Friday 19 April 2019

एनडीए को 263-283, यूपीए को 115-135 सीटें

चुनाव का समय है। अपनी पार्टी की हवा बनाने के लिए हर सियासी दल अपनी ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रहा है। अपनी दावेदारी मजबूत करने के लिए कई पार्टियों के नेता तरह-तरह के फंडे लगा रहे हैं। इनमें सर्वे का फंडा भी शामिल है। इसके लिए न तो उन्हें कार्यकर्ताओं की टीम चाहिए और न ही उन्हें कहीं जाना होगा। बस ऑफिस में बैठकर मनचाहा सर्वे रिपोर्ट तैयार हो जाती है। बस नेताजी को इस फर्जी सर्वे को बेचना आना चाहिए। जो बेच लिया, उसकी बल्ले-बल्ले। कुछ नेता यह काम करने में माहिर भी हैं। पार्टियां अपना मनपसंद सर्वे करवाती हैं और मतदाताओं को इसके माध्यम से प्रभावित भी करना चाहती हैं। ऐसा नहीं कि सभी सर्वे फर्जी होते हैं। कुछ संगठन ऐसे जरूर है जो अपनी तरफ से मेहनत करके, कुछ सैम्पल सर्वे करते हैं। पर इनकी कमी यह रहती है कि यह कुछ चुनिन्दा संसदीय क्षेत्रों में, गिने-चुने मतदाताओं से सवाल पूछते हैं। उससे उन क्षेत्रों का अंदाजा जरूर हो जाता है पर भारत  जैसे विशाल फैले हुए देश की हवा बताने में वह कभी-कभी असफल हो जाते हैं। यही वजह है कि सर्वे और फाइनल रिजल्ट मेल नहीं खाते। इन चुनावों के बारे में एक चीज तो स्पष्ट लगती है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में न तो कोई हवा है और न ही कोई विशेष राष्ट्रीय मुद्दा। कोई राष्ट्रीय मुद्दा प्रमुख भूमिका नहीं निभा रहा है। कोई ऐसी लहर या मुद्दा नहीं है जो सभी राज्यों में प्रभावी हो। 2014 में जरूर मोदी समर्थक और कांग्रेस विरोधी लहर थी। इसी वजह से भाजपा ने 11 राज्योंöउत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और झारखंड की 216 सीटें यानि 90 प्रतिशत सीटें जीती थीं। लेकिन इस बार संकेत है कि भाजपा ने उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, दिल्ली और झारखंड में जमीन गंवा दी है। अगर हम यह कहें कि भाजपा इन राज्यों में अपनी 50 प्रतिशत सीटें दोबारा जीत ले तो भी उसकी 85 सीटें कम हो सकती हैं। कई आर्थिक कारणों, (नोटबंदी-जीएसटी) को मिलाकर एंटी इनकम्बेंसी और जातियों के गठबंधन ने नई राजनीतिक स्थिति उत्पन्न कर दी है। मोदी इससे निपटने के लिए आतंकवाद के खिलाफ बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक और राष्ट्रवाद को सामने रखकर अपनी वकालत कर रहे हैं। भाजपा की बौखलाहट इससे भी पता चलती है कि हर ऐरी-गैरी सियासी दल से किसी भी कीमत पर गठबंधन कर रही है। इससे लगता है कि भाजपा नेतृत्व को भी लग रहा है कि शायद वह अपने दम-खम पर सरकार न बना सकें। ऐसी स्थिति में अपने सहयोगियों की मदद लेनी पड़ सकती है। भाजपा की सबसे बड़ी चिन्ता सपा-बसपा का गठजोड़ है। दूसरी ओर जिस तरह से पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी उच्च जाति के वोटरों को आकर्षित कर रही हैं, उसने भी भाजपा की चिन्ता बढ़ाई है। डॉ. मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं की नाराजगी से कुछ ब्राह्मण वोटर कांग्रेस के पास लौट सकता है। मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड और दिल्ली में भाजपा 2014 की तुलना में कई सीटें गंवा सकती है। दिल्ली में आप और कांग्रेस के बीच गठबंधन पर लगभग सहमति बन चुकी है और भाजपा सभी सात सीटें हार सकती है। गुजरात की सभी सीटें जीतने वाली भाजपा से इस बार कांग्रेस पांच से छह सीटें छीन सकती है। हाल ही में सीएसडी-लोकनीति दैनिक भास्कर और द हिन्दू का चुनाव पूर्व सर्वे आया था। वोट शेयर बढ़ने के बावजूद कई सीटों पर विपक्ष के गठबंधन की वजह से भाजपा की सीटों में कमी आ रही है। 2014 में कांग्रेस को 44 सीटें, सहयोगियों को 15, भाजपा-सहयोगियों को 283+53, लेफ्ट को 12 और अन्य को 136 सीटें मिली थीं। चुनाव पूर्व 2019 में सीटेंöकांग्रेस 74-84, सहयोगियों को 41-51 सीटें, भाजपा को 222-232 सीटें सहयोगियों को 41-51, लेफ्ट को 5-15 और अन्य को 88-98 सीटें मिलने की संभावना दिखाई गई है। सर्वे में एक रोचक तथ्य और निकलकर आया है। 40 प्रतिशत भारतीय मानते हैं कि देश सही दिशा में है। लेकिन दक्षिणी राज्यों में स्थिति उलट है। 45 प्रतिशत लोग कहते हैं कि देश गलत दिशा में जा रहा है। पहली बार के वोटर्स की पहली पसंद के रूप में प्रधानमंत्री मोदी (45 प्रतिशत) उभरकर आए हैं। इस सर्वे से यह स्पष्ट संकेत मिल रहा है कि एनडीए का वोट शेयर 2014 से लगातार घटता जा रहा है और यूपीए का बढ़ता जा रहा है। बाकी तो डिब्बे खुलने पर ही पता लगेगा।

-अनिल नरेन्द्र

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