Sunday, 14 April 2019

पहले चरण में कहीं झड़पें, ईवीएम पर हंगामा ः कुल मिलाकर सही रहा

लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 11 अप्रैल, गुरुवार को 20 राज्यों की 91 सीटों पर चुनाव सम्पन्न हो गया। चढ़ते पारे के बावजूद मतदाताओं ने इसमें जमकर उत्साह दिखाया। चुनाव आयोग की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक बिहार में 2014 के मुकाबले करीब ढाई प्रतिशत अधिक मत पड़े। वहीं उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में पिछले चुनाव के मुकाबले कुछ कम मत पड़े, लेकिन आयोग ने कहा कि अंतिम आंकड़ों में दो से तीन प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो सकती है क्योंकि छह बजे के बाद भी कई जगह पर लोग लंबी कतारों में खड़े हुए थे। जम्मू-कश्मीर का बारामूला और जम्मू सीट पर आतंकियों की धमकियों को दरकिनार कर लोगों ने कतारों में खड़े होकर मतदान किया। दोनों सीटों पर पांच बजे तक करीब 57.31 प्रतिशत वोट पड़े। वहीं आतंक प्रभावित कुपवाड़ा में 51.7 प्रतिशत वोट पड़े। ईवीएम मशीनों की खराबी की शिकायतें यूपी के बिजनौर, महाराष्ट्र की छह सीटों पर और आंध्र प्रदेश तड़ीपात्री में टीडीपी और वाईएसआरसीपी के कार्यकर्ताओं में हुई झड़प में दो लोगों की मौत हो गई। आंध्र विधानसभा के स्पीकर कोडेला शिव प्रसाद घायल हो गए। यूपी के कैराना स्थित रसूलपुर गांव में बिना पहचान पत्र मतदान की कोशिश कर रहे लोगों को रोकने के लिए सुरक्षाबलों को हवाई फायरिंग करनी पड़ी। मतदान शुरू होने के कुछ देर बाद मुजफ्फर नगर से भाजपा प्रत्याशी संजीव बालियान ने आरोप लगाया कि कुछ लोग बुर्के में आकर फर्जी मतदान कर रहे हैं। बसपा नेता सतीश चन्द्र मिश्रा ने आरोप लगाया कि यूपी के कई बूथों पर अधिकारियों और पुलिस ने दलित मतदाताओं को मतदान करने से रोका। इन सबके के बावजूद हमें इनसे सीखने की भी जरूरत है। केदारनाथ विधानसभा क्षेत्र के तरसाली गांव के ग्रामीणों ने 100 प्रतिशत मतदान करके इतिहास रच दिया। गांव में पहली बार मतदान केंद्र बनाया गया था। मतदान को लेकर उत्साह का आलम यह रहा कि दोपहर एक बजे तक ही ग्रामीणों ने शत-प्रतिशत मतदान कर दिया था। पहले चरण में जिस उत्साह के साथ मतदाताओं ने भाग लिया यह  लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत है। पर मतदाताओं का जागरूक होना और मतदान में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेना पहला पड़ाव है। इस बार लोकसभा चुनाव खास है, इसलिए नहीं कि आने वाले पांच सालों तक कौन राज करेगा केंद्र में, इसका जवाब इस चुनाव से मिलेगा, बल्कि इसलिए कि चुनाव के कुछ ऐसे मुद्दे दोबारा रेखांकित हो रहे हैं जो कुछ समय पहले तक राजनीतिक विमर्श के केंद्र में नहीं थे। लोकतंत्र का अर्थ सिर्प इतना नहीं है कि जनता कुछ सांसदों और मंत्रियों को चुन दे सरकार बनाने के लिए। लोकतंत्र में किन विषयों पर विमर्श चल रहा है, इस सवाल के जवाब से यह तय होता है कि हमारा लोकतंत्र कितना परिपक्व है। सिर्प जातिगत समीकरण या धार्मिक मुद्दों को भड़का कर चुनाव नहीं जीता जा सकता, यह बात धीरे-धीरे मुख्यधारा के राजनीतिक विमर्श में स्थापित हो रही है। यह एक अच्छा संकेत है। उम्मीदवारों का स्तर भले ही न सुधरे, वंशवाद तो लगातार बढ़ता दिख रहा है। चुनाव जीतने के लिए तमाम हथकंडे इस बार अपनाए जा रहे हैं और चाहे पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा हो, लेकिन इन सब नकारात्मक तथ्यों के बीच बढ़ता मतदान प्रतिशत एक आशा की किरण जरूर जगाती है। मतदाता जागेगा, ठीक से उम्मीदवार को परखेगा, मुद्दों को समझेगा तो ही हमारा लोकतंत्र मजबूत होगा। आमतौर पर एक कटु सत्य यह भी है कि शहर के इलाके में वोटिंग प्रतिशत कम होता है, जहां पढ़ा-लिखा, सरकारी तबका, सुविधा-सम्पन्न वर्ग निवास करता है। ऐसा वर्ग ड्राइंग रूम में और अपने एयरकंडीशनर को चलाकर देश के हालात पर लंबा-चौड़ा अपना मत तो अवश्य करता है, लेकिन वोट के लिए लाइन में लगना उसके लिए कतई जरूरी नहीं होता। ऐसा नहीं है कि जातिगत समीकरणों या धार्मिक मुद्दों की प्राथमिकता खत्म हो गई है पर अब हर दल को यह भी बताना पड़ रहा है कि गरीब किसान या निम्न तबके के लिए उसकी क्या योजना है, उसके घोषणा पत्र में क्या वादा किया गया है? इन योजनाओं के लिए संसाधन कहां से जुटाएंगे? जब चुनाव आयोग सहित पूरा देश मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए कोशिशें कर रहा है, तब एक-एक वोट बेहद कीमती हो जाता है। लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए भले ही कोई बलिदान दे, लेकिन मतदान करके एक सकारात्मक योगदान की उम्मीद तो जगती ही है। चुनाव आयोग कुल मिलाकर पहले राउंड में अच्छे नम्बर लेकर सफल रहा है उम्मीद की जाती है कि निष्पक्ष और हिंसा सहित बाकी दौरों का चुनाव भी इसी तरह सम्पन्न होगा।

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