Tuesday 23 April 2019

24 साल की कटुता भुलाकर मायावती-मुलायम एक मंच पर

24 साल पुरानी दुश्मनी भूलकर बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती और समाजवादी पार्टी संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी में शुक्रवार को चुनावी रैली के दौरान मंच साझा किया और मायावती ने बाकायदा मुलायम को जिताने की अपील करते हुए उन्हें असली नेता करार दिया। 1995 में हुए बहुचर्चित गेस्ट हाउस कांड के बाद सपा से रिश्ते तोड़ चुकी मायावती जब रैली के लिए मैनपुरी के क्रिश्चियन कॉलेज के मैदान में पहुंची तो उनका जोरदार स्वागत किया गया। बड़ी संख्या में आए सपा-बसपा कार्यकर्ताओं को सपा प्रत्याशी मुलायम सिंह यादव को जिताने की अपील करते हुए कहा कि इस गठबंधन के तहत मैनपुरी में खुद मुलायम के समर्थन में वोट मांगने आई हूं। जनहित में कभी-कभी कुछ कठिन फैसले लेने पड़ते हैं। देश के वर्तमान हालात को देखते हुए यह फैसला लिया गया है। उन्होंने कहा कि आप मुझसे जानना चाहेंगे कि दो जून 1995 के गेस्ट हाउस कांड के बाद भी सपा-बसपा गठबंधन चुनाव क्यों लड़ रहा है? इस गठबंधन के तहत ही आज मैं यहां आई हूं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा की सामूहिक ताकत का प्रयोग कई अरसे बाद जमीन पर आंका जाना है। दो चरण बीतने के बाद सत्तारूढ़ दल के समर्थकों को लग रहा है कि जमीन पर ध्रुवीकरण चल रहा है। किसी का दावा है कि मोदी का नाम चल गया तो इसके उलटे विपक्ष की जमीन हरीभरी देख रहे लोगों का दावा है कि ध्रुवीकरण की कोशिश पर उनका समीकरण हावी है। पाकिस्तान से लेकर प्रज्ञा ठाकुर तक ध्रुवीकरण कार्ड के पत्ते हैं। इनका असर नकारा नहीं जा सकता, लेकिन दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यकों का समीकरण का गठबंधन का दांव भी कमजोर नहीं है। दोनों तरफ से पूरा जोर लगाया जा रहा है। केवल मतदाता ही राजनीतिक दलों और उनके समर्थकों के दावों की पड़ताल कर सकते हैं। भाजपा ने करीब ढाई दशक बाद मुलायम-मायावती की संयुक्त रैली पर कटाक्ष करते हुए कहा कि इस रैली से साफ हो गया है कि उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आंधी चल रही है और उनका जनता से गठबंधन बहुत ज्यादा मजबूत है। शाहनवाज हुसैन ने कहा कि मोदी की आंधी से बदहवास लोग खोखले पेड़ से लिपट रहे हैं। न सपा में दम बचा है और न ही बसपा में। उन्होंने कहा कि सपा और बसपा दोनों के कार्यकाल में भ्रष्टाचार हुआ है, दोनों ही परिवारवादी और भाई-भतीजावादी हैं। मैनपुरी की यह रैली सपा-बसपा के साथ मंच पर होने के कारण ही महत्वपूर्ण नहीं थी, बल्कि सूबे में गठबंधन को स्वीकार्यता दिलाने के लिहाज से भी इस रैली का महत्व है, ऐसा हमारा मानना है। सपा और बसपा का व्यापक जातिगत आधार ही नहीं, उत्तर प्रदेश में उनका व्यापक नेटवर्प भी प्रतिद्वंद्वियों के लिए चुनौती है। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि इस बार निशाने पर हैं नरेंद्र मोदी। सपा-बसपा गठबंधन यह तो साबित कर ही चुका है कि उनका गठबंधन मजबूत है। इसी वजह से इस गठबंधन ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही घर की सीट गोरखपुर और फूलपुर पर लोकसभा उपचुनाव जीतकर दिखा दिया है। सपा और बसपा के कार्यकर्ताओं में अगर वाकई ही दिल मिल जाते हैं तो भाजपा को उत्तर प्रदेश में भारी नुकसान हो सकता है। तीसरे चरण में सपा की साख दांव पर है। तीसरे चरण में मुलायम परिवार की गढ़ कही जाने वाली मैनपुरी, फिरोजाबाद और बदायूं सीटों पर मतदान है। यह तो मतपेटियों के खुलने पर ही पता चलेगा कि किसका पलड़ा भारी है।
किया था और भाजपा को इसका खामियाजा भी भुगताना पड़ा था। कांग्रेस को खोने के लिए कुछ भी नहीं है। भाजपा अगर एक भी सीट हारती है तो उसी को नुकसान होगा।

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