रखती। एक-एक कश्मीरी को आतंकियों और सीमापार बैठे उनके आकाओं की सख्त शब्दों में मुखालफत करनी चाहिए। सरकार को भी समझ आ जानी चाहिए कि इन आतंकियों और उनके आकाओं के प्रति किसी रियायत या संवेदना का कोई मतलब नहीं। शुजात शहीद हो गए पर उनकी लिखी बातें और याद हमेशा ताजा रहेंगी। हम उनके परिवार को सांत्वना और उनको अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

Saturday, 16 June 2018

दुनिया के 100 अमीर खिलाड़ियों में इकलौते विराट कोहली

प्रतिष्ठित फोर्ब्स मैगजीन ने दुनियाभर में सबसे ज्यादा कमाई करने वाली सौ एथलीटों की जो लिस्ट जारी की, उसमें नाम दर्ज कराने वाले इकलौते भारतीय खिलाड़ी विराट कोहली भी शामिल हैं। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि आज की तारीख में विराट कोहली भारतीय खेल जगत के सबसे चमकदार खिलाड़ी हैं। उनका वास्ता क्रिकेट से है, जिसको भारत में एक सर्वमान्य धर्म जैसा दर्जा हासिल है। भारतीय कप्तान इस सूची में 83वें नम्बर पर हैं। साल 2017-18 में विराट की कुल कमाई 24 मिलियन डॉलर (करीब 1.6 अरब रुपए) रही। इस सूची में पहले नम्बर पर पेशेवर (प्रोफेशनल) अमेरिकी मुक्केबाज (बॉक्सर) फ्लोएड जॉय मेवेदर का नाम है, जिनकी 285 मिलियन डॉलर की कमाई के आगे अगर विराट की तुलना की जाए तो वह काफी बौने नजर आते हैं। फिर भी यह बड़ी बात है कि इस फेहरिस्त में विराट ही अकेले भारतीय खिलाड़ी हैं। हालांकि अपने पेशेवर जीवन की तरह ही विराट इस फेहरिस्त में भी अभी उस जगह नहीं पहुंच सके हैं, जहां सचिन तेंदुलकर पहुंचे थे। वर्ष 2013 में सचिन इस सूची में 22 मिलियन डॉलर की कमाई के साथ 57वें नम्बर पर थे। इससे ठीक दो साल बाद महेंद्र सिंह धोनी तो इस सूची में 31 बिलियन डॉलर की कमाई के साथ तीसरे नम्बर पर पहुंच गए थे। इस लिहाज से विराट कोहली अभी भी काफी पीछे हैं। पर विराट अभी नौजवान हैं और उनके क्रिकेट में बहुत साल अभी भी बचे हैं। हमें उम्मीद ही नहीं, यकीन है कि आने वाले सालों में विराट कोहली अपना नाम और रोशन करेंगे और फोर्ब्स की इस सूची में ऊपर पहुंचेंगे। विराट कोहली को अभी सचिन और महेंद्र सिंह धोनी के जो तमाम तरह के रिकॉर्ड तोड़ने हैं उनमें से एक फोर्ब्स लिस्ट वाला है, जो शायद सबसे कठिन साबित हो सकता है। बाकी खेलों में अपना सब कुछ झोंक कर ऊंचा मुकाम हासिल करने वाले खिलाड़ियों के मन में अकसर इस बात का अफसोस रह जाता है कि हॉकी, बैडमिंटन, निशानेबाजी, कुश्ती व बिलियर्ड्स में अपनी जिन्दगी लगाने की बजाय वे क्रिकेट से जुड़े होते तो उनकी शोहरत और पैसे का लेबल कुछ और ही होता। सबसे ज्यादा कमाई करने वाले इन सौ खिलाड़ियों में से 40 बास्केटबॉल से, 18 अमेरिकन फुटबॉलर (रग्बी) से, 14 बेसबॉल से, नौ फुटबॉल से और पांच गोल्फ से जुड़े हैं। बॉक्सिंग और टेनिस से भी चार-चार खिलाड़ी इस सूची में आए हैं, लेकिन ]िक्रकेट से सिर्प एक। इस सूची से हमें इस बात का अंदाजा मिलता है कि जिस क्रिकेट को लेकर भारत में ऐसा पागलपन दिखता है, दुनिया में उसकी औकात व दर्जा क्या है। इस सूची को हमें एक अलग ढंग से भी देखना होगा। इसमें चीन का एक भी खिलाड़ी नहीं है। हालांकि चीन खेलों में दुनिया में दूसरे नम्बर पर पहुंच चुका है। इसका कारण यह है कि चीन का फोकस कमाई व चकाचौंध वाले खेलों पर नहीं, बल्कि उन खेलों पर ज्यादा है, जो ओलंपिक जैसी स्पर्द्धाओं में खेले जाते हैं। भारत के लिए भी आगे बढ़ने का सबसे अच्छा रास्ता यही हो सकता है।

-अनिल नरेन्द्र

संकट में पाकिस्तान ः बराबर गिरती जा रही है रुपए की वैल्यू

हालांकि खुद कंगाली की कगार पर खड़ा है पाकिस्तान फिर भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा और अगर स्थिति यही चलती रही तो वह दिन दूर नहीं जब पाकिस्तान पूरी तरह से कंगाल हो जाए। ईद के त्यौहार से पहले पाकिस्तान की चिन्ताएं काफी बढ़ गई हैं। पिछले कुछ समय से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था लगातार गोते लगा रही है। गुरुवार को एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 118.7 पाकिस्तानी रुपए हो गई। चुनाव से पहले पाकिस्तान गंभीर आर्थिक संकट में जाता दिख रहा है। पाकिस्तान की मुद्रा रुपए में जारी गिरावट थमने का नाम नहीं ले रही है। अगर डॉलर की कसौटी पर भारत से पाकिस्तान की तुलना करें तो भारत की अठन्नी पाकिस्तान के लगभग एक रुपए के बराबर हो गई है। एक डॉलर अभी लगभग 76 भारतीय रुपए के बराबर है। पाकिस्तान का सेंट्रल बैंक पिछले सात महीने में तीन बार रुपए का अवमूल्यन कर चुका है, लेकिन इसका असर अभी तक नहीं दिख रहा। ईद से पहले और ईद के दिन पाकिस्तान की माली हालत आम लोगों को निराश करने वाली है। पाकिस्तान में अगले महीने 25 जुलाई को आम चुनाव होने हैं और चुनाव से पहले कमजोर आर्थिक स्थिति को भविष्य के लिए गंभीर चिन्ता की तरह देखा जा रहा है। चुनाव के दौरान देश की अर्थव्यवस्था बड़ा मुद्दा बन सकती है। रुपए में भारी गिरावट से साफ है कि करीब 300 अरब डॉलर की पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था गंभीर संकट का सामना कर रही है। पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार में हो रही लगातार कमी और चालू खाते में घाटे का बना रहना पाकिस्तान के लिए खतरे की घंटी है और एक बार फिर उसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के पास जाना पड़ सकता है। इससे पहले पाकिस्तान ने 2018 में आईएमएफ से कर्ज लिया था। विशेषज्ञों का कहना है कि आईएमएफ करेंसी की वैल्यू घटाने के लिए कह सकता है। इसलिए पाकिस्तान यह दिखाना चाहता है कि वह पहले से ही इसकी तैयारी कर रहा है। विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव कम करने के लिए वह चीन से भी बात कर रहा है। करेंसी की वैल्यू घटाने का मकसद आयात कम करना और निर्यात बढ़ाना है। 20 लाख करोड़ रुपए (भारतीय) की इकोनॉमी वाले पाकिस्तान का चालू खाते का घाटा (सीएडी) जीडीपी के 5.3 प्रतिशत तक पहुंच गया है। विदेशी मुद्रा भंडार सिर्प 10 अरब डॉलर का रह गया है। यह तीन साल में सबसे कम है और सिर्प दो महीने का आयात किया जा सकता है। इसके मुकाबले भारत की पाकिस्तान से आठ गुना बड़ी है जीडीपी। पाक की 20 लाख करोड़ रुपए है तो भारत की 160 लाख करोड़ रुपए जीडीपी है। जीडीपी के मुकाबले सीएडी (जीडीपी के मुकाबले) भारत की 1.5 प्रतिशत है जबकि पाकिस्तान की 5.3 प्रतिशत। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 412 अरब डॉलर पहुंच गया है जबकि पाकिस्तान का सिर्प 10 अरब डॉलर रह गया है। आने वाले दिन पाकिस्तान के लिए चुनौतीपूर्ण होने वाले हैं।

Friday, 15 June 2018

गन्ना किसानों को पैकेज से कितनी राहत?

केंद्र सरकार ने गन्ना किसानों को और चीनी मिल मालिकों को राहत देने के लिए 8500 करोड़ रुपए का जो पैकेज जारी किया है, वह किसानों के बकाये भुगतान के अलावा चीनी मिलों की क्षमता बढ़ाने आदि पर केंद्रित है, जिससे बेशक बीते कुछ समय से जारी असमंजस दूर होगी। हालांकि इस समय कहना कठिन है किन्तु है कि इस पैकेज से स्थिति कितनी सुधरेगी। इस समय चीनी उद्योग संकट से गुजर रहा है। भारी उत्पादन एवं ज्यादा स्टॉक होने के कारण चीनी के दाम बाजार में काफी गिर गए हैं। भारत में चीनी की खपत 2.50 करोड़ टन के आसपास है, जबकि उत्पादन 3.15 करोड़ टन से ज्यादा हो गया है। मिलों के लिए गन्ना किसानों का करीब 22 हजार करोड़ रुपए का भुगतान करना क"िन हो गया है। इस पैकेज से चीनी मिलों की हालत तो सुधरेगी पर इसमें गन्ना किसानों के उद्धार के लिए बहुत ज्यादा रकम नजर नहीं आती। इसी पैसे से चीनी मिलों को एथनॉल उत्पादन की क्षमता बढ़ाने के लिए सस्ता कर्ज मुहैया कराया जाना है। चीनी का 30 लाख टन बफर स्टॉक भी बनाया जाना है। इस पर 12 सौ करोड़ रुपए खर्च होंगे। लेकिन गन्ना किसानों के बकाये के भुगतान के सिर्प एक हजार पांच सौ चालीस करोड़ रुपए रखे गए हैं। गन्ना किसानों के लिए यह फौरी राहत से कुछ ज्यादा नहीं है। हालांकि सहायता राशि से मिल मालिकों को बड़ी राहत मिलेगी। चीनी मिलों पर किसानों का बकाया कोई आज की समस्या नहीं है। मिल मालिकों का हमेशा से यह रवैया रहा है कि गन्ना किसानों को कभी समय से भुगतान नहीं किया जाता। सालोंसाल किसान बकाये के इंताजर में गुजार देते हैं। आंदोलन व कई बार आत्महत्या जैसे कदम भी उठा लेते हैं। मिलों के लिए गन्ना किसानों का करीब 22 हजार करोड़ रुपए का भुगतान करना क"िन हो गया है तो सबसे पहली जरूरत मूल्य को उस स्तर पर लाने की है जिससे किसानों को कम से कम उनकी लागत तो मिले। चूंकि गन्ना किसानों को बकाया चीनी मिलों के जरिये ही होना है, ऐसे में इसकी गारंटी होनी चाहिए कि उनको बकाये का पूरा भुगतान समय पर हो। सरकार इस पैकेज को ऐतिहासिक बता रही है जबकि इसके बजाय उसका यह फैसला चीनी उद्योग से जुड़े विरोधाभास और सरकार की बदलती प्रतिबद्धता का उदाहरण है। अभी ज्यादा वक्त नहीं हुआ, जब उसने देश में चीनी का स्टॉक होते हुए भी उपभोक्ताओं के हित में सस्ती चीनी का आयात किया था। लेकिन अब गन्ना उत्पादकों के हित में आनन-फानन आयात शुल्क दोगुना कर निर्यात शुल्क खत्म कर दिया है। मुक्त अर्थनीति के दौर में यह सरकारी संरक्षणवाद का बेहतर उदाहरण ही नहीं, बल्कि इसका भी प्रमाण है कि सरकार संभवत इस क्षेत्र की समस्या को समझना ही नहीं चाहती। गन्ना उत्पादकों की त्रासदी यह है कि अधिक उत्पादन के बावजूद उन्हें न तो इनका लाभकारी मूल्य मिल पाता है और न ही मिलों से समय पर पैसा मिलता है।

-अनिल नरेन्द्र

एक महीना, तीन हस्तियां, एक गोली और जिन्दगी खत्म

पिछले एक महीने से आत्महत्याओं ने हमें तो चौंका दिया है। मंगलवार को ग्लैमर की चकाचौंध छोड़ शांति की तलाश में आध्यात्म की राह अपनाने वाले भय्यूजी महाराज ने गोली मारकर आत्महत्या कर ली। इस पहले मुंबई के जांबाज पुलिस अफसर महाराष्ट्र अपराध शाखा के संयुक्त आयुक्त एवं आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) जैसी जिम्मेदारियां निभा चुके हिमांशु राय ने अपनी जान ले ली। पुलिस महकमे में राजेश साहनी ऐसे चन्द अफसरों में शुमार थे, जो किसी तरह के विवाद और चर्चाओं से दूर रहते थे। काबिलियत और जुनून के लिए मशहूर होने के बावजूद राजेश साहनी अकेलेपन की भेंट चढ़ गए। इन तीनों हस्तियों को देखें तो शायद ही कोई कमी नजर आए। एक इंसान को जिस पद, प्रतिष्ठा और धन-दौलत की चाह होती है, वो भय्यूजी महाराज से लेकर साहनी तक तीनों के पास थी। भय्यूजी महाराज दुनिया को जिन्दगी का मंत्र देने वाले हाई-प्रोफाइल आध्यात्मिक गुरु ने गत मंगलवार दोपहर को इंदौर स्थित अपने घर में खुद को गोली मार ली। पुलिस के अनुसार उनके कमरे से मिले नोटपैड पर लिखा एक सुसाइड नोट मिला है। उसमें लिखा है कि परिवार की देखभाल करने के लिए कोई होना चाहिए। मैं जा रहा हूं, बहुत ज्यादा तनाव है। मैं तंग आ चुका हूं। भय्यूजी महाराज ने अपनी लाइसेंसी रिवॉल्वर से दाईं कनपटी पर गोली मारी। उन्होंने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया था जिसे तोड़कर उन्हें बाहर निकाला गया। सिल्वर प्रिंग स्थित निवास से उनको अस्पताल लेकर गए लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी और डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। बड़ी हस्तियों से संबंधों और अपने शौक की वजह से भी भय्यूजी महाराज चर्चा में पहले से थे। पहले उन्होंने कपड़ों के एक ब्रांड के विज्ञापन के लिए मॉडलिंग भी की, बाद में वह संत बन गए। 2011 में अन्ना आंदोलन के समय राष्ट्रीय स्तर पर वह चर्चा में आए थे। पीएम नरेंद्र मोदी, पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, संघ प्रमुख मोहन भागवत, शरद पवार, लता मंगेशकर, आशा भोंसले, स्वर्गीय विलास राव देशमुख, शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे, मनसे के राज ठाकरे के अलावा कई हस्तियों से उनके संबंध थे। भय्यूजी महाराज की आत्महत्या के मामले में पुलिस कई बिन्दुओं पर जांच कर रही है। वह कई दिनों से पारिवारिक विवाद की वजह से तनाव में थे। सूत्र बताते हैं कि दूसरी शादी के बाद पत्नी का दखल उनके जीवन में काफी बढ़ गया था। भय्यूजी महाराज पहली पत्नी से हुई बेटी कुहू से बहुत प्यार करते थे। दूसरी शादी होने के बाद बेटी ने उनसे दूरी बना ली थी। कुहू पुणे से मंगलवार को ही इंदौर आई हुई थी। अपने कमरे को अस्तव्यस्त देखकर कुहू की पत्नी से बहस हुई थी। 50 लाख की प्रॉपर्टी के विवाद और पारिवारिक कलह को लेकर भी वह तनाव में थे। भय्यूजी की मौत के बाद बेटी कुहू ने कहाöमैं उन्हें (डॉ. आयुषी) को अपनी मां नहीं मानती। उन्हीं के कारण पिता ने यह कदम उठाया। उन्हें जेल में बंद करो। हम अपनी श्रद्धांजलि पेश करते हैं एक महान संत को।

Thursday, 14 June 2018

दिल्ली सरकार की टकराव की रणनीति

देश के इतिहास में पहली बार कोई मुख्यमंत्री अपनी मांगों के लेकर पूरी रात धरने पर बैठा रहा। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल अपनी मांगों को मनवाने के लिए दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल के घर पर धरने पर बैठे हैं। एलजी हाउस के बाहर उनके विधायक धरने पर बैठ चुके हैं। सारा झगड़ा या विवाद अधिकारियों को लेकर ज्यादा है। अरविन्द केजरीवाल ने सोमवार को एलजी को उनके घर में ज्ञापन सौंपते हुए कहा कि दिल्ली में अराजकता की स्थिति है। अधिकारी बीते चार महीने से कोई काम नहीं कर रहे हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि अधिकारी जो कर रहे हैं वह उनके सर्विसेज रूल के खिलाफ है। चूंकि सर्विसेज एलजी के पास हैं तो आप दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई करें। एलजी अधिकारियों को लिखित आदेश जारी करें। अगर वह तब भी नहीं मानते तो एस्मा लागू कर उनके खिलाफ कार्रवाई हो। इसके उलट उपराज्यपाल अनिल बैजल ने मुख्यमंत्री पर पलटवार करते हुए सोमवार को कहा कि बिना किसी कारण एक और धरना दिया जा रहा है। राजनिवास ने साफ किया है कि राशन की डोर स्टैप डिलीवरी सिस्टम को लागू करने के लिए सरकार की योजना को तीन माह पहले ही खाद्य आपूर्ति मंत्री के पास भेजा जा चुका है। मुख्य सचिव अंशु प्रकाश से हुई मारपीट की घटना के बाद से दिल्ली सरकार का कोई भी आईएएस अधिकारी हड़ताल पर नहीं है। सभी अधिकारी अपने कार्य को सही प्रकार से अंजाम दे रहे हैं। दिल्ली सरकार के आईएएस अधिकारियों ने सोमवार को यह बयान जारी किया। उन्होनें कहा कि 19 फरवरी की देर रात को मुख्य सचिव से हुई हाथापाई की घटना दुर्भाग्यपूर्ण थी। इसके बाद विभिन्न तरीकों जैसे कैंडल मार्च व मौन प्रदर्शन के माध्यम से विरोध दर्ज किया गया है। छुट्टी के दिन भी जाकर सभी सरकारी दफ्तरों में कार्य किया। सोमवार को ही दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली विधानसभा से कहा कि वह तीन नौकरशाहों के खिलाफ 13 जून तक कोई दंडात्मक कार्रवाई न करें। विधानसभा अध्यक्ष ने आम आदमी पार्टी के विधायकों को लिखित सवालों का जवाब नहीं देने पर तीनों नौकरशाहों को सदन में पेश होने का निर्देश दिया था। बेशक आम आदमी पार्टी की सरकार की कुछ मांगें जायज हों पर इस तरह का आंदोलन चलाना सरकार का काम नहीं है। उसका काम है प्रशासन चलाना। आंदोलन पार्टी का काम है। पिछले दिनों केजरीवाल ने कई मामलों में माफी मांगकर मुकदमेबाजी से बचने का रास्ता अपनाया था ताकि सरकार चलाने पर ध्यान केंद्रित कर सकें। इसका अगला चरण अगर टकरावों का दायरा कम करने के रूप में दिखे तो दिल्ली के लिए राहत की बात होगी। दुख से कहना पड़ता है कि दिल्ली सरकार को काम करने में दिलचस्पी कम है, झगड़ा, आंदोलन करने में ज्यादा है।

-अनिल नरेन्द्र

ट्रंप की शानदार उपलब्धि ः किम जोंग उन को वार्ता टेबल पर लाना

अभी चन्द महीने पहले की ही बात है, दहशत पूरे एशिया पर हावी थी। उत्तर कोरिया एक के बाद एक परमाणु बम और इंटरकॉटिनेंटल मिसाइलें दाग रहा था और आए दिन वह अमेरिका को धमकियां देता था कि हम तुम्हें तबाह कर देंगे। दूसरी तरफ अमेरिका की धमकियों से ऐसा लग रहा था कि उसके बमवर्षक बस उत्तर कोरिया पर हमला बोलने ही वाले हैं। लेकिन समय ऐसा पलटा कि करीब 70 साल पुरानी दुश्मनी भुलाकर अमेरिका और उत्तर कोरिया के नेता मंगलवार को मिले तो दुनियाभर में शांति कायम रहने की उम्मीद को नए पंख  लगा दिए। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और नॉर्थ कोरिया के नेता किम जोंग उन के बीच करीब 45 मिनट तक ऐतिहासिक शिविर वार्ता हुई। सिंगापुर में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उत्तर कोरिया के राष्ट्रपति किम जोंग उन की मुलाकात के पीछे सम्पूर्ण विश्व की नजर लगी हुई थी तो यह बिल्कुल स्वाभाविक था। पिछले कई सालों से विश्व का यह सबसे खतरनाक क्षेत्र बना हुआ था। उत्तर कोरिया द्वारा लगातार नाभिकीय परीक्षणों से केवल उसी प्रायद्वीप में नहीं बल्कि पूरे विश्व में हड़कंप मचा हुआ था। तनाव के इस माहौल में अचानक ही समझदारी कहां से पसरी यह कहना तो मुश्किल है पर मंगलवार को Eिसगापुर में जब उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने समझौते पर हस्ताक्षर किए तो बहुत सारे मिथक टूट गए। निश्चित तौर पर यह एक ऐतिहासिक समझौता था, ऐतिहासिक मौका भी। उत्तर कोरिया ने वादा किया है कि वह बहुत जल्द अपने परमाणु हथियारों के खात्मे की शुरुआत करेगा। हालांकि जिस सहमति पर दोनों ने दस्तखत किए हैं उसमें यह स्पष्ट नहीं है कि परमाणु हथियारों के खात्मे यानि डी न्यूक्लियराइजेशन का क्या अर्थ है? यह भी कहा जा रहा है कि दोनों ही देश इस शब्द की अलग-अलग व्याख्या कर सकते हैं। लेकिन फिलहाल यह तकनीकी मुद्दा महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण यह है कि दोनों देशों के नेता एक साथ बैठे, दोनों ने पांच घंटे तक बात की और बातचीत बड़े ही आशावादी माहौल में खत्म हुई। इस शांतिपूर्ण संबंधों की मंजिल तक पहुंचाने के लिए दोनों पक्षों को अभी लंबा सफर तय करना होगा। लेकिन बावजूद इसके यह मुलाकात एक ऐसी शुरुआत है जिसे कूटनीति के स्तर पर ट्रंप के समूचे शासनकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि माना जा सकता है। उत्तर कोरिया पर लगे सख्त अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों ने भी इसके पीछे निश्चय ही एक अहम भूमिका निभाई होगी। निश्चित रूप से तनाव का इतिहास पीछे छूटता दिख रहा है। लेकिन पूरी तरह पीछे वह छूटेगा यह दोनों देशों पर निर्भर है। किम जोंग उन को अपनी बात पर कायम रहना पड़ेगा और समझौते को पूरी तरह लागू करना होगा तभी यह समझौता सही मायनों में ऐतिहासिक रहेगा।