दिल्ली की सातों सीटों पर लोकसभा चुनाव के छठे चरण यानि 12 मई को चुनाव होगा। दिल्ली के सवा
सौ करोड़ से ज्यादा मतदाताओं को अब तय करना है कि उनका कीमती वोट भाजपा को जाएगा,
कांग्रेस को जाएगा या फिर आम आदमी पार्टी (आप)
को जाएगा। अब यह लगभग तय हो गया है कि दिल्ली में कांग्रेस-आप के बीच गठबंधन की संभावना खत्म हो गई है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी
ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन की संभावनाओं पर पूरी तरह विराम लगा दिया
है। दिल्ली कांग्रेस के बूथ अध्यक्षों के सम्मेलन में उन्होंने कहा कि पार्टी लोकसभा
की सभी सातों सीटों पर लड़ेगी और विजय हासिल करेगी। कांग्रेस में गठबंधन को लेकर भारी
विवाद था क्योंकि एक गुट चाहता था कि भाजपा को हराने के लिए गठबंधन इसलिए जरूरी है
ताकि वोट न बंटें। पर दिल्ली प्रदेशाध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का स्पष्ट
यह मत था कि दिल्ली में कांग्रेस को अपने दम-खम पर लड़ना चाहिए।
इसके पीछे उनका सोचना था कि दिल्ली में कांग्रेस जीरो से लड़ाई लड़े तो उसके लिए बेहतर
होगा। इससे निराश बैठे कांग्रेस कार्यकर्ता फिर से सक्रिय होंगे। कांग्रेस ग्रासरूट
लेवल पर मजबूत होगी। कांग्रेस थिंक टैंक की नजर 2020 के दिल्ली
विधानसभा चुनाव पर ज्यादा है। वह सोचती है कि भले ही कांग्रेस लोकसभा चुनाव में अपने
दम-खम पर इतना अच्छा प्रदर्शन न भी करे तब भी उसे अपनी पार्टी
को पुन खड़ा करने में मदद मिलेगी। दूसरी ओर कांग्रेस अगर आम आदमी पार्टी से गठबंधन
कर लेती तो इसका ज्यादा फायदा आप को होता। आम आदमी पार्टी विधानसभा चुनाव में मजबूत
है पर लोकसभा चुनाव अलग चीज है। अब दिल्ली में त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलेगा।
दिल्ली में भाजपा की लोकप्रियता अब वह नहीं है जो 2014 में मोदी
लहर के समय थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को
46.39 प्रतिशत वोट मिला था और उसने सातों सीटें जीती थीं। आप को
33.1 प्रतिशत वोट मिला था और शून्य सीट जीती थी। कांग्रेस को तब भी
15.2 प्रतिशत वोट मिला था। यह ठीक है कि अगर आप को 33.1 और कांग्रेस के 15.2 प्रतिशत वोटों को जोड़ा जाए तो यह
48.3 प्रतिशत वोट बनता है जो भाजपा के 46.39 प्रतिशत
वोट से ज्यादा है। इस लिहाज से देखा जाए तो त्रिकोणीय मुकाबले में भाजपा को फायदा मिल
सकता है। 2014 के वोट आंकड़े पर नजर डालें तो पश्चिमी दिल्ली
की सीट को छोड़कर बाकी छह में यह बात साबित हो जाती है कि दोनों पार्टियों का वोट भाजपा
से ज्यादा था। हालांकि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि चुनाव के गणित से ज्यादा कैमिस्ट्री
का असर होता है, इसलिए सिर्फ वोट के आंकड़े जोड़ने भर से बात
बनेगी, यह कहना मुश्किल होता है। अगर पूरी दिल्ली में गठबंधन
के असर पर गौर करें तो 2014 के बाद दिल्ली में दो और चुनाव हुए।
2015 में विधानसभा चुनाव हुआ जिसमें आप को 54.33 प्रतिशत वोट मिले थे और कांग्रेस को 9.66 प्रतिशत। इस
चुनाव में आप को 50 प्रतिशत वोट और 67 विधानसभा
सीटों पर ऐतिहासिक जीत मिली थी। 2017 के दिल्ली नगर निगम चुनाव
में आप का वोट शेयर घटकर 26.13 प्रतिशत आ गया और कांग्रेस का
बढ़कर 21.20 प्रतिशत हो गया। यह कहना गलत न होगा कि दिल्ली में
कांग्रेस का वोट बढ़ रहा है और आप का घट रहा है। चुनाव में स्थितियां बदलती रहती हैं।
अभी भी कुछ लोग गठबंधन की आस लगाए बैठे हैं। कांग्रेस ने अभी तक अपने उम्मीदवारों के
नाम सार्वजनिक नहीं किए हैं।
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